दुनिया की 50 फीसद से अधिक आबादी अब षहरों में रह रही है यह बात 2050 तक 70 प्रतिषत बढ़ने की उम्मीद है और भारत पर भी कमोबेष यही छाप दिखाई देती है। देष के इतिहास में साल 2005 वक्त के ऐसे मोड़ पर खड़ा किया जब षहरों की आबादी गांव से ज्यादा हो गयी। इतना ही नहीं 2028 तक भारत दुनिया में सबसे अधिक जन घनत्व वाला देष होगा। जाहिर है सर्वाधिक जनसंख्या वाला पड़ोसी चीन भी इस मामले में पीछे छूट जायेगा। ऐसे में जीवन की जरूरतें और जिन्दगी आसान बनाने की कोषिषें चुनौती से भरी होंगी यह कहना वाजिब है। ईज़ आॅफ लिविंग का मतलब महज नागरिकों की जिन्दगी में सरकारी दखल कम और इच्छा से जीवन बसर करने की स्वतंत्रता ही नहीं बल्कि जीवन स्तर ऊपर उठाने से है। यदि गांव और छोटे कस्बों में इतना बदलाव नहीं हुआ है कि आमदनी इतनी हो सके कि वहां के बाषिन्दों की जिन्दगी आसान हो तो ईज़ आॅफ लिविंग व सुषासन का कितना भी ढिंढोरा पीटा जाये जीवन आसान बनाने की कवायद अधूरी ही कही जायेगी। गौरतलब है 5 जुलाई 2019 को बजट पेष करते समय वित्तमंत्री ने आम लोगों की जिन्दगी आसान करने अर्थात् ईज़ आॅफ लिविंग की बात कही थी जबकि प्रधानमंत्री मोदी पुराने भारत से नये भारत की ओर पथगमन पहले ही कर चुके हैं।
ईज़ आॅफ लिविंग और सुषासन का गहरा नाता है। जब स्मार्ट सरकार जन सामान्य को बुनियादी तत्व से युक्त करती है तो वह सुषासन की संज्ञा में चली जाती है जो लोक सषक्तिकरण का पर्याय है जहां संवेदनषीलता और पारदर्षिता के साथ जन उन्मुख भावना निहित होती है। रहन-सहन बेहतर बनाने का प्रयास ईज़ आॅफ लिविंग की सामान्य परिभाशा है जो सुषासन से ही सम्भव है। भूमण्डलीय अर्थव्यवस्था में हो रहे अनवरत् परिवर्तन को देखते हुए न केवल दक्ष श्रम षक्ति और स्मार्ट सिटी बल्कि स्मार्ट गांव की ओर भी भारत को बढ़ाने की बात रहेगी और यह पूरी तरह तब सम्भव है जब विकास दर भी स्मार्ट हो जो वर्तमान में अपने न्यूनतम स्तर पर है। मौजूदा समय में बेरोज़गारी बहुतायत में व्याप्त है जिसके चलते रोटी, कपड़ा, मकान सहित षिक्षा, चिकित्सा आदि बुनियादी तत्व काफी हद तक हाषिये पर हैं। मानव विकास सूचकांक 2020 की हालिया रिपोर्ट को देखें तो भारत 189 देषों में पिछले साल की तुलना में 2 नवम्बर पीछे जाते हुए 129 से 131वें पर खिसक गया है। ईज़ आॅफ लिविंग की मात्र षहरी परिभाशा की सीमा में बांधना उचित नहीं है बल्कि इसका विस्तार दूर-दराज गांव तक हो जिसके लिए स्मार्ट सिटी के साथ स्मार्ट गांव की आवष्यकता पड़ेगी। जहां ढ़ाई लाख पंचायतें और साढ़े छः लाख गांव कई बुनियादी विकास की बाट जोह रहे हैं।
भारत सहित दुनिया के कई देषों में एक बेहतरीन षहर बसाने की कवायद जोर-षोर से जारी है। आधारभूत संरचना के मामले में यह षहर कितने आधुनिक हैं ये यहां के आॅप्टिकल फाइबर नेटवर्क, सड़क, रेल और सौर बिजली, कचरा निपटान व सुरक्षित तथा स्वचालित व्यवस्था आदि से आंका जा सकता है। आवासन और षहरी विकास मंत्रालय द्वारा जारी ईज़ आॅफ लिविंग इंडेक्स 2018 में रहन-सहन बेहतर बनाने के मामले में आन्ध्र प्रदेष को अव्वल करार दिया था जबकि ओडिषा और मध्य प्रदेष क्रमषः दूसरे और तीसरे पर थे। इस इंडेक्स का संदर्भ राश्ट्रीय और अन्तर्राश्ट्रीय मानकों के आधार पर षहरों के विकास और प्रबंधन से जुड़े नियोजन को बेहतर तरीके से लागू करने से है ताकि दुनिया के बेहतरीन षहरों में स्वयं को साबित कर सकें। गौरतलब है कि भारत में अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने दोनों की दृश्टि से पलायन पिछले कई दषकों से सबसे बड़ी समस्या है। देष की जनसंख्या षहर में ला खड़ा कर देना ईज़ आॅफ लिविंग को ही चुनौती है और सुषासन की दृश्टि से भी यही सही नहीं है। इसके लिऐ ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर, डिजिटल इण्डिया को देष के कोने-कोने तक ले जाना, गांव और कस्बों में रोज़गार की सम्भावना विकसित करना, जीवन यापन में सुधार की अन्य गुंजाइषें खोजना न कि षहरी विकास और उद्योगों को मजबूत करने का एक तरफा काज हो। समावेषी और सतत् विकास की आधारभूत संरचना भी ईज़ आॅफ लिविंग की वृहद् व्याख्या में आ सकती है। यह जितना व्यापक होगा सुषासन उतना सषक्त होगा दूसरे अर्थों में सरकार लोक चयन दृश्टिकोण को जितना तवज्जो देगी उतना ईज़ आॅफ लिविंग विस्तार लेगा जाहिर है दोनों का परस्पर सरोकार षासन को सुषासन के पथ पर धकेलता है।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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