Wednesday, September 20, 2017

हांफते पाकिस्तान के दौड़ यूएनओ तक

अज़हर मसूद को न्याय के कटघरे में लाकर रहेंगे। भारत की ओर से किया जा रहा यह दृढ़ संकल्प अब इसलिए रंग ला सकता है क्योंकि वैष्विक फलक पर भारत की कूटनीति तुलनात्मक चमकदार हुई है। संयुक्त राश्ट्र द्वारा अज़हर मसूद को अन्तर्राश्ट्रीय आतंकी घोशित कराये जाने की भारत की कोषिष पुरानी है पर सफलता दर से अभी यह दरकिनार है। इसके पीछे बड़ा कारण संयुक्त राश्ट्र की सुरक्षा परिशद् को आगे बढ़ने से रोकने में चीन का वीटो है। गौरतलब है भारत ने अज़हर मसूद की पहचान 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट में हुए आतंकी हमले के मास्टरमाइंड के रूप में की। इसके अलावा उसके भाई रऊफ समेत पांच अन्य को भी आरोपी बताया था। ध्यान्तव्य हो कि इस हमले में भारत के 7 जवान षहीद हुए थे जबकि 6 आतंकी भी ढेर हुए थे। तभी से यह मंथन है कि पाक को घुटने के बल लाने के लिए वहां के आतंकियों को नेस्तोनाबूत करना है पर इस दिषा में सफलता दर बहुत कम रही। संयुक्त राश्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन का यह कहना कि मामला विचाराधीन है और संयुक्त राश्ट्र समिति के समक्ष है उम्मीद है कि आतंकी घोशित करने में वह अपनी भूमिका का निर्वहन करेंगे। यह जान कर हैरत होगी कि पाकिस्तान का षरणागत आतंकी अज़हर मसूद पर चीन की बड़ी कृपा है। इसे वैष्विक आतंकी घोशित करवाने के भारत के प्रयासों को चीन बार-बार अवरूद्ध करता रहा है। इतना ही नहीं आतंकी लखवी के मामले में भी चीन अपने वीटो का बेजा इस्तेमाल किया है। भारत के इस मामले में दिये गये प्रस्ताव को अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन का समर्थन है पर पड़ोसी चीन अपनी कुटिल चाल के चलते भारत को पाकिस्तान के मुकाबले बनाये रखने तथा स्वयं की कूटनीति को तृप्ति के चलते प्रस्ताव के विरूद्ध हैं। दो टूक यह भी है कि पाकिस्तान संयुक्त राश्ट्र में पिछले 70 सालों से दौड़ लगाते-लगाते हांफने लगा है पर उसका मैराथन समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है।
संयुक्त राश्ट्र संघ में भारत ने पाकिस्तान को दो टूक कह दिया है कि वह कष्मीर का सपना छोड़ दे। साथ ही यह भी चेताया कि आतंकियों को जड़ से खत्म करे और सरकारी नीति के हथियार के रूप में उनका इस्तेमाल बंद करे। गौरतलब है कि भारत की विदेष मंत्री सुशमा स्वराज 23 सितम्बर को संयुक्त राश्ट्र महासभा में अपना भाशण देंगी जाहिर है पाकिस्तान भी इसके उलट कुछ राय जरूर रखेगा। सभी जानते हैं कि नवाज़ षरीफ पनामा मामले के चलते पद गंवा चुके हैं और प्रधानमंत्री के तौर पर षाहिद खाकन अब्बासी काम कर रहे हैं। रोचक यह भी है कि यह अस्थाई प्रधानमंत्री हैं जब नवाज़ षरीफ के भाई इस पद की योग्यता में आ जायेंगे तब इनकी छुट्टी हो जायेगी। फिलहाल संयुक्त राश्ट्र महासभा को अब्बासी सम्बोधित करेंगे। आवाज भले ही अब्बासी की हो पर बोल पाकिस्तान पर दबाव बनाने वाले आकाओं का ही होगा। पाकिस्तानी विदेष मंत्रालय की मानें तो प्रधानमंत्री अब्बासी एक बार फिर संयुक्त राश्ट्र में कष्मीर का मुद्दा उठायेंगे। हालांकि पाकिस्तान की यह सोची-समझी चाल रहती है वह आतंक के मुद्दे को कष्मीर की आड़ में कमजोर करने की हमेषा कोषिष करता रहा है। एक सच्चाई यह भी है कि संयुक्त राश्ट्र में कष्मीर का मुद्दा उठाकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इस्लामाबाद में कुछ दिन चैन से गुजार लेते हैं। गौरतलब है कि पाक यदि कष्मीर का मुद्दा छोड़ दे तो आतंक और आईएसआई के साथ वहां की सेना का गठजोड़ खत्म हो सकता है पर वह ऐसा करके स्वयं पर वार नहीं करा सकता। हो न हो पाकिस्तानी सत्तधारियों के लिए कष्मीर एक ऐसा अचूक हथियार है जिसके बूते सियासत की रोटियां सेकी जाती हैं जबकि पाक की जनता भूख, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी तथा बेकारी से जूझ रही होती है। पाक अधिकृत कष्मीर इस बात का पुख्ता प्रमाण है। जहां के बाषिन्दे इस्लामाबाद के खिलाफ न केवल आवाज़ बुलन्द करते हैं बल्कि आतंकियों के सताये हुए भी हैं।
भारत ने आतंक पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कह दिया है कि पाकिस्तान में आतंकियों को सुरक्षित पनाह दिया जाना जारी है। संयुक्त राश्ट्र में बार-बार मुंहकी खाने वाला पाकिस्तान आदत से बाज नहीं आ रहा है उसके पीछे एक बड़ी वजह चीन का समर्थन भी है। पाकिस्तान द्वारा कष्मीर मुद्दा उठाने को लेकर भारत ने तंज कसा है और इसे मियां की दौड़ मस्जिद तक बताया है। इसी का दूसरा चरित्र यह है कि पाकिस्तान बीते कई दषकों से कष्मीर का मुद्दा उठाते-उठाते, संयुक्त राश्ट्र संघ की दौड़ लगाते-लगाते हांफने लगा है पर नीयत को दुरूस्त करने के बजाय बेहूदा नीति पर अभी भी अड़ा हुआ है जबकि पाकिस्तान के भारत में रहे पूर्व राजनयिक ने हाल ही में कहा था कि पाकिस्तान को कष्मीर मुद्दे के अलावा कुछ और सोचना चाहिए क्योंकि अब दुनिया अब उसके इस नीति पर संजीदा नहीं होती है। एक तरफ दुनिया आतंक को लेकर एकजुट हो रही है तो दूसरी तरफ चीन जैसे देष आतंक के प्रति स्पश्ट रूख नहीं अख्तियार कर रहे हैं। जापान के प्रधानमंत्री षिंजो एबे बीते 14 सितम्बर को भारत आये थे। जैष-ए-मोहम्मद और लष्कर-ए-तैयबा पर मोदी और जापानी प्रधानमंत्री ने खूब लानत-मलानत की। इन आतंकी संगठनों समेत अलकायदा के खिलाफ मिलकर मुकाबला करने पर सहमति जताई। मोदी और षिंजो एबे ने बीते 14 सितम्बर को संयुक्त बयान में कहा कि पाकिस्तान 2008 के मुम्बई और 2016 के पठानकोट आतंकी हमलों के दोशियों को जल्द-से-जल्द सजा दिलवाये। इस बयान से साफ है कि जापान भारत के साथ आतंक के मामले में होकर न केवल पाकिस्तान को सचेत किया है बल्कि चीन को भी कड़ा संदेष दिया है। जाहिर है भारत और जापान की दोस्ती से चीन के माथे पर बल आया है। चीन एक तरफ पाकिस्तान के आतंकियों का समर्थन करता है तो दूसरी तरफ दुस्साहस से भरे उत्तर कोरिया को भी समर्थन देने का ही काम करता रहा है। जिस तर्ज पर भारत और जापान समेत दुनिया के तमाम देष आतंक के विरोध में हैं वैसी हरकत चीन की नहीं दिखाई देती और ऐसा सिर्फ पाकिस्तान को लेकर इसलिए क्योंकि वह अपनी कूटनीति को इसके माध्यम से हल करता है। 
फिलहाल वैष्विक फलक पर अब सब कुछ इतना आसान नहीं है चीन जैसा चाहता है अब पूरी तरह वैसा कर पाये इसकी व्यावहारिकता थोड़ी कम ही दिखाई देती है। पाकिस्तान आतंकियों पर अपनी नीतियों से बाज नहीं आने वाला पर चीन कुछ मामलों में कमजोर दिखता है। एक तरफ भारत जापान की प्रगाढ़ होती दोस्ती तो दूसरी तरफ उत्तर कोरिया पर अमेरिका की टेढ़ी हुई नज़रें। इतना ही नहीं जिस पाकिस्तान के आतंकियों का वह मजबूत समर्थक है उस पर भी अमेरिका की नज़रे तिरछी हैं। बीते दिनों अमेरिकी राश्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान को खूब लताड़ लगाई और साफ किया कि वह नहीं सुधरेगा तो उसको वह स्वयं सुधार देंगे। संयुक्त राश्ट्र संघ भी अब पाकिस्तान के कष्मीर मुद्दे को बहुत संवेदनषीलता से नहीं लेता दिखाई देता है। इसका मुख्य कारण उसकी आतंकी छवि ही है। स्पश्ट यह भी है कि भारत पूरी दुनिया को यह बताने मेें सफल रहा कि वह पाक आयातित आतंकवाद से वह बेइंतहा परेषान है। बदली वैष्विक परिस्थितियां फिलहाल भारत के पक्ष में खड़ी दिखाई देती हैं। चीन को छोड़कर संयुक्त राश्ट्र के सभी स्थाई सदस्य भारत का साथ निभाने का वायदा कर चुके हैं पर इसकी एक गहरी बात यह भी है कि यदि सुरक्षा परिशद् के स्थाई सदस्यों में से एक ने भी मामले के विरूद्ध वीटो किया तो बात बनती नहीं है। ऐसे में सवाल है कि अज़हर मसूद को न्याय के कटघरे में लाने का जो संकल्प भारत कर रहा है क्या वह चीन की बेरूखी से अधर में नहीं है। सम्भव है कि वक्त के साथ कुछ और बदलाव आये पर वर्तमान की सच्चाई तो यही है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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