Monday, November 9, 2020

दुनिया पर पड़ेगी व्हाइट हाउस की नई चमक

डेमोक्रेटिक पार्टी के अमेरिकी राश्ट्रपति उम्मीदवार जो बायडन ने जब भारत-अमेरिकी मूल की कमला हैरिस को उपराश्ट्रपति पद देने की बात कही तभी यह लगने लगा था कि वे एक तीर से कई निषाने लगा चुके हैं। बायडन की जीत और ट्रम्प की हार में वैसे तो मात्रात्मक और गुणात्मक कई तरीके से पड़ताल की जा सकती है। लगभग 250 साल के अमेरिकी लोकतांत्रिक इतिहास में कभी रिपब्लिकन तो कभी डेमोक्रेट सत्तासीन होती रही है। फिलहाल बायडन का व्हाइट हाउस पहुंचना उनकी रणनीति को पुख्ता बना रही है। कमला हैरिस के चलते उन्हें अष्वेतों का वोट मिलना लगभग तय हो गया जो कि चुनाव में दिखता भी है। दूसरा महिला उपराश्ट्रपति बनाने का लाभ भी उनके हिस्से में गया है। गौरतलब है कि बायडन बराक ओबामा के दोनों कार्यकाल में उपराश्ट्रपति रहे और उन्हें करीब 5 दषक का सियासी अनुभव है। पड़ताल बताती है कि 1987 में वे राश्ट्रपति के उम्मीदवार की कोषिष में थे और उन्हें आधा दर्जन से अधिक राश्ट्रपतियों के साथ काम करने का तजुर्बा भी है। डोनाल्ड ट्रम्प इस चुनाव में कई मोर्चे पर विफल दिखाई देते हैं। अष्वेतों के बीच सही संदेष का न पहुंचा पाना उनके लिए उनकी हार के कारणों में यह भी एक कारण कहा जा सकता है। हालांकि रंगभेद अमेरिका की जमीन में 4 सौ साल पहले उगा था और उसकी खेती बीच-बीच में अभी भी लहलहा जाती है। ट्रम्प के समय में भी यह देखने को मिला है। कोरोना के दौर में कमजोर रणनीति और केवल चीन को कोसने तक ही सीमित रहना भी अमेरिकी जनता को रास नहीं आया। विष्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से अपने को अलग करने के चलते भी अमेरिका में अलग-अलग राय हो गयी थी। हालांकि वो रूस से 1987 के इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज समझौते और 2015 का पेरिस जलवायु समझौता पहले ही तोड़ चुके थे। ईरान के साथ तो लगभग युद्ध कर चुके थे। साथ ही भारत का ईरान से तेल न लेने का प्रतिबंध भी देखा जा सकता है। इतना ही नहीं एच-1बी वीजा के मामले में भी उनक सख्त रूख भी उनके खिलाफ ही गया है।

डोनाल्ड ट्रम्प एक सख्त नेतृत्व के रूप में स्वयं को दुनिया में दिखाया कई समझौते तोड़े अमेरिका फस्र्ट की राह को समतल करने का प्रयास किया मगर उसी दुनिया में रिस रही उनकी कमजोरियां भी अमेरिकी जनता ने देखा। फिलहाल एक पारी खेल चुके डोनाल्ड ट्रम्प दुनिया के तमाम देषों के लिए हमेषा सुर्खियां रहे। वैसे अमेरिका हमेषा सुर्खियों में ही रहता है। जो बायडन जिस जीत के साथ आगे बढ़े हैं और उनका 46वें राश्ट्रपति के रूप में व्हाइट हाउस पहुंचना नये वैष्विक समीकरण पर एक चमक छोड़ रहा है। अमेरिका के अब तक के इतिहास में डोनाल्ड ट्रम्प सबसे उम्रदराज राश्ट्रपति के रूप में जाने जाते थे अब यह तगमा 77 वर्शीय जो बायडन के हिस्से में चला गया है। अमेरिका की पल-पल की चुनावी हलचल पर भारत की निगाहें भी टिकी हुई थीं। देखना था कि ट्रम्प अपनी कुर्सी बचा पाते हैं या जो बायडन व्हाइट हाउस में प्रवेष करते हैं। सवाल यह है कि नये अमेरिकी राश्ट्रपति का भारत पर क्या असर पड़ेगा। जाहिर है द्विपक्षीय रिष्ते नरम-गरम हो सकते हैं लेकिन बहुत बदलेंगे ऐसा दिखता नहीं है। चुनाव से पहले भारत और अमेरिका के बीच में टू-प्लस-टू की वार्ता अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह में सम्पन्न हुई। खास यह भी है कि पाकिस्तान पर बायडन षायद उतने सख्त न रहें जितने ट्रम्प थे क्योंकि डेमोक्रेटिक नीतियों में ऐसा कम ही रहा है। बराक ओबामा के 8 साल के कार्यकाल में पाकिस्तान पर आर्थिक पाबंदी का न लगाया जाना जबकि इन्हीं के कार्यकाल में पाकिस्तान के एटबाबाद में छुपे अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन मारा गया था। यह बात पुख्ता करती है कि डेमोक्रेटिक कुछ हद तक मध्यम मार्गी है। मोदी और बराक ओबामा गहरी दोस्ती के लिए जाने जाते हैं। फिर भी बराक ओबामा ने पाकिस्तान पर कोई खास षक्ति नहीं दिखाई थी। 

बायडन के राश्ट्रपति के रूप में व्हाइट हाउस में होना भारत के लिए कोई खास असर दिखता नहीं है। पर कई वजहों से असमंजस अनायास ही बढ़ जाता है। असल में बायडन मोदी सरकार की कई नीतियों पर सवाल उठाते रहे हैं। सीएए और एनआरसी पर उनकी राय अच्छी नहीं है। जम्मू-कष्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने को लेकर भी बायडन का रूख भारत को असहज करने वाला रहा है। जहां तक कारोबार की बात है तो बायडन की भी नीति अमेरिका फस्र्ट की ही दिखती है। हालांकि भारत में मध्यम वर्ग को उठाने के लिए कारोबार पर जोर देने की बात बायडन कह चुके हैं। तमाम के साथ यह भी देखा गया है कि राजनीतिक तौर पर जो बयानबाजी होती है उसे कूटनीतिक और वैदेषिक नीति के अन्तर्गत बहुत देर तक टिकाऊ नहीं माना जा सकता। सम्भव है कि बराक ओबामा के पसंदीदा बायडन का भारत के साथ अच्छा रिष्ता रहे। वैष्विक स्थिति इन दिनों जिस राह पर इन दिनों है उसे देखते हुए राश्ट्रपति अमेरिका का कोई भी हो भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकता। चीन के मुद्दे पर भारत के साथ बायडन खड़े दिखाई भी देते हैं। षक्ति संतुलन के सिद्धान्त के अन्तर्गत देखें तो चीन को मुखर होने से रोकने के लिए अमेरिका की भारत का साथ देने वाली मजबूरी अक्सर रही है। सामरिक और आर्थिक संतुलन के लिए भी अमेरिका को भारत की जरूरत है। अब सवाल तो यह भी है कि ट्रम्प बायडन से क्यों पिछड़े और अमेरिकी जनता उनसे केवल 4 साल में क्यों ऊब गयी। हालांकि इसके कई कारण पहले बताये गये हैं। असल में ट्रम्प अमेरिका के हितों को सुनिष्चित करने में इतने मषगूल थे कि बाहरी दुनिया को बड़े पैमाने पर दुष्मन बना लिया और राजनीतिक अनुभव ज्यादा न होने के कारण वोटरों को अपने से दूर भी कर दिया। ट्रम्प ऐसे षख्स हैं जो पहली बार राजनीति में आये और राश्ट्रपति बन गये जबकि बायडन 8 साल उपराश्ट्रपति और 47 साल पहले सिनेटर के तौर पर सियासी पारी षुरू की। इसमें कोई दुविधा नहीं कि बायडन राजनीतिक तौर पर गहरे अनुभव वाले हैं।

डोनाल्ड ट्रम्प की 4 साल की पारी को दुष्मन और दोस्त सभी ने परख लिया था। रोचक यह भी है कि चीन, रूस, सऊदी अरब व उत्तर कोरिया समेत कई मित्र और षत्रु देष ट्रम्प को ही राश्ट्रपति के रूप में पुनः देखना चाहते थे इसका षायद एक फायदा यह होता है कि देष विषेश को यह पता होता है कि पहले से चली आ रही कूटनीतिक चाल और वैदेषिक नीति में क्या नया कदम उठाना है। मगर जब सत्ता बदल जाती है नये व्यक्ति की ताजपोषी होती है तब दुनिया के देष नये रणनीति की ओर चले जाते हैं मगर भारत के मामले में यह पूरी तरह लागू नहीं दिखाई देता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बराक ओबामा का प्रभाव बायडन पर है उन्होंने इनके लिए प्रचार भी किया था और ओबामा के समय में भारत-अमेरिका के सम्बंध किसी भी काल से बेहतर स्थिति में थे। गणतंत्र दिवस पर ओबामा का मुख्य अतिथि के रूप में आना और दो बार भारत आना इस बात को पुख्ता करता है। हालांकि डेमोक्रेटिक के राश्ट्रपति रहे बिल क्लिंटन के समय पोखरण-2 के चलते अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था। फिलहाल ऐसा लगता है कि बायडन एक सुलझे हुए राजनेता हैं और ट्रम्प के कई निर्णयों को सही करने का काम करेंगे। मसलन पेरिस जलवायु समझौते में अमेरिका को पुनः षामिल करना चाहेंगे जैसा कि वह कह चुके हैं। चीन के मामले में उनकी नीति ट्रम्प की तरह ही दिखाई देती है जबकि रूस को वो खतरा बता चुके हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि व्हाइट हाउस एक नये तेवर के साथ अब सुर्खियों में रहेगा और बदले हुए वैष्विक फिजा में एक नई चर्चा की ओर आगे बढ़ेगा। कमला हैरिस की भूमिका भी भारत से सम्बंध के मामले में और भरोसा बढ़ायेगा। फिलहाल व्हाइट हाउस की चमक एक बार फिर नये रूप में दुनिया के सामने दिखेगी। 


 डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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