Monday, July 13, 2015

शरीफ की शराफत केवल अंतर्राष्ट्रीय मंच तक

पिछले साल मई की 26 तारीख को जब मोदी की प्रधानमंत्री के तौर पर ताजपोषी हो रही थी तो इसमें षामिल कई पड़ोसी देषों में पाकिस्तान भी न्यौत दिया गया था और वहां के प्रधानमंत्री नवाज षरीफ ने इसमें षिरकत भी की थी। यह मोदी-षरीफ की पहली मुलाकात थी, तब से अब तक 14 महीनों के दरमियान कई अवसर आये जब दोनों की मुलाकातें हुई पर पड़ताल यह बताती है कि महीनों खपाने के बाद भी पाकिस्तान सम्बंधों के मामले में वहीं खड़ा है। असल में पाकिस्तान एक ऐसा लोकतंत्र रखता है जिसमें प्रजातांत्रिक मूल्य तो हैं पर इससे जुड़े षासकों की नीयत भारत को लेकर कहीं अधिक गिरावट से युक्त है साथ ही मिजाज दुष्मनी से भरा हुआ है। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद से ही सम्बन्ध कमोबेष इसी प्रकार के रहे हैं।  लोकतंत्र की हत्या करने वाले कई षासकों का भी समय-समय पर उदय देखा जा सकता है। इनकी हुकूमत भी भारत के मामले में भरपूर दुष्मनी लिये हुए थी। जब पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार ही इस कदर हो जो कि भारत के प्रति आग के अलावा कुछ न उगलती हो तो तानाषाहों से भला क्या उम्मीद की जा सकती थी? दर्जनों बार भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय वार्ता हुई, कई मसले पाकिस्तान संयुक्त राश्ट्र संघ तक ले गया, सार्क के मंच पर भी बैर-भाव चलता रहा। वाजपेयी -मुषर्रफ के समय का काठमाण्डू सार्क सम्मेलन से लेकर मोदी-षरीफ तक  कमोबेष यही दौर बना रहा। ताजा हालात यह है कि उफा में ब्रिक्स के प्लेटफाॅर्म पर कूटनीति से भरी मुलाकात तो हुई पर नवाज षरीफ के लिए बेअसर ही कही जायेगी। इस बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता कि चीन ने जिस प्रकार आर्थिक और सुरक्षा निवेष करके पाकिस्तान का मन बढ़ा दिया है और जिस कदर घनिश्ठता को गगनचुम्बी बनाने का प्रयास किया है इसका साफ असर भारत-चीन सम्बन्धों पर देखा जा सकता है।
मुम्बई हमले का मास्टर माइंड जकिउर रहमान लखवी के मामले में ताजा घटनाक्रम यह है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री षरीफ की षराफत एक बार फिर बेनकाब हुई है। षरीफ ने ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान रूस के उफा में मोदी से बीते 10 जुलाई को यह वादा किया था कि मुम्बई हमले के आतंकियों की आवाज के नमूने साझा किये जायेंगे। अब षरीफ पाकिस्तान में हैं और उफा की षराफत से मुक्त होते हुए आवाज का नमूना नहीं देंगे की अपनी घटिया सोच पर कायम हो गये हैं। महज दो दिन में इस प्रकार सुर में बदलाव का होना यह इषारा करता है कि पाकिस्तान अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर षेखी बघारने के लिए वादे कर देता है पर पाकिस्तान की जमीन पर पहुंचने मात्र से ही अपनी आदत में पुनः वापस आ जाता है। आखिर पाकिस्तान के इस रवैये के पीछे बड़ी वजह क्या है? षक चीन की ओर ही जाता है। सत्य यह भी है कि चीन को भारत के बड़े हितैशी का पुरस्कार नहीं दिया जा सकता। प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राश्ट्रपति षी जिनपिंग एक साल से कम वक्त में पांच बार मिल चुके हैं। देखा जाए तो मुलाकातों का रिकाॅर्ड तो बना पर सम्बन्धों में जो तरलता होनी चाहिए उसका आभाव ही देखने को मिलता है। हाल की पांचवी मुलाकात रूस के उफा में हुई जहां 8 से 10 जुलाई को एक के बाद एक दो षिखर सम्मेलन आयोजित किये गये। एक ब्रिक्स षिखर सम्मेलन तो दूसरा षंघाई को-आॅप्रेषन आॅर्गेनाइजेषन की षिखर बैठक। ताजा परिप्रेक्ष्य यह है कि भारत के रिष्तों पर चीन-पाकिस्तान के सम्बन्धों की छाया पड़ने लगी है। यदि इनके नेताओं की बात को गम्भीरता दी जाये तो यह सम्बन्ध समुद्र से ज्यादा गहरे, पहाड़ों से ज्यादा ऊँचे और षहद से ज्यादा मीठे होने लगे हैं।
मोदी की बीजिंग यात्रा बीते मई माह में हुई थी उसके ठीक पहले अप्रैल में जिनपिंग ने इस्लामाबाद की यात्रा करके एक नई कूटनीति और सियासत का गलियारा विकसित किया जिसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा की संज्ञा दी जा सकती है। चीन और पाकिस्तान की नजदीकियां 1963 से देखी जा सकती हैं, जब पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कष्मीर की पहाड़ी चोटी के दोनों तरफ फैली षक्सगाम घाटी चीन को सौंप दी। 1980 और 1990 के दौर तक परमाणु हथियार के ब्लू प्रिंट और मिसाइल फैक्ट्री का हस्तांतरण पाकिस्तान को कर दिया गया। यहां चीन की भारत को घेरने वाली नीयत स्पश्ट दिखाई देती है। जिनपिंग मार्च 2013 में चीन के राश्ट्रपति बने तब से लेकर अब तक राजनीतिक-आर्थिक और सैन्य रिष्ते इस कदर परवान चढ़े कि पिछले कई दषकों के रिकाॅर्ड तोड़ दिये। चीन पाकिस्तान की झोली हमेषा से भरता रहा है यही कारण है कि पाकिस्तान की हिम्मत तमाम हाहाकार के बावजूद कमतर नहीं हुई। चीन द्वारा पाकिस्तान को आर्थिक सहायता और कूटनीतिक समर्थन हमेषा से दिया जाता रहा है और अप्रत्यक्ष रूप से वह बाया इस्लामाबाद भारत को परेषान करने का जरिया भी खोजता रहा। अब चीन पाकिस्तान का रिष्ता काफी पक्का हो गया है। चीन-पाकिस्तान भाई-भाई का नारा भी लफ्बाजी से आगे बढ़ गया है। चीन जानता है कि अमेरिका भारत को रिझा रहा है और वो कभी नहीं चाहेगा कि भारत और अमेरिका के बीच रिष्ते परवान चढ़े और उसे कमजोर करने के काम आयें।
चीनी बिसात पर पाकिस्तान का पूरा मंच सजा हुआ देखा जा सकता है। चीन इस्लामाबाद की फौजी ताकत को मजबूत कर रहा है और उसकी नजर अमेरिका को पिछाड़ने की है। चीन चाहता है कि हथियार देने के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा मुल्क बन जाये। विष्लेशकों की राय में दोनों देषों के सम्बन्ध परवान चढ़े हैं जिसे भारत के खिलाफ और तीखे तरीके से उपयोग किया जा सकता है। महज वादों से देषों के सम्बन्धों को उकेरा नहीं जा सकता, धरातल पर भी कुछ दिखना चाहिए। पाकिस्तान की मषीनरी में तकनीकि खराबी है पर चीन की मंषा भी भारत के मामले में बहुत अच्छी नहीं है। पिछले अगस्त में बातचीत टूटने के बाद गतिरोध के षिकार भारत-पाकिस्तान के रिष्ते 10 अप्रैल को तब और रसातल में चले गये जब लखवी को पाकिस्तान ने रिहा कर दिया। ऐसे में भारत की भौहें तनी और संयुक्त राश्ट्र से षिकायत की। षिकायत को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राश्ट्र ने इस पर कार्यवाही का भरोसा भी दिया पर पाकिस्तान का आका चीन जो सुरक्षा परिशद् का स्थाई सदस्य है, वीटो का प्रयोग करके किये-कराये पर पानी डाल दिया। एक बार फिर चीन के साथ भारत के सम्बन्ध उजाड़ के कगार पर खड़े हुए पर कूटनीति एक ऐसी मनोदषा है कि सब कुछ के बावजूद गुंजाइष जिंदा रहती है। इसी का फलसफा था कि मोदी ने जिनपिंग से बात की पर कमाल तो यह रहा कि जिनपिंग ने भी मोदी को रूस के ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान ही ऐसी सफाई दे दी कि न तो भारत के गले उतर सकती है और न ही चीन को पर्याप्त करार दिया जा सकता है। इसके बीच नवाज षरीफ को मलाई चाटने का पूरा मौका मिला। एक ओर चीन का समर्थन मिलना तो दूसरी ओर भारत की उम्मीदों को नेस्तोनाबूत करना। इससे बेहतर न तो चीन के लिए हो सकता है और न ही पाकिस्तान के लिए पर कीमत तो भारत को चुकानी पड़ रही है।हालात को देखते हुए यह भी होना चाहिए कि अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर किये गये वायदों से जो देष कतराये उस पर कड़ी कार्रवाही का प्रबन्ध हो।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502

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