Thursday, July 30, 2015

एक अपराधी के किये की सजा

मेरी फांसी का राजनीतिकरण किया जा चुका है, मुझे पता है कि मैं मरने वाला हूं अब तो कोई चमत्कार ही मुझे बचा सकता है। यह बात याकूब मेमन ने बुधवार की सुबह अपने बैरक के पास तैनात एक होमगार्ड से कही थी। याकूब मेमन भी समझता था कि भारत की सियासत सजा देने या न देने के बीच उलझी हुई है और षायद उसके मन में यह भी रहा होगा कि फांसी वाला मामला इस आपा धापी में लटक सकता है। देखा जाए तो लम्बे अर्से से देष में फांसी देने को लेकर विमर्ष भी जारी है पर इस मामले में अभी किसी प्रकार की दुरूस्त राय नहीं बन पायी है। फिलहाल बाइस बरस के लम्बे इंतजार के पष्चात् नागपुर सेन्ट्रल जेल में मुम्बई बम धमाके के दोशी याकूब मेमन को सजा देने का काम पूरा हो चुका है। सर्वोच्च न्यायालय के तीन वरिश्ठतम् न्यायाधीषों की पीठ द्वारा क्यूरेटिव याचिका खारिज कर देने और महाराश्ट्र के राज्यपाल और फिर राश्ट्रपति द्वारा दया याचिका ठुकराने के बाद ही ऐसा सम्भव हो पाया है। हालांकि फांसी देने वाली सुबह से पहले वाली रात के 2: 30 बजे सुप्रीम कोर्ट बैठी थी पर फैसला टस से मस नहीं हुआ। कहा जाए तो वक्त भले ही लम्बा लगा हो पर न्याय पूरा हुआ है। देष की वाणिज्यिक राजधानी कही जाने वाली मुम्बई में हुए धमाके के चलते 250 से ज्यादा लोगों की जान चली गयी थी। यह इतना बड़ा अपराध था कि याकूब मेमन के सारे बचाव के रास्ते बन्द कर दिय और परिणाम यह हुआ कि उसे फांसी पर लटकना पड़ा।
गुनाह की कई परिभाशा हो सकती है पर याकूब मेमन जैसे गुनाहगार गुनाह की ऐसी परिभाशा रचते हैं कि समाज ही तबाह हो जाए। क्या है याकूब मेमन का गुनाह? इसे भी विस्तार से समझना ठीक होगा। मुम्बई में सिलसिलेवार बम धमाको के लिए भाई टाइगर मेमन की मदद करना तथा विस्फोटकों के लिए वाहन खरीदना साथ ही विस्फोटकों से भरे बैग ड्राइवर को देने जैसे काम याकूब ने ही किये थे। जन्मदिन के ही दिन फांसी पर लटकाये जाने वाले 54 वर्शीय याकूब को लेकर भारत की सियासत भी इन दिनों काफी गर्म है पर इस गहमागहमी के बीच यह नहीं भूलना चाहिए कि फैसला न्यायिक है और किये की सजा मिलनी ही चाहिए। तमाम कानूनी कलाबाजियां भी धमाके के इस दोशी को नहीं बचा सकी। सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच ने साफ कर दिया था कि करनी की सजा भोगनी ही पड़ेगी। जाहिर है सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से देष ने राहत की सांस ली होगी परन्तु हैरत करने वाली बात यह है कि कुछ मुट्ठी भर लोग याकूब मेमन जैसे अपराधी की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं जिसे हर हाल में खतरनाक कहा जायेगा। दोश यह भी है कि इसे धर्म और सम्प्रदाय से जोड़ने की भी कोषिष की गई। याकूब मेमन जैसे अपराधी के लिए सहानुभूति की लहर पैदा करने का भी प्रयास किया गया। धर्म के नाम पर राजनीति की बड़ी दुकान चलाने वाले हैदराबाद के सांसद ओवैसी ने तो इस मामले में चीखना ही षुरू कर दिया। ओवैसी ने इसकी आड़ में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री रहे बेअन्त सिंह के हत्यारों को भी फांसी देने की वकालत कर डाली। उन्होंने यह भी नजीर रख दी कि जब उन्हें उम्र कैद तो याकूब को फांसी क्यों? सवाल है कि ओवैसी जैसे सियासतदान देष में नकारात्मक माहौल क्यों पैदा करते हैं? धर्मनिरपेक्षता का ढोल-नगाड़ा पीटने वाले ऐसे लोग सम्प्रदाय के नाम पर न्यायिक व्यवस्था को भी चुनौती देने से नहीं हिचकिचाते।
लोकतंत्र की बखिया उखेड़ने वाले ओवैसी जैसे और भी नेता हैं जिन्हें ऐसा लगता है कि याकूब मेमन के बहाने मुसलमानों के कुछ वोट को तो हथियाया ही जा सकता है पर वो भूल जाते हैं कि अपराधियों की वकालत करके प्रजातंत्र में वे बदनाम होते हैं। इतना ही नहीं लोकतंत्र भी ऐसे नेताओं को नहीं पचा पाता। दावा तो यह भी किया जाने लगा था कि मानो याकूब मेमन ने आत्मसमर्पण करके भारत पर कोई उपकार किया हो और उसे सजा के बजाय पुरस्कार मिलना चाहिए जबकि यह इल्म होना चाहिए कि ऐसे दुर्दान्त अपराधी किसी के लिए भी तबाही के मंजर हो सकते हैं। तबाही की मुकम्मल साजिष रचने वाले ऐसे लोगों के लिए बचाव करने का कोई विचार आना ही नहीं चाहिए। फिल्म स्टार सलमान खान ने भी मेमन के पक्ष में ट्वीट किया था। जब हो हल्ला हुआ तो माफी मांगते हुए ट्वीट वापिस ले लिया। सलमान खान जैसों का याकूब मेमन के पक्ष में उतरना यह साबित करता है कि ऐसे लोगों के मन भी साजिष और रंजिष से भरे हुए हैं। दूसरे षब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि घटिया लोकप्रियता के चक्कर में आ जाते हैं। मेमन जैसे अपराधी अपराध करते समय कभी लोगों का ख्याल नहीं करते और बाद में धर्म के नाम पर बचने का गलियारा खोजते हैं। कूबत से भरी देष की सर्वोच्च न्यायालय ऐसे लोगों के किये की सजा देने की हैसियत रखती है। देर से ही सही निर्णय सटीक हुआ है। न्यायप्रियता की दृश्टि से भी ऐसा करना जरूरी था। इससे लाखों-करोड़ों को भरोसा होगा कि अपराध का अन्त सम्भव है और अपराधियों के लिए भी यह सूचना है कि इतराने की जरूरत नहीं है सभ्य समाज में सजा से तुम भी नहीं बच पाओगे। फिलहाल अपराध की पटकथा में सजा वाला अध्याय पूरा हो चुका है।
हालांकि धमाकों के कई अन्य आरोपी अभी भी सजा से बाहर हैं जिसमें मुख्य रूप से दाऊद इब्राहिम षामिल हैं। मुम्बई बम धमाके की साजिष रचने में यह अव्वल नम्बर का आतंकवादी है। भारतीय कानून की जद् में इसका न आ पाना यह इंगित करता है कि अभी पूरा न्याय नहीं हो पाया है साथ ही यह संकेत भी स्पश्ट है कि ऐसे आतंकवादियों को षरण देने वाले कहीं अधिक अपराधप्रिय भी हैं। इस मामले में पाकिस्तान हमेषा से आगे रहा है। पाकिस्तान एक ऐसी जड़-जंग कील है जिसकी चुभन से भारत आहत होता रहा है। यह मुल्क आतंकियों की बसावट रखता है और भारत के लिए मुष्किलें पैदा करता है। याकूब मेमन को मिली सजा पाकिस्तान के लिए भी यह इषारा है कि भारत की न्याय व्यवस्था आतंक और अपराध के मामले में कहीं अधिक व्यापक और विस्तृत है। साथ ही इस दृश्टिकोण को भी परिमार्जित करती है कि सियासत कितनी भी परवान चढ़े अपराधी को उसके दोशों की सजा देने में कोई मुरव्वत नहीं की जायेगी। आतंक का खेल खेलने वालों में कई और ऐसे हैं जिनके निषाने पर भारत है। अमेरिकी मीडिया समूह ने बीते दिनों अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है कि आईएसआईएस भारत पर बड़ा हमला करने की फिराक में है। भारत आतंक से लड़ते-लड़ते काफी हद तक स्याह होता जा रहा है जबकि मुष्किले खड़ी करने वाले इससे बाज नहीं आ रहे हैं। इतना ही नहीं धर्म और सम्प्रदाय की राजनीति भी इन मामलों में उभर जाती है जो कहीं से उचित करार नहीं दी जा सकती। सभी को यह समझ लेना चाहिए कि आतंक का न कोई इमान है, न धर्म है और न ही समाज में इसका कोई स्थान। ऐसे में इसे हर हाल में हतोत्साहित ही किया जाना चाहिए।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502



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