Monday, September 4, 2017

कश्मीर नीति के आईने में पाक की सूरत

आतंक के विरूद्ध जहां भारत दुनिया में सबसे बुलंद आवाज के लिए जाना जाता है वहीं इसके पैरोकार के रूप में पाकिस्तान का नाम अव्वल नम्बर पर है। आतंक के मुद्दे पर अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विगत् दिनों जो फटकार पाकिस्तान को मिली उससे भी साफ है कि अब झूठ के खेल से बहुत दिनों तक पाकिस्तान दुनिया को धोखा नहीं दे सकता। गौरतलब है कि विगत् दिनों अमेरिका की दक्षिण एषिया सम्बंधी नीति घोशित करते हुए डोनाल्ड ट्रंप आतंकियों के पनाहगार पाकिस्तान को खूब खरी-खोटी सुनाई थी जबकि अफगान नीति को लेकर उन्होंनंे भारत से सहायता की अपेक्षा रखी। कष्मीर की आड़ में आतंक का गोरखधंधा करने वाला पाकिस्तान अब चैतरफा घिरा हुआ है और बौखलाया भी है। पाकिस्तान की कष्मीर नीति फेल हो चुकी है। यह बात भारत की ओर से नहीं बल्कि भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रह चुके अब्दुल बासित ने कही है। बासित ने पाकिस्तान को इस बात के लिए भी आगाह कर दिया है कि उसे कष्मीर नीति पर पुर्नविचार करना चाहिए। पाकिस्तान की आतंकी कालगुजारियों के बावजूद जोर-जोर से कष्मीर के नाम पर ढोल पीटने वाले अब्दुल बासित आखिर अपने देष के हुक्मरानों को नीति बदलने का सुझाव क्यों दे रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद आतंकवाद को लेकर जो चित्र दुनिया में उभरा और भारत ने जिस प्रकार षेश दुनिया को यह समझाने में सफल रहा कि कष्मीर में आजादी की लड़ाई नहीं बल्कि आतंक का घिनौना खेल चल रहा है। उक्त संदर्भ से अब्दुल बासित भी इत्तेफाक रखते हैं। बासित के इस दृश्टिकोण का कि पाकिस्तान अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर केवल कष्मीर का राग अलापता रहा। इससे भी साफ है कि पाक की कष्मीर नीति आतंक की आड़ लिए हुए थी जबकि भारत इसे बेपर्दा करने में सफल रहा। यदि इस बात की सच्चाई को और बारीकी से पड़ताल की जाय तो यह भी उजागर होता है कि भारत पाकिस्तान की उस कष्मीर नीति से दुनिया का परिचय कराना चाहता था जहां आतंक के बेहिसाब अड्डे हैं। कमोबेष दुनिया के कई देष इसे समझते तो थे पर खुलकर मानने के लिए तैयार नहीं थे परन्तु जिस प्रकार डोनाल्ड ट्रंप ने आतंक के मामले में पाकिस्तान को आड़े हाथ लिया है उससे उसकी कलई फिलहाल खुल गई है। 
पाकिस्तान को अल्लाह ही बचा सकता है अब्दुल बासित का यह बयान भी पाकिस्तान के अंदर बड़े उथल-पुथल का संकेत दे रहा है। देखा जाय तो बीते कई दषकों से पाकिस्तान ने आतंकियों पर भरोसा जता कर बड़ा अपराध किया है। सरकारें बदलीं, सत्ता का ओर-छोर बदला साथ ही परवेज़ मुर्षरफ जैसे तानाषाह भी आये पर सभी भारत को चोट पहुंचाने के मंसूबे से ही भरे रहे। जिस तर्ज पर पाक ने आतंक को पाला-पोसा और इसे लेकर दुनिया से जो झूठ बोला साथ ही जो अनगिनत वादा खिलाफी की है उसे देखते हुए भी यह तय था कि हश्र तो एक दिन बुरा ही होगा। इतना ही नहीं भारत जैसे देष में आतंकियों को हिंसा फैलाने के लिए उकसाकर जो अपराध पाकिस्तान ने किये हैं और जिस तरह भारत ने उसे अलग-थलग करने के लिए मुहिम छेड़ी है उससे भी साफ था कि एक दिन ऊंट पहाड़ के नीचे आयेगा। हद तब हो गयी जब आतंकियों की पैरोकारी करते-करते पाकिस्तान यह भूल गया कि जब यह तिलिस्म टूटेगा तब कौन सा मुंह लेकर दुनिया का सामना वह करेगा। अमेरिका की ओर से लगातार दी जा रही धमकी भरी चेतावनी और भारत द्वारा आतंक के विरोध में निरंतर बढ़ाई जा रही दुनिया भर में इसके प्रति चेतना भी उसकी मुसीबत का सबब है। पाकिस्तान अपनी करतूतों के चलते दुनिया की नजरों में कमोबेष आतंकी देष हो गया है और इसी दुनिया के अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर इस परछाई से मुक्त न होने के कारण गम्भीर देषों की सूची से भी मानो बेदखल की ओर है। षायद इसी के चलते अब्दुल बासित ने पाकिस्तान को चेताया है कि अब उसे कष्मीर पर रोना-धोना छोड़कर सक्रिय कूटनीति का सहारा लेना चाहिए। गौरतलब है कि कष्मीर राग की आड़ में ही दषकों से पाकिस्तान दहषत की रोटियां सेकता रहा है। हालांकि यहां स्पश्ट कर दें कि पाकिस्तान के गलत नीतियों की पैरोकारी करने में अब्दुल बासित जैसे लोगों का भी योगदान है। गौरतलब है जिस कूबत के साथ सत्ता में समझ होनी चाहिए और जिस तरह सत्ता के साथ संलग्न इकाईयों को अपनी भूमिका निभानी चाहिए उसमें पाक के भारत में उच्चायुक्त रहे बासित भी आते हैं परन्तु जब-जब भारत आतंक को लेकर पाकिस्तान से उम्मीदें की तब-तब उसे आईना दिखाने में ये भी पीछे नहीं रहे। दो टूक यह भी है कि अभी भी पाकिस्तान को कष्मीर नीति पर पुर्नविचार की बात तो बासित कर रहे हैं परन्तु इस्लामाबाद को इस बात के लिए आगाह नहीं कर रहे हैं कि देष से आतंक का खात्मा करें। 
जितनी पुरानी भारत की आजादी है, उतनी ही पाकिस्तान की है। जितना पुराना भारत का लोकतंत्र, उतना ही पुराना पाकिस्तान का भी लोकतंत्र है और कष्मीर का विवाद भी उतना ही पुराना है पर अन्तर इस बात का है कि भारत संयमित, संतुलित तथा संदर्भित देषों की पराकाश्ठा है जबकि पाकिस्तान नकारात्मक विचारों से भरा कष्मीर राग अलापने वाला, लोक कल्याण को हाषिये पर रखने वाला तथा लोकतंत्र के मामले में नकारा देष है। मानचित्र को देखें तो पाक अधिकृत कष्मीर का क्षेत्र हरे रंग में दिखता है पर वहां की जमीन आतंकियों के दहषत से खौफजदा और हिंसा से लहुलुहान है। गहरा भूरा क्षेत्र भारतीय कष्मीर और अक्साई चीन जो कभी भारत का हिस्सा था वहां चीन का अधिकार है। ये वही चीन है जो बीते 16 जून से 28 अगस्त तक डोकलाम पर कुंडली मारे बैठा था पर कूटनीतिक दांवपेंच के चलते बीते 28 अगस्त को समस्या फिलहाल टल गयी है। भारत-पाकिस्तान के बीच कष्मीर का मसला कहीं अधिक विवादित है। पाक अधिकृत कष्मीर जिसे संक्षिप्त षब्दों में पीओके कहते हैं और जिस पर संयुक्त राश्ट्र सहित अधिकांष संस्थायें भी भारत के इसी नाम के साथ सहमति जताती हैं। पीओके में बेरोजगारी, षिक्षा, स्वास्थ समेत अनेकों बुनियादी कठिनाईयां हैं। यहां के बाषिन्दे पाकिस्तान से इस क्षेत्र में मुक्ति चाहते हैं दूसरे षब्दों में पाकिस्तान की बर्बरता से आजादी। वैसे देखा जाय तो पीओके को लेकर पाकिस्तान ने कभी विकास का बड़ा मन नहीं दिखाया। लोक कल्याण को यहां पनपने नहीं दिया। कहा जाय तो पीओके में व्याप्त दर्जनों समस्याएं जो आज भी हैं पाक के सत्ताधारकों ने उसे हल करने के बजाय आतंकियों की पाठषाला खोलने पर ही पूरा ध्यान दिया। पीओके एक ऐसी धरती है जो पाकिस्तान का जुल्म सह रही है। तथाकथित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि कष्मीर घाटी भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दषकों से पाक के जुर्म से मुक्त नहीं हो पायी है जब भारत के अंदर का कष्मीर पाक के आतंकी जुल्मों से मुक्त नहीं हो पा रहा है तो जरा सोचिये पीओके किस कठिनाई से गुजर रहा होगा।
अन्ततः यह कि पाकिस्तान की यह सोच थी कि कष्मीर नीति पर अडिग रहो और इसकी आड़ में आतंक का खेल खेलते रहो साथ ही दुनिया को यह जताते रहो कि वहां आजादी की लड़ाई चल रही है जबकि कहानी इससे उलट है। भारत पाक प्रायोजित आतंक को लेकर दषकों से मुसीबत झेलता रहा और दुनिया को यह समझाने में सफल रहा कि पाकिस्तान आतंकियों का षरणगाह है नतीजन अमेरिका समेत कई बड़े देष अब भारत के इस रूख के साथ हैं। सम्भव है पाकिस्तान अब घिरा हुआ महसूस कर रहा है साथ ही आर्थिक नुकसान की ओर भी है। ऐसे में कष्मीर पर राग अलापने के सुर में परिवर्तन वाली बात लाज़मी प्रतीत होती है पर इतने मात्र से बात नहीं बनेगी जब तक कि पाकिस्तान की जमीन से आतंक का पूरी तरह सफाया नहीं होता। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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