Monday, July 20, 2015

सत्र नया, पर रोग पुराना

वास्तव में सुषासन का मतलब है, आपसी वार्तालाप एवं पारस्परिक विचार विमर्ष के गुणों से विभूशित लोकतंत्र का होना, पर सियासत में जिस प्रकार सत्ता और विपक्ष की पिछले कुछ महीनों से आपसी ठन-मन है उसे देखते हुए प्रतीत होता है कि इस मानसून सत्र में मेल-मिलाप वाली बारिष का आभाव रहेगा। मंगलवार से षुरू होने वाले इस सत्र में महाभारत होने के भी पूरे आसार हैं। ऐसा नहीं है कि वार एकतरफा होगा, जवाबी हमले की तैयारी में सरकार ने भी कमर कस ली है। इस बार के सत्र में कुछ नये मुद्दे मुखर होंगे तथा कुछ पुराने रोगों के निस्तारण का भी प्रयास किया जायेगा। जब दिसम्बर 2014 में मोदी सरकार ने भू-अधिग्रहण अध्यादेष की उद्घोशणा की थी तो षायद ही उन्होंने सोचा होगा कि यह विधेयक कानून की षक्ल लेने में इतनी कसरत करवा देगा। सत्र-दर-सत्र बीतते जा रहे हैं और सरकार इस विधेयक के मामले में लगातार कमजोर पड़ती जा रही है। फिलहाल अभी भी विपक्ष के साथ सहमति नहीं बन पायी है ऐसे में यह भी हो सकता है कि सरकार इस सत्र में भूमि विधेयक को पेष ही न करे। यदि ऐसा हुआ तो सरकार की चैथी बार अध्यादेष जारी करने वाली मजबूरी भी देखी जा सकेगी। सरकार की अपनी चिंता है और विपक्ष का अपना अडंगा, इन दोनों के बीच भू-अधिग्रहण बिल ठोकरें खा रहा है। स्थिति यह है कि विपक्ष सरकार की तमाम कोषिषों के बावजूद साथ देने के लिए तैयार नहीं है और सरकार अच्छे काम-काज का हवाला दे रही है। इन दिनों मोदी सरकार की मुष्किल यह भी है कि उनके कई केन्द्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री आरोपित किये गये हैं। जिसमें विदेष मंत्री सुशमा स्वराज, मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी तथा मध्य प्रदेष के मुख्यमंत्री षिवराज चैहान और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया षामिल है। स्थिति को देखते हुए बीते रविवार गुलाम नबी आजाद ने मानसून सत्र चलने देने के लिए एक बार फिर इन्हें हटाने की षर्त रख दी है।
पिछले एक-दो महीनों में जिस प्रकार सरकार अपने मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को लेकर जलालत झेल रही है उसे देखते हुए यह लगता है कि मानसून सत्र आसान नहीं होने वाला। व्यापमं और ललित मोदी दो ऐसे मुद्दे हैं जिसका जवाब विपक्ष सरकार से जरूर चाहेगा पर जवाब क्या होगा? इसका पता आने वाले दिनों में ही चलेगा। जहां व्यापमं के चलते षिवराज सिंह चैहान घिरे हैं वहीं ललित मोदी से सम्बन्ध की वजह से सुशमा स्वराज और वसुंधरा राजे हाषिये पर हैं जबकि स्मृति इरानी ने योग्यता में हेर-फेर करके सरकार के लिए मुष्किलें खड़ी की है। देखा जाए तो मोदी ने इस प्रकार के किसी भी मामले में कोई सफाई भी नहीं दी है यह जरूर उद्घाटित हुआ है कि कोई भी इस्तीफा नहीं देगा। मोदी सरकार विगत् कुछ महीनों से लोकप्रियता के मामले में भी ढलान की ओर झुकी हुई मानी जा रही है। एक वर्श दो माह की इस सरकार को बहुत कारगर और उम्दा होने का तमगा भी नहीं दिया जा रहा है। सुषासन की दुहाई देने वाले मोदी अभी परिभाशा तक ही पहुंचे हैं जबकि पूरी व्याख्या के लिए षायद कार्यकाल तक का इंतजार करना पड़ेगा। मोदी सरकार मोटी चमड़ी वाली है विपक्ष के ऐसे आरोप यह दर्षाते हैं कि रूख नरम नहीं होगा। मुख्य विपक्षी कांग्रेस की यह रणनीति हो सकती है कि भाजपा में आरोपित किये गये नेताओं पर बाहर करने की जिद पर अड़ा जाए ताकि सरकार को काबू में किया जा सके मगर जिस प्रकार सरकार भी नेताओं के बचाव में उतर चुकी है उससे स्पश्ट है कि विपक्ष की यह रणनीति काम-काज को प्रभावित तो कर सकती है पर भाजपा के आरोपित नेताओं को हटवाने में कामयाब होगी। इस पर संदेह है।
सरकार की मुष्किल यह भी है कि जहां एक ओर पुराने रोगों से छुटकारा नहीं मिल रहा है वहीं भितर घात और नये दाग के चलते अड़चने बढ़ती जा रही हैं। कई अहम बिल लम्बित पड़े हैं पड़ताल से पता चलता है कि राज्यसभा में जीएसटी, व्हिसल ब्लोवर संरक्षण, भ्रश्टाचार रोकथाम, किषोर न्याय संषोधन विधेयक जबकि लोकसभा में एससी-एसटी संषोधन विधेयक, दिल्ली हाईकोर्ट संषोधन बिल और विद्युत संषोधन विधेयक अटके हैं। बीते दिनों आधा दर्जन से अधिक केन्द्रीय मंत्रियों की बैठक और आक्रामक रूख अख्तियार करने का निर्णय यह दर्षाता हे कि सरकार को भी संसद के मानसून सत्र में विपक्ष के तेवर का अंदाजा है। सरकार भी जानती है कि व्यापमं और ललित मोदी दो ऐसे मुद्दे विपक्ष के हाथ में हैं जिससे मानसून सत्र का कबाड़ा हो सकता है। मुख्य विपक्षी कांग्रेस इस मुद्दे के सहारे जनता के बीच अपनी जमीन को चैकस करने की चाह में होगी। इतना ही नहीं जमीन खो चुकी कांग्रेस जमीन वाले बिल के मामले में भी तेवर कड़े ही रखेगी। कांग्रेस जानती है कि भू-अधिग्रहण बिल के चलते एनडीए सरकार जन आक्रोष और संदेह में फंसी हैं ऐसे में इसके विरोध वाले हथियार से लाभ को बरकरार रखा जा सकता है। लोकतंत्र और जनता की सरकार से हमेषा यह अपेक्षा रही है कि षीषे के कमरे में सब कुछ करें, पर सियासत का मजनून यह होता है कि बंदोबस्त और चैकसी के बावजूद चूक हो ही जाती है। मोदी सरकार भी ऐसी कई चूक से प्रभावित है पर उसे नहीं स्वीकार करने वाली मजबूरी भी उनमें देखी जा सकती है। जिस प्रकार ललित मोदी और व्यापमं का मामला उठा है यह साफ-सुथरी मोदी सरकार के लिए दाग वाले मिथक से कम नहीं है। सरकार की दुविधा यह भी है कि सत्र-दर-सत्र जिस प्रकार विपक्ष कमजोर होने के बावजूद हावी होता है उसके लिए कौन सी काट लायी जाए। लोकसभा में बहुमत वाली मोदी सरकार राज्यसभा की कमजोर गणित से परेषान है, वर्श 2017 तक कमोबेष स्थिति यही रहेगी। यही कारण है कि विपक्ष को साथ लेने की फिराक में सरकार मान मनव्वल में लगी रहती है पर विपक्ष है कि सरकार को कटघरे में खड़ा करने की फिराक में रहता है।
मानसून सत्र मोदी सरकार की सालाना परीक्षा के बाद द्वि-मासिक टेस्ट भी होगा। सरकार भी समझ रही होगी कि अटके बिलों को तो छोड़िये व्यापमं जैसे मुद्दे भी इस बार व्यापक हो जायेंगे। सरकार को यह भी सलाह दी जा सकती है कि यदि उसे इस सत्र में कामकाजी रवैया रखना है तो व्याप्त खामी को सिर झुकाकर मान लें। आगामी सितम्बर में बिहार विधानसभा का चुनाव होना है जिसमें कुछ ही दिन षेश हैं और जिस प्रकार मोदी सरकार की लोकतंत्र में पकड़ बनी है उसे देखते हुए अंदाजा लगाना आसान है कि बिहार की सत्ता को बेदखल कर स्वयं काबिज होने की जद्दोजहद में भी होंगे। दाग अच्छे होते होंगे पर लोकतंत्र में यह खपते नहीं हैं। दाग के साथ बिहार की जनता भी पूरा विष्वास करेगी कहना मुष्किल है। भाजपा जिस तरह एक दलीय सत्ता का स्वाद चख रही है हसरत तो यह भी होगी कि सत्ता से भरी थाली में बिहार को भी परोसा हुआ देखे। फिलहाल केन्द्रीय राजनीति में ताजा हालात यह है कि विपक्ष त्यागपत्र पर अड़ा है और सरकार काम-काज का हवाला दे रही है। लोकतंत्र चाहता है कि अड़चनें कम हो और जन भालाई अधिक हो जबकि मानसून सत्र इस फिराक में होगा कि वह जनता के दुःखों को धोने के काम में आये।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502

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