Sunday, February 14, 2016

दिल्ली की गद्दी पर केजरीवाल का एक वर्ष

लोकतंत्र का अर्थ देष काल और परिस्थितियों के अनुपात में स्वयं परिश्कृत होता रहा है। दिल्ली राज्य की राजनीति का क्षितिज पक्ष यह रहा है कि यहां नये मिजाज और नये लोकतंत्र की ऐसी परिभाशा गढ़ी गई जो रोचक होने के साथ सियासी जगत में भी हलचल का काम किया था। फरवरी, 2015 के दिल्ली विधानसभा के नतीजे एक चर्चित लोकतंत्र का स्वरूप अख्तियार कर चुके थे। उदयीमान राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी ने भाजपा समेत कांग्रेस को जो पटखनी दी वे लोकतंत्र के पूरे इतिहास में कम ही देखने को मिला है। 14 फरवरी को केजरीवाल सरकार का एक वर्श पूरा हो रहा है। वैसे राजनीति विडम्बनाओं और विरोधाभासों का पुंज है। बावजूद इसके बगैर देष का काम चलता नहीं है। किसी सरकार या राजनेता का मूल्यांकन करने के लिए एक वर्श का समय कम होता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल युवा हैं और काफी कुछ सह कर कुर्सी तक पहुंचे हैं। सरकारें वर्शगांठ मनाने की परम्परा जमाने से निभाती रहीं हैं और ऐसे दिन कामकाज की रिपोर्ट के रस्म अदायगी के लिए भी जाने जाते हैं। अरविन्द केजरीवाल की सरकार का एक साल का मूल्यांकन में असल दिक्कत यह है कि इनकी षैली को पकड़ पाना मुष्किल हुआ है। षासन व्यवस्था के लिहाज़ से एक नये तरीके का लोकतांत्रिक परिचय इनकी सरकार में निहित रहा है।
सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को जमींदोज करने वाले केजरीवाल दिल्ली में एक वर्श पहले ऐसी पटकथा लिख गये कि सियासत के जानकारों के बूते में भी आंकलन नहीं समा पाया। दरअसल लोकतंत्र ऐसी विधा है जहां सभी का समावेषन बड़ी आसानी से तो हो जाता है पर जब निभाने की बारी आती है तभी वादे और इरादे की पोल-पट्टी खुलती है। लोकतंत्र में आलोचनाओं की कोई कमी नहीं होती। केजरीवाल भी इससे परे नहीं है। षुरूआती एक छमाही में देखा जाए तो ज्यादातर इनका समय आलोचनाओं में घिरे रहने में गया है जबकि दूसरी छमाही कई कामकाजी प्रयोग में बीतते हुए देखा गया। क्रान्तिकारी विचारधारा से राजनीति कितनी चलती है इस पर सबके अपने-अपने आंकलन हैं पर केजरीवाल ने यह सिद्ध किया है कि लोकतंत्र के साथ-साथ कामकाज में भी क्रान्तिकारी स्थिति पैदा की जा सकती है। सार्वजनिक मुद्दों पर बड़ी सहजता से बोलते हैं लगता है सीखने की आदत से अभी गुरेज नहीं किये हैं। लोग समझने भी लगे हैं और विष्वास भी काफी हद तक करने लगे हैं। केजरीवाल ने एक काम और किया है कि लोगों के मन में यह बिठा दिया है कि यदि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलता है तो उनकी सरकार दिल्ली वालों के लिए कायाकल्प वाली सिद्ध होगी।
भारत राज्यों का संघ है और इसी संघ में 29 राज्य और दिल्ली समेत 7 केन्द्रषासित प्रदेष हैं। केजरीवाल इस मामले में भी सफल कहे जायेंगे कि एक छोटे से अधिराज्य दिल्ली के मुख्यमंत्री होते हुए उन्होंने दिल्ली को उतना ही बड़ा बना दिया जितना बड़ा देष है। काफी हद तक यह समझाने में भी कामयाब रहे कि षहरी प्रदेष में संभालने में वैसी ही कूबत झोंकनी पड़ती है जैसी कि देष भर की सियासत में। लोकतंत्र की विधाओं को जब खरोंच लगती है तब जनता हुंकार भरती है। 1993 से दिल्ली में सरकारों का चलन षुरू हुआ सुशमा स्वराज, मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा सहित षीला दीक्षित यहां की सत्ता पर आदि काबिज हुए ये पहले से सियासत के धनी और राजनीति के अनुभवी रहे थे जबकि केजरीवाल सियासत का पूरा ककहरा रटने से पहले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गये। दो टूक यह है कि राजनीति का एक गैर अनुभवी व्यक्ति लोकतंत्र के मामले में षिखर पर और सत्ता के मामले में बहुधर्मी प्रयोग के लिए वो मान्यता हासिल किया जिसके लिए बरसों खपाने पड़ते हैं। जनता परिपक्व है सियासत के साथ सत्ता को भी समझती है। मीडिया से लेकर भाजपा और कांग्रेस के सभी कद्दावर नेताओं ने केजरीवाल को उतना भारयुक्त नहीं माना था जितना उन्होंने स्वयं को सिद्ध किया है।
सरकार के कार्यों की क्या षैली हो इसका अनुकरण भी केजरीवाल के लिए बड़ी चुनौती थी। भ्रश्टाचार को लेकर उनकी बेदाग छवि लोकतंत्र को भुनाने में बड़ी काम आई। अन्ना आंदोलन में उनकी पैठ और उससे मिली षोहरत राजनीतिक धु्रवीकरण में एक पूंजी की तरह थी। सबके बावजूद एक ऐसे मुख्यमंत्री के तौर पर उभरे कि देष की सियासत में बड़ा वजूद विकसित किया। षायद ही किसी प्रदेष के मुख्यमंत्री को इतनी ताकत और षिद्दत से पहले कभी लोकप्रियता मिली हो। दिल्ली की बागडोर इतनी आसान भी नहीं है यह षहरी मिजाज का है, यहां की परिवहन व्यवस्था को सुचारू बनाना, प्रदूशण से निपटना, बिजली, पानी, सुरक्षा के साथ विषेशतः महिला सुरक्षा के लिए मजबूत इंतजाम करना तो चुनौती है ही साथ ही स्कूल, काॅलेजों की व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाना आदि आज भी केजरीवाल के लिए किसी जंग से कम नहीं है। बीते एक वर्श में जितना बोया गया है और जितना काटने की उम्मीद की जा रही है उसके बीच संतुलन बनाना भी इसी क्रम की चुनौती है। कई बार परिस्थितयों के भंवर में भी फंसे हैं। इनके मंत्रिपरिशद् के सदस्यों पर फर्जी डिग्री के आरोप लगना, इनके भ्रश्टाचार मुक्त अवधारणा को झटका देते हैं। कुछ अन्य मंत्रियों और पूर्व मंत्रियों पर आरोप लगना भी इन्हें खास से आम बनाने के काम करते रहे हैं। दूरदर्षी फैसले केजरीवाल के तौर-तरीके को समझदारी से उन्मुख कर देते हैं। जनवरी 2016 में प्रदूशण से निपटने के लिए आॅड-ईवन फाॅर्मूला का सफलता दर जिस तरह से बयान किया गया है वह बहुत समुचित और कारगर है। दिल्ली की जनता ने भी इसे हाथोंहाथ लिया है और बिना किसी जोर जबरदस्ती के इसका साथ दिया। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीष से लेकर कई आला अफसरों ने केजरीवाल के इस फाॅर्मूले को प्रोत्साहित किया। फिलहाल अभी इस पर ब्रेक है परन्तु अप्रैल में फिर एक बार इसी फाॅर्मूले पर दिल्ली में परिवहन व्यवस्था सुचारू होगी।
जब दिल्ली में विधानसभा के नतीजे केजरीवाल के पक्ष में एकतरफा हुए तब लोकतंत्र की दुनिया में एक नई बहस छिड़ गयी थी कि ऐसे जनाधार का क्या आधार था। षोध और अन्वेशण भी षायद केजरीवाल के पक्ष में इतना जनाधार कभी नहीं बता सकते थे। यह केजरीवाल के दिल्ली की जनता को लेकर जो सुघड़ राजनीति थी और उनके बीच विकसित जनसम्पर्क का यह नतीजा था। हांलाकि केजरीवाल को लेकर दिल्ली की जनता ने नये प्रयोग और नई धारा के साथ नई राजनीति को अवसर देना चाह रही थी। वाकई में यह जनतंत्र का बहुत अनूठा अभ्यास था। जिस तर्ज पर सब कुछ हुआ है उसे देखते हुए तमाम पुरानी आलोचनाएं औचित्यहीन लगने लगी थीं। दिल्ली की जनता ने ऐसे व्यक्ति के हाथ में सत्ता सौंप दी जिसे काम के अलावा सियासत के पचड़ों से कोई लेना-देना नहीं था। केजरीवाल ने जिस चतुराई से लोगों में पैठ बना ली और उनके मन में फील गुड फैक्टर का जो माहौल बनाया वो भी सियासती इतिहास में कम ही देखने को मिला है। विकास का परिप्रेक्ष्य किस्तों में निहित है जाहिर है जमा पांच साल के कार्यकाल का एक वर्श ही बीता है उम्मीद की जानी चाहिए कि दिल्ली की जनता को वह सब मिलेगा जिसके वायदे पर केजरीवाल ने सत्ता हथियाई थी। इंजीनियर से नौकरषाह और अब राजनेता के साथ सत्ताधारी केजरीवाल इस बात को समझने में भी कोई गलती नहीं करेंगे कि उनकी सियासत औरों से हट कर है और जब तक हटी रहेगी खास बनी रहेगी।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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