डिजिटल इण्डिया नाम से एक और महत्वाकांक्षी अभियान को बीते 01 जुलाई को जमीन पर उतारने का प्रयास किया गया। इसे देष के आम जन जीवन को सूचना तकनीक के माध्यम से बेहतर बनाने और अमीर व गरीब के बीच की दूरी पाटने का अभियान बताया जा रहा है पर इस मामले में पहली जरूरत आम लोगों को इस अभियान की महत्ता बताने की है। प्रधानमंत्री मोदी डिजिटल इण्डिया के मामले में सरकार के निर्माण काल से ही संजीदे होने की होड़ में थे। कारोबार जगत ने भी इनके इस कार्यक्रम को काफी उत्साह से लिया है। इसमें भी कोई षक नहीं कि मोदी के सुषासन की अवधारणा डिजिटल इण्डिया से होकर गुजर सकती है। नागरिकों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं के मामले में भी यह कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यदि इस अभियान से अधिक से अधिक लोगों तक सूचनाओं को प्रेशित करने में सफलता मिलती है तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। इस प्रोग्राम की पूरी अवधारणा को समझने के लिए डिजिटल इण्डिया के उपार्जित भावों को उकेरना जरूरी है। नई दिल्ली में बीते दिनों डिजिटल इण्डिया सप्ताह के लाॅन्चिंग हुई जिसके नौ स्तम्भ हैं। ब्राॅडबैंड हाईवे जिसमें सड़क हाईवे की तर्ज पर ब्राॅडबैंड हाइवे से षहरों को जोड़ना है। सूचना प्रौद्योगिकी के जरिये रोज़गार के अवसर साथ ही षासन में सुधार, सभी की सूचनाओं तक पहुंच, ई-क्रान्ति तथा सबको फोन और इन्टरनेट आदि षामिल है जाहिर है कि अभियान की प्रासंगिकता सभी को जोड़ना है।
वर्श 2005 में संयुक्त राश्ट्र विकास कार्यक्रम में ई-प्रषासन को परिभाशित किया था। कहा था कि ई-प्रषासन ऐसी सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का नाम है जिनका उद्देष्य सूचना और सेवा वितरण में सुधार लाना, निर्णय करने की प्रक्रिया में नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देना तथा सरकार को और जवाबदेह, पारदर्षी और सक्षम बनाना है। भारत गांवों का देष है और यही भारत की पहचान भी है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों को देखा जाए तो 6 लाख 38 हजार से अधिक गांव हैं डिजिटल इण्डिया के पूरे प्रभाव में इसे लेना बेहतर नियोजन और कहीं अधिक बेहतर क्रियान्वयन की जरूरत पड़ेगी। डिजिटल इण्डिया एक पेपर लेस अवधारणा है कहा जाए तो भारत की ई-क्रान्ति है। इसके उद्देष्यों में समृद्ध भारत का सार छुपा है पर यह भी चुनौतियों से परे नहीं है क्योंकि सषक्त भारत का निर्माण किस दम पर किया जायेगा इसके बारे में पूरी स्पश्टता आना अभी भी बाकी है। हालांकि उद्योग जगत इसे हाथों हाथ ले रहा है। रिलायंस सहित कई कम्पनियां इस पर भारी भरकम निवेष के लिए तैयार हैं। डिजिटल इण्डिया अभियान के माध्यम से कम समय में गांव को ब्राॅडबैंड हाईवे से जोड़कर लाखों को रोज़गार दिया जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं यदि डिजिटल इण्डिया को बड़ी कामयाबी मिलती है तो गांव में हुआ इसका प्रसार कहीं अधिक महत्व का होगा।
भारत की आधारभूत संरचना उस तुलना में बढ़ोत्तरी नहीं ले रही है जितनी कि जरूरत में षामिल मानी जाती है। दूसरे षब्दों में जनसंख्या तो गुणोत्तर में जबकि आधारभूत संरचना समानान्तर श्रेणी में विकास कर रहा है। ऐसे में ई-क्रान्ति इसकी भरपाई करने में कहीं अधिक सक्षम हो सकती है। ई-एजुकेषन से जुड़ना, आॅनलाइन मेडिकल परामर्ष, ई-हेल्थकेयर की सुविधान देना, ई-कोर्ट, ई-पुलिस, ई-जेल तथा ई-बैंकिंग जैसी तमाम सेवाओं ने संरचनात्मक कमियों के बावजूद सेवा भाव से आमजन को संतुश्ट करने के कारक बन रहे हैं। देष में गरीबी, बीमारी और बेरोजगारी इन तीनों की तिकड़ी किसी के लिए विद्रोह की एक बड़ी वजह पैदा करता है और ये समस्याएं रातों-रात हल नहीं प्राप्त कर पातीं। ऐसे में सरकारों की अड़चन और जनता में आक्रोष का बढ़ना देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी देष के 65 प्रतिषत युवाओं को देष-विदेष प्रत्येक स्थानों पर चित्रण करने में पीछे नहीं रहे हैं। मोदी की मुख्य चिंता में कौषल विकास भी है। भारत में षहर, गांव व छोटे नगरों आदि में आईटी से जुड़ी नौकरियों की बढ़ोत्तरी हुई है। इंटरनेट कार्यक्रमों के चलते भारत ऐसे संजाल से गुंथा हुआ है और गुंथता जा रहा है जिससे आने वाले वर्शों में सुगमता का बढ़ना स्वाभाविक है। बीसीजी रिपोर्ट का मानना है कि भविश्य में भारत में इंटरनेट का बढ़ना कई कारणों पर निर्भर करेगा हालांकि इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या वर्श 2018 तक 55 करोड़ तक पहुंच सकती है जिसमें षहरी 30 करोड़ से ज्यादा होंगे। वास्तविक बदलाव तो ग्रामीण इलाकों में देखने को मिलेगा जहां इंटरनेट की पहुंच 40 फीसदी प्रतिवर्श की दर से बढ़ने की संभावना है।
सषक्त समाज क्या होता है और ज्ञान की पूंजी तथा उसकी अर्थव्यवस्था क्या होती है? इसे विस्तार से समझना हो तो तकनीकी अर्थों में भारत का डिजिटल रूप देखा जा सकता है। विकास के मानव अधिकार को वास्तविकता के धरातल पर उतारने के लिए डिजिटल भाव को परियोजना युक्त करने की कवायद 20 अगस्त, 2014 को षुरू हुई। करीब 1 लाख करोड़ रूपए मूल्य की विभिन्न स्वरूपों वाले इस कार्यक्रम में डिजिटल इण्डिया की बसावट देखी सकती है। जब कोई भी देष सषक्त होने की चाह रखने लगता है तो निहित उद्देष्य परिवर्तन की धारा ले लेते हैं। ज्ञान और इसकी अर्थव्यवस्था को अब प्रवृत्ति में ढाला जा रहा है। नई संभावनाओं की इसी खोज के चलते सुषासन का मिषन मोड भी नये अवतार की ओर पथगामी होने की सम्भाव्य लिए हुए है। असल में गर्वनेंस और डिजिटलाइज़ेषन सषक्त नागरिक बनाने हेतु वर्तमान भारत की बेहतरीन आवष्यकता है। सभी लोगों को काम की सिंगल विंडो चाहिए, आॅनलाइन प्लेटफाॅर्म चाहिए, रीयल टाइम में सेवा चाहिए साथ ही सभी को डिजिटल साक्षर बनाना, सभी भाशाओं में डिजिटल संसाधन उपलब्ध कराना आदि के चलते ही सपना सरीखा पथ बनता हुआ दिखाई देता है। डिजिटल इण्डिया के मामले में सभी की एकमुष्त राय यही है कि इससे देष के सभी नागरिक मजबूत होंगे।
डिजिटल इण्डिया की संवेदनषीलता को देखते हुए एक माॅनिटरिंग कमेटी बनाई गयी है। जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री है इसके अलावा वित्त मंत्री तथा सूचना प्रसारण मंत्री सहित दस सदस्य हैं। पिछले कई वर्शों से यह महसूस किया जा रहा था कि सूचनाओं के संप्रेशण से लोगों के जीवन में अचूक बदलाव लाया जा सकता है। लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सजग किया जा सकता है। कल्याणकारी परियोजनाओं को सही कोषिष में बदला जा सकता है। भ्रश्टाचार और लालफीताषाही ने जिस प्रषासन को जड़जंग बना दिया उसे उखाड़ फेंका जा सकता है। भारत जिस तरह अन्तराजाल से घिर रहा है और वर्तमान सरकार इस दिषा में हट कर कुछ सोच रही है इससे विकास के नेटवर्क का खड़ा होना आषातीत प्रतीत होता है। षिक्षा से लेकर गरीबी उन्मूलन तक विकास की दो दर्जन से अधिक ऐसी योजनाएं हैं जिन्हें लागू करने के लिए पंचायतों पर निर्भरता है। जिस भांति आने वाले वर्शों में ढाई लाख पंचायतों को ब्राॅडबैण्ड से जोड़ने की कवायद चल रही है उसके चलते निर्मित योजनाओं का भी लाभ उठाया जा सकेगा। इंटरनेट कार्यक्रम जिस दिषा में चल पड़ा है वह भारत के विकास का सुगम पथ बनायेगा। कुल मिलाकर देखा जाए तो डिजिटल इण्डिया विकास के लिए बेहतर है पर चुनौतियों से भरा है। अहम मसला वित्तीय भी रहेगा। यदि सब कुछ अभियान के मुताबिक हुआ तो यह भारत के लिए 21वीं सदी का बड़ा कार्यक्रम सिद्ध हो सकता है।
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