Sunday, February 14, 2016

आतंकवाद का आन्तरिक और बाह्य विमर्श

बीते जी-20 षिखर सम्मेलन में वैष्विक नेताओं ने आतंकवाद से निपटने के लिए विषेश रणनीति बनाने की बात की। कई दषकों से संयुक्त राश्ट्र में भी आतंकवाद की चर्चा होती रही पर आतंक की क्या परिभाशा होगी आज तक इस पर राय षुमारी नहीं हो पायी है। दुनिया में पांच देष आतंक के चलते भयंकर रूप से प्रभावित हैं जिसमें क्रमषः इराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नाइजीरिया और सीरिया का नाम आता है जबकि छठे नम्बर पर भारत है। देखा जाए तो आतंक से सर्वाधिक प्रभावित पांचों देष इस्लामिक हैं जबकि सामान्य  गैर इस्लामिक देषों की सूची में आतंकवाद की पीड़ा झेलने में भारत पहले नम्बर पर है। पिछले कुछ वर्शों से दुनिया में इस्लाम के नाम पर गठित किये जा रहे आतंकवादी संगठनों की बाढ़ आई हुई है। अनुमान के मुताबिक इनकी तादाद सौ से अधिक हो सकती है। पिछले दिनों संयुक्त अरब अमीरात ने 83 ऐसे संगठनों की सूची जारी की थी जबकि इसके पूर्व अमेरिका भी इस्लामी आतंकवादी संगठनों की सूची जारी कर चुका है। भारत में बरसों से आतंकवादी कहर बरपा रहे हैं हिजबुल मुजाहिदीन, लष्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा सहित कईयों के लिए अभी भी भारत ही किरकिरी बना हुआ है। मुम्बई से लेकर संसद भवन और पठानकोट तक भारत को लहुलुहान करने का काम ऐसे संगठनों द्वारा किया जा रहा है पर ताज्जुब की बात यह है कि आतंकी कसाब से लेकर अफज़ल गुरू तक की फांसी को देष के अन्दर ही विरोध किया जाता है। इसकी ताजा बानगी जेएनयू में देखी जा सकती है। बीते 9 फरवरी को देष के सर्वाधिक प्रतिश्ठित विष्वविद्यालय जेएनयू में अफज़ल गुरू की बरसी मनाई जा रही थी। ध्यान्तव्य हो कि इसी दिन 2013 में अफजल गुरू को फांसी दी गयी थी। इस घटना के चलते यहां के छात्र न केवल दो गुटों में बंटे बल्कि स्थिति भी संवेदनषील हुई। जेएनयू में पाकिस्तान के नारे लगाये गये, कष्मीर को लेकर भी कई अनाप-षनाप बातें उछाली गयीं। चिंता के साथ अचरज इस बात का है कि जेएनयू में पढ़ने वाले छात्रों का एक समूह पाकिस्तान और अफज़ल गुरू का हिमायती क्यों है? भारत सरकार की बहुत बड़ी राषि इस विष्वविद्यालय पर खर्च की जाती है और बहुत कम षुल्क पर यहां के युवाओं को अवसर मिला हुआ है पर इतने प्रतिश्ठित विष्वविद्यालय में ऐसी घटना का होना देष के लिए बड़ी दुर्घटना कही जायेगी।
आतंकवाद से लड़ने वाला हमारा कानून अभी भी इतना सख्त नहीं है जितना की अमेरिका और इंग्लैण्ड का है। अबतक भारत में जितने भी आतंकी हमले हुए हैं वे पाकिस्तान के इस्लामिक संगठनों से सम्बन्धित रहे हैं। इतना ही नहीं आज आईएस सहित कई संगठन भारत के अन्दर भी भारतीय युवाओं को इस काम में बाकायदा उपयोग कर रहे हैं। बेषक आतंक का कोई धर्म नहीं है पर अधिकतर ऐसे संगठन उन्हीं को झांसे में ले रहे हैं जो इस्लामिक पृश्ठभूमि से हैं। यह एक सोची-समझी रणनीति भी हो सकती है। पठानकोट के हमले के बाद पंजाब से लेकर दिल्ली और उत्तराखण्ड सहित कई क्षेत्र गणतंत्र दिवस के दिनों में आतंकी दहषत में थे उन्हीं दिनों रूड़की एवं हरिद्वार से चार आतंकी दबोचे भी गये थे जो स्थानीय मुस्लिम लड़के थे और जिनका ताल्लुक आईएस नेटवर्क से सम्बन्धित माना गया। सवाल है कि अपनी ही जमीन पर आतंक की रोपाई करने वाले आतंकवादी संगठन को स्थानीय स्तर पर खाद-पानी कौन दे रहा है? वैसे भारत में कई अलगाववादी संगठन भी काम कर रहे हैं जो पाकिस्तान के हिमायती और आतंकियों के मजबूत समर्थक हैं। कष्मीर में अफज़ल गुरू की फांसी को लेकर अलगाववादी संगठनों ने जो मोर्चेबन्दी की थी वह बात भी किसी से छुपी नहीं है। यांत्रिक चेतना से भरा सवाल तो यह भी है कि आतंक से निपटने के लिए कौन सी तकनीक अपनाई जाए। आंकड़े भी यह बताते हैं कि 80 से 85 फीसदी आतंकी वारदातें इस्लामिक संगठनों की तरफ से हो रही हैं। यूं तो दुनिया में कुछ इसाई और यहूदी आतंकी संगठन भी हैं लेकिन उनका प्रभाव और ताकत तुलनात्मक बहुत न्यून है। अलकायदा द्वारा 11 सितम्बर, 2001 को किये गये न्यूयाॅर्क हमले के बाद से धर्म से प्रेरित आतंकवाद में नाटकीय तरीके से वृद्धि देखी जा सकती है। हालांकि न्यूयाॅर्क हमले के दोशी ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने पाकिस्तान के एटबाबाद में घुस कर मारा परन्तु इसकी करतूतों ने इस्लामी आतंकवाद को उभरने में काफी मदद की है। इसके पूर्व माओवाद जैसा राजनीतिक तथा एथनिक से प्रेरित आतंकवाद होते थे जो आज रसातल में चले गये हैं।
आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि बीते 15 सालों में आतंक के चलते मारे जाने वाले लोगों की संख्या में 15 गुना की बढ़ोत्तरी हुई है। केवल अकेले भारत में अब तक 416 लोग आतंक के चलते मौत के षिकार हुए और हजारों जख्मी और घायल लोगों की सूची में षामिल हैं। जो देष आतंकवादियों को पनपने और पनाह देने में समर्पण दिखा रहे हैं वे भूल गये हैं कि इनके पलटवार से वे भी सुरक्षित नहीं हैं। पाकिस्तान इसका पुख्ता सबूत है कि जिन आतंकियों को संरक्षण दिया अब वही पेषावर से लेकर ब्लूचिस्तान तक कहर बरपा रहे हैं। इस्लामी आतंकवाद में षिया, सुन्नी और वहाबी सहित हर तरह का आतंकवाद षामिल है। भारत में 2012 से 2013 के बीच आतंकवाद में 70 फीसदी की वृद्धि हुई है। आईएस इन दिनों सारी दुनिया में पहला ऐसा आतंकी संगठन है जो अपने लिए एक अलग राश्ट्र स्थापित करने में कामयाब हो रहा है और सभ्य देषों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। दुनिया को तबाह करने के मंसूबे रखने वाले आईएस के निषाने पर भारत भी है। ‘ग्लोबल टेरारिज़्म इण्डैक्स 2015‘ को देखें तो पता चलता है कि वर्श 2014 में करीब 14 हजार आतंकवादी वारदातें दुनिया भर में हुईं जो पिछले साल की तुलना में 35 फीसदी अधिक है। कमोबेष 2015 में भी इसी प्रकार की बढ़त देखी जा सकती है। चिंता तो यह भी है कि आईएस का नेटवर्क भारत के अन्दरूनी हिस्सों में भी फैल चुका है। विगत् दो-तीन वर्शों मे कई पढ़े-लिखे युवा ऐसी गतिविधियों में लिप्त देखे गये और मात्रात्मक ये बढ़त बनाये हुए हैं।
उपरोक्त तमाम पक्षों से यह साफ हो जाता है कि आतंक एक वैष्विक समस्या है परन्तु इसमें इस्लामिक आतंकवादी संगठनों की भरमार है। आईएस जैसे कुछ संगठनों की जड़े इतनी मजबूत हैं कि सभ्य देषों के पसीने छूट रहे हैं। आतंक से पूरी तरह निपटने के लिए दुनिया के सुर ही एक न हो बल्कि क्रियाकलाप में भी एकजुटता हो। प्रधानमंत्री मोदी भी वैष्विक मंचों पर आतंक को लेकर पिछले 20 महीनों से एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं पर नतीजे इकाई दहाई में अटक कर रह गये हैं। इस मामले में रोचक तथ्य तो यह भी है कि अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा स्वयं यह कह चुके हैं कि पाकिस्तान आतंकवादियों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान है बावजूद इसके उसी पाकिस्तान को बीते 10 फरवरी को आतंकवाद निरोधी अभियान के नाम पर 58 अरब की मदद देने की घोशणा की। जबकि इन्हीं दिनों मुम्बई आतंकी हमले का गुनाहगार डेविड हेडली का कबूलनामा भी देखा गया जिसमें पाकिस्तान साफ तौर पर षामिल है। यही बात खटकने वाली है कि जिन्हें मोहताज होना चाहिए वे फलक पर हैं। यदि ऐसी ही कूटनीति रहेगी तो दुनिया से आतंक को निस्तोनाबूत करने का मंसूबा सिर्फ विचारों तक ही रह जायेगा।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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