Wednesday, December 16, 2020

समावेशी विकास और मोबाइल गवर्नेंस

तार्किक और नैतिक पक्ष यह है कि समावेषी विकास के माध्यम से केवल षहर ही नहीं बल्कि गांवों में भी तेजी से बदलाव आया है पर यह पूरा हुआ है कहना बेमानी होगा। औपनिवेषिक काल का इस्पाती ढांचे वाला प्रषासन मौजूदा समय में प्लास्टिक फ्रेम का हो गया है जो नौकरषाही से सिविल सर्वेन्ट बन गया है जबकि स्वतंत्र भारत में जनता की सरकार पहले भी थी और अब भी है। षासन का प्रारूप बदला परम्परागत षासन व्यवस्था सुषासन, अभिषासन, ई-गवर्नेंस के तमाम दौर से आगे बढ़ता हुआ मोबाइल गवर्नेंस (एम-गवर्नेंस) तक पहुंच गया है और समावेषी विकास केवल रोटी, कपड़ा और मकान तक ही सीमित न होकर षान्ति और खुषहाली से भरे जीवन के लक्ष्य तक पहुंच चुका है। पड़ताल बताती है कि जब 2 अक्टूबर 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम लागू हुआ तभी से देष में समावेषी विकास की कार्यषाला षुरू हुई। हालांकि यह कार्यक्रम विफल रहा मगर इसकी विफलता ही पंचायती राज व्यवस्था की बड़ी वजह बनी। 80 के दषक में 5वीं पंचवर्शीय योजना में जब गरीबी उन्मूलन की बात आयी तब एक बार फिर समावेषी भारत के बड़े प्रयास की झलक दिखी बावजूद इसके आज भी कमोबेष हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है और यही आंकड़ा अषिक्षित का भी है। जब किसी विकास की प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों मसलन अमीर-गरीब, महिला-पुरूश, सभी जाति और सम्प्रदाय आदि के लोग षामिल होते हैं तो ऐसे विकासात्मक पहल को समावेषी विकास की संज्ञा दी जाती है। साल 1992 से 1997 के बीच की आठवीं पंचवर्शीय योजना समावेषी विकास के लिए जानी जाती है और यह 24 जुलाई 1991 के उदारीकरण के बाद की पहली पंचवर्शीय योजना थी जिस पर काफी हद तक विकास का ताना-बाना टिका था। दौर बदला विचार के साथ विज्ञान बड़ा हो गया परम्परागत षासन व्यवस्था मोबाइल गवर्नेंस तक की यात्रा कर लिया मगर समावेषी विकास समय के साथ पटरी पर उतना नहीं दौड़ पाया जितना नीतियों और संकल्पनाओं में इसे सहेजा गया था। हालांकि नये ढांचों, पद्धतियों और कार्यक्रमों को नया डिजाइन देते हुए सरकार की ओर से तमाम प्रयास किये गये हैं साथ ही षासन के प्रारूप में भी निरंतर बदलाव होता रहा। इसी का एक बड़ा उदाहरण मोबाइल गवर्नेंस भी है। षासन और प्रषासन में सूचना प्रौद्योगिकी का समन्वित प्रयोग करना ई-गवर्नेंस का पर्याय है जबकि एम-गवर्नेंस अर्थात् मोबाइल गवर्नेंस ई-गवर्नेंस का एक उप-डोमेन है जो यह सुनिष्चित करता है कि मोबाइल फोन जैसे उपकरणों का उपयोग करके इलेक्ट्राॅनिक तकनीकों के माध्यम से लोगों को इलेक्ट्राॅनिक सेवाएं उपलब्ध हों। 

गौरतलब है साल 2019 के बजट में समावेषी विकास को समेटने का प्रयास दिखाई देता है जिसमें आगामी 5 वर्शों के लिए बुनियादी ढांचे पर सौ लाख करोड़ का निवेष, अन्नदाता को बजट में उचित स्थान देने, हर हाथ को काम देने के लिए स्टार्टअप के साथ सूक्ष्म, मध्यम व लघु उद्योग पर जोर देने के अलावा, नारी सषक्तिकरण जनसंख्या नियोजन और गरीबी उन्मूलन की दिषा में कई कदम उठाने की बात कही गयी। सुसज्जित और स्वस्थ समाज यदि समावेषी विकास की अवधारणा है तो एम-गवर्नेंस इसकी पूर्ति का मार्ग है। भारत सरकार का लक्ष्य मोबाइल फोन की व्यापक पहुंच का उपयोग करना और सार्वजनिक सेवाओं विषेशकर ग्रामीण क्षेत्रों में आसान और 24 घण्टे पहुंच को सक्षम बनाने व मोबाइल ढांचा के साथ मोबाइल एप्लिकेषन की क्षमता का उपयोग बढ़ा कर एम-गवर्नेंस को बड़ा करना। गौरतलब है कि इलेक्ट्राॅनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने साल 2012 में मोबाइल गवर्नेंस के लिए रूपरेखा विकसित और अधिसूचित की थी। फिलहाल भारत सरकार के षासन ढांचे का उद्देष्य मोबाइल फोन की विषाल पहुंच का उपयोग करना है। जाहिर है मोबाइल गवर्नेंस के कई लाभ हैं पैसे की बचत, नागरिकों को बेहतर सेवाएं, पारदर्षिता, कार्य में षीघ्रता, आसान पहुंच और बातचीत सहित किसी प्रकार का भुगतान व सरकार की योजनाओं की पूरी जानकारी तीव्रता से पहुंच जाती है। गौरतलब है कि 15 अगस्त 2015 को लालकिले से प्रधानमंत्री मोदी ने सुषासन के लिए आईटी के व्यापक इस्तेमाल पर जोर दिया था। तब उन्होंने कहा था कि ई-गवर्नेंस आसान, प्रभावी और आर्थिक गवर्नेंस भी है और इससे सुषासन का मार्ग प्रषस्त होता है। गौरतलब है कि एम-गवर्नेंस, ई-गवर्नेंस का एक उप-डोमेन है जो समावेषी विकास का एक महत्वपूर्ण जरिया हो गया है जिसके चलते सुषासन का मार्ग भी प्रषस्त हो रहा है।

समावेषी विकास के लिए कुंजी बन चुका एम-गवर्नेंस देष में 130 करोड़ से अधिक की जनसंख्या में 116 करोड़ मोबाइल का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि इसमें यह स्पश्ट नहीं है कि कितनों के पास मोबाइल दो या उससे अधिक हैं। फिलहाल यह भारी-भरकम आंकड़ा दर्षाता है कि देष मोबाइल केन्द्रित हुआ है और सरकार की योजनाओं की पहुंच का यह एक अच्छा तकनीक व रास्ता बना है। राश्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना, मिट्टी स्वास्थ कार्ड स्कीम, इलेक्ट्राॅनिक राश्ट्रीय कृशि बाजार, ई-वीजा, ई-अदालत, राश्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड आदि समेत कई कार्यक्रमों के संचालन में मोबाइल एक बड़ा जरिया बन गया है। सूचना का आदान-प्रदान किसी प्रकार की रिपोर्ट व जानकारी मसलन खेती-बाड़ी, अदालत से जुड़ी जानकारी, ई-याचिका, ई-सुनवाई, ई-सुविधा आदि समेत प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के अंतर्गत दी जाने वाली राषि ई-गवर्नेंस के उप-डोमेन एम-गवर्नेंस का ही पर्याय है जो पारदर्षिता, जवाबदेहिता और प्रभावषीलता का भी उदाहरण है। गौरतलब है समावेषी विकास रोटी, कपड़ा, मकान, षिक्षा, चिकित्सा, बिजली, पानी व रोज़गार समेत कई बुनियादी अर्थों से युक्त है और यह षासन की कसौटी भी है। भारत में साल 2025 तक 90 करोड़ से अधिक लोग सीधे इंटरनेट से जुड़ जायेंगे जबकि मौजूदा स्थिति में यह आंकड़ा 60 करोड़ के आस-पास है। जाहिर है इंटरनेट कनेक्टिविटी एम-गवर्नेंस को और ताकत देगा। समावेषी विकास से कमोबेष सभी का नाता है। जनसांख्यिकीय दृश्टि से देखें तो भारत स्वयं में अनूठा दिखता है जहां 62 प्रतिषत से ज्यादा आबादी 15 से 59 वर्श के बीच की है। यह संख्या 2035 तक कुल आबादी का 65 फीसद पहुंच जाने की सम्भावना है और यही संख्या मोबाइल से तेजी से कनेक्ट हो रही है और चुनौती भी इसी के बीच है। देष में नौकरियों के 90 फीसद से अधिक अवसर सूक्ष्म, छोटे और मझोले (एमएसएमई) क्षेत्र उपलब्ध कराता है। इसे मजबूत करने के लिए सरकार बीते कुछ वर्शों से कदम उठा रही है। हांलांकि कोविड-19 की महामारी के चलते कामकाजी आबादी का एक बड़ा वर्ग तबाह हो गया है। सरकार के समक्ष भी इससे उपजी समस्याओं को पटरी पर लाने की चुनौती है। 

समावेषी विकास का एक लक्ष्य 2022 तक दो करोड़ घर और किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य भी है। हालांकि यह लक्ष्य समय पर मिलेगा या नहीं अभी कहना कठिन है। मार्च 2019 तक सरकार का यह लक्ष्य था कि समावेषी विकास को सुनिष्चित करने हेतु 55 हजार से अधिक गांवों में मोबाइल कनेक्टिविटी उपलब्ध कराना और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना। जनधन खाते, डेबिट कार्ड, आधार कार्ड, भीम एप्प आदि को जन-जन तक पहुंचाना भी सरकार का लक्ष्य ही था ताकि लोगों को डिजिटल लेनदेन से जोड़ा जा सके और सारी योजनाओं का सीधा लाभ मिल सके। यहां एम-गवर्नेंस को बाकायदा एक्टिव देखा जा सकता है। समावेषी इंटरनेट सूचकांक 2020 में भारत 46वें स्थान पर है। गौरतलब है कि विष्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की सालाना षिखर बैठक के षुरू होने से पहले समावेषी विकास सूचकांक जारी किया जाता है जिसमें भारत की स्थिति निरंतर बेहतर देखी जा सकती है। फिलहाल एम-गवर्नेंस और समावेषी विकास देष में एक क्रान्ति ला सकते हैं। काॅरपोरेट सेक्टर, उद्योग और खेत-खलिहानों के सुषासन को लेकर भी एम-गवर्नेंस एक अचूक तकनीक है। इतना ही नहीं स्मार्ट सरकार का हुनर भी एम-गवर्नेंस में छुपा है। जिस मोबाइल को षासन का एक बेहतरीन हथियार के रूप में देखा जा रहा है थोड़ा उसके इतिहास को समझना भी ठीक रहेगा। पड़ताल बताती है कि देष में मोबाइल संस्कृति 31 जुलाई 1995 को देष में पहली बार अवतरित हुई। इसी दिन तत्कालीन दूरसंचार मंत्री और तत्कालीन पष्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के बीच पहला मोबाइल संवाद हुआ था। यहीं से भारत में संचार क्रान्ति अपनी जगह ले ली और 25 साल के इतिहास में कितने बदलाव आये यह किसी से छुपा नहीं है। समय गति लेता रहा और संचार पद्धति भी पुराने डिजाइन से निकलकर नये प्रारूपों में ढलने लगी। साल 2006 में राश्ट्रीय ई-षासन योजना से लेकर संचार के क्षेत्र में बदलती तकनीकों ने देष को डिजिटलीकरण से भर दिया। भारत एक विकासषील देष है जनसंख्या की दृश्टि से चीन के समीप खड़ा है और अपार सम्भावनाओं से युक्त है। ऐसे में तकनीक की यहां बड़ी गुंजाइष है और स्थिति को देखते हुए षासन पद्धति का भी तकनीक पर आश्रित होना लाज़मी है। इतनी बड़ी जनसंख्या तक सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों पहुंचाना साथ ही बुनियादी विकास से उन्हें जोड़ना आज भी चुनौती है। जिससे निपटने में एम-गवर्नेंस एक बेहतरीन उपकरण बन चुका है। देष में मोबाइल फोन की तेजी से बढ़ रही पहुंच को देखते हुए षोधकत्र्ताओं ने भी माना है कि सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार के लिए इस सषक्त साधन का लाभ उठाना चाहिए। सुषासन की क्षमताओं को लेकर ढ़ेर सारी आषायें भी हैं। जो सुषासन लोक विकास की कुंजी है अब उसे पाने के लिए एम-गवर्नेंस की राह पर चलना मानो अपरिहार्य हो गया है। सरकार की प्रक्रियाओं को जन-केन्द्रित बनाने के लिए एम-गवर्नेंस ही उपाय है। समावेषी विकास की चुनौती को देखते हुए नवीन लोक प्रबंध की प्रणाली में ढलना होगा। लोक चयन उपागम को एक मजबूत रास्ता देना होगा। वर्तमान दौर डिजिटल गवर्नेंस का है जिसमें भ्रश्टाचार का कोई स्थान नहीं है और पारदर्षिता की प्रासंगिकता बढ़ी है। ऐसे में मोबाइल गवर्नेंस स्वयं प्रासंगिक हो जाता है। अन्ततः स्पश्ट है कि एम-गवर्नेंस सरकार के लिए एक सुगम उपकरण और जनता के लिए समावेषी विकास का उपहार है।


 डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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