Thursday, February 25, 2016

रेल बजट का मिशन 2020

हम न रूकेंगे, हम न झुकेंगे, चलो मिलकर कुछ नया बनायें, यह पंक्ति पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की है जिसे बजट पेष करते समय रेल मंत्री सुरेष प्रभु ने दोहराई। रेल बजट को अलग से परोसने की प्रथा ब्रिटिष काल से ही 1923 से देखी जा सकती है जो अभी भी बादस्तूर फरवरी के अन्तिम सप्ताह में प्रति वर्श देखने को मिलती है। आने वाले वित्त वर्श (2016-17) का यह बजट कई उम्मीदों और प्रभावों से युक्त होने के बावजूद कई खामियों से भी जकड़ा हुआ प्रतीत होता है। सीधी-सपाट बात यह है कि यात्रियों को इस बजट में किराया न बढ़ाकर फिर राहत दी गई है। ट्रेन के नाम पर चार नई ट्रेनें अन्त्योदय, तेजस, हमसफर और उदय को चलाने का एलान देखा जा सकता है पर हर यात्री को कन्फर्म टिकट देने का लक्ष्य निहायत लम्बा अर्थात् अब से तकरीबन चार साल बाद 2020 तक ही सम्भव होगा। एक अच्छी बात यह है कि हर रिज़र्व कैटेगरी में 33 प्रतिषत सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित होंगी। किसी भी बजट में आम आदमी के लिए क्या खास बातें हैं ये खासा महत्व का होता है। इसे देखते हुए एक साफ लकीर यह खिंचती है कि बजट पूर्ववत् की भांति लब्बोलुआब से परिपूर्ण तो है परन्तु पिछले दरवाज़े से कई बातें इसमें षिकायत के लिए भी उपलब्ध हैं। पीएम मोदी के विजन को साकार करना रेल मंत्री सुरेष प्रभु के लिए एक बड़ी चुनौती रही होगी। जैसा कि मोदी डेढ़ बरस पहले ही बुलेट ट्रेन के कायल रहे हैं पर इस मामले में बजट सूना है। तेजी और कुषलता के साथ रेलवे में कैसे काम हो, लाइन बिछाने का लक्ष्य कैसे पूरा हो इसकी भी सुगबुगाहट बजट में है।
एक बड़ी दुविधा वाली बात रेलवे में यह रही है कि ट्रेनें अक्सर लेट-लतीफ होती हैं और रफ्तार भी बहुत कम रहती है। भारत में ट्रेनों की स्पीड पर भी घोर चिंता की जा सकती है। इस मामले में हम चीन की तुलना में करीब चार गुना पीछे हैं। हालांकि रेल मंत्री ने पैसेंजर ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाकर 80 किलो मीटर प्रति घण्टा लक्ष्य रखा है पर व्यवहार में यह कितना खरा उतरेगा यह तो पटरी पर दौड़ती ट्रेनों से ही पता चलेगा। इसके अलावा ट्रेन के अन्दर की सुविधाओं पर भी काफी कुछ कहा गया है। एक बात यह भी समझना होगा कि रेल को लेकर देबोराॅय कमेटी ने बड़ी खूबसूरत सिफारिषें बहुत पहले की थी जिसमें उन्होंने रेल सुरक्षा पर गहरी चिंता व्यक्त की थी और इसे अन्य माध्यमों से पूरा करने की बात कही थी। उन्होंने रेलवे को तकनीकी और गैर तकनीकी हिस्से में बांटते हुए इसे सुगम बनाने सहित कई सिफारिषें आज भी सरकार के पास पड़ी हैं पर इस पर कोई अमल नहीं हुआ। सोषल मीडिया का जिक्र करते हुए रेल मंत्री ने कहा कि यहां से रोजाना रेलवे के एक लाख से ज्यादा षिकायते मिलती हैं। देखा जाए तो रेलवे के षिकायतकत्र्ता का प्लेटफाॅर्म इन दिनों सोषल मीडिया भी बना हुआ है। एक बात तो तय है कि परिवहन व्यवस्था का सर्वाधिक भार रेलवे उठाती है पर जिस प्रभाव के साथ इसे होना चाहिए उसका आभाव आज भी महसूस होता है। हर बड़े स्टेषन पर सीसीटीवी सर्विलांस होंगे पर यह कब तक पूरे होंगे कहना कठिन है। मिला-जुला कर कई ऐसी बातें इस रेल बजट से निकल कर आईं हैं जिसमें तात्कालिक के बजाय यह बजट ‘मिषन 2020‘ अधिक प्रतीत होता है।
रेल मंत्री ने कहा कि संचालन अनुपात 92 फीसदी हासिल करने की कोषिष करेंगे। यहां बताना जरूरी है कि कांग्रेस के समय में यह अनुपात लगभग 97 फीसदी था। यहां समझना जरूरी है कि अगर संचालन अनुपात कम होता है तो रेल मुनाफे में होती है। इस साल के रेल बजट मे 8720 करोड़ रूपए के बचत की उम्मीद है जबकि 1.21 लाख करोड़ रूपए खर्च का प्रावधान है। रेलवे में मुनाफे का सिलसिला लालू प्रसाद के रेलमंत्री के दिनों से षुरू हुआ जो बादस्तूर 20 हजार करोड़ से अब लगभग 9 हजार करोड़ तक पहुंच गया है। देष में करीब 13 हजार गाड़ियां पटरी पर दौड़ती हैं और रोजाना 2 करोड़ लोग यात्रा करते हैं। देष में जनसंख्या की वृद्धि दर प्रति वर्श डेढ़ से पौने दो करोड़ के बीच है। 2015 के सुरेष प्रभु के रेल बजट से भी ट्रेनें नदारद थी कमोबेष इस बार भी स्थिति वैसी ही है। जो ट्रेनें बढ़ाई गयी हैं वे ऊंट के मुंह में जीरा की तरह है। हालांकि यह कहा गया है कि ट्रेनों में डिब्बों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। जो खास बातें इस बजट में हैं उसमें 33 फीसदी महिलाओं के आरक्षण, लोअर बर्थ पर 50 फीसद वरिश्ठ नागरिकों के लिए आरक्षण, ट्रेनों में पायलट आधार पर बच्चों के खाने-पीने की अलग से व्यवस्था आदि के चलते कुछ वर्गों को अतिरिक्त राहत और सुविधा मिलती हुई दिखाई देती है। यह सभी के अनुभवों में होगा कि ट्रेनों के षौचालय बड़ी बुरी स्थिति में होते हैं। साफ-सफाई को लेकर बातें कही गई हैं पर ऐसा कई रेल बजट में सुनने को मिलता रहा है जो आज तक पूरी तरह अमल में नहीं आ पाया है।
जब भी देष में रेल बजट या आम बजट पेष होते हैं तो समस्त जनता इस उम्मीद से अटी रहती है कि इस बार के बजट में उसके लायक क्या है? तथ्यात्मक आंकड़ों में उलझने के बजाय देष के करोड़ों जनमानस बहुत छोटी-छोटी बातों से संतोश करने के लिए मजबूर होते हैं। एक बड़ी तादाद के लिए ये राहत की बात है कि किराये में कोई छेड़छाड़ नहीं है पर चिंता यह है कि रेल यात्री की तुलना में नई रेल का कोई खास जिक्र नहीं है। रेल मंत्री सुरेष प्रभु एक चार्टेड एकाउंटेड हैं, लेखा और लेखा परीक्षण का उन्हें बड़ा ज्ञान है। राजस्व के नये स्त्रोत कैसे खोजे जायेंगे, रोजगार को कैसे विस्तार दिया जायेगा और कैसे उपभोक्ता को बेहतर सुविधायें देना है इस पर जरूर अच्छा होमवर्क किये होंगे। यहां यह भी समझना जरूरी है कि रेल को आर्थिक वृद्धि का इंजन भी माना जाता है। रेलवे की कुल कमाई का करीब आधा से अधिक हिस्सा रेल कर्मचारियों को वेतन बांटने में खर्च होता है। सातवें वेतन आयोग के लागू होने पर यह राषि की दर 15 से 20 फीसदी बढ़ सकती है। मिला-जुलाकर रेल का मुनाफा कम हो सकता है। ऐसे में मिषन 2020 कितना सारगर्भित हो पायेगा। अभी से कहना बहुत मुष्किल है। रेल मंत्री ने स्वयं कहा है कि ये चुनौतियों का समय और सबसे कठिन दौर है, जिसका हम सामना कर रहे हैं। उनका यह भी मानना है कि पिछले वर्श की तुलना में रेलवे की इस वर्श का कई महाकमा बेहतर स्थिति में है पर अभी सुधार की जरूरत है। वैसे देखा जाए तो रेल मंत्री ने रेल सुविधाओं को लेकर जो एलान किये हैं वो भी काफी एड़ी-चोटी वाले हैं। भारत में संरचनात्मक खामियां बरसों से व्याप्त रहीं हैं, परिवहन के क्षेत्र में तो इसकी मात्रा बहुत अधिक है। यात्री रेलवे की आत्मा है का सम्बोधन करने वाले रेल मंत्री षायद अधिक फिक्रमंद जताने के लिए ऐसा कह रहे हैं पर यह भी समझना होगा कि भारत का बहुत बड़ा तबका रेलगाड़ी की संख्या पर निर्भर करता है जिसको लेकर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया है। फिलहाल बजट हर दृश्टिकोण से खराब नहीं हो सकता पर तमाम विरोधी इस बजट को न केवल निराषाजनक बल्कि देष के अहित में है जैसे वक्तव्य देने में लगे हैं।



सुशील कुमार सिंह

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