Monday, February 22, 2016

स्वप्रमाणित हो देशभक्ति

विचारधाराओं का अन्त, वाद-विवाद का जन्म दो परस्पर स्कूलों के बीच 1960 के दषक में प्रारम्भ हुआ तत्कालीन समय में दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं से तात्पर्य है उदारवादी (पूंजीवादी) एवं साम्यवादी। पहली विचारधारा का नेतृत्व अमेरिका जबकि दूसरे का पूर्व सोवियत संघ के हाथों में था लेकिन आधुनिक चिंतकों का एक मत यह भी है कि आज के संदर्भ में कोई भी देष विचारधारा पर चलने का दावा नहीं कर सकता। यहीं से विचारधाराओं का अन्त परिलक्षित होने लगता है। भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ और देष की सम्प्रभुता को कायम रखने के लिए पूरी कूबत भरा संविधान भी साथ लेकर चलता रहा जिसके सात दषक पूरे होने वाले हैं। भारत न तो 1960 के उन देषों की पंक्ति में खड़ा था जहां विचारधाराओं का अंत हो रहा था और न ही ऐसी चाहत से भरा था जहां से देष को ठेस पहुंचाने वाली कोई सुलगती आफत आती हो। दो ध्रुवों में बंटे विष्व के बीच भारत ने एक रास्ता नहीं अपनाया वरन् पूंजीवाद के साथ समाजवाद को लेकर अपना नया मार्ग बनाया जिस पर आज भी उसे कायम होते हुए देखा जा सकता है। औपनिवेषिक काल में भी कई विचारधाराएं अन्दर ही जन्म ले रही थीं जिसका विस्तार आज की भारतीय राजनीति में बाकायदा देखा जा सकता है। जेएनयू प्रकरण ने देष में दो विचारधाराओं को एक बार फिर आनन-फानन में उदय कर दिया है एक वो जो देष और उसकी राश्ट्रभक्ति में सर्वस्व न्यौछावर कर रहे हैं और दूसरे वे जिन्हें देष के अमन-चैन से तकलीफ है। देष भर के समाचारपत्रों और टीवी चैनलों पर भी बहस छिड़ी है। देखा जाए तो देष का चैथा स्तम्भ भी विचारों में बंटा हुआ है। बंटवारा किसके हिस्से में कितना मुनाफे वाला है इसकी पड़ताल आगे होती रहेगी।
एक बड़ी खूबसूरत कहावत है कि ‘जब हम आराम के दिनों में होते हैं तो आराम छोड़कर बाकी सब कुछ करते हैं।‘ भारत स्वतंत्रता से लेकर करीब-करीब 90 के दषक तक कई आधुनिक संदर्भों और नवनूतन विकास में पीछे रहा। तब हमारी विचारधाराएं और संघर्श इतने विचलित नहीं थे। उदारीकरण से लेकर अब तक देष ने और देष के लोगों ने विकास के साथ उत्थान और गति को भी हासिल कर लिया। हैरत यह है कि देष से जो मिला उसके ऋण उतारने के बजाय अब ऊंच-नीच करने पर उतारू हैं। कई लोग इसे खूबसूरत लोकतंत्र की संज्ञा भी दे रहे हैं। मैं यहां 9 फरवरी के जेएनयू प्रकरण को लेकर बात कहने की कोषिष कर रहा हूं। यहां जो हुआ उसे लेकर सियासत तो गरम है ही, देष के नागरिकों में भी अलग-अलग मानकों पर उबाल है और इस बात पर भी जोर है कि किसकी देषभक्ति कितनी बड़ी है। चूंकि मामला विष्वविद्यालय से उभरा था ऐसे में पहले उन्हें ही देषभक्ति सिद्ध करनी थी। इसी के मद्देनजर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने निर्णय लिया कि प्रत्येक केन्द्रीय विष्वविद्यालय जिनकी संख्या देष में 47 है वे रोज 207 फीट ऊंचा तिरंगा फहरायेंगे। कईयों ने सवाल भी उठाया कि तिरंगा तो ठीक है पर इसकी ऊंचाई इतनी क्यों? कुछ ने तो यह भी कहा कि देषभक्ति की परीक्षा केन्द्रीय विष्वविद्यालय ही क्यों दें, बाकी विष्वविद्यालय भी इस परिधि में क्यों नहीं? हालांकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय की यह पहल जेएनयू से ही षुरू की जा रही है जहां से देष के टूटने की आवाज आई थी। देखा जाए तो संविधान में निहित अनुच्छेद 19(1)क इन तमाम के बीच में आ गया। यह सही है कि यही अनुच्छेद हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है। समझने की एक बात और यह है कि हमारी अभिव्यक्ति में यह अनुच्छेद जितना मजबूत है उतना ही कमजोर भी प्रतीत होता है इसे समझने की जहमत किसी ने ही षायद उठाई हो। मसलन हम भारत माता की जय कर सकते हैं, वन्दे मातरम् भी कर सकते हैं और वह सब कुछ कर सकते हैं जिसमें राश्ट्रहित के साथ कोई अनहोनी न हो और इसकी आड़ में हम स्वहित भी साध सकते हैं बषर्ते मर्यादा का ख्याल रहे। पर इसकी कमजोरी यह है कि इस प्रावधान की अपनी एक नैतिक सीमा है जिसे समझने में कुछ लोग भूल कर रहे हैं वहीं इसे कमजोर भी बना रहे हैं साथ ही इसकी आड़ में इसे महिमामण्डित भी कर रहे हैं। अफजल की आजादी, कष्मीर की आजादी और भारत तेरे होंगे टुकड़े-टुकड़े आदि की अभिव्यक्ति की इजाजत यह प्रावधान नहीं देता है। यह तो साफ है कि जेएनयू में जो किया गया वह अभिव्यक्ति में तो नहीं आता पर जिस कदर इस प्रकरण को सियासी दलों ने ‘हाइजैक‘ किया उसे भी सही नहीं कहा जा सकता। विचारों में बंटे सियासी दल अपनी-अपनी रोटियां सेंक रहे हैं और सीमा पर सुरक्षा देने वाले बर्फ के रेगिस्तान में जान दे रहे हैं। यहां पर भी विचारधाराओं का कोई मेल नहीं है।
विचारधारा से ही आदर्ष समाज की परिकल्पना की जाती है। विचारधाराएं सामाजिक परिवर्तन पर बल देती हैं। देषभक्ति भी एक विचारधारा ही है। इसके अलावा फांसीवाद, यथास्थितिवाद, साम्राज्यवाद आदि भी विचारधाराएं ही हैं जिनका भारत से कोई लेना-देना नहीं है। मौजूदा स्थिति में देष कई सियासी विचारधाराओं से भी युक्त है जैसे कांग्रेसी विचारधारा, भाजपा की विचारधारा, समाजवादी विचारधारा और वामपंथी समेत कई अन्य विचारधाराएं मौजूद हैं। सवाल तो यह है कि विचारधाराओं का विकास और उसका निश्पादन देष की उन्नति और उत्थान का जरिया बन रहा है या नहीं। यदि विचारधारा उस स्वतंत्रता को हासिल करने की फिराक में हो  जिससे का अस्तित्व खतरे में पड़ता हो तो ऐसी विचारधाराओं का देष में फिलहाल इजाजत नहीं है। भारतीय संविधान भी दो विचारधाराओं से कसा हुआ है एक संघात्मक तो दूसरा एकात्मक। संविधान भी साफ करता है कि सामान्य परिस्थितियों में संघात्मक का निश्पादन जबकि आपात की परिस्थितियों में एकात्मक लक्षण से युक्त होगा। कई यह भी मानते हैं कि देष में इन दिनों अघोशित आपात की स्थिति प्रतीत होती है। इसे भी एक विचारधारा कह सकते हैं पर पूरी सच्चाई पड़ताल का विशय है। जाहिर है संविधान में ऐसे किसी षब्द का उल्लेख नहीं मिलता है। देष में ऐसा भी रहा है कि विचारधाराओं ने अपनी जड़े जमाने के लिए ‘ग्रेषम का नियम‘ भी अपना ली हैं इसका एक आर्थिक है कि ‘बुरी मुद्रा, अच्छी मुद्रा‘ को बाजार से बाहर कर देती है। इसी तर्ज पर देखें तो खराब विचारधाराएं पैठ बनाने के चक्कर में अच्छी विचारधाराओं का दमन और षोशण भी करती हैं। जेएनयू में भारत के खिलाफ जो विचारधारा उठी वह उसी बुरी मुद्रा की तरह है जो अपने हो-हल्ले के चलते और सियासी दलों के समर्थन के चलते अच्छी विचारधारा का लोप करना चाहती है।
लोकतांत्रिक विचारधाराओं का भी कई प्रारूप है मसलन समावेषी लोकतंत्र, विमर्षीय लोकतंत्र आदि। विमर्षीय लोकतंत्र का आभासी परिप्रेक्ष्य यह है कि यह मसले को चर्चे के केन्द्र में लाती है पर इसका नकारात्मक पहलू यह है कि यदि यह अभिजात्य के हाथों में चली गई तो रास्ते से भटक सकती है। जेएनयू में जो चर्चा थी वह न तो विमर्षीय लोकतंत्र में आती है और न ही इसमें कोई अन्य प्रकार की लोकतांत्रिक चीज षामिल थी। मानो यह देष को एक नई समस्या में जकड़ने का एक नियोजित कार्यक्रम था। जेएनयू परिघटना को एक पखवाड़ा बीतने के बाद भी देष इससे मुक्त होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा। इसी से पता चलता है कि ऐसे विमर्ष और वाद-विवाद भारत के लिए कितनी तबाही बन सकते हैं। संदर्भ यह भी है कि देषभक्ति के पैमाने पर किसे क्या करना चाहिए यह कोई नहीं सिखाएगा बल्कि यह स्वयं का एक विशय है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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