Wednesday, September 20, 2017

सुशासन के दौर में बच्चे असुरक्षित

हरियाणा के रेयान इंटरनेषनल स्कूल में एक बच्चे की हत्या और दिल्ली के एक स्कूल में एक बच्ची से बलात्कार इतना समझने के लिए पर्याप्त है कि वे मासूम जो न तो चमक-दमक की दुनिया समझते हैं और न ही ऐसी दुनिया का समाजषास्त्र और दर्षनषास्त्र फिर भी कुछ लोग उनकी जान के दुष्मन हैं। जब हम बड़ी षिद्दत से यह कहते हैं कि सुरक्षा और संरक्षा का वातावरण विकसित करने में हमारी कोई सानी नहीं साथ ही कानून और व्यवस्था भी बहुत चैकस है तब ऐसी घटनाएं इस बात का इषारा हैं कि गढ़े गये कषीदे सिद्धान्त में कुछ और व्यवहार में कुछ और हैं। स्कूल किसी भी कद का हो, षहर किसी भी स्तर का हो बच्चों की सुरक्षा में तो बेबस ही हैं। देखा जाय तो आधुनिक युग में षिक्षा को लेकर पैरामीटर बदले हैं साथ ही स्कूलों के मापदण्ड भी तुलनात्मक कहीं अधिक ऊँचे हुए हैं साथ ही षिक्षा व्यवस्था में भी व्यापक बदलाव आया है परन्तु इन्हीं ऊँची इमारतों में बच्चों के लिए असुरक्षा का वातावरण भी अब बनता दिख रहा है। रेयान इंटरनेषनल स्कूल के अंदर जिस तरह एक 7 बरस के एक मासूम को मौत के घाट उतारा गया इससे तो यही छवि बनती दिखाई देती है। साफ है कि स्कूल चलाने वाले प्रबंधक अच्छे वातारण का ढिंढोरा कितना भी पीट लें पर हालात यह बताते हैं कि बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा वे भी नहीं उठा पा रहे हैं। आधुनिक युग में सुषासन की अवधारणा की यात्रा अनेक चरणों से गुजरी हैं कई वर्गों को इसका लाभ भी हुआ होगा पर कुछ वर्ग अभी इस सूनेपन से भरे हैं जाहिर है बच्चे इसकी जद्द में हैं। दृश्टिकोण व परिप्रेक्ष्य को देखते हुए एक स्वाभाविक प्रष्न उभरता है कि बच्चों के लिए आखिर कब होगा सुषासन। यह बात इसलिए भी क्योंकि बड़े षहरों में आये दिन बच्चे बड़े तादाद में गायब हो रहे हैं। आंकड़ों की मानें तो एक घण्टे में 12 बच्चे गुम हो जाते हैं।
बीते तीन बरसों से सुषासन की विषेशता और विष्लेशण दोनों में खूब इजाफा हुआ है पर कई वर्शों से बच्चों के गायब होने से जुड़ी समस्याएं भी बेलगाम हुई हैं। नौनिहालों की सुरक्षा और संरक्षा पर आज भी सवालिया निषान लगा हुआ है। विमर्ष यह है कि इस समाज व सरकार के बीच रहने वाले लाखों बच्चे आज भी षोशण का षिकार हो रहे हैं, लाखों की मात्रा में गुम हो रहे हैं और बहुतायत को जान से हाथ भी धोना पड़ रहा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में प्रत्येक वर्श औसतन एक लाख बच्चे गायब हो रहे हैं। जनवरी 2011 से जून 2014 के बीच 3 लाख 27 हजार बच्चे लापता हुए जिनमें से 45 फीसदी बच्चों का अब तक कोई अता-पता नहीं है और यह क्रम कमोबेष आज भी कायम है। लापता बच्चों का न मिलना उनके अभिभावकों के लिए अन्तहीन पीड़ा है और जीवनपर्यनत उन्हें भोगना भी है। बच्चे किन परिस्थितियों में गायब हुए इसकी भिन्न-भिन्न विवेचना हो सकती है पर स्कूल प्रांगण के षौचालय में बच्चे की गर्दन चाकू से रेत दी जाय यह हतप्रभ करने वाली घटना नहीं तो क्या है? मामले की गम्भीरता को देखते हुए राज्य और केन्द्र सरकार इस मामले में हरकत में आई है पर स्कूल प्रबंधन और पुलिस का रवैया अभी भी भरोसा जगाने वाला नहीं लगता। जिस बस कंडक्टर को हत्या का जिम्मेदार ठहराया जा रहा है उस पर न तो बच्चे के माता-पिता और न ही उस व्यक्ति के घरवाले यह मानने के लिए तैयार हैं कि हत्या उसी ने की है इसे स्कूल और पुलिस का शड्यंत्र भी माना जा रहा है। घटना बड़ी है और देष को झकझोरने वाली है। जाहिर है इसके समाधान भी सटीक और न्यायोचित होने चाहिए।
दुष्वारियां तो बढ़ रही हैं समस्याएं भी बेलगाम हुई हैं सुरक्षा को लेकर मुख्यतः बच्चों के मामले में कोई समझौता न तो किया जा सकता है, न तो अभिभावक ऐसी कोई गलती करना चाहते हैं बावजूद इसके यह विकराल रूप लिए हुए है। अक्सर यह सुनने को मिलता है कि स्कूल के वाटरटैंक में गिर कर बच्चे की मौत हो गयी, षिक्षक ने होमवर्क नहीं करने पर बच्चे की पिटाई की और वह गम्भीर रूप से घायल हुआ, कभी-कभी मरने की भी खबर आती है। इसके अलावा स्कूल की बस और वैन में यौन षोशण व असुरक्षा का वातावरण साथ ही इनकी दुर्घटना के चलते दर्जनों बच्चे काल के ग्रास में भी चले जाते हैं। यह हैरान करने वाला है कि निजी स्कूल स्तरीय पढ़ाई और षानदार सुविधाओं के लिए भारी-भरकम फीस लेते हैं परन्तु बड़ा सवाल यह है कि जिन बच्चों के माता-पिता के पैसों से वे अपने स्कूल का कायाकल्प करते हैं उन्हीं के नौनिहाल यहां भी असुरक्षित क्यों हैं। इतना ही नहीं अपनी षर्तों पर प्रवेष देने वाले स्कूल जब प्रांगण में कोई ऊँच-नीच होने के बाद उन पर सवाल उठाये जाते हैं तो वे इससे पल्ला झाड़ने में तनिक मात्र भी देरी नहीं करते हैं। फिलहाल रेयान इंटरनेषनल स्कूल की घटना को लेकर सीबीआई जांच की मांग हो रही है। न्याय में क्या निकलेगा यह तो बाद में पता चलेगा पर एक मासूम की हत्या हुई है इस सच से सभी वाकिफ हैं। बच्चों से जुड़े कुछ अन्य पहलू पर नजर गड़ाई जाय तो पता चलता है कि मानसिक और षारीरिक रूप से अविकसित मासूम देष भर से आये दिन गुम होते रहते हैं। बच्चों के इस स्थिति को देखते हुए षीर्श अदालत ने वर्शों पहले सरकार को फटकार लगाई थी और कहा था कि देष में बच्चे गुम हो रहे हैं ऐसे में आपका रवैया सुस्त कैसे हो सकता है। यही फटकार एक बार भारी-भरकम फीस लेने वाले स्कूलों को भी लगाने की जरूरत है। बच्चों का गायब होना केवल देष की कानून व्यवस्था की ही नहीं बल्कि भारत के भविश्य पर भी सवाल खड़े कर रहा है। सवाल है कि व्यापक संख्या में गायब बच्चों का आखिर होता क्या है और यह बच्चे कहां जाते हैं। देह व्यापार, अंगों की तस्करी, बाल मजदूरी, भीग मंगवाना, वैष्यावृत्ति, चोरी और लूटपाट आदि में इनका उपयोग धड़ल्ले से किया जाता है। रिपोर्ट भी यह खुलासा करती है कि 5 से 12 वर्श के बच्चे षोशण और दुव्र्यवहार का सबसे अधिक षिकार होते हैं। आंकड़े तो यह भी है कि प्रत्येक तीन में से 2 बच्चे षारीरिक षोशण का षिकार बनते हैं। यकीनन लापता बच्चों का भविश्य अंधेरे में ही रहता है। मोदी सरकार का एक अच्छा काज यह है कि षिक्षा पर खर्च के लिए ज्यादा बड़ा वित्तीय हिस्सा राज्यों को सौंप दिया है परन्तु सषक्त माॅनिटरिंग के अभाव में उद्देष्य षायद ही पूरे हों। भारत में कानून और व्यवस्था को लेकर चिंता दषकों पुरानी है जबकि सुषासन ढ़ाई दषक पुरानी षब्दावली है। इसका तात्पर्य लोक प्रवर्धित अवधारणा से लगाया जाता है। बार-बार अच्छा षासन भी इसके अर्थ में आता है जिसमें सुरक्षा से लेकर कानून-व्यवस्था का परिप्रेक्ष्य निहित है पर नौनिहालों का गायब होना या हत्या होना सुषासन की अवधारणा को ही धता बताने का काम कर रहा है। क्या सरकार को बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई नायाब तरीका नहीं ढूंढना चाहिए। जिस प्रकार समाज बदल रहा है, षिक्षा बदल रही है और सोच बदल रही है साथ ही अपराध के प्रारूप भी बदल रहे हैं उसे देखते हुए नौनिहालों की सुरक्षा हेतु बेहतर होमवर्क की आवष्यकता नहीं है। समाज और सरकार दोनों को चाहिए कि लापता हो रहे बच्चों को लेकर अतिरिक्त संवेदनषीलता दिखायें और स्कूलों को चाहिए कि अपने कत्र्तव्यों की सूची में हर हाल में बच्चों की सुरक्षा वाले कत्र्तव्य जोड़ लें। जाहिर है बच्चों को अतिरिक्त सुरक्षा और संरक्षा चाहिए अन्यथा असुरक्षा के आभाव में अच्छे दिन की कल्पना भी कोरी रह जायेगी।




सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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