Wednesday, September 20, 2017

समतल मार्ग की खोज में भारत

भारत-म्यांमार के सम्बंधों की जड़ें सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक जुड़ाव से जुड़ी है। भूगोल की पड़ताल बताती है कि दोनों देषों की लगभग 1650 किलोमीटर लम्बी साझी भू-सीमा है। पूर्वोत्तर के अरूणाचल, नागालैण्ड, मणिपुर समेत मिजोरम का म्यांमार की सीमा से सम्बंध है। कई पक्षों को ध्यान में रखते हुए भारत और म्यांमार के लिए आपसी सम्बंध बनाये रखना कहीं अधिक महत्वपूर्ण हमेषा से रहा है और आगे भी इसकी आवष्यकता बनी रहेगी। बीते 3 से 5 सितम्बर को चीन के षियामेन में समाप्त हुए ब्रिक्स सम्मेलन के बाद प्रधानमंत्री मोदी का अगला पड़ाव म्यांमार था। 5 से 7 सितम्बर का समय म्यांमार के साथ सम्बंध के अलावा कई बकाया कार्य को पूरा करने में खर्च किया जाना साथ ही दोनों देषों के बीच एक ऐसे समतल मार्ग की तलाष जिससे आगे की राह दुष्वारियों से भरी न रहे। दोनों पड़ोसियों के बीच ऐतिहासिक रिष्तों को और मजबूत करने पर जो चर्चा हुई कमोबेष ऐसा वर्शों से होता आया है पर मोदी षासनकाल में पड़ोसी समेत दुनिया के तमाम देषों के साथ सन्धि, समझौते व कूटनीति फलक पर रहे हैं। इसके पहले भी प्रधानमंत्री मोदी आसियान बैठक के दौरान म्यांमार जा चुके हैं। चीन से म्यांमार पहुंचे मोदी के जेहन में म्यांमार के साथ द्विपक्षीय मुद्दों सहित भारत में रहे 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान भी हैं। म्यांमार में सबसे बड़े जातीय समूह बर्मन के लोगों का वहां प्रभुत्व है साथ ही यहां कई अल्वपसंख्यक समूहों का विद्रोह भी चलता रहता है। गौरतलब है कि बर्मा के नाम से जाना जाने वाला म्यांमार में साल 1962 से लेकर 2011 तक सैन्य षासन था।
भारत के लिए म्यांमार दक्षिण पूर्वी एषिया का प्रवेष द्वार है जबकि चीन के लिए एक रणनीतिक एहमियत वाला देष है। ऐसे में म्यांमार के साथ दायरे का और बढ़ना तथा मार्ग का और समतल होना कहीं अधिक जरूरी है। गौरतलब है कि म्यांमार चीन की वन बेल्ट, वन रोड़ परियोजना का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है जबकि भारत इस परियोजना के विरोध में है। इतना ही नहीं भारत की लुक ईस्ट व एक्ट ईस्ट नीति के तहत भी म्यांमार कहीं अधिक महत्वपूर्ण देष है। पड़ताल बताती है कि दोनों देषों के बीच कई सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक अनुभव रहे हैं। पचास के दषक में भारत एवं म्यांमार के आपसी सम्बंध मधुर थे परन्तु 60 के दषक में इसमें अवरोध आया था ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय इसका झुकाव चीन की ओर हुआ था। लेकिन एक सही बात यह भी थी कि चीन से झुकाव के बावजूद अपनी विदेष नीति में म्यांमार ने कभी भी भारत को नजंरअंदाज नहीं किया। गौरतलब है कि म्यांमार की सामरिक स्थिति चीन और भारत के बीच बफर देष जैसी है। 1980 तथा 1990 के दषक में कुछ वर्शों तक म्यांमार के सम्बंध में भारत विदेष नीति का मुख्य जोर वहां लोकतंत्र की बहाली और मानवाधिकारों की सुरक्षा पर रहा। जाहिर है कुछ वर्शों तक भारत यथार्थवादी दृश्टिकोण अपनाते हुए कहा था कि लोकतंत्र की स्थापना म्यांमार का आन्तरिक मामला है और भारत को उसमें कोई भूमिका निभाने की आवष्यकता नहीं है।  म्यांमार के सम्बंध में भारतीय नीति वर्तमान में भारतीय राश्ट्रीय हित के परिप्रेक्ष्य में कहीं अधिक विचारपूर्ण है। वर्श 2011 से वहां लोकतंत्र की बहाली हुई। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो म्यांमार में लोकतंत्र की हरियाली के चलते भारत के साथ सम्बंध ही सुचारू और सकारात्मक बने हुए हैं। इन्हीं के बीच प्रधानमंत्री मोदी तीन दिवसीय दौरा इसे कहीं अधिक पुख्ता बनाने के काम आयेगा।
म्यांमार के रखाइन प्रान्त में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ जातिय हिंसा की घटनाओं में तेजी आने के बीच मोदी की इस यात्रा के कुछ और भी मायने हैं। गौरतलब है कि भारत सरकार अपने देष में रोहिंग्या प्रवासी को लेकर भी चिंतित है और सरकार उन्हें स्वदेष वापस भेजने पर विचार कर रही है। 40 हजार रोंहिंग्या का भारत में अवैध रूप से रहना कहीं से वाजिब नहीं है साथ ही जिस तरह इन्हें लेकर म्यांमार में हिंसा बढ़ी है वह कहीं न कहीं नस्लवाद की अवधारणा से प्रेरित प्रतीत होता है। साल 2012 में रखाइन प्रान्त में हिंसा हुई और यह मध्य म्यांमार और माण्डले तक फैल गया। हिंसा के पीछे वजह यौन उत्पीड़न और स्थानीय विवाद मुख्य रहे हैं। छोटे तरीके से उठा यह विवाद साम्प्रदायिक संघर्श का रूप ले लिया है। अनुमान है कि 2012 की बौद्ध और मुसलमानों के बीच हुई हिंसा में 200 रोहिंग्या मुसलमानों की मौत हुई थी और हजारों को दर-बदर होना पड़ा था। तभी से हिंसा और विवाद की लपटें उठ रही हैं। अगस्त 2013, जनवरी 2014 और जून 2014 में हुए साम्प्रदायिक हिंसा से रोहिंग्या पुरूश, महिला, बच्चों के मरने वालों की तादाद बढ़ गयी है। अक्सर यह सवाल उठ खड़ा होता है कि आखिर हिंसा के पीछे कैसे धर्म का लब्बो-लुआब आ जाता है और किस प्रकार इसकी आड़ में सैकड़ों मौतें हो जाती हैं। सैन्य षासन के दौरान म्यांमार में तनाव का लम्बा इतिहास रहा है फलस्वरूप घटनायें भी होती रही हैं। रोहिंग्या के खिलाफ हिंसा को साम्प्रदायिक रूपरंग भी दिया गया है। महत्वपूर्ण यह भी है कि लोकतांत्रिक सरकार के समय में इस प्रकार की घटना का बने रहना लोकतंत्र की कमजोरी को लेकर चिंता बढ़ा देता है। म्यांमार को सामाजिक-आर्थिक विकास की दृश्टि से कहीं अधिक प्रभावित और स्वयं को पोशित करना है ऐसे में साम्प्रदायिक दंगों की चपेट में उसका होना कहीं से उचित नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने यात्रा से पहले कहा था कि भारत और म्यांमार सुरक्षा और आतंकवाद निरोध, एवं निवेष, बुनियादी ढांचा एवं ऊर्जा और संस्कृति के क्षेत्रों में सहयोग मजबूत करने पर गौर कर रहे हैं। 
म्यांमार के वास्तविक नेता और लोकतंत्र की प्रणेता आंग सान सू की से रोहिंग्या समस्या समेत कई मसलों का जमीनी हल भी निकालना है। जिस कद के साथ मोदी सरकार ने कूटनीतिक कदम अब तक उठाये हैं उसमें यह इतना कठिन नहीं है। भारत सरकार के लिए अवैध रोहिंग्या मुसलमान चिंता का कारण है पर समाधान षीघ्र होगा इसके आसार कम हैं परन्तु समय के साथ इससे निजात जरूर मिल सकती है। इससे पहले प्रधानमंत्री 2014 में आसियान बैठक में हिस्सा लेने म्यांमार गये थे और एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण किया था। भारत-म्यांमार सम्बंधों को कई सम्भावनाओं के साथ भी जोड़ा जाता रहा है। दोनों के बीच व्यापक सैन्य सहयोग की भावना, द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने, प्राकृतिक, आर्थिक सामग्रियों को उपयोग में लाया जाना। खास यह भी है कि उर्जा समृद्ध देष म्यांमार से भारत गैस के मामले में और आगे की बात कर सकता है। इससे भारत की ऊर्जा आवष्यकताएं पूरी हो सकती हैं। जिस सौहर्द्रता की तलाष भारत को है देखा जाय तो उसका तलबगार म्यांमार भी है। आंग सान सू की दिल्ली विष्वविद्यालय की छात्र रह चुकी हैं और भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक दषा को बेहतर तरीके से पहचानती हैं। सम्भव है कि दोनों देषों के बीच कई बुनियादी जुड़ाव भी काम के होंगे। भारत म्यांमार सम्बंधों को दोनों देषों की अपनी सीमाओं पर षान्ति और सौहार्द्रता को बढ़ावा देने, दीर्घकालिक आर्थिक विकास समेत आम नागरिकों के बीच मेल-मिलाप तथा कई अन्य बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए एक साझी राह निकाली जा सकती है। गौरतलब है कि भारत और म्यांमार के बीच सम्बंध कहीं अधिक षान्तिपूर्ण हैं पर समय के साथ पड़ोसी देष के नाते जिस तरह की ऊर्जा सम्बंधों में भरनी है उसकी रिक्तता को ध्यान में रखकर चर्चा-परिचर्चा तथा संवाद होना लाज़मी है। प्रधानमंत्री मोदी की म्यांमार की इस यात्रा से कई नई राह खुलेगी साथ ही खुरदुरी राह समतल भी होगी ऐसी उम्मीद करना गैर आपेक्षित नहीं है। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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