Wednesday, February 10, 2016

आतंक का अतिवाद और सभ्य लोकतंत्र की कशमकश

इस तथ्य को गैर वाजिब नहीं कहा जायेगा कि पिछले कुछ वर्शों में दुनिया में इस्लाम के नाम पर गठित किये जा रहे आतंकी संगठनों की बाढ़ आई हुई है। अनुमान तो यह भी है कि इनकी तादाद दिन दूनी रात चैगुनी की तर्ज पर सौ से अधिक है। कुछ दिन पूर्व संयुक्त अरब अमीरात ने 83 आतंकी संगठनों की सूची जारी की थी। इसके अतिरिक्त अमेरिका भी कमोबेष ऐसी ही सूची जारी कर चुका है। देखा जाए तो भारत की जुबान पर भी दर्जनों आतंकी संगठनों का नाम दर्ज है जिनके चलते वह दषकों से लहुलुहान होता रहा है। यह जद्दोजहद का विशय है कि इतनी बड़ी संख्या में पनप रहे आतंकियों को खाद-पानी कौन दे रहा है। पाकिस्तान में आतंकी संगठन के पहले और अब के संदर्भ को देख कर अंदाजा लगाना सहज है कि पाक आतंकियों को सुरक्षा देने में कितना समर्पित रहा है। अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा का यह कथन कि पाकिस्तान आतंकियों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित षरणगाह है इस बात को और पुख्ता करता है। इन दिनों आतंकी डेविड हेडली उर्फ दाऊद गिलानी पाकिस्तान को लेकर जो खुलासे कर रहा है उसे सुनकर आंखें खुली की खुली रह जायेंगी। भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले जमात-उद-दावा पूर्व के लष्कर-ए-तैयबा के  हाफिज सईद से निर्देषित होकर वह काम करता था और भारत के कई स्थान आतंक की जद में थे। बीते दो दिनों से जो खुलासे हो रहे हैं उससे साफ है कि भारत को तबाह करने में पाकिस्तान के आतंकी संगठन कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते थे साथ ही उसका यह कहना कि आईएसआई के फण्ड से 26/11 का हमला हुआ यह सुनिष्चित करता है कि आतंक और आईएसआई दोनों एक ही संगठन के दो प्रतिरूप हैं। लष्कर, जैष-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन और हरकत-उल-मुजाहिदीन ये वे आतंकी संगठन हैं जो भारत में बरसों से तबाही के सामान रहे है जिसके बारे में हेडली ने बाकायदा अदालत में बताया। इन संगठनों का पाक के कब्जे वाले कष्मीर में पूरी ठाट-बाट है। हैरत इस बात की है कि पाकिस्तान सब कुछ जानते हुए भारत को दषकों से सबूत देने के बावजूद भ्रम में रखे हुए है और इसी काम में आगे भी लगा हुआ है।
फिलहाल पाकिस्तान के आतंकी संगठन समेत दुनिया में कई संगठन सभ्य देषों के लिए चुनौती बने हुए हैं। आईएसआईएस इन दिनों सारी दुनिया में पहला ऐसा आतंकी संगठन है जो अपने लिए अलग राश्ट्र स्थापित करने में सफल रहा है यही कारण है कि इस्लामी आतंकी संगठनों में उसका दबदबा निरंतर बढ़ता जा रहा है। एक दौर था जब अलकायदा इसी प्रकार का दबदबा कायम करने की फिराक में 2001 में अमेरिका के वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया जिसकी कीमत थोड़ी देर से ही सही उसे अपनी जान गवां कर चुकानी पड़ी जब अमेरिका पाकिस्तान के एटबाबाद में षरण लिए अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को न केवल निस्तोनाबूत किया बल्कि उसे कब्र भी नसीब नहीं होने दिया। असल में दुनिया पर आतंक के बड़ा खतरा का इस कदर विस्तार लेना किसी भी सभ्यता से भरे लोकतांत्रिक देष के लिए एक नाजुक दौर है। जिस तर्ज पर मुम्बई से लेकर पेरिस के अलावा पहले और बाद इंग्लैण्ड, आॅस्ट्रेलिया, इण्डोनेषिया सहित कई देषों में आतंकी हमले हुए हैं और हो रहे हैं वे बाकियों के लिए चुनौती है। ‘ग्लोबल टेरारिज़्म इण्डैक्स 2015‘ के मुताबिक वर्श 2014 में पूरी दुनिया में 13 हजार से अधिक आतंकी वारदातें हुई जो पिछले वर्श से 35 फीसदी अधिक हैं। ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण हमले में अनगिनत लोग मारे गये जिसमें 78 फीसदी इराक, नाइजीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और सीरिया के थे। यह जानकर हैरत होगी कि इन देषों के बाद भारत का नाम आता है जहां 416 लोग मारे जा चुके हैं। तथ्य चैतरफा असंतोश से भरे हैं पर उनका क्या हुआ जो इसके जिम्मेदार हैं। निष्चित तौर पर इन घटनाओं ने उनके मनोबल में बढ़त का ही काम किया।
बरसों से भारत पर हुए आतंकी हमले को लेकर बहुत कुछ लिखा और पढ़ा जाता रहा है। इस बात का भी ताना देने से गुरेज नहीं रहा है कि भारत आतंक के मामले में कठोर रवैया नहीं अपनाता है। बीते ढ़ाई दषकों से सबूत पर सबूत देने के बावजूद पाकिस्तान हिलाहवाली करता रहा और भारत आतंक-दर-आतंक सहता रहा बावजूद इसके इसका हल सलीखे के दायरे में होने का इंतजार भी भारत ने किया है। कुछ ने तो यहां तक भी कहा है कि भारत ऐसी समस्याओं से उबर ही नहीं पायेगा। दुःख इस बात का है कि हमारे प्रयासों को विष्व बिरादरी भी कमतर आंकती रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकतंत्र को सिराहने रखने वाले भारत में होने वाले आतंकी हमले को समझने में दुनिया ने देरी की है। इसके चलते भी कई लोगों को जो बर्बर नहीं हो सकते थे उन्हें भी बढ़त लेने का अवसर मिला है। पिछले डेढ़ दषक से जब से अमेरिका हमले की जद में आया तभी से दुनिया इसको लेकर चैकन्नी हुई पर नतीजे क्या हैं सिफर तो नहीं पर दहाई तक भी तो नहीं पहुंचे हैं जबकि आतंकविहीन दुनिया के लिए सौ का आंकड़ा छूना है। कभी-कभी इतिहास, संस्कृति और राजनीति की गहराईयों में इसकी खोजबीन होती है तो लगता है कि समावेषी लोकतंत्र के इस दौर में मानव अस्तित्व के लिए खतरा बनने वाले आतंकी इतने व्यापक पैमाने पर बढ़त कैसे बना लिए? भारत के पड़ोस में बंग्लादेष, पाकिस्तान, नेपाल और अब तो म्यांमार भी लोकतंत्र का घर है पर लोकतंत्र के बावजूद पाकिस्तान जैसों ने आतंक को खाद-पानी देने से गुरेज क्यों नहीं किया? इससे महसूस होता है कि लोकतंत्र को लेकर पाकिस्तान जैसों ने अपनी ही परिभाशा बना ली जिसमें आतंक की भी साझेदारी निहित है पर उनका क्या जिनके लोकतंत्र में आतंक तिनके के स्वरूप में भी बर्दाष्त नहीं है। भारत ऐसे देषों में षुमार है जहां लोकतंत्र की सर्वोच्चता और सोच के अलावा किसी भी विध्वंसक प्रवृत्ति को तनिक मात्र भी बर्दाष्त नहीं करता।
कई वजनदार प्रष्न हैं जो अनायास फूट पड़ते हैं कि दुनिया का हर देष और तबका आतंक की आग में क्यों झुलस रहा है? आईएसआईएस का दबदबा क्यों बढ़ रहा है? पाकिस्तान आतंकी संगठनों को लेकर इतना उदार क्यों बना हुआ है? क्यों दूसरों की करतूतों को हम सहें या वे जो सभ्य हैं, जो रीत-नीति से चलते हैं और जिनके यहां विकास की पैदावार होती है आखिर वे भी विध्वंस को कब तक सहेंगे? प्रधानमंत्री मोदी ने बीते 20 महीनों में आतंक को लेकर वैष्विक मंचों पर जो चिंता जाहिर की है और इसे समाप्त करने को लेकर जो एकजुटता दिखाई है वह काबिल-ए-तारीफ है पर मुष्किल यह है कि दवा के साथ दर्द कम नहीं हो रहा है। आतंकवाद आज के दौर में एक ऐसे बिसात पर चल पड़ा है जहां सभ्य देषों की चालें अनुपात में कारगर सिद्ध नहीं हो रही हैं। पेरिस हमले के बाद जो पलटवार फ्रांस ने किया उसके नतीजे भी अनुकूल नहीं है। आतंकी पनाह को लेकर अमेरिका द्वारा पाकिस्तान पर की गयी टिप्पणी का वजन भी अभी तक नहीं दिखा है। पठानकोट के हमले के मामले में पाक को दिये गये सबूत पर मामला खटाई में पड़ा हुआ है। आतंक को लेकर अन्तर्राश्ट्रीय कानून भी बहुत स्पश्ट नहीं है। ऐसे बहुत से क्या और क्यों हैं जो एक-दो कदम से आगे नहीं बढ़ पाये हैं। डिजिटलाइजेषन के इस दौर में आतंकियों का जो प्रभाव बढ़ा है वह सभी के माथे पर बड़ा बल पैदा कर रहा है। बड़े आतंकी नेटवर्क से निपटने के लिए बड़े स्तर के रणनीतिक होमवर्क की अवष्यकता पड़ेगी। अब कच्ची चाल में पूरी सफलता की गारंटी सम्भव नहीं है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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