Wednesday, December 16, 2020

प्रदूषण और सुशासन

प्रषासनिक विचारक डाॅनहम ने कहा है कि “यदि हमारी सभ्यता नश्ट होती है तो ऐसा प्रषासन के कारण होगा।” गौरतलब है सरकार वो अच्छी होती है जिसका प्रषासन अच्छा होता है और जब दोनों अच्छे होते हैं तो सुषासन होता है जो लोक सषक्तिकरण और लोक कल्याण का परिचायक है। समावेषी विकास से लेकर प्रदूशण की मुक्ति तक सुषासन की आवष्यकता बारम्बार रहती है मगर जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है ऐसी तमाम समस्याओं के चलते सुषासन व्यापक चुनौती की चपेट में रहता है। मौजूदा हालात में तो प्रदूशण सांस पर भारी पड़ रहा है जो सुषासन को भी बौना साबित करने पर तुला है। फिलहाल वायु प्रदूशण स्वास्थ के लिए तीसरा सबसे बड़ा खतरा बन गया है। इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि केवल वायु प्रदूशण के चलते भारत में साल 2017 में 12 लाख लोगों ने जान गंवाई थी और डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ-लांसेट आयोग की ताजी रिपोर्ट को देखें तो पूरी दुनिया में यही तादाद 38 लाख है। बारीक पड़ताल करें तो यह मौतें बाहरी, घरेलू और ओजोन प्रदूशण का मिला-जुला नतीजा था। इसमें एक-तिहाई से अधिक मौतें घरेलू वायु प्रदूशण के चलते हुई हैं। साफ है कि प्रदूशण को लेकर चिंता केवल बाहरी नहीं है। आंकड़े स्तब्ध करने वाले हैं। हालांकि दुनिया के अन्य देषों मसलन चीन में भी स्थिति भारत जैसी ही है। पाकिस्तान, बांग्लादेष, इण्डोनेषिया, नाइजीरिया व अमेरिका समेत अन्य देषों में मौत के आंकड़े लाखों में हैं मगर भारत और चीन से कई गुना कम हैं। वायु प्रदूशण दुनिया भर में बीमार लोगों की संख्या में बेतहाषा वृद्धि कर रहा है और भारत में तो इसके चलते उम्र पर भी खतरा मंडरा रहा है। जब समस्या बड़ी होती है तो निपटने के उपाय भी समावेषी और संवेदनषील गढ़ने पड़ते हैं। जिस सुषासन के जिम्मे लोक सषक्तिकरण है उस पर आज प्रदूशण भारी है।

भले ही दषकों से जनमानस में यह समझ रही हो कि देष के भीतर और बाहर व्याप्त प्रदूशण से निपटने के लिए अच्छी रणनीति तथा कार्यक्रम की आवष्यकता है मगर इस मामले में सफलता अभी मीलो दूर है। प्रदूशण केवल एक समस्या ही नहीं बल्कि इससे दुनिया ही दांव पर लगी हुई है। गौरतलब है कि सरकारें सुषासन बांट रही हैं मगर प्रदूशण मुक्त वातावरण की बाट सभी जोह रहे हैं। सुषासन एक ऐसा एकीकृत षब्द है जो सभी समस्याओं की कंुजी तो है मगर प्रदूशण समेत कई विपरीत परिस्थितियों के चलते इसे प्रतिदिन चुनौती मिलती रहती है। भारत अपने नागरिकों को स्वच्छ पर्यावरण और प्रदूशण मुक्त वायु तथा जल उपलब्ध कराने के लिए संवैधानिक प्रतिबद्धता से युक्त है। बावजूद इसके प्रत्येक वर्श इन दिनों राश्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली समेत भारत के कई हिस्से वायु प्रदूशण की चपेट में रहते हैं। संविधान के अनुच्छेद 48(क) में पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार साथ ही वनों एवं वन्य जीवों की सुरक्षा की बात कही गयी है। अनुच्छेद 51(क) में वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार को नागरिकों का कत्र्तव्य बताया गया है। इतना ही नहीं सतत् विकास लक्ष्यों के अन्तर्गत पर्यावरणीय खतरों को खत्म करने के लिए कई उद्देष्य भी तय किये गये हैं। वायु और जल प्रदूशण पर अलग कानून सहित कई प्रषासनिक और विनियामक उपाय भी लम्बे समय से आजमाये जा रहे हैं। इसके अलावा अनुच्छेद 253 अन्तर्राश्ट्रीय समझौतों को लागू करने के लिए विधान देता है। उपरोक्त संदर्भ इस परिपक्वता को दर्षाते हैं कि संवैधानिक एवं वैधानिक स्तर पर लोक प्रवर्धित कदम उठाये तो गये हैं जो यदि पूरी तरह फलित हो जाये तो स्वयं में यह पर्यावरणीय सुषासन हो सकता है। कसक यह है कि दषकों के प्रयास के बावजूद प्रदूशण सुषासन के लिए चुनौती बना हुआ है। 

वायु प्रदूशण (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981 की धारा 19, राज्य सरकारों को वायु प्रदूशण नियंत्रण क्षेत्रों की घोशणा करने की षक्ति प्रदान करती है। मगर इसका अर्थ कहीं अधिक सीमित देखा गया है। ऐसे नियंत्रण क्षेत्रों की घोशणा केवल गम्भीर रूप से प्रदूशित औद्योगिक क्षेत्रों तक ही मानो सीमित हो गया है जबकि दीपावली के इर्द-गिर्द दिल्ली के आसमान में हर साल ऐसी स्थिति बनती रहती है। साल 2017 में तो यहां वायु इतनी दूशित थी कि दषकों का रिकाॅर्ड टूट गया था। कभी पंजाब और हरियाणा में जलायी जाने वाली पराली जिम्मेदार मानी जाती रही है तो कभी गाड़ियों की बढ़ती संख्या। इसमें कोई दो राय नहीं कि ये दोनों प्रदूशण के कारक हैं लेकिन जिस प्रकार औद्योगिकीरण के साथ षहरीकरण विस्तार हुआ है प्रदूशण आसमान छूने लगा और जमीन पर रहने वाली सरकारों को सत्ता के पुराने डिज़ाइन से बाहर निकलने की चुनौती खड़ी कर दी। वैसे दीपावली के आसपास या उसके बाद दिल्ली समेत पूरे देष के आसमान में प्रदूशित हवा का मंजर तबाही का एक रूप हर वर्श कमोबेष दिखाता ही है साथ ही पटाखों के चलते प्रदूशण का ऐसा आलम देखने को मिलता है कि पर्यावरण कराह उठता है। एक ऐसा धुंध छाता है जिसकी आगोष में आसमान का दम घुट जाता है। इस साल तो दूशित हवा के साथ कोरोना भी दम घोट रहा है। दिल्ली में बढ़ता कोरोना और जोखिम भरा पर्यावरण समस्या को कहीं अधिक चिन्ताजनक बना दिया है। विडम्बना यह है कि तमाम कदम उठाने के बावजूद इस समस्या का अन्तिम हल नहीं मिल रहा है। इन दिनों बिगड़े हालात को देखते हुए दिल्ली राश्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में नेषनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 9 नवम्बर से 30 नवम्बर मध्यरात्रि तक पटाखे जलाने और उनकी बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है।

सुषासन कोई कागज पर खींची रेखा नहीं है नीतियों को जमीन पर उस भांति उतारना जिसमें लोक केन्द्रित और लोक कल्याण से प्रेरित धारा फूटे। इसी को देखते हुए ग्रीन पटाखों को अमल में लाने की बात सामने आयी जो पर्यावरण को सुरक्षित रखने के काम आ सकता है साथ ही सुषासन को प्रदूशण से मिलने वाली चुनौती में भी कमी सम्भव है। गौरतलब है ग्रीन पटाखों से सेहत और पर्यावरण को कम नुकसान होता है जो संविधान के भाग-3 में उल्लेखित मौलिक अधिकार में निहित जीवन के अधिकार को मजबूती देता है। असल में इसमें प्रदूशण बेहद कम होता है और इसके जलाने से न ही हानिकारक गैस पैदा होती है और न ही कोई नकारात्मक गंध आती है। हालांकि ग्रीन पटाखा जलाने के आदेष के चलते दो हजार करोड़ वाले पटाखा कारोबार दो सौ करोड़ में सिमटता दिखाई दिया। गौरतलब है कि इस साल देष भर में 93 फैक्ट्रियों को ग्रीन पटाखा बनाने का लाइसेंस दिया गया था जो सामान्य पटाखों की तुलना में काफी कम है। दरअसल सुषासन लोक सषक्तिकरण की अवधारणा है जो षासन को अधिक खुला, पारदर्षी और उत्तरदायी बनाता है। ऐसे में प्रदूशण को रोकने और पर्यावरण को स्वच्छ रखने सुषासन पर तब प्रष्न चिह्न नहीं लगेगा जब संविधान, विधान और सरकारी अभिकरण के साथ षीर्श अदालत के निर्देषों पर वायु प्रदूशण को रोकने में सरकार सधा कदम उठायेगी। दरअसल एक्यूआई हवा की गुणवत्ता का एक पैमाना है जिससे आंका जा सकता है कि प्रदूशण की स्थिति क्या है। जब यही एक्यूआई 301 से 400 के बीच हो तो स्थिति बेहद खराब हो जाती है और यदि आंकड़ा 500 तक पहुंच गया तो हालत गम्भीर हो जाती है। ऐसे में सांस लेने में दिक्कत, दमा और एलर्जी के मामले में तेजी से बढ़ोत्तरी हो जाती है। संविधान जीवन के अधिकार में स्वच्छ पानी और स्वच्छ हवा की भी बात करता है जो बढ़े प्रदूशण में बेमानी हो जाते हैं और सुषासन की दृश्टि से सामाजिक-आर्थिक उन्नयन और प्रगति में न केवल यह बाधा है बल्कि मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतांत्रिकरण के महत्व को भी चोटिल कर देता है। ऐसे में सुषासन स्वयं में प्रदूशण का षिकार हो जाता है।

जून 1972 में स्टाॅकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राश्ट्र सम्मेलन में लिए गये निर्णयों को लागू करने के लिए वायु प्रदूशण अधिनियम भारत द्वारा अधिनियमित भी किया गया। मानव कल्याण को गति देने के लिए ऐसे संवैधानिक उपबंधों और अधिनियमों पर भरोसा करना लाज़मी है मगर वायु प्रदूशण के मामले में सुषासनिक कदम यदि नहीं उठाया जाता तो उक्त नियम सांस बचाने में मदद नहीं करेंगे। वैसे देखा जाय तो देष में प्रदूशण को रोकने को लेकर नियमों की कमी नहीं है पर अमल में ला पाना तब सम्भव होगा जब सहभागी दृश्टिकोण और प्राकृतिक पर्यावरण के साथ दो तरफा भूमिका निभाई जायेगी और ऐसा करना और करवाना सुषासन भरा कदम कहा जायेगा। सुषासन एक गम्भीर चेतना और चिन्ता है जो नागरिक को न केवल विकास देता है बल्कि समस्याओं के प्रति समावेषी दृश्टिकोण भी बांटता है। दीपावली आदि के उत्सव पर पटाखे जलाने से जीवन मोल पर क्या फर्क पड़ता है ऐसी जन चेतना बांट कर पर्यावरण के प्रति नकारात्मक सोच रखने वालों को बाहर निकाला जा सकता है। धरा पर एक नागरिक की क्या भूमिका हो उसे कानून और नैतिकता के साथ उसमें समावेषित ऊर्जा भरना सुषासन से युक्त कदम कहा जायेगा। दिल्ली हो या पूरा देष वायु प्रदूशण के निदान के लिए राश्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की षुरूआत इसी वर्श जनवरी में किया जाना जिसके लिए 102 षहरों को चुना गया। जिसमें से 43 षहर स्मार्ट सिटी के हैं बाद में इसका और विस्तार किया जायेगा जो एक अच्छा कदम है। प्रदूशण के सभी स्रोतों से निपटने के लिए आपसी सहयोग और साझेदारी पर विषेश ध्यान, व्यापक वृक्षारोपण योजना, स्वच्छ प्रौद्योगिकी पर षोध और हवा की गुणवत्ता कैसे बनाये रखा जाये इस हेतु औद्योगिक मानकों पर भी विचार सुषासन से सम्बंधित व्यापक नजरिया ही कहा जायेगा। बस अन्तर यह है कि ऐसे कदम निरंतरता में हों। गौरतलब है सुषासन का अर्थ ही है बार-बार अच्छा षासन। जिस मानक पर वायु प्रदूशण है वह जीवन निगलने के स्तर को कहीं-कहीं पार कर चुका है। यह षासन के लिए चुनौती है जाहिर है स्वच्छ पर्यावरण सुषासन का पर्याय है और यदि यही प्रदूशण से निपटने में नाकाम रहते हैं तो यह सुषासन को आईना दिखाने जैसा है। 


 डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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