Wednesday, September 20, 2017

हाईस्पीड में भारत-जापान सम्बन्ध

हाईस्पीड में भारत-जापान सम्बंध
हाल के वर्शों में भारत-जापान सम्बंधों में महत्वपूर्ण और गुणात्मक बदलाव आया है। मौजूदा समय में तो यह बुलेट ट्रेन सरीखी रफ्तार ले लिया है। जापानी प्रधानमंत्री षिंजो एबे द्वारा सृजित ष्लोगन ‘जय जापान, जय इण्डिया‘ इस बात को और पुख्ता करता है। गौरतलब है कि जापान के प्रधानमंत्री षिंजो एबे की सितम्बर यात्रा वैसे तो बुलेट ट्रेन के चलते कहीं अधिक सुर्खियों में रही है परन्तु गुजरात के गांधीनगर में प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक में जो कुछ हुआ उससे स्पश्ट है कि रणनीतिक व सुरक्षा सम्बंधी मापदण्डों पर भारत और जापान तुलनात्मक कहीं अधिक स्पीड से आगे बढ़ना चाहते हैं। दोनों देषों ने एक प्रकार से यह जता दिया कि दोनों रणनीतिक सहयोग के साथ दायरा बढ़ाने का मनसूबा फिलहाल रखते हैं। गौरतलब है कि भारत जापान की तरफ से जारी संयुक्त घोशणापत्र का सीधा तात्पर्य प्रषान्त महासागर से लेकर हिन्द महासागर तक किसी भी देष को मनमानी की छूट नहीं होगी। जाहिर है चीन और उत्तर कोरिया समेत कईयों के लिए यह एक बड़ा और कड़ा संदेष है। जिस तर्ज पर थल सेना से लेकर नौसैनिक क्षेत्र तक में दोनों देषों ने खाका खींचा है उससे भी स्पश्ट है कि अमेरिका के बाद अगर वैष्विक जगत में कोई रणनीतिक साझीदार भारत का है तो वह जापान ही है। जापानी प्रधानमंत्री की बीते 14 सितम्बर की यात्रा रेल परिवहन की दृश्टि से भारत में एक बड़ी दस्तक ही कही जायेगी। अहमदाबाद से मुम्बई के बीच की बुलेट ट्रेन की परियोजना के कुल खर्च 110 हजार करोड़ में 88 हजार करोड़ का निवेष जापान द्वारा किया जाना साथ ही तकनीक भी उपलब्ध कराना इस बात का इषारा है कि भारत और जापान के सम्बंध केवल कूटनीतिक नहीं बल्कि आर्थिक परिपाटी के साथ नैसर्गिक मित्रता की ओर बढ़ रहे हैं। वैसे इसमें इस बात का भी संकेत दिखाई देता है कि जापान भी नहीं चाहता कि भारत के इस प्रकार की सुविधा में किसी प्रकार से चीन का हस्तक्षेप हो। गौरतलब है कि बुलेट ट्रेन के मामले में जापान की भांति चीन भी अव्वल है। हो न हो चीन की नजर व्यापारिक दृश्टि से बुलेट ट्रेन के मामले में भारत की ओर रही हो पर जापान से मिली सौगात से यह रास्ता उसके लिए न केवल बंद हो गया बल्कि दोनों की गाढ़ी दोस्ती से उसे जोर का झटका भी लगा है। 
इतिहास को खंगाला जाय तो छठी षताब्दी में बौद्धिक धर्म के उदय तथा जापान में इसके प्रचार-प्रसार के समय से ही दोनों देषों के बीच मधुर सम्बंध रहे हैं। भारत और जापान के बीच अप्रैल 1952 से राजनयिक सम्बंधों की स्थापना हुई जो मौजूदा समय में सौहार्दपूर्ण सम्बंध का रूप ले चुकी हैं। दोनों देषों के द्वारा अनेक संयुक्त उपक्रमों की स्थापना से सम्बंधों की गहराई का पता चलता है। भारत और जापान 21वीं सदी में वैष्विक साझेदारी की स्थापना करने हेतु आपसी समझ पहले ही दिखा चुके हैं तब यह दौर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का था। इण्डो-जापान ग्लोबल पार्टनरषिप इन द ट्वेंटी फस्र्ट सेन्च्युरी इस बात का संकेत था कि जापान भारत के साथ षेश दुनिया से भिन्न राय रखता था। इतना ही नहीं वर्श 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं जापानी प्रधानमंत्री के साथ एक संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ जिसका षीर्शक था नये एषियाई युग में जापान-भारत साझेदारी। गौरतलब है कि दिसम्बर 2006 में मनमोहन सिंह और यही जापानी प्रधानमंत्री षिंजो एबे ने सामरिक उन्मुकता को ध्यान में रखते हुए मसौदे को आगे बढ़ाया। उपरोक्त परिप्रेक्ष्य इस बात को भावयुक्त करते हैं कि जापान और भारत कई दषकों से एक-दूसरे के लिए सकारात्मक रहे हैं। प्रधानमंत्री एबे ने एक दषक पहले कहा था कि किसी अन्य द्विपक्षीय सम्बंधों की तुलना में भारत और जापान के सम्बंधों में असीम सम्भावना है। जाहिर है वर्तमान में भी दोनों इसी कसौटी पर एक बार फिर खरे उतरते दिखाई दे रहे हैं। भारत और जापान के भावी रिष्ते को जिस तरीके से जापानी प्रधानमंत्री ने यह कहते हुए कि हम ‘जय जापान जय भारत‘ को सच साबित करने के लिए काम करेंगे उसमें भी गाढ़ी दोस्ती का ही रहस्य छुपा हुआ है। दो टूक यह भी है कि जापान की तुलना में इसका लाभ भारत के हिस्से में ही अधिक आने वाला है। हालांकि ‘जय जापान, जय भारत‘ के ष्लोगन से अनायास ही 1954 का हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा उभर आया जो 1962 में चीन आक्रमण के साथ इसलिए भरभरा गया क्योंकि इसकी व्यावहारिकता पर कभी काम ही नहीं किया गया था पर जापानी प्रधानमंत्री का नारा ‘जय जापान, जय भारत‘ इसलिए कहीं अधिक दृढ़ है क्योंकि यह सात दषकों के सम्बंधों के बाद पनपाया गया है। 
प्रधानमंत्री मोदी और उन्हीं के समकक्ष षिंजो एबे ने बुलेट ट्रेन के षिलान्यास के साथ रिष्तों की नई इबारत लिख दी है। मोदी ने साबरमती स्टेषन पर बुलेट ट्रेन के षिलान्यास के मौके पर कहा कि यह जापान से लगभग मुफ्त में मिल रही है। जापान का यह कहा जाना मेक इन इण्डिया के लिए जापान प्रतिबद्ध है। यह बात इसलिए दमदार है क्योंकि भारत इसी के बूते दुनिया से अपने देष में निवेष की इच्छा रखता है। षिंजो एबे का यह वक्तव्य कि मेरे अच्छे मित्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दूरदर्षी नेता हैं दषकों की गाढ़ी दोस्ती का एक दूसरा रंग ही है। जिस तर्ज पर एषिया और प्रषान्त महासागरीय देष आये दिन उथल-पुथल में रहते हैं और जिस प्रकार सीमा विवाद को लेकर चीन भारत को धौंस दिखाने का अवसर खोजता रहता है इसे भी संतुलित करने में जापान की दोस्ती बड़े काम की है। गौरतलब है कि 72 दिनों तक डोकलाम पर भारत और चीन की सेना आमने-सामने डटी रही। इसी तनातनी के दौर में जापान का बयान भारत के पक्ष में आया था। जाहिर है चीन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में यह काम आया और बीते 14 सितम्बर को प्रधानमंत्री मोदी और जापानी पीएम षिंजो एबे के संयुक्त बयान में यह कहना कि पाकिस्तान 2008 के मुम्बई और 2016 के पठानकोट हमलों के दोशियों को जल्द-से-जल्द सज़ा दिलवाये इससे पाकिस्तान को तो कड़ा संदेष मिला ही है साथ ही पाकिस्तान के आतंकियों का समर्थन करने वाले चीन और उसकी बढ़ती आक्रमकता को भी निषाने पर लिया गया है। सभी जानते हैं कि उत्तर कोरिया का भी चीन समर्थन करता है जिससे जापान इन दिनों काफी परेषान है और अमेरिका उत्तर कोरिया के दुस्साहस को देखते हुए सबक सिखाने के मूड में है। बीते 3 सितम्बर को चीन में ब्रिक्स सम्मेलन होने से पहले 28 अगस्त को डोकलाम समस्या से जैसे-तैसे छुटकारा मिला। यहां भी भारत की कूटनीति फलक पर जबकि चीन हाषिये पर जाता दिखाई देता है। भारत-जापान की दोस्ती भी चीन को फिलहाल बहुत खल रही होगी। भारत और जापान के बीच हुए 15 अहम समझौते और हाई स्पीड रेल परियोजना साथ ही चीन के वन बेल्ट, वन रोड की काट खोजना भी इस बात का द्योतक है कि दक्षिण एषिया में ही नहीं वरन् वैष्विक फलक पर भारत अपना कद तुलनात्मक कहीं अधिक विकसित कर चुका है। गौरतलब है कि जब बुलेट ट्रेन 1964 में जापान में पहली बार आई थी तब जापान का पुर्नजन्म हुआ था। जनसंख्या और क्षेत्रफल की दृश्टि से छोटा जापान और उसी की तुलना में दोनों मामले में अव्वल भारत भी रेल परिवहन में बुलेट ट्रेन का भूमिपूजन करके इस राह पर चल पड़ा है। इससे परिवहन के इस क्षेत्र में न केवल सरलता और सुगमता का विकास होगा बल्कि भारत और जापान के बीच दोस्ती भी कहीं अधिक हाईस्पीड वाले होंगे।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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