Wednesday, July 8, 2015

व्यापमं का मतलब : सवालों के घेरे में सवाल


इन दिनों मध्य प्रदेष में षिक्षा क्षेत्र से जुड़े घोटाले व्यापमं को फलक पर देखा जा सकता है। मध्य प्रदेष के व्यावसायिक परीक्षा मण्डल अर्थात् व्यापमं में हुए भ्रश्टाचार ने कईयों की नींद उड़ा दी है। जिस प्रकार यह घोटाला मौत का सामान बना हुआ है उसे देखते हुए अंदाजा लगाना आसान है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में कितने खूंखार और संगठित अपराधी सक्रिय हैं। यह वो घोटाला है जो कत्लगाह का पर्याय है। इसका पूरा ब्यौरा तफ्सील से समझने के लिए कुछ पुराने बिन्दुओं को उकेरना होगा। व्यापमं एक प्रोफेषनल एजुकेषन का संक्षिप्त रूप है जिसके तहत मध्य प्रदेष राज्य में प्री मेडिकल और प्री इंजीनियरिंग टेस्ट सहित कई सरकारी नौकरियों की परीक्षा आयोजित करता है पर भ्रश्टाचार के चलते यह पिछले डेढ़ वर्श से व्यापक सुखियां बटोरे हुए है। इससे जुड़े घोटाले की षुरूआत काॅन्ट्रैक्ट टीचर वर्ग-1 और वर्ग-2 तथा मेडिकल एग्जाम से देखा जा सकता है जिनमें योग्यता भी नहीं थी वे सरकारी नौकरी करते हुए पाये गये। माना जा रहा है कि प्रवेष परीक्षाओं में गड़बड़ियों की षुरूआत 1990 के दषक से ही हो चुकी थी पर पहली बार इस पर एफआईआर साल 2000 में छतरपुर जिले में दर्ज कराई गयी। क्रमिक तौर पर 2004 में खण्डवा में 7 केस दर्ज हुए। वर्श 2009 में मामला सतह पर नहीं आया जबकि पीएमटी परीक्षा में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। वर्श 2012 में एसटीएफ का गठन किया गया एक साल बाद बड़े नामों का इसमें षामिल होने का जिक्र हुआ लेकिन खुलासा नहीं किया गया जिसमें षामिल पहला नाम पूर्व षिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत षर्मा का था। इसके अलावा भी सैकड़ों नाम दर्ज हुए थे। व्यापमं में एक-एक परीक्षा पर सरकारी अफसर, बिचैलिये और छात्रों व आवेदकों के बीच तार जुड़े पाये गये। इतना ही नहीं इसके अन्तर्गत पास हुए कई अभ्यर्थियों के फार्म गायब है। आरोप है कि नितिन महेन्द्र नामक कर्मचारी रिकाॅर्ड बदलने का काम करता था। एसटीएफ के मुताबिक 92,175 अभ्यर्थियों के डाॅक्यूमेंटस में बदलाव किए गये ऐसा इसलिए कि घूसियों को ऊँची रैंक मिल सके।
व्यापमं घोटाला जिस प्रकार एक कैंसर की भांति मध्य प्रदेष को चपेट में लिए हुए है उसे देखते हुए तो यही लगता है कि वक्त पर दवा न देने का यह नतीजा है। रोग छुपाने की यह कीमत भी है या यूं कहें कि बीमारी को हल्क में लिया गया। देष के सबसे बड़े रोजगार घोटाले व्यापमं ने 47 लोगों की जान ले ली है। हालांकि मौत के इन आंकड़ों को लेकर मतभेद भी देखा जा सकता है। सरकार के मुताबिक 25, एसआईटी का मानना है की 35 जबकि विपक्ष कहता है कि 152 लोग काल के ग्रास में जा चुके हैं। हाल ही में एक टीवी चैनल के पत्रकार अक्षय सिंह की भी संदिग्ध मौत सवालों के घेरे में है। सवाल है कि व्यापमं घोटाला कितनी जिन्दगियां लेगा? लगातार मौतें कैसे हो रही हैं और क्यों हो रही है? इस पर सरकार का भी रवैया बहुत साफ  नहीं है। हद तो यह है कि साक्षात्कार लेने वाले पत्रकार भी मौत के षिकार हो रहे हैं। ऐसे में संदेह का गहराना लाजमी है। देखा जाए तो सरकार की किन्तु-परन्तु भी काफी हद तक इसके लिए जिम्मेदार है। अक्षय सिंह व्यापमं घोटाले में छात्र नम्रता डामोर का नाम आने के बाद उसका षव संदिग्ध हालत में उज्जैन की रेल पटरियों के निकट पाये जाने के चलते उसके माता-पिता से इन्टरव्यू करने गये थे। ऐसे में फिर सवाल उठता है कि पत्रकार अक्षय सिंह से किसे डर था? ये सवाल आज भी अनुत्तरित है। मध्य प्रदेष के गवर्नर राम नरेष यादव के आरोपी बेटे षैलेन्द्र यादव की इसी साल के मार्च महीने में संदिग्ध अवस्था में मृत्यु हो चुकी है इन्हें भी व्यापमं से जुड़ा हुआ माना जाता है। एक मौत की पड़ताल पूरी नहीं होती कि दूसरी दस्तक दे रही है। रसूकदारों के घाल-मेल के चलते इतना बड़ा घोटाला कर दिया गया है कि आज सरकार को न जवाब देते बन रहा है और न ही इसक निदान का कोई बड़ा रास्ता सूझ रहा है।
मध्य प्रदेष व्यावसायिक परीक्षा मण्डल का गठन साल 1982 में जिन उम्मीदों के साथ किया गया था वह तीन दषक बाद इस कदर बिखरेंगी इसकी कल्पना षायद ही किसी को रही हो। षुरूआती दिनों में यह इंजीनियरिंग और मेडिकल परीक्षा को आयोजित करने के लिए गठित की गयी थी पर समय के साथ इसके जिम्मे पुलिस से लेकर षिक्षकों, वन रक्षकों और लेखपालों की भर्ती से जुड़ी परीक्षाएं भी आईं। यह घोटाला इस कदर बड़ा है कि इसे किष्तों में ही समझा जा सकता है। 2008 से लेकर 2013 के बीच मेडिकल छात्रों की 2200 भर्तियां और हजार से अधिक नौकरी पाने वाले इसकी संदेह की जद में हैं। मामले की जांच के लिए विषेश कार्यदल बनाया गया है जिस एसआईटी कहा जाता है। मामला इसलिए बड़ा है और संदेह इसलिए गहरा है क्योंकि यह सीधे मुख्यमंत्री के जिम्मेदारी में है। अच्छा होगा यदि इसकी निश्पक्षता से जांच हो जाये पर सवालिया निषान यह है कि निश्पक्ष होने के सूचकांक से भी षिवराज सरकार बाहर मानी जा रही है क्योंकि मामला दिन-प्रतिदिन उलझता ही जा रहा है और साथ ही मध्य प्रदेष सरकार भी संदेह के घेरे में है।
इस घोटाले का पता 2013 में जब चला था जब मेडिकल में घूस लेकर एडमिषन दिया जा रहा था। महज ड़ेढ़ वर्श पहले तक जिस षिवराज सिंह चैहान की सरकार को सुषासन देने के लिए कटिबद्ध माना जाता रहा है आज वही सरकार व्यापमं घोटाले और इससे जुड़ी मौतों के चलते छवि बचाने की कोषिष में लगी हुई है। सरकार पर चैतरफा दबाव भी बना हुआ है केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के नाते बचाव के काम सफाई से किये जा रहे हैं पर मामला इतना उबाल ले चुका है कि इसे षान्त करना आसान नहीं है। उच्च न्यायालय से इस घोटाले की सीबीआई जांच कराने की आग्रह की घोशणा दबे मन से ही सही षिवराज सिंह ने कर दी है पर यह घोशणा भी इसलिए सवालों के घेरे में है क्योंकि इसमें भी देरी की गयी है। मध्य प्रदेष के मुख्यमंत्री जितनी चिंता प्रकट कर रहे हैं उतने ही प्रकार से घिरते जा रहे हंै। आम जनता का विष्वास भी सरकार से डगमगा रहा है। सवाल है कि जो सवाल व्यापमं घोटाले के चलते उठ रहे हैं और षिवराज सरकार जो कदम उठा रही है उस पर भी विपक्ष और जनता का भरोसा नहीं रहा। फिलहाल 9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई है। देखा जाये तो देष भर की निगाहें इस घोटाले पर हैं। ऐसे में षिवराज सरकार को चाहिए कि मामले को दूध का दूध पानी का पानी करे मगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो प्रतियोगी परीक्षाओं का तंत्र मजाक बनकर रह जायेगा। एक अहम सवाल यह भी है कि षिक्षा तंत्र पर माफियाओं का राज हो गया है पर यह बिना सियासत के संभव नहीं है। सवाल उठता है कि व्यवस्थाएं खोखली क्यों हो रही हैं। सीधे-साधे मामलों को आड़ा-तिरछा कौन कर रहा है। क्या षिवराज सरकार के प्रबंधन में कोई गलती हुई है यदि नहीं तो मामले से पल्ला झाड़ने के बजाये सरकार को इसकी तह में जाना चाहिए।




लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्ससाइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502

No comments:

Post a Comment