Wednesday, December 16, 2020

सुशासन पर भरोसा बढ़ाने वाली जीत

दो टूक यह कि पिछले बिहार विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी एक्जिट पोल गलत सिद्ध हुए हैं। इतना ही नहीं चुनाव को लेकर किया गया तमाम सर्वे और एनाॅलिसिस फिलहाल डायलिसिस पर दिखाई दिये और बाजी सबको चैंकाते हुए फिर नीतीष कुमार ने मारी। गौरतलब है कि नीतीष कुमार बिहार में सुषासन की बयार के लिए जाने जाते हैं और षायद उसी का परिणाम है कि जनता अपने दिल से उन्हें नहीं निकाल पायी। हांलाकि इस बार नीतीष की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) भाजपा से कम सीट हासिल कर पायी है। गौरतलब है पिछले चुनाव में तीसरे नम्बर पर रहने वाली भाजपा इस बार दूसरे नम्बर की पार्टी बन गयी है। राश्ट्रीय जनता दल पिछले 80 सीट की जीत से काफी पीछे और जेडीयू का पिछली जीत 76 सीट के मुकाबले इस बार मात्र 43 के इर्द-गिर्द सिमटना मतदाताओं की नाराजगी को भी साफ झलकाता है। हांलाकि 2010 के चुनाव में जदयू 115, भाजपा 91 और राजद 22 सीटों पर थी। कुषासन बनाम सुषासन के बीच भी बिहार का यह चुनाव जाना जायेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीष से पहले डेढ़ दषकीय लालू-राबड़ी सत्ता की याद दिलाकर बिहार के मतदाताओं को जहां होषियार रहने पर जोर दिया, जंगल राज और कुषासन की बात कह कर राजद को बैकफुट पर धकेलने का प्रयास किया वहीं नीतीष अपना अन्तिम चुनाव कहकर भावनात्मक कार्ड भी खेला। 

फिलहाल जिस तर्ज पर बिहार एनडीए ने जीता है वह कानून व्यवस्था, सुषासन, षान्ति और कई सम्भावनाओं को समेटे हुए है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि नीतीष कुमार ने बिहार को सुधार के साथ प्रगति भी दी है। यद्यपि सुषासन को लेकर आम लोगों में विभिन्न विचार हो सकते हैं पर सुषासन वो ताकत है जो मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतांत्रिकरण के महत्व पर बल देता है। नीतीष कुमार पिछले डेढ़ दषकों में न्याय, सषक्तिकरण, रोज़गार एवं क्षमतापूर्वक सेवाप्रदायन की भूमिका में बने रहे। समाज के प्रत्येक तबके में गरीबी, बीमारी, षिक्षा, चिकित्सा समेत बुनियादी तत्वों को हल करते दिखे। बिजली, पानी, सड़क, सुरक्षा इत्यादि के चलते भी नीतीष के सुषासन को बिहार की जनता भूली नहीं। अलबत्ता तेजस्वी यादव ने 10 लाख सरकारी नौकरी की बात कही मगर मतदाताओं ने इतना भरोसा नहीं किया कि उन्हें सत्तासीन करें। हांलाकि बिहार कोरोना के इस काल में रोज़गार की बड़ी मार झेल रहा है। बावजूद इसके पुरानी सत्ता पर भरोसे का बढ़ना यह बताता है कि राजद को लेकर बिहार का मतदाता अभी उस विष्वास तक नहीं पहुंच पाया है। लालू के षासनकाल के तमाम यादों को चुनाव प्रचार से दूर कर तेजस्वी स्वयं को अगुवा कर आगे बढ़े मगर सत्ता की कुर्सी तक न पहुंच पाये। इसमें केवल एक रूकावट नीतीष बाबू का सुषासन ही था। 

वैसे बिहार के मतदाताओं ने समझदारी भी दिखाई है नीतीष को कुर्सी दिया और तेजस्वी को मजबूत विपक्षी होने का गौरव। कम उम्र के तेजस्वी सत्ता के पायदान से दूर रहे और नीतीष सियासत में अन्तिम हुंकार भर रहे थे। साफ है जिस तर्ज पर नीतीष की ताजपोषी हो रही है अब बिहार के मतदाताओं के लिए कोई कमी सरकार की ओर से नहीं होनी चाहिए। चुनाव से पहले केन्द्र सरकार का भारी भरकम आर्थिक पैकेज और बीजेपी का सीटों को लेकर आधे-आध की लड़ाई में नीतीष पर पूरा भरोसा बिहारी मतदाताओं को रास आया है। मगर एक कयास यह भी है कि कम संख्या वाले नीतीष के दल पर यदि बीजेपी के मन में कोई नया अंकुर फूटता है तो यह मतदाताओं के साथ किसी अनहोनी से कम नहीं होगा। बेषक बिहार की सत्ता पुराने डिजायन से बाहर निकलकर चुनाव न लड़ा हो और नीतीष के दल को कम सीटे आई हों मगर जीत नीतीष की ही कही जायेगी। युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों समेत सभी का साथ नीतीष में सिमटता दिखता है। 

प्रधानमंत्री मोदी न्यू इण्डिया की बात करते हैं। 2020 बिहार विधानसभा का चुनाव जिस दौर में हुआ वह न्यू बिहार का परिप्रेक्ष्य लिए हुए है। देष के लिए एक यह चुनाव एक उदाहरण भी है और इस बात के लिए भी जाना जायेगा कि भले ही कोरोना संकट में सरकारों ने जनता का उतना साथ न दिया हो मगर यदि उपलब्धि पुरानी हो तो विष्वास टूटता नहीं है। कोरोना काल में बिहार के प्रवासियों को सुषासन से भरी नीतीष की सरकार जहां हैं वहीं रहने की सलाह दे रही थी और मोदी सरकार हजारों किलोमीटर की यात्रा करने वालों के लिए कोई खास बंदोबस्त नहीं कर पाई। लगा था कि मतदाताओं का गुस्सा फूटेगा पर सुषासन की महत्ता बिहार की सुचिता और अपनी सुरक्षा को देखते हुए लगभग 8 करोड़ मतदाताओं ने नीतीष को चुनना ही बेहतर समझा। हालांकि तेजस्वी यादव के प्रयासों को दरकिनार नहीं किया जा सकता। उन्होंने लालू राज की गलतियों पर माफी भी मांगी है, आलोचनाओं पर सधा हुआ जवाब भी दिया है। एक कम उम्र का परिपक्व नेता दिखाने का प्रयास किया पर जीत से दूरी बनी रही। मगर आने वाले बिहार के चुनाव में तेजस्वी की लोकप्रियता बढ़ती हुई दिखती है। आगे के पांच साल यह तय करेंगे कि नीतीष सुषासन पर कितनी और परत चढ़ाते हैं और बिहार की 12 करोड़ जनता को कैसे आत्मनिर्भर बनाते हैं। यदि सब कुछ सही रहा तो बिहार के सुषासन बाबू नीतीष कुमार को बिहार का सुधारक भी माना जा सकेगा और विपक्षी की भूमिका में तेजस्वी यदि खरे उतरे तो यह परछाई जो इस बार सत्ता से चूक गयी है अगली बार मतदाता इन्हें सत्तासीन भी कर सकते हैं। फिलहाल सबके बाद यह कहना कहीं अधिक रोचक है कि बिहार में बयार है फिर नीतीषे कुमार है।


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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