Tuesday, July 7, 2015

घुटने भर पानी में तैरती राजनीति

मध्य प्रदेष के व्यावसायिक परीक्षा मण्डल अर्थात् व्यापमं घोटाले से सम्बन्धित लोगों की मौतों का सिलसिला जारी है जो संदिग्धता से परे नहीं है। इससे अंदाजा लगाना आसान है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में कितने खूंखार और संगठित अपराधी सक्रिय हैं। मरने वाले लोगों की तादाद को लेकर भी कुछ मतभेद हैं पर 47 लोग व्यापमं की कत्लगाह में फंस चुके हैं। मध्य प्रदेष के मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान जितनी चिंता प्रकट कर रहे हैं असल में उतना धरातल पर दिखाई नहीं दे रहा है साथ ही इस घोटाले ने जो हड़कंप भोपाल से लेकर दिल्ली तक मचाया है उसी का फल है कि आम जनता का विष्वास षिवराज सरकार से डगमगा रहा है। सीबीआई जांच को लेकर भी सरकार का रूख असमंजस से भरा रहा है। हालांकि मुंख्यमंत्री षिवराज ने कहा है कि हाईकोर्ट से विनती करेंगे कि वह सीबीआई जांच की अनुमति दें। सुप्रीम कोर्ट में भी 9 जुलाई को सुनवाई होनी है अब इस घोटाले का अखाड़ा पूरा देष होता जा रहा है और भाजपा घिरती जा रही है। ऐसे में लगता है कि मध्य प्रदेष सरकार अपनी विष्वसनीयता पर तो सवाल खड़ा ही किया है माफियाओं को पनपने का भी मानो पूरा अवसर दिया हो।
सीबीआई जांच पर किन्तु-परन्तु का सिलसिला षिवराज सरकार के लिए बेचैनी का सबब हो सकता है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी अपने रूख में बिना नरमी के विपक्ष के सामने पूरे दम से खड़ी है। मध्य प्रदेष के मुख्यमंत्री का यह आरोप कि कांग्रेस की रूचि मौतों पर नहीं मौकों पर है अधिक तार्किक प्रतीत नहीं होता। आगामी संसद सत्र पर व्यापमं की छाया पड़ने के भी पूरे आसार हैं। तर्क कुछ भी दिया जाए पानी सर के ऊपर बहने लगा है जबकि राजनीति घुटने भर पानी में तैर रही है। यह सियासत का ही पहलू है कि रसूकदारों को बचाने के काम में सरकारें लग जाती हैं जबकि ऐसे लोगों की वजह से ही देष बिकता है और बदनाम होता है। माथापच्ची में तो यह भी है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में जिस प्रकार गड़बड़ियां हो रही हैं उसे देखते हुए प्रतीत होता है कि माफियाओं के अड्डे सियासत से तो गुजरते ही हैं साथ ही सियासत और सरकार इनके आगे बेबस भी हो जाती है। एक अहम सवाल यह भी है कि यदि इस मामले को दूध का दूध और पानी का पानी नहीं किया गया तो छात्रों का विष्वास पुनः लौटाना मुष्किल होगा। व्यवस्थायें खोखली क्यों हो रही हैं इस पर भी एक निगाह डालने की जरूरत है जब मामले सीधे और सपाट होते हैं तो उसे आड़े-तिरछे कौन करता है? मध्य प्रदेष में धांधलेबाजी का आकार और प्रकार जिस प्रकार सांचे से बाहर निकल गया है उससे तो यह लगता है कि षिवराज सरकार ने प्रबंधन करने में गलती कर दी है। इतना ही नहीं जवाबदेही से भी पल्ला झाड़ने में जनता में अच्छा संदेष नहीं जा रहा है।
सवाल है कि सरकार की जिम्मेदारी कितनी और कौन तय करेगा? देष की सभी सरकारों को चाहिए कि प्रतियोगी परीक्षाओं की विष्वसनीयता को लेकर नये सिरे से मुहिम छेड़ें। अगर सब कुछ ऐसा चलता रहा तो प्रतियोगी परीक्षाओं का सारा तंत्र मजाक बन कर रह जायेगा। डिग्रियों की कीमत नहीं रह जायेगी। किस तरह सिद्धहस्त अपराधी षिक्षा जगत को मजाक बना दिया है। इसका प्रमाण व्यापमं घोटाला है। सवाल उठता है कि सरकार को सचेत करने के लिए कितना बड़ा झटका चाहिए। यदि झटका बड़ा मान भी लिया जाये तो क्या सरकार इस मामले में पूरा न्याय कर पायेगी? तमाम विसंगतियों से जूझने की जो ऊर्जा होनी चाहिए फिलहाल उसकी भरपाई होते हुए कम ही दिखाई देती है। ऐसे में मध्य प्रदेष सरकार को चाहिए कि घोटाले की तह में जाने का बंदोबस्त करते हुए अपराध मुक्त प्रतियोगिता और संदेहमुक्त सरकार होने का लय लाये।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502

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