Wednesday, August 23, 2017

ऐसी दुर्घटना जिसमें यात्री हारता है

वर्ष 2012 में भारतीय रेल मंत्रालय ने भारतीय रेल के सुरक्षा पहलुओं की जांच और सुधार को लेकर एक समिति का गठन किया था। अनिल काकोदकर की अध्यक्षता वाली इस समिति ने वैधानिक रेल सुरक्षा प्राधिकार के निर्माण सहित 106 सुझाव दिये थे परन्तु रेलवे ने 68 सुझावों को पूरी तरह माना, 19 को पूरी तरह खारिज किया जाहिर है बाकी से कोई लेना-देना नहीं था। इस रिपोर्ट के आलोक में प्रासंगिक और सारगर्भित परिप्रेक्ष्य यह उभरता है कि आखिर रेल सुरक्षा से जुड़े उपायों को लेकर आई रिपोर्ट पर सरकार का अमल क्या था और इस समिति की सिफारिषें अभी भी खटाई में क्यों हैं जबकि रेल हादसों की सूची लगातार लम्बी होती जा रही है। मुजफ्फरनगर के खतौली में उत्कल एक्सप्रेस का दुर्घटनाग्रस्त होना रेल प्रबंधन पर ही सवाल खड़े कर देता है साथ ही सुरक्षित कही जाने वाली यात्रा के प्रति लोगों में अविष्वास का वातावरण विकसित करता है। दो टूक यह भी है कि प्रषासन और प्रबंध की लापरवाही का नतीजा यात्रियों को ही भुगतना पड़ता है। ऐसा भी देखा गया है कि जब भी रेल हादसे की षिकार हुई है तब सुरक्षा को लेकर षपथ लेने की बात बड़ी षिद्दत से दोहराई गई पर वास्तुस्थिति यह है कि नतीजे इसके उलट बने रहे। आखिर ट्रेने बेपटरी क्यों हो रही हैं और जिम्मेदार लोग इतने बेफिक्र क्यों और कैसे हैं? प्रतिदिन की दर से दो करोड़ भारतीय ट्रेनों के माध्यम से आवागमन करते हैं। औपनिवेषिक सत्ता के दिनों से चली आ रही इस व्यवस्था पर बीते कुछ दषकों से उंगलियां बहुत उठ रही है और इसके पीछे केवल और केवल मात्र सुरक्षा न दे पाना है। चूक छोटी हो या बड़ी जब दुर्घटना होती है तो जिन्दगियां बेमौत मारी जाती हैं। कहा जाय तो रेल दुर्घटना ऐसी दुर्घटना बन गयी है जिसमें हर बार यात्री ही हारता है। 
उत्कल एक्सप्रेस समेत बीते पांच सालों की रेल दुर्घटना की सूची पर गौर किया जाय तो इसमें 586 रेल हादसे षामिल होते हैं। हैरत भरी बात यह है कि आधे से अधिक घटना इसलिए घटी क्योंकि ट्रेने पटरी से उतर गई। जिस रेल का कायाकल्प करने का मन्सूबा इस तरह पाल के रखा गया है कि देष के यात्रियों को और स्पीड दी जायेगी साथ ही उनके गंतव्य को कम समय में तय करने की अनुकूलता विकसित की जायेगी। क्या इन पटरियों के भरोसे ये इरादे पूरे होंगे। खतौली के पास जो हुआ उस पर रेलवे में एक बार फिर हड़कंप मचना स्वाभाविक था। सुनने में यह भी आया है कि रेलवे कर्मचारी आपस में बात करते सुने गये कि हादसे के पीछे इंजीनियर की लापरवाही है। हालांकि सोषल मीडिया पर वायरल हो रहा यह आॅडियो कितना सही है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा पर यह बात बिल्कुल सही है कि लापरवाही बड़े पैमाने पर हुई है। सवाल पुरानी तकनीक को लेकर उठ सकता है। सवाल पटरी के किनारे बढ़ रहे कब्जों का भी है और पटरियों की पुख्ता जांच-पड़ताल को लेकर हो रही ढिलाई पर भी प्रष्न उठाया जा सकता है। साथ ही सिग्नल सिस्टम भी इस सवाल से नहीं बच सकते। उत्कल एक्सप्रेस में भी पुरानी तकनीक से बने आईसीएफ डिब्बे लगे हुए थे। इसमें बोगी के ऊपर डिब्बा रखा होता है और जब ट्रेन पटरी से उतरती है तो ये डिब्बे बोगी से अलग हो जाते हैं जिससे डिब्बो के पलटने का खतरा बना रहता है। काकोदकर समिति रिपोर्ट को देखें तो ऐसे डिब्बों को बदलने का सुझाव दिया जा चुका है। समिति सुरक्षा उपकरणों की कमी को लेकर भी सिफारिष में व्यापक चिंता जताई है। पटरियों के पास हो रहे अवैध निर्माण को लेकर भी उसने रेल यातायात के लिए खतरा माना है। जाहिर है इससे नुकसान का पैमाना भी बढ़ जाता है पर अमल कितना हुआ तस्वीरें आईना दिखा रही हैं। काकोदकर समिति रिर्पोट को और बारीकी से पड़ताल किया जाय तो यह भी पता चलता है कि रेलवे के सिग्नलिंग और टेलीकाॅम्युनिकेषन सिस्टम को आधुनिक बनाने पर जोर दिया गया था। आधुनिक तो छोड़िए यहां परम्परागत तरीके से भी ट्रेन की सुरक्षा को लेकर उपाय नहीं अपनाये गये। 
यात्रियों के लिए दुर्भाग्यषाली उत्कल एक्सप्रेस के दुर्घटना होने के कारणों को समझने के बाद यह विष्वास करना बहुत मुष्किल है कि ऐसा भी हो सकता है साथ ही मन इस भ्रम से भी भर जाता है कि जिस षौक और षान के साथ ट्रेनों के माध्यम से हम आवाजाही को निहायत सुरक्षित मानते हैं वह कितना बड़ा मौत का सामान है और इसके पीछे चंद लोगों की लापरवाहियां षामिल हैं जो ऐसे ही यात्रियों के टैक्स भुगतान के चलते वेतन लेते हैं। इस हादसे को लेकर मैंने जो मंथन किया और इसे लेकर जो समझ में आया उससे यह पता चलता है कि खतौली स्टेषन के पास रेलवे लाइन की मरम्मत का काम चल रहा था तो जाहिर है कि गुजरने वाली ट्रेनों को लेकर सूचना और चेतना का अलग बंदोबस्त होना चाहिए पर ऐसा नहीं हुआ। उत्कल एक्सप्रेस सौ किलोमीटर प्रति घण्टे से अधिक की स्पीड से उस पटरी को पार करने की कोषिष में थी जिस पर आमतौर पर सूचना की स्थिति में 15-20 किलोमीटर की गति से आगे बढ़ना चाहिए था। जाहिर है जब पटरियों पर काम होता है या हो रहा होता है तो एक विषेश सावधानी की आवष्यकता पड़ती है। यहां कुछ भी स्पश्ट नहीं था। ट्रेन गुजरने के पहले मरम्मत करने वालों को भी जानकारी होनी चाहिए और रेलवे के चालक को भी। ऐसे में गाड़ी को धीमा करना सम्भव होता है और दुर्घटना की सम्भावनाएं भी टल जाती हैं पर जब सिस्टम समय और प्रबंधन की दृश्टि से काम न कर रहा हो तो नियम का अनुपालन चालक आखिर क्यों करेगा। ऐसे में गाड़ी की स्पीड का होना लाज़मी है परिणामस्वरूप 14 डिब्बे पटरी से उतर गये कुछ निकट के मकान में घुस गये जिसे काकोदकर समिति ने पहले ही चिंता पूर्वक चेताया था। यह महज़ एक संयोग ही कहेंगे कि हजारों किलोमीटर की यात्रा तय करने वाली उत्कल एक्सप्रेस गंतव्य हरिद्वार से कुछ ही किलोमीटर पहले दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। मरने वालों की संख्या पूरी तरह पुख्ता नहीं है परन्तु जो भी इसकी जद्द में आये और दुनिया से चले गये उनके लिए यह यात्रा वाकई में मौत की यात्रा सिद्ध हुई।
पिछले रेल दुर्घटनाओं को जितना उकेरा जाय सूची उतरी बड़ी होती चली जाती है जिसमें कई रेल हादसे तो भीशण तबाही से भरे हैं जहां जान-माल का बेहिसाब नुकसान हुआ है। मसलन इंदौर-पटना एक्सप्रेस जब कानपुर के पास पिछले वर्श 20 नवम्बर को पटरी से उतरी थी तो मरने वालों की संख्या 150 से ज्यादा थी। जबकि घायलों की संख्या भी सैकड़ों में थी। यहां रेल लाइन में दरार होने सहित दुर्घटना से जुड़ी कई चीजों को जिम्मेदार ठहराया गया था पर लाख टके का सवाल यह उठता है कि सबक क्या लिया। बिलबिलाते लोग, बिलखते लोग, कराहते और पीड़ा से जकड़े लोगों को जब टीवी एवं समाचार पत्रों के माध्यम से देखना और पढ़ना होता है तो मन इस बात से पूरी तरह क्षुब्ध होता है कि 21वीं सदी के इस दौर में हम सुरक्षा को लेकर क्यों इस तरह हैं। क्यों हर बार यात्री हार रहा है और क्यों रेल मंत्रालय, प्रषासन एवं प्रबंधन कोताही से बाज नहीं आ रहा। दूसरे देषों में बिजली चली जाने मात्र पर मंत्री को इस्तीफा देना पड़ता है यहां सैकड़ों की तादाद में लोग हादसों का षिकार हो रहे हैं और सरकारें पुख्ता इंतजाम करने में विफल हो रही हैं। इस सवाल के साथ इस लेख को इति कर रहा हूं कि आखिर रेल यात्रा और उसमें समाहित सुरक्षा पर क्या हमारा विष्वास ऐसी दुर्घटनाओं के बावजूद कायम रह सकेगा? 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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