कौषल विकास का अभिप्राय युवाओं को हुनरमंद बनाना ही नहीं बल्कि उन्हें बाजार के अनुरूप तैयार भी करना है। इस दिषा में बरसों से जारी कार्यक्रम के बावजूद महज 5 फीसद ही कौषल विकास सम्पन्न कर्मी भारत में हैं। जबकि दुनिया के अन्य देषों की तुलना में यह बहुत मामूली है। चीन में 46 फीसद, अमेरिका में 52, जर्मन में 75, दक्षिण कोरिया में 96 और मैक्सिको जैसे देषों में भी 38 प्रतिषत का आंकड़ा देखा जा सकता है। स्किल इण्डिया मिषन के महत्वाकांक्षी संदर्भ को देखें तो आंकड़े इषारा करते हैं कि तीन हजार से अधिक पाठ्यक्रम वाले इस मिषन में एक करोड़ युवा सालाना जुड़ रहे हैं और देष में 25 हजार से अधिक कौषल विकास केन्द्र हैं। 6 साल पहले कौषल विकास केन्द्रों की संख्या केवल 15 हजार थी जो पहले भी कम थी और जनसंख्या के लिहाज़ से और कौषल विकास की रफ्तार को देखते हुए अभी भी कम है। चीन में 5 लाख, जर्मनी व आॅस्ट्रेलिया में एक-एक लाख और इतने ही कौषल विकास केन्द्र अदना सा देष दक्षिण कोरिया में हैं। गौरतलब है चीन जीडीपी का 2.5 फीसद व्यावसायिक षिक्षा पर खर्च करता है। यहां भी भारत तुलनात्मक मामूली है।
देष को विकसित करने के उद्देष्य से प्रधानमंत्री मोदी 15 जुलाई, 2015 को तकरीबन 40 करोड़ भारतीयों को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से 2022 तक हुनरमंद बनाने के उद्देष्य से ‘कुषल भारत-कौषल भारत‘ योजना को षुरू किया था। इस दिषा में प्रगति हुई नहीं ऐसा कहना ठीक नहीं पर वक्त के साथ वैसा बदलाव नहीं आया। हालांकि इस नीति में रफ्तार, गुणवत्ता और टिकाऊपन के साथ कौषल विकास की चुनौतियों पर ध्यान तो दिया गया पर नवाचार की मांग बरकरार रही। असल में कौषल विकास के मामले में भारत बड़े नीतिगत फैसले लेने में कमतर रहा है। जिसके चलते संरचनात्मक और कार्यात्मक विकास में कठिनाई आयी। मनमोहन सिंह की सरकार का लक्ष्य भी 2022 तक निजी संस्थानों और काॅरपोरेट सेक्टर को साथ लेकर 50 करोड़ लोगों को प्रषिक्षित करने का था जो मोदी सरकार के 40 करोड़ के पास खड़ा दिखाई देता है। मनमोहन सरकार इससे कोसो दूर रही अब देखना है कि मोदी सरकार कितने समीप रहती है।
प्रधानमंत्री मोदी स्किल, स्केल और स्पीड पर काम करने की बात करते रहे साथ ही युवाओं को कौषल युक्त बनाने की जद्दोजहद भी करते दिखाई देते हैं और जीडीपी के मामले में भी दहाई के आंकड़े की बात कर चुके हैं। मगर वर्तमान अर्थव्यवस्था राह भटकी हुई है और गिरी हुई जीडीपी में बढ़ा हुआ कौषल विकास स्वयं एक चुनौती है। कौषल विकास को जब तक व्यापक और व्यावसायिक पूरी तरह नहीं बनाया जायेगा जीडीपी को प्राप्त करना भी कठिन रहेगा। यूएनडीपी की एक रिपोर्ट पहले भी कह चुकी है कि अगर अमेरिका की भांति भारत के श्रम बाजार में कुल महिलाओं की भागीदारी 70 फीसद तक पहुंचाई जाये तो आर्थिक दर को 4 फीसद से अधिक बढ़ाया जा सकता है। मोदी सरकार ने कौषल विकास को अतिरिक्त सकारात्मक लेने का काम किया है। कौषल विकास नीति-2009 पर पुर्नविचार करते हुए अमली जामा भी पहनाया गया। गौरतलब है कि देष में 65 फीसद युवा एक बहुत बड़ी श्रम पूंजी है मगर गरीबी, बेरोज़गारी से युक्त और बुनियादी विकास से वंचित होने के चलते यही युवा कौषल विकास से दूर खड़ा रहा और षायद देष की जीडीपी भी इसी के चलते दूर की कौड़ी बनी हुई है।
कौषल विकास को अधिक प्रभावी बनाने और नवाचार से युक्त करने के लिए ई-स्किल इण्डिया ने निजी क्षेत्रों के 20 से अधिक संस्थानों के साथ जानकारी की भागीदारी की है। इसकी मात्रा और बढ़ाने की आवष्यकता है। कोविड-19 महामारी ने भी कौषल विकास के क्षेत्र में अन्तर्राश्ट्रीय सहयोग की आवष्यकता को बढ़ा दिया है। भारत जिस तरह युवाओं का देष है यदि उसी तर्ज पर कौषल विकास से युक्त देष की संज्ञा में लाना है तो पेषेवर प्रषिक्षण, और कौषल विकास कार्यक्रम बाजार की मांग के अनुपात में विकसित करना होगा। दुनिया की डिमाण्ड को समझते हुए युवाओं में कुषलता भरना होगा। भविश्य की जरूरतों के अनुरूप इन्हें तैयार करना होगा। वल्र्ड स्किल्स प्रतियोगिता को देखें तो 2019 में 63 देषों में भारत 13वें स्थान पर था। कौषल विकास में नूतनता और अच्छी उम्मीद भरने से न केवल भारत का भविश्य संवरेगा बल्कि आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य भी सुनिष्चित हो सकेगा। ऐसे में प्राथमिकताओं को पहचान कर कौषल विकास को एक कुषल स्थिति देने की आवष्यकता है।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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