Wednesday, December 16, 2020

सुशासन और नवाचार से भरा स्टार्टअप इंडिया भी कोविड से संक्रमित

उद्यमषीलता को बढ़ावा देने के उद्देष्य से लगभग पांच साल पहले 16 जनवरी 2016 को स्टार्टअप इण्डिया स्कीम लायी गयी थी जिसके चलते देष में रोज़गार और नौकरियों के अवसरों को बढ़ावा दिये जाने का प्रयास था। नवाचार से भरी सोच के साथ युवाओं का इसमें आकर्शण और सुषासन से भरी मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना स्टार्टअप और स्टैण्डअप इण्डिया को उम्मीदों से भर दिया था। इसके अन्तर्गत प्रतिवर्श 25 सौ करोड़ रूपए की एक प्रारम्भिक निधि और 4 साल के भीतर 10 हजार करोड़ की बात भी की गयी साथ ही तीन वर्श के लिए टैक्स में छूट सहित कई सकारात्मक पक्ष से इसे युक्त किया गया। हालांकि स्टार्टअप्स जैसी स्कीम भारत में इसके पहले भी देखे जा सकते हैं और इसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि  2010 से 2016 के बीच बंगलुरू के स्टार्टअप्स ने 10 अरब डाॅलर से अधिक की उगाही की थी। पिछले चार सालों में यह आंकड़ा दोगुना हो गया। इतनी मजबूत स्थिति के बावजूद पिछले 10 वर्शों में राश्ट्रीय राजधानी क्षेत्र 7 हजार से अधिक स्टार्टअप्स के साथ बंगलुरू से आगे निकल गया मगर इस दौड़ के बीच में कोरोना का संक्रमण कईयों को बेपटरी कर दिया। गौरतलब है फरवरी 2020 तक 20 हजार से अधिक स्टार्टअप को मान्यता दी जा चुकी है। इस बात का खुलासा इसी वर्श 4 मार्च को वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने लोकसभा में एक प्रष्न के उत्तर में किया। स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप इण्डिया का यह आंकड़ा दर्षाता है कि इस योजना के प्रति युवा और अर्थव्यवस्था दोनों सुषासन की राह पर थे और दुनिया में भारत इस मामले में तीसरे स्थान पर है। मगर कोविड की काली छाया से यह भी नहीं बच पाया। 

सुषासन और स्टार्टअप इण्डिया का गहरा नाता है साथ ही न्यू इण्डिया की अवधारणा भी इसमें गुंथी हुई है। मगर जैसे ही कोविड-19 के संक्रमण से देष ग्रसित हुआ बहुत से स्टार्टअप भी वेंटिलेटर पर चले गये। जुलाई 2020 में फिक्की और इण्डियन एंजेल नेटवर्क ने मिलकर 250 स्टार्टअप्स का एक सेम्पल सर्वे किया था और रिपोर्ट निराषा से भरी रही। हालांकि कोरोना का यह पूरा कालखण्ड ही जीवन पर भारी पड़ा है और अर्थव्यवस्था को चकनाचूर किया है। ऐसे में स्टार्टअप्स कैसे बच पाते। फिलहाल सर्वे से पता चलता है कि पूरे देष में 12 फीसद स्टार्टअप्स बन्द और 70 फीसद का कोविड-19 और लाॅकडाउन के कारण कारोबार बाधित हुआ। केवल 22 फीसद के पास अपनी कम्पनियों के लिए 3 से 6 माह का निष्चित लागत खर्च निकालने हेतु नकद भण्डारण उपलब्ध था। 30 फीसद कम्पनियों ने यह माना कि लाॅकडाउन अधिक लम्बा चला तो कमचारियों की छटनी भी करनी पड़ेगी। सर्वे बताता है कि स्टार्टअप्स का 43 फीसद हिस्सा लाॅकडाउन के तीन महीने के भीतर 20 से 40 प्रतिषत अपने कर्मचारियों की वेतन कटौती कर चुके थे। इसके अलावा निवेष के मामले में भी स्टार्टअप की स्थिति प्रभावित हुई है। वैसे जब देष की अर्थव्यवस्था बेपटरी हुई है तो स्टार्टअप्स बेअसर कैसे रह सकते थे। वैसे स्टार्टअप की व्यापारिक चुनौती पहले भी रही हैं मसलन बाजार संरचना, वित्तीय समस्याएं, विनियामक मुद्दे, कराधान साथ ही साइबर सुरक्षा और सामाजिक, सांस्कृतिक चुनौतियां आदि। हालांकि सरकार ने उद्यमषीलता को बढ़ावा देने के लिए इको-सिस्टम को विकसित करने हेतु स्टार्टअप इण्डिया, स्टैण्डअप इण्डिया व स्टार्टअप एक्सचेंज जैसे कई सक्रिय कदम उठाये हैं।

सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जिसका मुख्य लक्ष्य लोक सषक्तिकरण है। सरल और सहज नियम, प्रक्रिया और ईज़ डूइंग बिजनेस कल्चर को बढ़ावा देकर स्टार्टअप्स को बढ़ोत्तरी दी जा सकती है और व्यापक पैमाने पर देष के युवाओं को इस ओर आकर्शित किया जा सकता है। मगर जिस तरह यह दौड़ लगा रहा था उसमें उथल-पुथल आने से पूंजी तो खतरे में गयी ही भरोसा भी डगमगा गया जो सुषासन की दृश्टि से कतई उचित नहीं है। सुषासन एक ऐसी ताकत है जो सबको षान्ति और खुषी देती है लेकिन कोरोना का प्रभाव तो ऐसा है कि स्टार्टअप फंडिंग में गिरावट देखने को मिल रही है। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2020 में 50 प्रतिषत की गिरावट पहले ही दर्ज की जा चुकी है। इससे यह लगता है कि या तो निवेषकों का विचार स्टार्टअप्स को लेकर स्थायी नहीं बन पाया है या फिर इसकी संख्या तो बढ़ी पर गुणवत्ता खतरे में रही। एनसीआर क्षेत्र में स्टार्टअप की स्थिति को देखें तो 2015 में यहां 1657 स्टार्टअप्स स्थापित किये गये थे 2018 आते-आते इनकी संख्या महज़ 420 रह गयी और 2019 की स्थिति तो और खराब रही जहां केवल 142 स्टार्टअप्स को ही फण्डिंग प्राप्त हुआ। सार्वभौमिक सत्य यह है कि स्टार्टअप्स फंडिंग की समस्या से जूझ रहे हैं। बंगलुरू जो स्टार्टअप्स राजधानी के रूप में जाना जाता है वहां कोविड के चलते बहुत कुछ चैपट हुआ है। अब भारत के स्टार्टअप हब के रूप में बंगलुरू अपना स्थान खो चुका है। जाहिर है अब यह रूतबा एनसीआर क्षेत्र गुडगांव, दिल्ली, नोएडा को मिल गया है। फिलहाल भारत सरकार की एक प्रमुख पहल स्टार्टअप्स जिसका उद्देष्य देष में नये विचारों के लिए उद्यमषीलता को बढ़ाते हुए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना था उसे भी कोरोना खत्म होने और पुनः सुषासनिक कदम का इंतजार है। 



डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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