Tuesday, February 16, 2016

बजट सत्र के मार्ग में कांटे

वह सवाल जो हम सबके सामने मुंह बाये खड़ा है, यह कि उत्पन्य नये प्रकरणों के चलते 23 फरवरी से षुरू होने वाले बजट सत्र का क्या होगा? प्रधानमंत्री मोदी समेत पूरी मंत्रीपरिशद् इसे लेकर घोर चिंता में जरूर होगी। षायद इसी के मद्देनजर प्रधानमंत्री ने मंगलवार को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जिसमें बजट सत्र संसद में ठीक-ठाक ढंग से चल सके इसे लेकर चर्चा की जानी थी। कहा तो यह भी जा रहा है कि जेएनयू का मुद्दा इस बैठक में उठाया गया। फिलहाल मोदी ने दोनों सदन को सुचारू रूप से चलाने के लिए विपक्षी दलों से खुलकर सहयोग मांगा है। देखा जाए तो सत्र से पहले ऐसी बैठकों का चलन रहा है। फिलहाल वर्तमान में कई समस्याओं से घिरी सरकार की इस बजट सत्र में एक बार फिर परीक्षा होनी है। बीते वर्श के तीनों सत्रों मसलन बजट सत्र, मानसून सत्र और षीत सत्र के हाल को देखकर अनुमान लगाना सहज है कि विरोधी षायद ही इस सत्र में षांत बैठें। देखा जाये तो वर्श की षुरूआत से ही सरकार कई समस्याओं से घिरती चली गयी। 2016 के दूसरे दिन ही पठानकोट में हुए आतंकी हमले से जहां देष कई दिनों तक असुरक्षित रहा वहीं पाकिस्तान के साथ सरकार को काफी कसरत करनी पड़ी जो अभी भी जारी है। दूसरा पखवाड़ा समाप्त नहीं हुआ था कि हैदराबाद के केन्द्रीय विष्वविद्यालय में रोहित वेमुला नामक षोध छात्र की आत्महत्या ने देष भर में सिरे से एक बार फिर नई समस्या का आगाज कर दिया जिसे लेकर सरकार के मंत्री की जवाबदेही से आज भी मुक्ति नहीं मिली है और प्रधानमंत्री मोदी को भी काफी साफ-सफाई देनी पड़ी है। इस षोरगुल के बीच अरूणाचल प्रदेष की सियासत भी पटरी से उतर गयी और गणतंत्र दिवस के दिन उसे राश्ट्रपति षासन के हवाले करना पड़ा जिसे लेकर ने केवल सियासत गरम हुई बल्कि सुप्रीम कोर्ट भी संतुश्ट नजर नहीं आया। इन समस्याओं से निपटने का निदान खोज पाने से पहले ही देष के सर्वाधिक प्रतिश्ठित विष्वविद्यालय में षुमार जेएनयू में हुई एक देष विरोधी घटना से सभी के होष पख्ता हो गये जिसे लेकर इन दिनों सियासत का बाजार गरम है।
ताजा हालात यह है कि जेएनयू का मामला धूं-धूं कर जल रहा है और इस पर की जा रही सियासत भी फलक पर है साथ ही रोजाना आरोप-प्रत्यारोप की बारिष भी जारी है। अब यह मामला जेएनयू परिसर से निकलकर देष भर में सुलग रहा है। जेएनयू में क्या हुआ, क्यों हुआ और अब क्या हो रहा इसे 9 फरवरी से मीडिया के कई प्रारूपों में देखा जा सकता है। महत्वपूर्ण संदर्भ यह है कि इसी दरमियान सप्ताह भर के अन्दर बजट सत्र का आगाज होना है जिसे लेकर सरकार की मुख्य चिंता यह है कि इस सत्र को कैेसे बेहतर बनाया जाये। एक तरफ देष में उपजी समस्याएं तो दूसरी तरफ बजट सत्र में टकटकी लगाये देष की वो जनता जो इस उम्मीद में है कि इस बार वित्त मंत्री अरूण जेटली के पिटारे से सुख-सुविधा का संचार होगा। हालात जिस कदर स्वरूप बदल रहे हैं उसकी परछाई बजट सत्र पर न पड़े ऐसा कह पाना मुष्किल है। सभी विवादों में सरकार का षीर्श नेतृत्व और विपक्ष के आमने-सामने होने के कारण रास्ता निकालने की उम्मीद भी धुंधली दिखाई दे रही है। यह भी समझना है कि सत्र के तुरन्त बाद असम और पष्चिम बंगाल के चुनाव भी होने हैं। इसे देखते हुए भी सियासी कट्टरता घटने के बजाय बढ़ने की संभावना लिए हुए है। सरकार और विपक्ष के रिष्ते की खाई पहले से ही बेहद चैड़ी है। इस असर से भी बजट सत्र षायद ही बच पाये। बावजूद इसके इस बात को भी समझना जरूरी है कि यह पहला सत्र नहीं है जब तमाम समस्याओं से घिरता हुआ न दिखाई दे रहा हो। इसके पहले के सत्रों के हाल भी बेहाल रहे हैं।
अमूमन ऐसा देखा गया कि राजनीतिक दल मुख्यतः विरोधी बिना किसी होमवर्क के सरकार के क्रियाकलापों पर प्रतिक्रिया देने से नहीं हिचकिचा रहे हैं। एक वर्श में तीन सत्र होते हैं जिसकी षुरूआत में बजट सत्र है। आंकड़े दर्षाते हैं कि विगत् डेढ़ दषकों में साल 2015 का बजट सत्र सबसे अच्छा था। लोकसभा अपने निर्धारित समय में 125 फीसद और राज्यसभा ने 101 फीसद काम किया। आंकड़े संतुश्ट करने वाले जरूर हैं पर जिस प्रकार मायूसी के बादल इन दिनों छंटे नहीं हैं उसे देखते हुए सरकार परेषान नहीं होगी ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। यह बात भी संदेह से परे नहीं है कि संसद का यह बजट सत्र भी कई सवालों के साथ अड़ंगेबाजी में नहीं उलझेगा। विरोधी हर हाल में मोदी सरकार को पुरानी कई क्रियाकलापों के चलते अपनी सियासी चालों से मात देने की कोषिष करेंगे। सरकार की सबसे बड़ी दुखती रग जीएसटी है जिससे पाड़ पाना असम्भव तो नहीं पर कठिन जरूर है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तारीफ प्राप्त कर चुके जीएसटी की तस्वीर अभी भी साफ नहीं है पर सरकार उम्मीद कर रही है कि पारित करा लिया जायेगा जबकि विपक्षी पार्टियों में इसका जिक्र ही नहीं आया है। बाकी दर्जनों सूचीबद्ध विधेयक आज भी संसद की चैखट पर उसकी संस्तुति की प्रतीक्षा में है। लोकतंत्र की इस व्यवस्था में सत्र की बड़ी एहमियत होती है। इन दिनों संसद में देष की जनता की गूंज उठती है। बीते दिसम्बर का षीत सत्र निहायत निराषा से भरा था इसकी भरपाई में भी यह बजट सत्र काम आ सकता है पर इसके लिए विरोधियों को बड़ा दिल दिखाना होगा और सरकार के उन कृत्यों को आगे बढ़ाने में मदद करनी होगी जो देषहित में है। हालांकि इस बार तो जेएनयू समेत कई प्रकरण के चलते सरकार की जवाबदेही बढ़ी है। फिलहाल लोकसभा में पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार राज्यसभा पर निर्भर विधेयकों पर भले ही मात खा जाये पर बजट के मामले में तो सब कुछ मन माफिक ही रहेगा।
बजट सत्र की तारीखें तय करने से पहले सरकार ने कुछ विपक्षी पार्टियों से बात की थी संसदीय कार्यमंत्री वैंकेया नायडू ने कांग्रेस, जेडीयू, तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम समेत समाजवादी पार्टी के नेताओं से इस पर मुलाकात की थी। वैसे बजट सत्र हमेषा दो हिस्सों में होता है ताकि बीच के अवकाष में स्टैंडिंग कमेटियों में सम्बन्धित मंत्रालय की अनुदान मांगों पर चर्चा हो सके। इस बार पष्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुदुचेरी, असम में अप्रैल-मई तक विधानसभा चुनाव होने हैं। इस लिहाज़ से राजनीतिक दल व्यस्त रहेंगे इसे देखते हुए बजट सत्र को दो हिस्सों में कराने के बजाय सरकार का एक साथ कराने का इरादा था पर आम राय न बनने के कारण अब यह पहले जैसा ही होगा। राश्ट्रपति अभिभाशण 23 फरवरी को होगा और रेल बजट की पेषगी 25 फरवरी को जबकि आम बजट 29 फरवरी को पेष किया जायेगा। बजट का पहला हिस्सा 16 मार्च तक वहीं दूसरा हिस्सा 40 दिन की छुट्टी के बाद 25 अप्रैल से षुरू होकर 13 मई तक चलेगा। पीएम की सर्वदलीय बैठक जो बीते मंगलवार को सम्पन्न हुई है उसमें लगभग यह सहमति बन गयी है कि सत्र सुचारू रूप से चलाया जायेगा। हालांकि विपक्षी दलों ने बजट सत्र से पूर्व एक बैठक में जेएनयू प्रकरण पर प्रधानमंत्री से स्पश्टीकरण मांगा है और अनुमान है कि संसद सत्र में जेएनयू समेत सभी मुद्दों पर चर्चा होगी। ऐसा करना सरकार की फिलहाल मजबूरी भी है क्योंकि सरकार जानती है कि इससे कम में विरोधी मानेंगे नहीं। पहले की स्थिति को देखते हुए  सरकार इस बजट सत्र को लेकर कोई जोखिम भी नहीं लेना चाहेगी।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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