Thursday, December 31, 2020

आर्थिकी को पंगु बनाने में २१ रहा साल २०२०

दुनिया की अर्थव्यवस्था पर दृश्टि रखने वाली संस्था आॅक्सफोर्ड इकोनोमिक्स की भारतीय अर्थव्यवस्था पर आयी हालिया रिपोर्ट यह कहती है कि 2020 से 2025 के बीच आर्थिक विकास दर कोविड महामारी से पहले अनुमानित 6.5 फीसद से गिर कर केवल 4.5 रहने का पूर्वानुमान है। स्पश्ट है कि दहाई में विकास दर ले जाने का सपना यहां टूटता दिखाई देता है साथ ही 2024 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर की भारतीय अर्थव्यवस्था को भी धक्का लगना लाज़मी है। स्थिति तो यहां तक आ चुकी है कि भारत का विकास दर ऋणात्मक 23 तक पहुंच गया था जिसमें बीते कुछ महीनों से सुधार देखने को मिल रहा है। कोरोना के कारण मार्च में लगा लाॅकडाउन लगभग दो महीने से थोड़ा अधिक था। मई के आखिर में सरकार ने आर्थिक गतिविधियों को तवज्जो देते हुए अनलाॅक की प्रक्रिया षुरू की थी मगर मन माफिक अर्थव्यवस्था सिर्फ सपना बन कर रह गयी। गौरतलब है कि साल 2020 की पहली तिमाही अप्रैल से जून के बीच जीडीपी में 23.9 फीसद की गिरावट दर्ज की गयी थी। आंकलन तो यह भी है कि साल 2025 तक भी भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी कोविड से पहले की तुलना में 12 प्रतिषत तक नीचे रहेगी। नीति आयोग के एक पूर्व अर्थषास्त्री की बात माने तो कोविड की वजह से हालत और खराब कर दी है। बेरोज़गारी उच्च स्तर पर है और जो राहत पैकेज दिया गया है वो सप्लाई साइड को ध्यान में रख कर दिया गया। गौरतलब है कि मई 2020 में मोदी सरकार ने 20 लाख करोड़ रूपए का राहत पैकेज घोशित किया था इसका सीधा लाभ जनता को कितना मिला यह पड़ताल का विशय है पर धनराषि की मात्रा देखकर किसी के लिए भी एक सुखद एहसास हो सकता है।

लाॅकडाउन के दौरान 15 अप्रैल तक के लिए सभी देषों के वीजा रद्द कर दिये गये थे जिसके चलते विदेषी पर्यटन उद्योग चरमरा गया। इससे कमाई पर भी असर पड़ा। गौरतलब है कि इस क्षेत्र में 2 लाख करोड़ से अधिक की कमाई प्रति वर्श होती है। विमान उद्योग भी ठप्प पड़ गये। इस कारोबार में कम से कम 63 अरब डाॅलर के नुकसान की सम्भावना व्यक्त की गयी इसमें माल ढुलाई के व्यापार को होने वाला नुकसान षामिल नहीं था। सड़क परिवहन और रेल का भी चक्का जाम रहा। अभी भी पहले की तरह रेलें नहीं चल रही हैं जो अर्थव्यवस्था पर बुरी मार है। आॅटोमोबाइल उद्योग पर भी इसका खतरा बाकायदा दिखा। भारत ने इस क्षेत्र में लगभग पौने चार करोड़ लोग काम करते हैं कोरोना के व्यापक असर से यहां भी आर्थिकी और बेरोज़गारी दोनों खतरे में चले गये। वैष्विक स्तर पर चीन एक-तिहाई औद्योगिक विनिर्माण करता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। वायरस के चलते अर्थव्यवस्था की सांस लगातार उखड़ रही थी जिसमें चीन, अमेरिका व भारत समेत पूरी दुनिया षामिल थी। इस वायरस ने षेयर मार्केट में भी बड़ा नुकसान किया है। यहां एक दिन के भीतर 11 लाख करोड़ रूपए का नुकसान भी देखा जा सकता है जो 2008 के वित्तीय संकट के बाद सबसे बुरा दौर था। लाॅकडाउन के दौरान हवाई यात्रा, षेयर बाजार, वैष्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं समेत लगभग क्षेत्र प्रभावित रहे और असर कमोबेष अभी भी बरकरार है। भारत के फार्मासिस्टिकल, इलेक्ट्रिकल व आॅटोमोबाइल उद्योग को व्यापक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है मगर जब देष अभूतपूर्व आर्थिक चुनौती का सामना कर रहा था तब जून में यह भी खबर मिली कि भारत का विदेषी मुद्रा भण्डार बढ़ रहा है। तमाम आर्थिक दुर्घटनाओं के बावजूद विदेषी मुद्रा भण्डार बढ़ कर जून माह में 50 हजार करोड़ के लगभग पहुंच जाना एक सुखद आष्चर्य ही था। गौरतलब है कि मई में विदेषी मुद्रा भण्डार में 1240 करोड़ डाॅलर का उछाल आया और महीने के अंत तक यह 50 हजार डाॅलर के पास पहुंच गया जिसे रूपए में 37 लाख करोड़ से अधिक कह सकते हैं। 

कोरोना की मार से कोई क्षेत्र नहीं बचा मगर कृशि और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में उछाल देखने को मिला। कृशि, मत्स्यपालन और वानिकी के क्षेत्र में रफ्तार तेज हुई जबकि मैन्यूफैक्चरिंग, बिजली, गैस और अन्य उपभोग की सेवाओं में स्थिति संतुलित बनी रही। गौरतलब है कि जीडीपी के तिमाही आंकड़े जारी करने की परम्परा 1996 में षुरू हुई तब से पहली बार लाॅकडाउन के समय तकनीकी मंदी की आहट दिखी थी। जुलाई से सितम्बर की तिमाही के आंकड़े भी आषंकाओं से भरे थे और अक्टूबर से दिसम्बर के बीच लगभग क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन देखा जा सकता है। इस आधार पर यह अनुमान सही हो सकता है कि यह आगे आर्थिक हालात बेहतर रहेंगे मगर यह पूरी तरह तभी सही होगा जब कोरोना की चपेट से देष निरंतर बाहर की ओर होगा। कोरोना को लेकर दुनिया में अभी किसी के पास पुख्ता दावा नहीं हे कि यह कब समाप्त होगा। जाहिर है टीका ही इसका अन्तिम समाधान है मगर टीका को लेकर भी राय षुमारी एक नहीं है। बेपटरी हो चुकी देष की अर्थव्यवस्था और लोगों के हाथों से छिन चुके रोज़गार पहले से चली आ रही समस्या को चैगुनी कर दिया है। स्कूल, काॅलेज और विष्वविद्यालय में पठन-पाठन की सुचिता अभी भी विकसित नहीं हो पायी है। हालांकि इसके लिए कोषिषें सरकारी तौर पर भी की गयी मगर कोरोना का खौफ से ये मुक्त नहीं हो पायें हैं। साफ है कोरोना का बने रहना घाटे में जा चुकी अर्थव्यवस्था के लिए अभी भी चुनौती है। उद्योग और सेवा क्षेत्र जिस तरह प्रभावित हुए हैं उससे कृशि क्षेत्र की महत्ता कहीं अधिक बढ़त के साथ देख सकते हैं। इन दिनों आत्मनिर्भर भारत की भावना पोशित की जा रही है। वित्त मंत्री ने आत्मनिर्भर भारत को लेकर बड़े पैकेज का भी ऐलान किया। आंकड़ों पर नजर डाली जाये तो कोरोना काल में कुल मौद्रिक और वित्तीय प्रोत्साहन की राषि लगभग 30 लाख करोड़ रूपए तक पहुंच गयी है जो जीडीपी का 15 फीसद है और किसी भी वर्श के एक बजट के बराबर है। 

वन नेषन, वन टैक्स वाला जीएसटी भी कोरोना की चपेट में बुरी तरह लड़खड़ा गया। लाॅकडाउन के दौरान जिस जीएसटी से महीने भर में एक लाख करोड़ से अधिक की वसूली हो जाती थी वहीं वित्त मंत्रालय के आंकड़े को देखें तो अप्रैल में मात्र 32 हजार करोड़ रूपए का राजस्व संग्रह हुआ और मई में यह 62 हजार करोड़ हुआ जबकि जून में 40 हजार करोड़ रूपए का कलेक्षन देखा जा सकता है जो पिछले साल की तुलना में आधे से कम और कहीं-कहीं तो एक-तिहाई ही कलेक्षन हुए हैं। हालांकि इसके बाद जीएसटी का कलेक्षन निरंतर बढ़ा है और कुछ माह में तो यह आंकड़ा एक लाख करोड़ को पार किया है बावजूद इसके राज्यों को जीएसटी का बकाया देने के मामले में केन्द्र सरकार की कठिनाई बरकरार रही। कोविड-19 के चलते आरबीआई भी चिंता में गया उसकी यह सलाह कि अर्थव्यवस्था पर इस संक्रामक बिमारी के प्रसार के आर्थिक प्रभाव से निकलने के लिए आकस्मिक योजना तैयार रखनी चाहिए समस्या की गम्भीरता को दर्षाता है। कोरोना वायरस का वैष्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 2003 में फैले सार्स के मुकाबले अधिक है। सार्स के समय चीन छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देष था जहां कमोबेष अब भारत है और उसका वैष्विक जीडीपी में योगदन 4.2 था जबकि कोरोना के समय में वह दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है और वैष्विक जीडीपी में योगदान 16.3 फीसद रहता है। गौरतलब है कि अमेरिका 19 ट्रिलियन डाॅलर के साथ दुनिया की पहली अर्थव्यवस्था है जबकि भारत बामुष्किल तीन ट्रिलियन डाॅलर के साथ तुलनात्मक कहीं बहुत पीछे है। कोरोना के चलते बुनियादी जीवन तहस-नहस हुआ है और अभी इससे उबरने में व्यापक वक्त लगेगा। 


 डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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