उत्तर कोरिया द्वारा बीते 6 जनवरी, 2016 को किये गये चैथे परमाणु परीक्षण से दुनिया अभी चिंता से मुक्त नहीं हो पाई थी कि उसने प्रक्षेपास्त्र का परीक्षण करके एक बार फिर सभी के माथे पर बल डाल दिया। संयुक्त राश्ट्र महासचिव और अमेरिका सहित कई देषों ने इसकी घोर निन्दा की है। तात्कालिक घटना को लेकर फिर वही सवाल उठता है कि इसका निदान क्या है? हालांकि तत्काल न्यूयाॅर्क में एक आपात बैठक के बाद सुरक्षा परिशद् ने कहा कि उत्तर कोरिया के खिलाफ नए प्रतिबंधों का प्रस्ताव षीघ्र ही पारित किया जाएगा पर सवाल तो यह है कि उत्तर कोरिया पर किसी भी प्रतिबंध का असर क्यों नहीं हो रहा है? क्यों उत्तर कोरिया वैष्विक चेतावनी को नजरअंदाज कर रहा है? रही बात प्रतिबंध की तो इसके पहले भी 2006 के परमाणु परीक्षण के बाद सुरक्षा परिशद् ने प्रस्ताव पारित किये थे तब से लेकर अब तक दो प्रस्ताव और आ चुके हैं, बावजूद इसके उत्तर कोरिया के दुस्साहस में कोई कमी नहीं दिखाई दे रही है। विषेशज्ञ मानते हैं कि उत्तर कोरिया अमेरिका को निषाना बनाने के लिए परमाणु हथियार बना रहा है। अगर इस तकनीक का इस्तेमाल सेटेलाइट प्रक्षेपण में हो तो यह राॅकेट लाॅन्चर है पर विस्फोटक लाद दिये जाएं तो यह ‘इंटर काॅन्टिनेंटल मिसाइल‘ में बदल जायेगा। उत्तर कोरिया पहले ही ऐसी मिसाइल बना चुका है जो अमेरिका पर हमला करने में सक्षम है जिसकी मारक क्षमता 10 हजार किलोमीटर है। जाहिर है कि उत्तर कोरिया के इस कदम से अमेरिका सहित दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देषों की परेषानी बढ़ी है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सुरक्षा परिशद् की बैठक दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका के आग्रह पर बुलाई गयी थी साथ ही जापान ने अमेरिका का समर्थन करते हुए उत्तर कोरिया के खिलाफ कड़े प्रतिबन्ध का समर्थन किया जबकि 6 जनवरी, 2016 में परमाणु परीक्षण के चलते दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया को सबक सिखाने की बात कही थी।
उत्तर कोरिया पिछले एक दषक से विवादों को जन्म देने वाला देष भी बन गया है। 2006 से 2016 के बीच चार बार परमाणु परीक्षण और राॅकेट प्रक्षेपण करके सुर्खियों में है साथ ही ऐसा कहा जा रहा है कि वह पांचवें एटमी परीक्षण की तैयारी में भी है। उत्तर कोरिया अन्तर्राश्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद लगातार अपने परमाणु क्षमता को बढ़ाने के दुस्साहस से पीछे नहीं हट रहा है। हालांकि उसका कहना है कि उसने एक उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिए राॅकेट छोड़ा है पर इस बात पर विष्वास करना मुनासिब नहीं समझा गया। यह माना जा रहा है कि इसके बहाने उसका असल मकसद बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण करना है। उत्तर कोरिया का प्रमुख सहयोगी चीन इस पूरे प्रकरण को उकसावे वाली कार्रवाई मानता है जबकि दक्षिण कोरियाई नौसेना ने चेतावनी के चलते उत्तर कोरिया के पोत पर गोलियां तक दाग दी हैं। माना तो यह भी जाता है कि उत्तर कोरिया के पास छोटे परमाणु हथियार और कम और मध्यम दूरी की मिसाइल है परन्तु जिस प्रकार इसकी हरकतों से विष्व बिरादरी तनाव में है उसे देखते हुए हथियारों के मामले में इसे क्लीन चिट नहीं दी जा सकती। सबके बावजूद यक्ष प्रष्न यह है कि उत्तर कोरिया की इन हरकतों से कैसे निजात पाया जा सकता है। क्या चीन के रहते हुए इस पर प्रतिबंध लगाना सम्भव है। संयुक्त राश्ट्र में वीटो देषों के समूह में चीन भी है जिसके अड़ंगे बाजी के चलते प्रतिबंध मुमकिन नहीं है। हालांकि चीन सहित रूस ने मिसाइल परीक्षण की निन्दा की है। देखा जाए तो परमाणु परीक्षण रोकने के लिए बीते जनवरी में उत्तर कोरिया ने षान्ति संधि की मांग की थी जो एक प्रकार से पहले के प्रस्तावों की भांति ही था जिसमें उसने कहा था कि वह अमेरिका के साथ एक षान्ति सन्धि में हस्ताक्षर करने और अमेरिका व दक्षिण कोरिया के बीच सालाना सैन्य अभ्यास रोकने के बदले अपने परमाणु परीक्षण बन्द कर सकता है जिसे अमेरिका ने सिरे से पहले की भांति ही ठुकरा दिया था।
बदलते हुए अन्तर्राश्ट्रीय परिदृष्य में अपनी सुरक्षा और आत्मविष्वास के लिए कई देष परमाणु सामग्रियों को जुटाने में अनावष्यक उर्जा खर्च कर रहे हैं जबकि वे खतरे से या तो बाहर हैं या उसके निषान से काफी नीचे हैं। असल में किम जोंग अपने निजी समस्याओं के चलते भी इस अंधेरगर्दी पर उतरा हुआ है और अन्तर्राश्ट्रीय ताकतें इस मामले में खुलकर कुछ खास नहीं कर पा रही हैं। सोचने वाली बात तो यह भी है कि उत्तर कोरिया वैष्विक पटल पर इतनी बड़ी सुरक्षा सामग्री के कद का भी नहीं है। तानाषाह किम जोंग के मन्सूबे भी हैरत में डालने वाले हैं उसने सत्ता से हटाये इराक के राश्ट्रपति सद्दाम हुसैन और लीबिया के गद्दाफी का एक माह पूर्व उदाहरण देते हुए कहा था कि जब देष अपनी परमाणु महत्वाकांक्षा को छोड़ देते हैं तो उनके साथ ऐसा ही होता है। इस बात को जायज नहीं करार दिया जा सकता क्योंकि कई देष परमाणु संसाधनों की होड़ में ना होने के बावजूद स्वयं के साथ और विष्व के लिए भी अमन-चैन के बेहतर उदाहरण बने हुए हैं। संयुक्त राश्ट्र परमाणु हथियारों की समाप्ति की कवायद में 70 के दषक से लगा हुआ है और उसे फिर एक बार झटका लगा है। इस मामले में सीटीबीटी व एनपीटी जैसी नीतियां देखी जा सकती हैं। सीटीबीटी का उद्देष्य है कि कोई भी देष चाहे वह परमाणु षस्त्र धारक है या नहीं, किसी भी तरह का परीक्षण नहीं कर सकता। इस संधि के अनुच्छेद 4 में यह भी है कि संदेह के आधार पर किसी भी देष में जाकर निरीक्षण भी किया जा सकता है। हालांकि भारत सहित कुछ देषों ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि यह किसी भी देष की सम्प्रभुता के विरूद्ध है। परमाणु अस्त्र अप्रसार सन्धि (एनपीटी) भी इसी प्रकार की एक सन्धि है जिसके अनुच्छेद 6 में यह वर्णित है कि परमाणु षस्त्र सम्पन्न राश्ट्र परमाणु षस्त्र को समाप्त करने के लिए प्रत्येक 25 वर्श में इसका निरीक्षण करेंगे जिसे लेकर वर्श 1995 में सम्मेलन किया गया पर बिना किसी नतीजे के यह अनिष्चितकाल के लिए आगे बढ़ा दिया गया। हालांकि सन्धियों की परिस्थितियों को देखते हुए भारत सीटीबीटी और एनपीटी दोनों का विरोध करता रहा है।
विरोध के बावजूद मिसाइल दागने को लेकर दुनिया को हैरत में डालने वाला उत्तर कोरिया वैष्विक सुर्खियां भी खूब बटोरे हुए। चर्चित परन्तु अलोकप्रिय तानाषाह किम जोंग इस बात से परे है कि षेश दुनिया पर उसकी हरकतों का क्या प्रभाव पड़ रहा है। उत्तर कोरिया बीते 5 साल में तुलनात्मक कहीं अधिक विष्व के लिए खतरा बनता जा रहा है। इसके पीछे वजह दिसम्बर, 2011 में तानाषाह किम जोंग का सत्ता पर काबिज होना है। किम जोंग के अब तक के कार्यकाल की पड़ताल भी बताती है कि यहां पर व्याप्त समस्याएं बड़े पैमाने पर विकास कर चुकी हैं। बावजूद इसके किम जोंग इससे बेअसर रहते हुए अपने निजी एजेण्डे मसलन परमाणु षस्त्र एवं मिसाइल आदि को तवज्जो देने में लगा हुआ है। यह बात भी समुचित है कि जब कोई तानाषाह लोककल्याण की अवधारणा से विमुख होता है और लोकतंत्र को मटियामेट कर अनाप-षनाप निर्णय पर उतारू हो जाता है तो ऐसे ही कृत्य उनकी प्राथमिकताओं में होते हैं। भुखमरी, बीमारी और बेरोजगारी समेत अनगिनत समस्याओं से जूझ रहे उत्तर कोरिया के तानाषाह के दुस्साहस से दुनिया स्तब्ध है पर दुनिया इसको लेकर क्या कदम उठाएगी अभी कहना कठिन है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
उत्तर कोरिया पिछले एक दषक से विवादों को जन्म देने वाला देष भी बन गया है। 2006 से 2016 के बीच चार बार परमाणु परीक्षण और राॅकेट प्रक्षेपण करके सुर्खियों में है साथ ही ऐसा कहा जा रहा है कि वह पांचवें एटमी परीक्षण की तैयारी में भी है। उत्तर कोरिया अन्तर्राश्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद लगातार अपने परमाणु क्षमता को बढ़ाने के दुस्साहस से पीछे नहीं हट रहा है। हालांकि उसका कहना है कि उसने एक उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिए राॅकेट छोड़ा है पर इस बात पर विष्वास करना मुनासिब नहीं समझा गया। यह माना जा रहा है कि इसके बहाने उसका असल मकसद बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण करना है। उत्तर कोरिया का प्रमुख सहयोगी चीन इस पूरे प्रकरण को उकसावे वाली कार्रवाई मानता है जबकि दक्षिण कोरियाई नौसेना ने चेतावनी के चलते उत्तर कोरिया के पोत पर गोलियां तक दाग दी हैं। माना तो यह भी जाता है कि उत्तर कोरिया के पास छोटे परमाणु हथियार और कम और मध्यम दूरी की मिसाइल है परन्तु जिस प्रकार इसकी हरकतों से विष्व बिरादरी तनाव में है उसे देखते हुए हथियारों के मामले में इसे क्लीन चिट नहीं दी जा सकती। सबके बावजूद यक्ष प्रष्न यह है कि उत्तर कोरिया की इन हरकतों से कैसे निजात पाया जा सकता है। क्या चीन के रहते हुए इस पर प्रतिबंध लगाना सम्भव है। संयुक्त राश्ट्र में वीटो देषों के समूह में चीन भी है जिसके अड़ंगे बाजी के चलते प्रतिबंध मुमकिन नहीं है। हालांकि चीन सहित रूस ने मिसाइल परीक्षण की निन्दा की है। देखा जाए तो परमाणु परीक्षण रोकने के लिए बीते जनवरी में उत्तर कोरिया ने षान्ति संधि की मांग की थी जो एक प्रकार से पहले के प्रस्तावों की भांति ही था जिसमें उसने कहा था कि वह अमेरिका के साथ एक षान्ति सन्धि में हस्ताक्षर करने और अमेरिका व दक्षिण कोरिया के बीच सालाना सैन्य अभ्यास रोकने के बदले अपने परमाणु परीक्षण बन्द कर सकता है जिसे अमेरिका ने सिरे से पहले की भांति ही ठुकरा दिया था।
बदलते हुए अन्तर्राश्ट्रीय परिदृष्य में अपनी सुरक्षा और आत्मविष्वास के लिए कई देष परमाणु सामग्रियों को जुटाने में अनावष्यक उर्जा खर्च कर रहे हैं जबकि वे खतरे से या तो बाहर हैं या उसके निषान से काफी नीचे हैं। असल में किम जोंग अपने निजी समस्याओं के चलते भी इस अंधेरगर्दी पर उतरा हुआ है और अन्तर्राश्ट्रीय ताकतें इस मामले में खुलकर कुछ खास नहीं कर पा रही हैं। सोचने वाली बात तो यह भी है कि उत्तर कोरिया वैष्विक पटल पर इतनी बड़ी सुरक्षा सामग्री के कद का भी नहीं है। तानाषाह किम जोंग के मन्सूबे भी हैरत में डालने वाले हैं उसने सत्ता से हटाये इराक के राश्ट्रपति सद्दाम हुसैन और लीबिया के गद्दाफी का एक माह पूर्व उदाहरण देते हुए कहा था कि जब देष अपनी परमाणु महत्वाकांक्षा को छोड़ देते हैं तो उनके साथ ऐसा ही होता है। इस बात को जायज नहीं करार दिया जा सकता क्योंकि कई देष परमाणु संसाधनों की होड़ में ना होने के बावजूद स्वयं के साथ और विष्व के लिए भी अमन-चैन के बेहतर उदाहरण बने हुए हैं। संयुक्त राश्ट्र परमाणु हथियारों की समाप्ति की कवायद में 70 के दषक से लगा हुआ है और उसे फिर एक बार झटका लगा है। इस मामले में सीटीबीटी व एनपीटी जैसी नीतियां देखी जा सकती हैं। सीटीबीटी का उद्देष्य है कि कोई भी देष चाहे वह परमाणु षस्त्र धारक है या नहीं, किसी भी तरह का परीक्षण नहीं कर सकता। इस संधि के अनुच्छेद 4 में यह भी है कि संदेह के आधार पर किसी भी देष में जाकर निरीक्षण भी किया जा सकता है। हालांकि भारत सहित कुछ देषों ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि यह किसी भी देष की सम्प्रभुता के विरूद्ध है। परमाणु अस्त्र अप्रसार सन्धि (एनपीटी) भी इसी प्रकार की एक सन्धि है जिसके अनुच्छेद 6 में यह वर्णित है कि परमाणु षस्त्र सम्पन्न राश्ट्र परमाणु षस्त्र को समाप्त करने के लिए प्रत्येक 25 वर्श में इसका निरीक्षण करेंगे जिसे लेकर वर्श 1995 में सम्मेलन किया गया पर बिना किसी नतीजे के यह अनिष्चितकाल के लिए आगे बढ़ा दिया गया। हालांकि सन्धियों की परिस्थितियों को देखते हुए भारत सीटीबीटी और एनपीटी दोनों का विरोध करता रहा है।
विरोध के बावजूद मिसाइल दागने को लेकर दुनिया को हैरत में डालने वाला उत्तर कोरिया वैष्विक सुर्खियां भी खूब बटोरे हुए। चर्चित परन्तु अलोकप्रिय तानाषाह किम जोंग इस बात से परे है कि षेश दुनिया पर उसकी हरकतों का क्या प्रभाव पड़ रहा है। उत्तर कोरिया बीते 5 साल में तुलनात्मक कहीं अधिक विष्व के लिए खतरा बनता जा रहा है। इसके पीछे वजह दिसम्बर, 2011 में तानाषाह किम जोंग का सत्ता पर काबिज होना है। किम जोंग के अब तक के कार्यकाल की पड़ताल भी बताती है कि यहां पर व्याप्त समस्याएं बड़े पैमाने पर विकास कर चुकी हैं। बावजूद इसके किम जोंग इससे बेअसर रहते हुए अपने निजी एजेण्डे मसलन परमाणु षस्त्र एवं मिसाइल आदि को तवज्जो देने में लगा हुआ है। यह बात भी समुचित है कि जब कोई तानाषाह लोककल्याण की अवधारणा से विमुख होता है और लोकतंत्र को मटियामेट कर अनाप-षनाप निर्णय पर उतारू हो जाता है तो ऐसे ही कृत्य उनकी प्राथमिकताओं में होते हैं। भुखमरी, बीमारी और बेरोजगारी समेत अनगिनत समस्याओं से जूझ रहे उत्तर कोरिया के तानाषाह के दुस्साहस से दुनिया स्तब्ध है पर दुनिया इसको लेकर क्या कदम उठाएगी अभी कहना कठिन है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
No comments:
Post a Comment