Tuesday, July 28, 2015

डॉ. कलाम के रूप में एक संस्था का अवसान

अपनी पहली जीत के बाद आराम से मत बैठो क्योंकि यदि आप दूसरी बार विफल हुए तो लोग कहेंगे कि आपको पहली जीत किस्मत से मिली थी। पूर्व राश्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के ऐसे तमाम कथन न जाने कितनों के उत्साहवर्धन एवं लक्ष्य प्राप्ति में काम आये होंगे और आगे भी आते रहेंगे। दिमाग से वैज्ञानिक, मगर दिल से दार्षनिक और समाजषास्त्री डाॅ. कलाम की आंखों में विकसित भारत का सपना था। विज़न-2020 इस सपने का चष्मदीद गवाह है। खास यह भी है कि ऐसे सपने उन्होंने अकेले ही नहीं देखे बल्कि भारत की भावी पीढ़ी को भी दिखाये। समाज के सरोकार और उसमें पनपे मूल्य को कैसे वैज्ञानिक बनाया जाता है इसके मिश्रण को भी बाकायदा उन्होंने अनुप्रयोग किया। भारत के राश्ट्रपति जैसे ऊंचे पदों पर पहुंचने के बावजूद अन्तिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति की चिंता करने वाले डाॅ. कलाम भले ही आज हमारे बीच न हों पर उनकी जगाई हुई अलख की रोषनी में भारत विकसित होने के उस सपने की ओर आज भी अग्रसर है जिसे एक दषक पहले देखा गया था। एक विकसित देष क्या होता है, उसकी जरूरतें कैसी होती हैं और उसे कैसे रचाया-बसाया जाता है इसका पुख्ता सबूत डाॅ. कलाम ही हैं। जब-जब विकसित भारत की चर्चा होगी तब-तब इन्हें एक सकारात्मक बोध के तौर पर स्मरण किया जायेगा। सरल विचारधारा और सभी में सराबोर होने वाले जनता के राश्ट्रपति रहे कलाम को कभी नन्हें-मुन्हों की चमकती आंखों में आसमान से ऊंची उम्मीदें दिखाने तो कभी युवाओं में बड़े सपने घोलने के लिए जाना जाता रहेगा।
अगर आप सूर्य की तरह चमकना चाहते हैं तो सूर्य की तरह जलना भी होगा। कथन तो आम है पर इसका प्रयोग षायद ही मिसाइल मैन से बेहतर किसी और ने किया हो। षुरूआती दिनों के जीवन संघर्श से लेकर अन्तिम समय तक इसी अवधारणा से प्रभावित डाॅ. कलाम भारतीय धरा के लिए फिलहाल अब एक धरोहर हो गये हैं। पायलट बनना चाहते थे पर देष को मिसाइल की बुलन्दियों तक पहुंचाया। अन्तरिक्ष में भारत की छलांग के पीछे इन्हीं का योगदान अहम रहा है। कर्मयोगी, भविश्यदृश्टा और भारत रत्न डाॅ. कलाम के बारे में इतना कुछ कहने के लिए है कि कम षब्दों में समेटना पूरी तरह सम्भव नहीं है। एक सन्यासी या एक वैज्ञानिक, एक दार्षनिक या एक समाजषास्त्री कहीं-कहीं तो कवि कहने का भी इरादा बन जाता है। एक व्यक्ति में इतने नाम कैसे समाये होंगे यह भी आष्चर्यचकित करने वाला है। जोखिम और हिम्मत के मामले में भी डाॅ. कलाम जैसा षायद ही कोई दूजा हो। देष में तीन राश्ट्रपति ऐसे बने जिन्हें पद से पहले भारत रत्न मिला है उनमें एक डाॅ. कलाम हैं। बुद्ध मुस्कुराए यह वह दिन है जब भारत ने विज्ञान की गौरव गाथा लिखी थी ऐसा इन्हीं के कमाल से सम्भव हुआ। अनुषासनप्रिय, बच्चों और युवाओं में लोकप्रिय और एक प्रोफेसर के साथ पूर्व राश्ट्रपति के खोने से पूरा देष सदमे में है। सामाजिक कार्यकत्र्ता अन्ना हजारे ने कहा कि कलाम मेरे प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की माने तो उन्होंने एक मागदर्षक खो दिया। राश्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की दृश्टि में वे जीवन भर लोगों के राश्ट्रपति रहेंगे।
इन तमाम के बीच एक बड़ा सत्य यह भी है कि डाॅ. कलाम सब कुछ के बावजूद प्रोफेसर कहीं अधिक थे। पढ़ाना, लेक्चर देना उनकी आदतों में षुमार था। जब राश्ट्रपति पद से वर्श 2007 में उन्होंने अवकाष लिया तब वे 75 बरस के थे उसके बाद से लेकर वर्तमान तक उनका पूरा काम अनवरत् बिना थके समाज की भलाई, युवा विकास और विज्ञान के हित में ही रहा। अन्तिम सांस तक वे व्याख्यान से ही जुड़े रहे। देष की सियासत में उच्च पद धारक पदों से हटने के बाद या तो मुख्यधारा से कट जाते हैं या काट दिये जाते हैं पर कलाम जैसी षख्सियत पर यह लागू नहीं होता। बहुत ही गहरे इंसान थे, अग्नि पुरूश, मिसाइल मैन और न जाने क्या-क्या। राजनीतिक सरोकार के बावजूद भी उनका षिक्षकपन गायब न हो सका। प्रोटोकाॅल तोड़कर बच्चों से मिलना युवाओं के बीच षिक्षक और विद्यार्थी का सम्बन्ध बनाना उनकी खास अदा थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पोखरण परीक्षण, भारत रत्न और राश्ट्रपति तक की यात्रा को विधिवत देखा जा सकता है। जब वर्श 2002 में डाॅ. कलाम को राश्ट्रपति बनाये जाने का मन्तव्य लाया गया तो ऐसा भी देखने को मिला कि लगभग सभी सियासी दल कलाम के मामले में एकमत थे। असल में डाॅ. कलाम एक ऐसे व्यक्ति थे जो सियासतदानों के बीच में कहीं अधिक लोकप्रिय थे। देखा जाए तो अनोखी हेयर स्टाइल वाले पूर्व राश्ट्रपति कभी रिटायर्ड ही नहीं हुए, राश्ट्रपति भवन के दरवाजे सब के लिए खोले। भारत के धुर दक्षिण के रामेष्वरम् में पैदा होने वाले और मुफलिसी के दिनों में समाचार पत्र विक्रेता के रूप में कार्य करने वाले कलाम को अपने राश्ट्रपति पद के दौरान कई चुनौतीपूर्ण निर्णयों का सामना भी करना पड़ा और आलोचना भी सहनी पड़ी जिसमें बिहार में राश्ट्रपति षासन लगाये जाने का निर्णय षामिल था। खुद को साबित करने के मामले में भी वे कभी पीछे नहीं रहे। कलाम ने ‘लाभ के पद सम्बन्धित विधेयक‘ को मंजूरी देने से इंकार कर यह साबित कर दिया था कि राश्ट्रपति रबर स्टाम्प नहीं वरन् संविधान का संरक्षक है। इस फैसले ने सियासतदानों के पसीने छुड़ा दिये थे। ध्यानतव्य हो सोनिया गांधी से लेकर जया बच्चन तथा अनिल अंबानी सहित कईयों को लोकसभा और राज्यसभा का पद छोड़ना पड़ा था। जब कलाम राश्ट्रपति से अवकाष प्राप्त कर चुके थे तब उन्होंने एक बार उद्गार व्यक्त किया था कि उनके राश्ट्रपति के पूरे कार्यकाल में सबसे कठिन निर्णय ‘लाभ के पद के विधेयक‘ को वापस करना ही था।
छात्रों का साथ उन्हें बहुत भाता था। अपनी अनोखी संवाद कुषलता के चलते सभी का मन मोह लेते थे। व्याख्यान के बाद अक्सर वह छात्रों को पत्र लिखने के लिए कहते थे और उनका जवाब भी देते थे। आष्चर्यचकित करने वाली बात यह भी है कि डाॅ. कलाम से जुड़े तमाम लोग विज्ञान के क्षेत्र में काम करते हुए विदेष की यात्रा की पर सादगी के प्रतीक रहे पूर्व राश्ट्रपति का उन दिनों पासपोर्ट तक नहीं बना था। मेहनत के बल पर ऊंचाई को नापने वाले षख्स बहुत देखे होंगे पर इनके जैसे कम ही होंगे। राश्ट्रपतियों में डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद तथा सर्वपल्ली राधाकृश्णन जैसे महत्वपूर्ण षख्सियत भी देष को मिली पर कलाम में जो समर्पण देष के उत्थान एवं विकास के लिए था वो अद्भुत ही कहा जायेगा। ऐसी तमाम अनोखी बातों के चलते वर्श 2012 में एक बार पुनः इन्हें राश्ट्रपति बनाने की सुगबुगाहट षुरू हुई थी जिसकी पहल ममता बनर्जी ने की थी। हालांकि कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं थी। चाहे 12वीं के बच्चों की विज्ञान प्रदर्षनी हो या फिर वैज्ञानिकों का विज्ञान कांग्रेस हो कभी काका कलाम बनकर तो कभी प्रोफेसर के तौर पर यहां भी इनकी मौजूदगी देखी जा सकती है। विज्ञान को प्रोत्साहन देना, इसका समाज के साथ ताना-बाना जोड़ देना और जीवन को विज्ञान की दिषा में चलायमान करने का श्रेय इन्हें ही जाता है। देष के 11वें राश्ट्रपति का षिलांग के आईआईएम में दिया जाने वाला अन्तिम व्याख्यान धरा की चिंता से ही जुड़ा था। आने वाली पीढ़ी और आने वाला इतिहास जब कभी कई व्यक्तियों के मिश्रण वाली षख्सियत को जानना चाहेगा तो इसमें कोई संदेह नहीं कि पहले अध्याय पर डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम लिखा हुआ मिलेगा।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502

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