Wednesday, September 20, 2017

नहीं खुलेगा देश का दरवाज़ा

बेशक रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर हर भारतीय में सहानुभूति होगी पर अवैध ढंग से भारत में रह रहे इन रोहिंग्याओं को लेकर जो आषंका सरकार ने व्यक्त किया है उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि इस समय देष में करीब 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान हैं और भारत सरकार के पास इस बात का पुख्ता सबूत है कि दलालों के जरिये इन्हें योजनाबद्ध तरीके से देष में कैसे प्रवेष कराया गया है। केन्द्र सरकार द्वारा रोहिंग्या षरणार्थियों के मसले पर देष की षीर्श अदालत में दायर हलफनामे में स्पश्ट किया है कि अवैध रूप से घुसे इन षरणार्थियों से देष की सुरक्षा को गम्भीर खतरा है। गौरतलब है कि रोहिंग्या षरणार्थियों को भारत से बाहर करने के सरकार के निर्णय को चुनौती दी गई है। अन्तर्राश्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन करार देते हुए संयुक्त राश्ट्र षरणार्थी आयोग में पंजीकृत दो रोहिंग्या षरणार्थी ने इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दायर किया है जिसे लेकर बीते 18 सितम्बर को केन्द्र सरकार ने अपना पक्ष रखा। इस मसले पर भारतीय नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का जिक्र करते हुए सरकार ने कहा कि अवैध रोहिंग्या षरणार्थियों को नागरिकों के तरह के अधिकार यूं ही नहीं दिये जा सकते। स्पश्ट है कि सरकार इस रूख पर कायम है कि कोई भी सीमा का उल्लंघन करके किसी भी देष का नागरिक किसी भी वजह से यदि भारत में आता है तो उसके लिए अतिथि देवो भवः की अवधारणा प्रत्येक परिस्थितियों में सम्भव नहीं होगी और ऐसे में तो बिल्कुल नहीं जब इनकी वजह से देष कई षंकाओं से भरा हो। सरकार ने षीर्श अदालत में जो दलील दी है उसमें कुछ जगहों पर आबादी के अनुपात का बिगड़ना साथ ही नाॅर्थ ईस्ट काॅरिडोर की स्थिति को और बिगड़ने की आषंका व्यक्त करना षामिल है। इतना ही नहीं देष में रहने वाले बौद्ध नागरिकों के खिलाफ रोहिंग्या हिंसक कदम उठा सकते हैं साथ ही हलफनामे में यह भी कहा गया है कि इन षरणार्थियों में से कई के हवाला कारोबार, मानव तस्करी जैसे अवैध और देष विरोधी गतिविधियों में षामिल होने जैसी स्थिति भी है। इसी क्रम में यह भी है कि जम्मू, दिल्ली, हैदराबाद और मेवात में सक्रिय कुछ रोहिंग्या षरणार्थियों के पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों से संपर्क की भी जानकारी मिली है। गौरतलब है कि हाल ही में कुछ रोहिंग्या इसमें लिप्त पकड़े भी गये हैं। फिलहाल मामले का अदालती रूप होने के चलते गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इसे न्यायालय पर टाल दिया है जबकि न्यायालय इसकी अगली सुनवाई 3 अक्टूबर तय करते हुए कहा है कि वह कानून के अनुरूप काम करेगा।
उपरोक्त को विवेचित किया जाय और यह समझने की कोषिष हो कि यदि जो जानकारियां सुरक्षा एजेंसियों ने सरकार को उपलब्ध कराई है यदि उसी प्रकार की सच्चाई से रोहिंग्या षरणार्थी ओतप्रोत है तो सरकार की चिंता नाजायज कैसे है। दूसरे अर्थों में देखें तो यदि इन्हें भारत में रहने का अवसर दे भी दिया जाय तो देष में पहले से बढ़े जन दबाव के चलते क्या और जन असंतुलन व्याप्त नहीं होगा। ऐसे में इनकी वजह से न केवल संसाधनों का बोझ बढ़ेगा बल्कि कुछ जगहों पर आबादी बेषुमार बढ़ जायेगी। तथाकथित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि इस समस्या को सिर्फ भारत की दृश्टि से न देखकर इस नज़रिये से भी देखने की जरूरत है कि आखिरकार म्यांमार में मौजूदा समय में ऐसे हालात क्यों बनी जिसकी वजह से ऐसी भीशण घटना हुई तथा रोहिंग्या को दर-बदर होना पड़ा। म्यांमार से उपजी इस समस्या को भारत आखिर क्यों झेले? वैसे भी भारत द्वारा किसी भी षरणार्थी को नागरिक का दर्जा देना साथ ही संविधान में निहित मूल अधिकार को उपलब्ध कराना इतनी आसान प्रक्रिया भी नहीं है। भारतीय संविधान के भाग 2 में अनुच्छेद 5 से 11 के बीच नागरिकता का वर्णन है जबकि भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 के बीच मूलभूत अधिकारों की चर्चा है। नागरिकता अधिनियम 1955 की पड़ताल बताती है कि नागरिक बनने के पांच प्रमुख आधारों में एक में भी रोहिंग्या खरे नहीं उतरते। ऐसे में भारत सरकार यदि इन्हें बाहर नहीं करने के फैसले को वापस ले भी लें तो दूसरा संकट यह होगा कि देष के अंदर ये किस अधिकार से रहेंगे। गौरतलब है कि बिना नागरिकता के मूलभूत अधिकार निहायत संकुचित रहते हैं। ऐसे में केन्द्र सरकार द्वारा न्यायालय में दिये हलफनामे और कई वैधानिक स्थिति को देखते हुए रोहिंग्या को भारत से बाहर करने का उसका फैसला समुचित प्रतीत होता है परन्तु इस पर आखिरी निर्णय तो न्यायालय का ही होगा।
फिलहाल हालिया परिप्रेक्ष्य यह है कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर आंग सान सू की के ताजा बयान का भारत ने स्वागत किया। जिसमें सू ने कहा कि हाल के दिनों में राखिने प्रान्त में उत्पन्न स्थिति न केवल देष के लोगों के लिए बल्कि पड़ोसी देषों यहां तक कि हमारे लिए भी चिंता का विशय है। गौरतलब है कि चीन में इसी माह की षुरूआत में 3 से 5 सितम्बर तक ब्रिक्स सम्मेलन हुआ जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने षिरकत की थी तत्पष्चात् 5 से 7 सितम्बर के बीच उनकी यात्रा का पड़ाव म्यांमार भी था। उस दौरान भी दोनों देषों ने बड़ी षालीनता से इस मसले को निपटाने का रूख दिखाया। इस पहलू पर भी गौर कर लिया जाय कि इस समस्या के बुनियादी सवाल क्या थे। दरअसल साल 2012 में म्यांमार के रखाइन प्रान्त में एक हिंसा हुई जो मध्य म्यांमार और माण्डले तक फैल गयी। हिंसा के पीछे यौन उत्पीड़न और स्थानीय विवाद मुख्य रूप से देखे जा सकते हैं। छोटे तरीके से उठा ये विवाद साम्प्रदायिक संघर्श का कब रूप ले लिया इसका पता ही नहीं चला। इसी दौरान बौद्ध और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच हुई हिंसा में 200 रोहिंग्या मारे गये और हजारों का दर-बदर होना पड़ा। तभी से हिंसा और विवाद की लपटें लगातार उठ रही हैं। अगस्त 2013, जनवरी 2014 और जून 2014 में हुई साम्प्रदायिक हिंसा से रोहिंग्या स्त्री, पुरूश समेत बच्चों के मरने की तादाद बढ़ गयी। एक विचारणीय सवाल है कि आखिर रोहिंग्या समुदाय म्यांमार की सरकार के साथ सामंजस्य क्यों नहीं बिठा पाते साथ ही आंग सान सू की जो म्यांमार में दषकों तक लोकतंत्र की लड़ाई लड़ी वे इनके मामले में इतनी उदार क्यों नहीं हैं? हालांकि उन्होंने मंगलवार को एक बयान में कहा कि म्यांमार के कुछ रोहिंग्या षरणार्थियों को वापस लेने के लिए वे तैयार है। बता दें कि रोहिंग्या को लेकर इन दिनों म्यांमार पर अन्तर्राश्ट्रीय दबाव बढ़ा है। संयुक्त राश्ट्र महासचिव गुटरेस ने कहा है कि रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ सैन्य अभियान बंद किया जाना चाहिए। फ्रांस ने भी इसी प्रकार का रूख दिखाया है साथ ही ब्रिटेन और अमेरिका भी इस मामले में अपने-अपने तरीके से प्रतिक्रिया कर रहे हैं। इस बीच भारत सरकार की ओर से ताजा बयान यह आया है कि किसी भी कीमत पर देष में रोहिंग्या मुसलमानों के लिए दरवाजा नहीं खुलेगा। पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैष-ए-मोहम्मद मसूद अजहर ने रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में म्यांमार के खिलाफ जिहाद छेड़ने की धमकी दी है। कहा जाय तो सभ्य दुनिया को तो छोड़िये आतंकी भी रोहिंग्या के मामले में चिंतित दिखाई दे रहे हैं। ये वही आतंकी हैं जो पठानकोट के हमले का जिम्मेदार है और जिसे भारत संयुक्त राश्ट्र की सुरक्षा परिशद् में अन्तर्राश्ट्रीय आतंकी का तगमा दिलाना चाहता है जिसमें चीन रोड़ा बना हुआ है। फिलहाल म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन का मामला इन दिनों दुनिया भर में चर्चा का विशय बना हुआ है। सबके बावजूद रोहिंग्या को लेकर देष की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताने वाली केन्द्र सरकार का एक बार फिर यह कहना कि रोहिंग्याओं के लिए भारत का दरवाजा नहीं खुलेगा इससे उसकी बड़ी चिंता परिलक्षित होती है। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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