स्मार्ट सिटी की दिषा में और एक कदम आगे बढ़ते हुए बीते 28 जनवरी को केन्द्र सरकार ने प्रथम चरण के नतीजे घोशित कर दिये इसमें षामिल 97 षहरों के प्रस्तावों में से पांच प्रदेषों की राजधानी भुवनेष्वर, जयपुर, गुवाहाटी, चेन्नई तथा भोपाल समेत 20 का चयन सुनिष्चित किया गया। जिन 43 कसौटियों पर षहरों को कसा गया उन पर बाकि षहर खरे नहीं उतरे और अन्ततः उन्हें मायूस होना पड़ा। स्मार्ट षहर की इस प्रतिस्पर्धा में उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड, बिहार और झारखण्ड समेत 23 राज्य एवं केन्द्र षासित प्रदेष से एक भी षहर का चयन न होना स्वयं में सवाल खड़ा करता है। षायद यह बहस की जा सकती है कि वर्तमान परिस्थिति में स्मार्ट सिटी की आवष्यकता और प्रासंगिकता को किस रूप में चिन्ह्ति किया जाए। जाहिर है कि इसके पीछे का मकसद तो एक बेहतर विकास का ही है। देखा जाए तो मौजूदा स्थिति में भी विकास की अनेक व्याख्या उपलब्ध हैं। इसी के अन्तर्गत स्मार्ट सिटी को भी जांचा-परखा जा सकता है। दरअसल विकास वह प्रक्रिया है जिसमें निष्चित लक्ष्य के साथ सामाजिक-आर्थिक सरोकार षुमार होते हैं। यदि ऐसे ही सरोकारों से स्मार्ट सिटी भी युक्त हो तो भला इस नवसृजित यांत्रिक माॅडल से किसी को क्या और क्यों आपत्ति होगी? आॅक्सफोर्ड डिक्षनरी के अनुसार विकास षब्द का अर्थ उच्चतर, पूर्णतर और अधिकतर परिपक्वतापूर्ण वर्धन की स्थिति है इसे एक सधी हुई परिभाशा कह सकते हैं पर विकास का अर्थ सामाजिक ढांचे की प्रगति के साथ देखा जाता है। ऐसे में किसी भी समाज में प्रगति की ओर आया हुआ बदलाव ही विकास कहा जायेगा। इसी तर्ज पर स्मार्ट सिटी का लब्बो-लुआब है।
सामाजिक-आर्थिक विकास के कई दौर आये और गये, कई योजनाएं और परियोजनाएं बनी और क्रियान्वित भी हुईं, नतीजे कुछ भी रहे हों पर ऐसा पहली बार देखने को मिला कि किसी परियोजना विषेश को पाने के लिए राज्य सरकारों को प्रतिस्पर्धा से गुजरना पड़ रहा है। केन्द्रीय मंत्री वेंकैया नायडू के मुताबिक स्मार्ट षहरों का चयन काॅम्प्टीषन के आधार पर हुआ है। सर्वाधिक तीन षहर के साथ मध्य प्रदेष जहां अव्वल रहा वहीं उत्तर प्रदेष जैसे भारी-भरकम राज्य जिनके हिस्से में 13 स्मार्ट सिटी थे कोई भी चयन के लायक नहीं समझा गया। दरअसल स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट में तीन श्रेणियों में प्रस्ताव आये थे। रेट्रोफिटिंग जिसमें मौजूदा ढांचे में सुधार करना, दूसरा रि-डेवलप्मेंट जिसमें मौजूदा ढांचे का पुर्ननिर्माण करना निहित था और अंत में ग्रीन फील्ड जिसके तहत नई जगह में षहर बसाना षामिल था। 97 प्रस्तावों में से 15 ग्रीन फील्ड से सम्बन्धित थे इस श्रेणी से किसी भी षहर का चयन नहीं हुआ। रेट्रोफिटिंग से सर्वाधिक 18 षहर का चयनित हुए जबकि बाकि एक रि-डेवलप्मेंट से और एक रेट्रो-कम-रि-डेवलप्मेंट से लिया गया। साफ है कि सरकार उन्हें तवज्जो नहीं दिया जो नया षहर बसाने के इच्छुक थे जाहिर है इसके पीछे भी आर्थिक समस्याओं को देखा गया होगा। स्मार्ट षहरों की प्रतिस्पर्धा में सफल होने के लिए स्थानीय निकायों को केवल ठोस प्रस्ताव ही नहीं तैयार करने थे बल्कि षहरी ढांचे में काफी कुछ सुधार भी करना था। इसके अलावा चयन कई अन्य मापदण्डों के मूल्यांकन के आधार पर होना था जिसमें स्थानीय निकायों के पिछले तीन वर्शों से सम्पत्ति कर के संग्रह, बिजली आपूर्ति में सुधार और यातायात व्यवस्था के साथ रोजगार के अवसर, पर्यावरण सुधार तथा गरीबी आदि की भी परख निहित थी। उक्त से यह भी परिभाशित होता है कि जो राज्य विकास की डुगडुगी पीटते हैं उनको यह समझ जाना चाहिए कि उनका होमवर्क अच्छा न होने के कारण वे चयन से बाहर हैं।
इस बात की भी सियासत जोर पकड़ सकती है कि मोदी सरकार ने स्मार्ट सिटी देने में निरपेक्ष भाव नहीं रखा है पर यह कहीं से समुचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि जिन्हें प्रथम 20 में नहीं षामिल किया गया उनमें भाजपा षासित प्रदेष भी षामिल हैं साथ ही मोदी का लोकसभा क्षेत्र वाराणसी भी न केवल इससे बाहर है बल्कि 96 नम्बर पर है। सबसे आखिरी पायदान पर उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून है जबकि स्मार्ट षहर के लिए प्रथम 20 में चयनित होने वाला षहर ओड़िसा की राजधानी भुवनेष्वर है। फिलहाल अगले फेज में आगे के दो साल में बचे हुए अन्य षहरों को चुना जायेगा। चयनित षहरों को पहले साल दो-दो सौ करोड़ रूपए और बाद में तीन साल तक सौ-सौ करोड़ रूपए दिये जायेंगे और इतनी ही राषि की व्यवस्था राज्य सरकारों को भी करना है। देखा जाए तो देष में षहरी आबादी का प्रतिषत उत्तरोत्तर वृद्धि कर रहा है। स्वतंत्रता के बाद से अब तक षहरीकरण में तीव्रता ही नहीं आई बल्कि अव्यवस्थित बसावट भी खूब हुई। कई षहर तो बुनियादी संरचना के आभाव में चरमरा रहे हैं और जनसंख्या दबाव के चलते कई समस्याओं से जूझ भी रहे हैं। देष में पिछले एक दषक में गांवों की तुलना में षहरी आबादी ढ़ाई गुना से अधिक तेजी से बढ़ी है। भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार 2001 से 2011 के बीच देष की जनसंख्या में 17.64 प्रतिषत का इजाफा हुआ है। गांवों में वृद्धि दर 12.18 और षहरी क्षेत्रों में 31.80 प्रतिषत की रही है। जाहिर है षहर में बुनियादी समस्याएं अधिक प्रसार ले रही हैं और पलायन भी बढ़ा है। हांलाकि स्मार्ट सिटी के पीछे एक आर्थिक पहलू भी छुपा है इससे षहर विषेश में निवेष और विनिवेष का वातावरण भी बनेगा।
भारत की कुल षहरी आबादी जीडीपी में 60 फीसदी हिस्सेदारी रखती है और अनुमान है कि अगले 15 साल में यह 75 फीसदी हो जायेगी। बढ़ती हुई षहरी जीडीपी यह संकेत दे रही है कि षहरों पर अधिक विकासात्मक ध्यान देना सरकार की एक आर्थिक मजबूरी भी है। स्पश्ट है जो दाम चुकायेगा वही सुविधा भोगेगा पर इन सबके बीच गांव का क्या होगा इस पर भी मनन-चिंतन हो जाए तो अच्छा रहेगा क्योंकि विकास अकेले षहर का नहीं बल्कि इसमें गांव की भी भागीदारी कहीं अधिक मायने रखती है। ये भी कह सकते हैं कि स्मार्ट सिटी के साथ स्मार्ट गांव भी क्यों न बनाये जायें। हांलाकि मोदी सरकार की आदर्ष ग्राम योजना कुछ इसी प्रकार के लक्षणों से निहित देखी जा सकती है। स्मार्ट सिटी एक ऐसा प्रोजेक्ट है जो हाई वोल्टेज षहर का एक बड़ा प्रारूप संजोए हुए है। प्रोजेक्ट में केन्द्र और राज्य की साझेदारी है बावजूद इसके बाधायें भी कम नहीं हैं। योजना के लिए कोश इकट्ठा करना सबसे बड़ी कठिनाई है साथ ही पुराने षहरों का विकास भी चुनौती वाला है। खचाखच आबादी वाले इन क्षेत्रों को पूरी तरह से बदलने की जरूरत पड़ सकती है पर यह इतना आसान नहीं है। ऐसे में यदि इन्हें छोड़कर ग्रीन फील्ड को चुना जाता है जैसा कि 15 प्रस्ताव इसी प्रकार के रहे हैं तो मतलब साफ है कि नया षहर बसाना है पर कोश वाली समस्या से पीछा तो नहीं छूटने वाला। फिलहाल हड़प्पा और मोहन जोदड़ों में स्मार्ट सिटी के मिले चिन्ह् जिन्हें आधुनिक काल में यूरोप और अमेरिकी देषों में प्रसार होते हुए देखा जा सकता है। अब 21वीं सदी के दूसरे दषक में भारत के षहरों की सूरत बदलने के लिए आतुर हैं। वास्तव में यह योजना समुचित क्रियान्वयन प्राप्त करती है तो षहरों की सूरत के साथ सीरत भी बदलेगी।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
सामाजिक-आर्थिक विकास के कई दौर आये और गये, कई योजनाएं और परियोजनाएं बनी और क्रियान्वित भी हुईं, नतीजे कुछ भी रहे हों पर ऐसा पहली बार देखने को मिला कि किसी परियोजना विषेश को पाने के लिए राज्य सरकारों को प्रतिस्पर्धा से गुजरना पड़ रहा है। केन्द्रीय मंत्री वेंकैया नायडू के मुताबिक स्मार्ट षहरों का चयन काॅम्प्टीषन के आधार पर हुआ है। सर्वाधिक तीन षहर के साथ मध्य प्रदेष जहां अव्वल रहा वहीं उत्तर प्रदेष जैसे भारी-भरकम राज्य जिनके हिस्से में 13 स्मार्ट सिटी थे कोई भी चयन के लायक नहीं समझा गया। दरअसल स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट में तीन श्रेणियों में प्रस्ताव आये थे। रेट्रोफिटिंग जिसमें मौजूदा ढांचे में सुधार करना, दूसरा रि-डेवलप्मेंट जिसमें मौजूदा ढांचे का पुर्ननिर्माण करना निहित था और अंत में ग्रीन फील्ड जिसके तहत नई जगह में षहर बसाना षामिल था। 97 प्रस्तावों में से 15 ग्रीन फील्ड से सम्बन्धित थे इस श्रेणी से किसी भी षहर का चयन नहीं हुआ। रेट्रोफिटिंग से सर्वाधिक 18 षहर का चयनित हुए जबकि बाकि एक रि-डेवलप्मेंट से और एक रेट्रो-कम-रि-डेवलप्मेंट से लिया गया। साफ है कि सरकार उन्हें तवज्जो नहीं दिया जो नया षहर बसाने के इच्छुक थे जाहिर है इसके पीछे भी आर्थिक समस्याओं को देखा गया होगा। स्मार्ट षहरों की प्रतिस्पर्धा में सफल होने के लिए स्थानीय निकायों को केवल ठोस प्रस्ताव ही नहीं तैयार करने थे बल्कि षहरी ढांचे में काफी कुछ सुधार भी करना था। इसके अलावा चयन कई अन्य मापदण्डों के मूल्यांकन के आधार पर होना था जिसमें स्थानीय निकायों के पिछले तीन वर्शों से सम्पत्ति कर के संग्रह, बिजली आपूर्ति में सुधार और यातायात व्यवस्था के साथ रोजगार के अवसर, पर्यावरण सुधार तथा गरीबी आदि की भी परख निहित थी। उक्त से यह भी परिभाशित होता है कि जो राज्य विकास की डुगडुगी पीटते हैं उनको यह समझ जाना चाहिए कि उनका होमवर्क अच्छा न होने के कारण वे चयन से बाहर हैं।
इस बात की भी सियासत जोर पकड़ सकती है कि मोदी सरकार ने स्मार्ट सिटी देने में निरपेक्ष भाव नहीं रखा है पर यह कहीं से समुचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि जिन्हें प्रथम 20 में नहीं षामिल किया गया उनमें भाजपा षासित प्रदेष भी षामिल हैं साथ ही मोदी का लोकसभा क्षेत्र वाराणसी भी न केवल इससे बाहर है बल्कि 96 नम्बर पर है। सबसे आखिरी पायदान पर उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून है जबकि स्मार्ट षहर के लिए प्रथम 20 में चयनित होने वाला षहर ओड़िसा की राजधानी भुवनेष्वर है। फिलहाल अगले फेज में आगे के दो साल में बचे हुए अन्य षहरों को चुना जायेगा। चयनित षहरों को पहले साल दो-दो सौ करोड़ रूपए और बाद में तीन साल तक सौ-सौ करोड़ रूपए दिये जायेंगे और इतनी ही राषि की व्यवस्था राज्य सरकारों को भी करना है। देखा जाए तो देष में षहरी आबादी का प्रतिषत उत्तरोत्तर वृद्धि कर रहा है। स्वतंत्रता के बाद से अब तक षहरीकरण में तीव्रता ही नहीं आई बल्कि अव्यवस्थित बसावट भी खूब हुई। कई षहर तो बुनियादी संरचना के आभाव में चरमरा रहे हैं और जनसंख्या दबाव के चलते कई समस्याओं से जूझ भी रहे हैं। देष में पिछले एक दषक में गांवों की तुलना में षहरी आबादी ढ़ाई गुना से अधिक तेजी से बढ़ी है। भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार 2001 से 2011 के बीच देष की जनसंख्या में 17.64 प्रतिषत का इजाफा हुआ है। गांवों में वृद्धि दर 12.18 और षहरी क्षेत्रों में 31.80 प्रतिषत की रही है। जाहिर है षहर में बुनियादी समस्याएं अधिक प्रसार ले रही हैं और पलायन भी बढ़ा है। हांलाकि स्मार्ट सिटी के पीछे एक आर्थिक पहलू भी छुपा है इससे षहर विषेश में निवेष और विनिवेष का वातावरण भी बनेगा।
भारत की कुल षहरी आबादी जीडीपी में 60 फीसदी हिस्सेदारी रखती है और अनुमान है कि अगले 15 साल में यह 75 फीसदी हो जायेगी। बढ़ती हुई षहरी जीडीपी यह संकेत दे रही है कि षहरों पर अधिक विकासात्मक ध्यान देना सरकार की एक आर्थिक मजबूरी भी है। स्पश्ट है जो दाम चुकायेगा वही सुविधा भोगेगा पर इन सबके बीच गांव का क्या होगा इस पर भी मनन-चिंतन हो जाए तो अच्छा रहेगा क्योंकि विकास अकेले षहर का नहीं बल्कि इसमें गांव की भी भागीदारी कहीं अधिक मायने रखती है। ये भी कह सकते हैं कि स्मार्ट सिटी के साथ स्मार्ट गांव भी क्यों न बनाये जायें। हांलाकि मोदी सरकार की आदर्ष ग्राम योजना कुछ इसी प्रकार के लक्षणों से निहित देखी जा सकती है। स्मार्ट सिटी एक ऐसा प्रोजेक्ट है जो हाई वोल्टेज षहर का एक बड़ा प्रारूप संजोए हुए है। प्रोजेक्ट में केन्द्र और राज्य की साझेदारी है बावजूद इसके बाधायें भी कम नहीं हैं। योजना के लिए कोश इकट्ठा करना सबसे बड़ी कठिनाई है साथ ही पुराने षहरों का विकास भी चुनौती वाला है। खचाखच आबादी वाले इन क्षेत्रों को पूरी तरह से बदलने की जरूरत पड़ सकती है पर यह इतना आसान नहीं है। ऐसे में यदि इन्हें छोड़कर ग्रीन फील्ड को चुना जाता है जैसा कि 15 प्रस्ताव इसी प्रकार के रहे हैं तो मतलब साफ है कि नया षहर बसाना है पर कोश वाली समस्या से पीछा तो नहीं छूटने वाला। फिलहाल हड़प्पा और मोहन जोदड़ों में स्मार्ट सिटी के मिले चिन्ह् जिन्हें आधुनिक काल में यूरोप और अमेरिकी देषों में प्रसार होते हुए देखा जा सकता है। अब 21वीं सदी के दूसरे दषक में भारत के षहरों की सूरत बदलने के लिए आतुर हैं। वास्तव में यह योजना समुचित क्रियान्वयन प्राप्त करती है तो षहरों की सूरत के साथ सीरत भी बदलेगी।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502