Monday, September 4, 2017

कूटनीतिक फलक पर फिर भारत

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते मंगलवार को नई अफगान नीति का एलान किया जो भारत के हितों और उम्मीदों के मुताबिक है। इस नीति के एलान के साथ ही ट्रंप ने भारत को अहम षक्ति मानते हुए रणनीतिक सहयोग और मजबूत करने का भी आह्वान किया है। गौरतलब है कि भारत और अफगानिस्तान का सम्बंध पहले से ही कहीं अधिक प्रगाढ़ है। अफगानिस्तान के आधारभूत संरचना के निर्माण में भी भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है यहां तक कि अफगानी संसद के निर्माण में भी उसका योगदान है। डोनाल्ड ट्रंप यह अच्छी तरह जानते हैं कि पाकिस्तान के दिमाग को सही करने के लिए उसे धमकाना और अफगानिस्तान के प्रति रचनात्मक रूख रखना क्यों जरूरी है। ट्रंप ने यह भी साफ कर दिया है कि भारत अमेरिका के अफगान नीति का एक अहम हिस्सा है। इसी बीच चेतावनी भरे लहजे में ट्रंप ने पाकिस्तान को कहा है कि अगर वह नहीं सुधरा तो उसे बहुत कुछ खोना पड़ सकता है। गौरतलब है कि अरबों डाॅलर अमेरिका से प्राप्त करने वाला पाकिस्तान आतंकियों का बरसों से पनाहगार बना हुआ है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अभी भी अमेरिका द्वारा सूचीबद्ध 20 विदेषी आतंकी संगठन सक्रिय हैं। वैसे देखा जाय तो ट्रंप की फटकार अमेरिका को लेकर कोई पहली बार नहीं है इसके पहले वे पाक को आतंकियों का स्वर्ग बता चुके हैं। हालांकि इसी बीच तालिबान ने ट्रंप को भी चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका अफगानिस्तान से अपने सैनिक नहीं हटाता तो जल्द ही 21वीं सदी की इस महाषक्ति के लिए अफगानिस्तान एक अन्य कब्रगाह बन जायेगा। गौरतलब है कि बीते डेढ़ दषक से अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में डटी हुई है। हालांकि पहले की तुलना में इनकी मात्रा कम है। फिलहाल डोनाल्ड ट्रंप के पाकिस्तान पर किये गये तीखे वार से चीन झुंझला गया है और सच्चे और अच्छे मित्र की भांति पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा हो गया है। गौरतलब है कि अमेरिकी राश्ट्रपति  द्वारा  पहले उत्तर कोरिया और अब एक बार फिर पाकिस्तान को धमकाना चीन को पच नहीं रहा है साथ ही मौजूदा समय में उसकी कूटनीति भी इसके चलते कमजोर हो रही है। भारत से अफगान मसले में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सहयोग की मांग और एक अहम् षक्ति के रूप में स्वीकार्यता चीन को जरूर अखर रहा होगा और वह भी ऐसे समय में जब डोकलाम को लेकर भारत और चीन आमने-सामने हैं।
दो महीने से अधिक वक्त बीत चुका है डोकलाम पर भारतीय और चीनी सेना टस से मस नहीं हुई हैं। चीन ने भारत को डराने-धमकाने से लेकर दबाने तक के तमाम हथकंडे अपनाये बावजूद इसके उसे मनचाही सफलता हासिल नहीं हो पायी। भारत को बार-बार धौंस दिखाने वाला चीन इस बार भारतीय कूटनीति के आगे बेबस हुआ है। इसी बीच बीते 20 अगस्त को अमेरिकी संसद में पेष की गई डोकलाम विवाद की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह गतिरोध दोनों देषों के बीच युद्ध भी करा सकता है। ऐसे में अमेरिका और भारत का सामरिक सहयोग चीन के साथ अमेरिकी रिष्तों के लिए मुष्किलें पैदा कर सकता है। अमेरिकी कांग्रेस की षोध सेवा की ओर से आई यह मामूली और संक्षिप्त रिपोर्ट जिसका षीर्शक डोकलाम में चीन सीमा पर तनाव है। इसमें कुछ नई बात बताने की कोषिष की गई है पर भारत की रणनीति को देखते हुए इस रिपोर्ट के अनुमान को सही कहना संदर्भित प्रतीत नहीं होता। हालांकि चीन ने 22 अगस्त को एक बार फिर धमकी दिया है यदि उसकी सेना भारत में घुसी तो कोहराम मच जायेगा। वास्तुस्थिति को देखते हुए फिलहाल डोकलाम मुद्दे पर अब यह लगता है कि चीन अपनी रणनीति में नई बातें लायेगा और युद्ध से बचने की कोषिष भी करेगा। इसके अलावा उत्तराखण्ड की सीमा में भी उसके दखल को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। पूर्वोत्तर की सीमाओं मुख्यतः अरूणाचल में परेषानी खड़ी करने वाली गतिविधियां भी चीन बढ़ा सकता है। डोकलाम पर नाकाम चीन कुछ ऐसे हथकण्डे भी इन दिनों अपना रहा है जिस पर यकीन करना फिलहाल मुष्किल है पर इसमें काफी हद तक सच्चाई है। ब्रह्यपुत्र नदी में आई बाढ़ और पानी के हाहाकार से जूझते असम के लिए काफी हद तक चीन ही जिम्मेदार है। ऐसा नहीं है कि असम की घाटियों में पहले बाढ़ नहीं आई हो पर इस बार ज्यादा और अधिक समय की बाढ़ है। सम्भव है कि चीन डोकलाम विवाद में बैकफुट में होने के चलते पानी से बदला ले रहा है। माना जा रहा है कि चीन भारतीयों को डुबोने के लिए पानी छोड़ रहा है और उसे इस बात की भी पूरी जानकारी है कि कब, कितना पानी छोड़ने पर जान-माल का अधिक नुकसान होगा। 
वैष्विक फलक के बदले मिजाज में उत्तर कोरिया का भी मिजाज़ इन दिनों सातवें आसमान पर है और अमेरिका के निषाने पर है। बीते कई दिनों से अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच युद्ध का वातावरण निर्मित होता जा रहा है। गौरतलब है कि उत्तर कोरिया से 11 हजार किलीमीटर दूर अमेरिका उसके परमाणु एवं मिसाइल कार्यक्रम के चलते खार खाये हुए है। बात यहीं तक नहीं है उत्तर कोरिया के दुस्साहस का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2006 से 2016 के बीच चार बार परमाणु परीक्षण समेत कई मिसाइलों का परीक्षण किया है। उत्तर कोरिया ने बीते माह बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण करके मानो अमेरिका को खुली चुनौती दे दी हो। हालांकि परीक्षण सफल नहीं था। संयुक्त राश्ट्र संघ की सुरक्षा परिशद् के प्रतिबंधों से भी मानो उसका कोई लेना-देना न हो। दक्षिण कोरिया व जापान सहित कई प्रषान्त महासागरीय देष उत्तर कोरिया के हरकतों से बे-इंतहा परेषान हैं। वैसे उत्तर कोरिया के व्यापार और अन्य मामलों में बढ़त दिलाने में चीन का बड़ा हाथ है। यहां तक कि उत्तर कोरिया के कल-कारखानों में बनने वाले सामान पर मेड इन चाइना का छाप होता है। इससे यह अंदाजा लगाना आसान है कि दोनों की आपस में कितनी छनती है। फिलहाल कोरियाई प्रायद्वीप में बढ़े तनाव के बीच 21 अगस्त से अमेरिका और दक्षिण कोरिया युद्धाभ्यास की षुरूआत कर चुके हैं। जिसे लेकर उत्तर कोरिया ने अमेरिका को चेताने का दुस्साहस किया है कि ऐसा करके वह आग में घी डालने का काम कर रहा है। गौरतलब है कि उत्तर कोरिया के साथ चीन को भी यह युद्धाभ्यास अखर रहा है। चीन ने भी इस पर आपत्ति दर्ज की थी। उलची फ्रीडम गार्डियन नामक इस युद्धाभ्यास में दोनों देषों के करीब एक लाख सैनिक हिस्सा ले रहे हैं। चीन के लिए यह युद्धाभ्यास एक प्रकार से भारत के प्रति उसका उठा हुआ कदम पर मोवैज्ञानिक प्रहार भी है। साथ ही सप्ताह भर पहले जापान का डोकलाम पर रूख भारत की ओर होना भी चीन के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। जाहिर है जापान के इस कदम से भारत को मनोवैज्ञानिक बढ़त और भूटान को भी राहत मिली होगी। 
स्पश्ट है कि भारत चीन के साथ बढ़ते तनाव और उसकी बढ़ती दादागिरी से अब हर हाल में मुक्ति चाहता है। ऐसे में अमेरिका का भारत के साथ इस तरह का रवैया इस मामले में मददगार सिद्ध हो सकता है। गौरतलब है कि सितम्बर के प्रथम सप्ताह में ब्रिक्स देषों की चीन में बैठक होनी है और प्रधानमंत्री मोदी के षामिल होने की सम्भावना है। फिलहाल वैष्विक परिदृष्य में दुनिया के अनेक देषों समेत पूरब के देषों के बीच मौजूदा दौर में तनाव सतरंगी रूप ले चुका है। दो टूक यह भी है कि चीन भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था के चलते भी यहां-वहां की उछलकूद करता रहता है पर उसे यह नहीं पता कि पड़ोस के साथ आर, पार और व्यापार के अलावा सुगम रिष्ते की सम्भावना हमेषा फलक पर होती है। केवल तनाव देने से तनाव ही मिलता है और फायदे के रास्ते बंद हो जाते हैं। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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