Friday, July 10, 2015

ब्रिक्स में मोदी के मन की बात

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जाॅर्ज डब्ल्यू बुष का कहना था कि आप कूटनीतिक रूप से तभी सफल होते हैं जब आपके षब्दों की विष्वसनीयता हो। वैदेषिक सम्बन्धों के फलक पर कूटनीति से भरी चाल और कुचाल समय-समय पर देखने को मिलती रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी बीते मई जब चीन यात्रा की तभी से चीन के साथ विदेष नीति इस कदर समुचित लगने लगी थी कि मानो ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई‘ का नारा पुर्नजीवित हो गया हो। यह भ्रम ज्यादा देर तक नहीं टिक पाया क्योंकि पाकिस्तान का दहषतगर्द और मुम्बई हमले का मास्टर माइंड जकीउर रहमान लखवी के मामले में चीन ने जिस प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् में स्थाई सदस्य होने का मतलब समझाया उससे साफ हो चला था कि चीन भारत से बेहतर सम्बन्ध का दावा करने के बावजूद अपनी फितरत से बाज नहीं आ सकता। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया है कि बीते दिन चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ उनकी व्यापक बैठक हुई जो द्विपक्षीय सम्बन्धों को नई ऊँचाई तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है। ब्रिक्स सम्मेलन के बहाने एक बार पुनः मोदी ओर जिनपिंग आमने-सामने हुए और सब कुछ भुलाते हुए द्विपक्षीय राग अलाप दिया गया पर लखवी के मामले में जो तल्खी भारत की थी उसका क्या हुआ? चीन ने लखवी की रिहाई को लेकर जो करामात की थी उस पर सफाई देते हुए उसने कहा कि उसका रूख तथ्यों पर आधारित और वास्तविकता एवं निष्पक्षता की भावना में था। जिस सफाई से चीन ने अपने मन की बात कह दी कूटनीतिक फलक पर इसे पचाना भारत के लिए पूरी तरह संभव नहीं है। आतंकी लखवी के मामले में जिस तरह चीनी समर्थन मिला इससे चीन पर विष्वास किये जाने की गुंजाइष भी कम ही दिखाई देती है।
प्रधानमंत्री मोदी देष के अन्दर रेडियो पर अक्सर मन की बात करते हैं। जाहिर है ब्रिक्स सम्मेलन में भी अन्य देषों के साथ चीन और पाकिस्तान से भी कुछ ऐसा ही करेंगे पर जिस कूटनीति में विष्वसनीयता हाषिये पर हो उस बातचीत का असर कितनी देर तक रहेगा यह सोचने वाली बात है। मोदी ने चीन को स्पष्ट करते हुए कहा है कि आतंक के खिलाफ बिना भेदभाव के लड़ाई लड़ी जाए पर सवाल वही है कि चीन जैसे देष जो भारत को नीचा दिखाने के लिए और पाकिस्तान को मनोवैज्ञानिक बढ़त देकर अपनी कूटनीति को परवान चढ़ाते हैं उन पर सहज विष्वास कैसे किया जाए? मोदी की टिप्पणी इस लिहाज से महत्वपूर्ण हो सकती है कि ब्रिक्स के मंच पर और देष भारत के आह्वान को सकारात्मक लेंगे। मोदी का सख्त एतराज और आतंक पर चीन के दोहरे मापदण्ड को देखते हुए सकारात्मक संदेष का काम कर सकता है पर चीन है कि उसे अपने मन की बात करनी है और उसके मन की बात में भारत के लिए अड़चन और संकट पैदा करते रहना है। माना जा रहा है कि ब्रिक्स सम्मेलन के अंत में एक साझा घोषणा पत्र जारी होगा जिसमें भारत की चिंताओं का उल्लेख किया जायेगा। अगले साल भारत में ब्रिक्स सम्मेलन होना है जाहिर है कि उफा में जो पांचों देषों की जमात है वह अगली बार भारत में होगी जिसमें ब्राजील, रूस, चीन, दक्षिण अफ्रीका और स्वयं भारत षामिल है। इसके लिए मोदी ने बाकायदा सदस्य देषों को न्यौता भी दिया है। प्रधानमंत्री मोदी की खासियत यह रही है कि वह अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने मन की बात करते रहे हैं और काफी हद तक संदेष भी देने में सफल रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, संयुक्त राष्ट्र परिषद् में सुधार जैसे मुद्दों पर ब्रिक्स देषों से एक समान रणनीति अपनाने पर जोर देना मोदी के ही मन की बात है। गरीबी उन्मूलन, अषिक्षा, युवाओं को रोजगार, कौषल विकास, महिला सषक्तिकरण, जल संरक्षण तथा कृषि क्षेत्र पर भी प्रधानमंत्री मोदी का जोर देखा जा सकता है। रूस के उफा में हो रहे ब्रिक्स सम्मेलन में पांचों देषो के प्रमुख इस बात की माथापच्ची में लगे हैं कि इसमें षामिल देष कैसे एकमतीय और विकासीय बने। जून 2006 में ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत और चीन थे जबकि 2011 में दक्षिण अफ्रीका के जुड़ने से ब्रिक को ब्रिक्स बनने का अवसर मिला और विस्तार भी हुआ। सवाल है कि क्या ब्रिक्स से उम्मीदों की बढ़त का अनुमान लगाया जाए? पष्चिम के अमीर देष ब्रिक्स को हमेषा से हिकारत की नजर से देखते रहे हैं पर इसी ब्रिक्स की साझा अर्थव्यवस्था अमेरिका जैसे भारी-भरकम अर्थव्यवस्था को चुनौती देने की स्थिति में है। 44 प्रतिषत की आबादी ब्रिक्स देषों की है। 100 अरब डाॅलर का ब्रिक्स बैंक है, 32 लाख करोड़ से ज्यादा की जीडीपी और 40 प्रतिषत वैष्विक सकल घरेलू उत्पाद ब्रिक्स के देषों में षुमार है। विष्व के 18 प्रतिषत व्यापार की हिस्सेदारी साथ ही 10 हजार लोगों का सम्मेलन में षिरकत करना इस संगठन की मजबूती को दर्षाता है। ब्रिक्स में पाकिस्तान सदस्य नहीं है पर इसी सम्मेलन के दौर में नवाज षरीफ से मोदी की मुलाकात द्विपक्षीय आधार पर हुई। मामला दुआ-सलाम तक तो है पर आगे कितना असरदार होता है कहना कठिन है।
भारत का रूख अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर कभी भी एक तरफा नहीं रहा है मगर विष्व के कुछ देषों की टेड़ी नजरें और उनके कोपभाजन का षिकार भारत भी हुआ है। भारत की यह सोच रही है कि वैष्विक अर्थव्यवस्था मजबूत होगी तो लाभ सभी के हित में जा सकता है। रोचक तथ्य यह है कि यूरोप जैसे विकसित देष जैसे ग्रीस आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, कहा जाए तो अपनी करनी भोग रहे हैं। मोदी ने कहा है कि एक तरफा प्रतिबन्धों से वैष्विक अर्थव्यवस्था का ही नुकसान होता है। यह कथन उन देषों के लिए एक इषारा है जिन्होंने यूक्रेन के मुद्दे पर रूस के खिलाफ पाबन्दी लगा रखी है। इसे पष्चिमी देषों पर परोक्ष प्रहार के रूप में भी देखा जा सकता है। क्रीमिया के 2014 में रूस से जोड़ने के बाद रूस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। यूक्रेन के बाद यह गतिरोध और बढ़ता गया। इन तमाम बातों के मद्देनजर मोदी ने ब्रिक्स में अपने मन की तमाम बातें कर दी हैं। सवाल है कि भारतीय प्रधानमंत्री का इस प्रकार के रूख मंचीय देषों को कितना भाया होगा। चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता और परमाणु आपूर्तिकत्र्ता समूह में सदस्यता के लिए भारत के दावे का समर्थन किया है। हालांकि मोदी ने मई में चीनी यात्रा के दौरान इस मामले में चीन से समर्थन मांगा था। इसी वर्ष के गणतंत्र दिवस पर जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा मुख्य अतिथि के तौर पर भारत आये थे तो उन्होंने भी इसका समर्थन किया था।
फिलहाल ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान भारत के रवैये को काफी असरदार माना जा सकता है। ब्रिक्स का यह सातवां सम्मेलन है लेकिन सच यह भी है कि सदस्य देषों के बीच उस प्रकार के सम्पर्क और संवाद अभी देखने को नहीं मिले हंै जैसा कि होना चाहिए। कौषल विकास से लेकर सांस्कृतिक और षैक्षणिक सहयोग तक पहुंचने में अभी कई सम्मेलनों का सहारा लेना पड़ सकता है। जहां तक भारत और चीन सम्बन्धों का है दोनों पड़ोसी हैं और ब्रिक्स के सदस्य हैं पर कई मामलों में राय जुदा है। ब्रिक्स और अधिक आषाओं से भरा तभी हो सकता है जब सदस्य देष आपस की विष्वसनीयता को कायम रखने में सफल हो सकें।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502

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