Monday, September 4, 2017

नई करवट लेती तमिलनाडु की राजनीति

भारतीय राजनीति में उत्तर के बाद दक्षिण का बड़ा महत्व है जिसमें तमिलनाडु की अपनी अलग महत्ता रखता है। जहां इन दिनों राजनीति नई करवट ले रही है। तमिलनाडु की सियासत मौजूदा समय में जिस रूप-रंग को धारण कर रही है इसकी आहट पहले से ही थी। जिस तर्ज पर सियासी बटवारे यहां की जमीन पर हुए उससे भी यह लगता था कि समय के साथ मोलतोल और सौदेबाजी के चलते यहां की राजनीति नई राह ले लेगी। बामुष्किल छः महीने बीते होंगे कि सब कुछ आईने की तरह साफ हो गया और अब गुटों में बंटे नेता एक साथ हैं पर सरकार खतरे में है। असल में 25 विधायकों समेत टीटीवी दिनाकरन गुट के बगावत से सरकार पर संकट बढ़ गया है। देखा जाय तो सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के ई. पलानीस्वामी और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री रहे पन्नीरसेल्वम के गुटों का आपसी विलय कोई एकाएक परिणाम नहीं है बल्कि इसके पीछे महीनों की राजनीति है। इतना ही नहीं दोनों धड़ों के नेताओं ने बीते सप्ताह प्रधानमंत्री मोदी से अलग-अलग मुलाकात भी की थी। वैसे एक सच यह भी है कि जयललिता के निधन के बाद भाजपा की नजर अन्नाद्रमुक पर थी साथ ही भाजपा उन दिनों पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाये रखने के पक्ष में भी थी। जयललिता की बहुत करीबी वी.के. षषिकला और दिनाकरन गुट से तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी की बढ़ती दूरियों ने यह साफ कर दिया था कि पन्नीरसेल्वम का गुट कभी भी उनके साथ हो सकता है। गौरतलब है कि अन्नाद्रमुक के अन्दर जो धड़े बने उनमें कोई बड़ा वैचारिक विभाजन नहीं था बल्कि जे. जयललिता के विरासत पर कब्जे को लेकर उनके नज़दीकियों के बीच के लोगों का आपसी झगड़ा था। जब तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता का पिछले वर्श दिसम्बर में स्वर्गवास हुआ तब तमिलनाडु की सियासत हिचकोले लेने लगी थी। बामुष्किल महीने भर बीते थे कि उनकी खास सहयोगी वी.के. षषिकला सत्ता पर काबिज होने वाले मनसूबे के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम को गद्दी छोड़ने का खुले मन से आदेष दे दिया। यही सियासत के वैचारिक बंटवारे का बड़ा मोड़ था। हालांकि षषिकला की मुराद पूरी नहीं हुई क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने बीते फरवरी में उन्हें सलाखों के पीछे कर दिया। मौजूदा समय में वे कर्नाटक की एक जेल में निर्धारित सजा काट रही हैं। जेल जाने से पहले तमिलनाडु की राजनीति में षषिकला ने काफी उथल-पुथल किया था। पन्नीरसेल्वम से नाराज षषिकला ने न केवल पलानीस्वामी को तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनवाया बल्कि सेल्वम को पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखाया और अब यही दोनों एक साथ तो हुए हैं पर दिनाकरन गुट ने सरकार के लिए संकट खड़ा कर दिया है। वैसे तमिलनाडु की राजनीति इस बात के लिए अधिक जानी जायेगी कि गैर महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री बने और अति महत्वाकांक्षी षषिकला को जेल जाना पड़ा। 
फिलहाल एआईडीएमके के दोनों धड़े के विलय के बावजूद राज्य में राजनीतिक उथल-पुथल थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते 22 अगस्त को षषिकला और टीटीवी दिनाकरन के करीबी विधायकों ने राज्यपाल से मुलाकात कर मुख्यमंत्री पलानीस्वामी को हटाने की मांग की साथ ही यह भी कहा कि उनके पास बहुमत नहीं है। जैसा कि इन दिनों राजनीति में खूब देखा जा रहा है कि जब भी कोई बगावती समूह बनता है तो उसे सियासी बीमारियों से बचाने के लिए किसी स्थान विषेश पर भेज दिया जाता है। दिनाकरन समर्थक विधायकों को भी पाण्डेचेरी के रिसाॅर्ट में रखा गया है। इसके पहले गुजरात और उत्तराखण्ड में भी ऐसा हो चुका है। हालांकि कहा यह जा रहा है कि वे वहां गये हैं। सरकार पर संकट क्यों है इसे समझना भी सही होगा। असल में तमिलनाडु में कुल 234 विधायक हैं जिसमें एआईडीएमके के 134 और विरोधी करूणानिधि की डीएमके के 89 इसके अलावा कांग्रेस के आठ और अन्य के एक विधायक हैं। दिनाकरन समर्थक यह दावा कर रहे हैं कि 25 विधायक फिलहाल पलानीस्वामी के विरूद्ध हैं। इस स्थिति से स्पश्ट है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री की सरकार संख्याबल के मामले में कमजोर है। विवाद को देखते हुए द्रमुक ने भी राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर विधानसभा सत्र बुलाने और मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करने की मांग की। गौरतलब है कि कर्नाटक में भी जब बरसों पहले कुछ ऐसी ही स्थिति बनी थी तब यदुरप्पा सरकार को विष्वास मत हासिल करने का निर्देष दिया गया था। वैसे भी यह कोई अचरज वाली बात नहीं है कि सत्ताधारी दल के अंदर जब धडे़ बनते हैं तो सरकार के संख्याबल में कमी होना स्वाभाविक है। पलानीस्वामी की सरकार फिलहाल इस मुष्किल से घिरती दिखाई देती है। जाहिर है यदि दिनाकरन समर्थक अडिग रहते हैं तो मौजूदा सरकार के लिए जरूरी संख्याबल जुटाना असम्भव होगा। ऐसी स्थिति में सत्ता परिवर्तन भी सम्भव है। फिलहाल तमिलनाडु की सियासत किस करवट बैठेगी आगे के दिनों में बिल्कुल स्पश्ट हो जायेगा। 
तमिलनाडु की राजनीति इसलिए भी मौजूदा समय में रसूखदार है क्योंकि यहां की अगली विधानसभा का गठन होने में चार वर्श का वक्त लगेगा। दोनों गुटों अर्थात् पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम और मौजूदा मुख्यमंत्री पलानीस्वामी का एक साथ होने से बेषक पार्टी को मजबूती मिलती हो पर सरकार खोने के भय से अभी यह दल मुक्त नहीं हैं और इस परीक्षा में सफल होना इसलिए भी आवष्यक है क्योंकि विरासत की होड़ में इन्हें स्वयं को अव्वल भी सिद्ध करना है। गौरतलब है कि जब तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता को आय से अधिक के मामले में जेल हुई थी तब उनके सबसे अधिक करीबी पन्नीरसेल्वम मुख्यमंत्री बने थे जाहिर है जयललिता के विरासत का सही हकदार तो पन्नीरसेल्वम ही हैं पर राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बीच वी.के. षषिकला ने पलानीस्वामी को इसका हकदार बना दिया था। फिलहाल वी.के. षषिकला जेल में हैं और ये दोनों विरासत के अगुवा बने हुए हैं। जिस तरह यहां की सियासत बदली है और इनकी केन्द्र में सत्तारूढ़ एनडीए के प्रति सूझबूझ बढ़ी है उससे भी साफ है कि बिहार में जेडीयू के तर्ज पर अब एआईडीएमके भी मोदी के साथ सफर करने के मामले में कुछ ही दूरी पर खड़ी है। देखा जाय तो प्रधानमंत्री मोदी जयललिता के समय से ही एआईडीएमके को एनडीए के साथ लाने की पहल करते रहे हैं। हालांकि उनकी ऐसी ही पहल पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेकर भी थी पर वहां दाल नहीं गली। आज भी मोदी और ममता ठीक-ठाक राजनीतिक विरोधी के तौर पर जाने जाते हैं। ऐसा ही कुछ दृष्य 2015 के बिहार चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और नीतीष कुमार के बीच था पर लालू के खानदानी भ्रश्टाचार के चलते सुषासन बाबू नीतीष ने लालू का न केवल साथ छोड़ना ठीक समझा बल्कि महागठबंधन को भी ठेंगा दिखा दिया। इतना ही नहीं 24 घण्टे के भीतर भाजपा का साथ लेकर वे सत्तासीन हुए और कुछ ही दिन पहले चार साल का वनवास तोड़ते हुए एनडीए में अपने दल का विलय कर दिया। 
फिलहाल तमिलनाडु की सियासत कमोबेष उथल-पुथल से पूरी तरह बाहर नहीं है। ऐसे में बड़े सहारे की जरूरत उन्हें भी है और वहां की बदली राजनीति में भाजपा को दक्षिण के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में दमदार प्रवेष का बड़ा सियासी मौका हाथ लगा है। वर्श 2019 में सरकार दोहराने का मनसूबा रखने वाले प्रधानमंत्री मोदी को भी एक बड़े दल का सहारा मिलता दिखाई देता है। कुछ ही दिनों में मंत्रिपरिशद् का विस्तार होगा जाहिर है अन्नाद्रमुक और जेडीयू के लोग भी इसमें षामिल होंगे। हालांकि अन्नाद्रमुक के एनडीए में षामिल होने की घोशणा अभी षेश है पर स्थिति को देखते हुए लगता है कि अब यह महज एक औपचारिकता है। फिलहाल जयललिता की विरासत पर जो सियासत इन दिनों गरमाई है उसमें दिनाकरन ने लंगी मार दी है। ऐसे में पलानीस्वामी और पन्नीरसेल्वम की जोड़ी को परिपक्व कूटनीतिक खेल तो दिखाना ही होगा।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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