Monday, September 4, 2017

चमत्कारिक सत्ता का समाजशास्त्र

जब बीते 25 अगस्त को हरियाणा के पंचकुला की सीबीआई कोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम को दुश्कर्म के चलते आरोपी करार दिया था तब एक बार फिर यह साफ हो गया कि चमत्कार का दावा करने वाले बाबाओं का समाजषास्त्र कितना स्याह है। समाजकार्य के अन्तर्गत यदि इसे देखें तो यह सीधे तौर पर सफेदपोष अपराध की संज्ञा में आता है। जिस सिलसिलेवार तरीके से बीते कुछ वर्शों से आसाराम बापू, हरियाणा के ही रामपाल तथा स्वामी भीमानंद समेत कई बाबाओं का कच्चा चिट्ठा सामने आया उससे चिंता बढ़ी है। फिलहाल गुरमीत राम रहीम को सीबीआई कोर्ट ने 28 अगस्त के अपने निर्णय में 10 वर्श की सजा सुना दी है। इस आलोक में एक बार फिर यह सुनिष्चित होता है कि देष में विधि का षासन है और संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत सभी को कानून के समक्ष बराबर का दर्जा मिला हुआ है। यह भी स्पश्ट होता है धार्मिक-सामाजिक कार्यों की आड़ में यदि गलत कृत्य होंगे तो वह भारतीय दण्ड संहिता के निषाने पर होगा। सोमवार को सजा से जुड़े निर्णय के बाद हिंसक घटनायें एक बार फिर कुछ मात्रा में सामने आई। गौरतलब है कि 25 अगस्त के निर्णय के बाद हरियाणा में जो हुआ वह कानून-व्यवस्था को लहुलुहान करने वाला था। कुछ ही घण्टों में जहां-तहां सैकड़ों गाड़ियां धूं-धूं कर जलने लगी, सरकारी सम्पत्तियां आग के हवाले कर दी गईं और पूरे घटनाक्रम में 32 की जान गई। पंचकुला समेत हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेष एवं अन्य प्रांतों के कई हिस्सों में कानून व्यवस्था कुछ घण्टों के लिए बेबस भी हुई। इससे भी साफ होता है कि राम रहीम का बीते ढ़ाई दषकों में कितना प्रभाव बढ़ चुका था। घटना को लेकर हरियाणा की खट्टर सरकार पर चैतरफा सवाल उठे। एक बार तो ऐसा लगा कि इस बार खट्टर सरकार का बच पाना मुष्किल है पर ऐसा नहीं हुआ। आखिरकार उन्हें जीवनदान मिला जबकि उच्च न्यायालय ने भी घटना को लेकर हरियाणा सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। ऐसा क्यों किया गया इस सवाल पर भी चिंतन थोड़ा गाढ़ा तो होना ही चाहिए। आखिरकार बार-बार असफल रहने वाली खट्टर सरकार के खिलाफ केन्द्र ने कड़ा रूख क्यों नहीं अपनाया जबकि जाठ आंदोलन समेत यहां प्रतिवर्श की दर से जान-माल को नुकसान पहुंचाने वाली घटनाएं लगातार हो रही हैं। जहां तक समझ जाती है लगता है कि इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि मोदी सरकार हरियाणा की खट्टर सरकार को बेदखल करके यह आरोप पुख्ता नहीं होने देना चाहती कि वाकई में सरकार कानून-व्यवस्था को बचाये रखने में असफल रही है। बल्कि इसकी जगह पर दलील यह है कि कुछ घण्टों के भीतर ही इस पर काबू पा लिया गया।
फिलहाल ये तय हो चुका है कि राम रहीम दस वर्श तक जेल में सजा भुगतेंगे। यह कम बड़ी बात नहीं है कि वे दो लड़कियां जो समाज में सामान्य से ऊपर नहीं थी उनकी बदौलत षासन, सत्ता और राजनीति का सिरा मोड़ देने वाले बाबा को सजा मिली। उन पत्रकारों को भी सम्मान मिलना चाहिए जिन्होंने बाबा के रसूख के आगे हथियार नहीं डाले बल्कि अपनी जान गंवा दी। साथ ही सीबीआई कोर्ट के उन अधिवक्ताओं एवं न्यायाधीष को भी नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने न्याय के लिए आम और खास में कोई फर्क नहीं किया। जब इस तरीके के संदर्भ कई कानूनी और सामाजिक पेंचीदगियों के बाद और वर्शों खर्च करने के पष्चात् निर्णय का रूप लेते हैं तब न्यायपालिका पर भरोसा पहले की तुलना में स्वयं अपने आप बढ़ जाता है। धार्मिक एवं सामाजिक क्रियाओं के अन्तर्गत गुरमीत राम रहीम ढ़ाई दषक से अधिक लम्बे वक्त के चलते एक मजबूत पूंजीवाद की ओर भी अग्रसर हुआ पर सकारात्मक भूमिका का निर्वहन न करने के चलते आज सलाखों के पीछे है। धर्मषास्त्र की अपनी एक स्पश्ट धारा है और समाजषास्त्र की भी निहित एक विचारधारा है जाहिर है इसके उल्लंघन से कोई भी मकड़जाल में फंस सकता है। गुरमीत राम रहीम समेत दर्जनों बाबा इसके पुख्ता उदाहरण हैं। धर्म ने मनुश्य को मनुश्य बनाने में कहीं अधिक भूमिका अदा की है परन्तु इसी की आड़ में चमत्कारिक सत्ता हथियाने वाले बाबा ये भूल जाते हैं कि धर्म का अनुपालन भी उन्हीं की नैतिकता में षुमार था। यहां धर्म का तात्पर्य कत्र्तव्य से है न कि हिन्दू , मुस्लिम, सिक्ख, ईसाइ से है।
ऐसा भी देखा गया है कि समय के साथ जब आर्थिक ताकत बढ़ती है और विकार को गैर अनुषासित होने का मौका दे दिया जाता है तब ऐसे संगठनों के लिए कई चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं। आसाराम बापू से लेकर गुरमीत राम रहीम तक दर्जनों ऐसे बाबा मिल जायेंगे जिन्होंने अपने करिष्माई सत्ता के प्रभाव में कुछ भी करेंगे उन्हें चुनौती नहीं मिलेगी का भ्रम हमेषा पाले रहे जिसका नतीजे में जेल की सलाखें आईं। मैक्स वेबर ने भी नौकरषाही के अन्तर्गत तीन सत्ताओं की बात की है जिसमें पारम्परिक, कानूनी और करिष्माई सत्ता षामिल है। करोड़ों अनुयायी से परिपूर्ण राम रहीम का नेटवर्क जिस तर्ज पर फैला था उसे करिष्माई में परखा जा सकता है। वैसे राश्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के उन दिनों में करिष्माई नेतृत्व के लिए जाना जाता था और इससे जुड़े अनुषासन का अनुपालन उन्होंने ताउम्र किया। जितना बड़ा करिष्मा उतना बड़ा नैतिक बोध से अभिभूत होने के बजाय दुश्कर्म और अपराध से युक्त राम रहीम जैसे बाबाओं का जब असली चेहरा सामने आता है तब न तो करिष्मा रह जाता है न रसूख बचता है, ऐसे में अनुयायी समेत पूरी व्यवस्था बड़े सदमे से गुजरती है। 
डेरा सच्चा सौदा जैसे आश्रमों की दो दुनिया है एक दुनिया वो है जो लोगों को नज़र आती है, जो लोगों के लिए है जिसमें उनकी भलाई के लिए कार्यक्रम चलते हैं जिसमें रहने, ठहरने और खाने का पूरा पुख्ता इंतजाम होता है। धर्मषालायें भी होती हैं और अस्पताल भी होते हैं इतना ही नहीं जीवन के हर कठिन मोड़ को सरल बनाने वाले उपाय भी उपलब्ध होते हैं। गरीब से गरीब व्यक्ति भी यहां लोक कल्याण और बुनियादी विकास से स्वयं को जुड़ा हुआ पाता है। ऐसी दुनिया में अनुयायियों की संख्या बेहिसाब बढ़ती है पर बाबा राम रहीम की एक दूसरी दुनिया भी है जिसे न तो अनुयायी जानते हैं और न ही आश्रम के बाहर के लोग ही इसे जानते हैं। गुरमीत राम रहीम जैसे बाबा जब आम लोगों के बीच होते हैं तो भगवान होते हैं उनके सुख-दुःख के साझीदार होते हैं। गौरतलब है कि बाबा राम रहीम ने जो दुनिया बसाई उसमें हर चीज़ मौजूद है षायद जिसके बारे में सोचा न जा सके वो भी परन्तु आंखों को चकाचैंध कर देने वाली और लोक कल्याण के गौरव गाथा से युक्त आश्रम के बीच गुफा क्यों होती है और उस गुफा में कैसे तीसरी और चैथी दुनिया पनपाई गयी होती है इसकी भनक तो उन्हें ही होती है जो भुग्तभोगी होते हैं। साफ है गुरमीत राम रहीम ने धार्मिक कामकाज की आड़ में सामाजिक ताने-बाने को तार-तार किया है। न केवल स्त्रियों का षोशण किया बल्कि रिष्तों की आड़ में मर्यादाओं को भी स्याह किया है। इतना ही नहीं गुरमीत राम रहीम जैसे लोग ही हैं जिनकी वजह से अनुषासित और मर्यादित साधु व संत समाज आज कटघरे में है। सजा तो उस जुर्म की मिली है जो गुरमीत राम रहीम ने किया है परन्तु चमत्कारिक और संत होने की आड़ में जो भरोसा समाज ने किया और जो चोट समाजषास्त्र को पहुंची उसकी भरपाई कौन करेगा?

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन  
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment