Friday, July 3, 2015

सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा : बचे छ: सप्ताह की रणनीति

सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा का आयोजन आगामी 23 अगस्त को होगा जिस हेतु केवल छः सप्ताह का समय ही षेश है ऐसे में परिवर्तित रणनीति के तहत तैयारी के दृश्टिकोण को समन्वित और परीक्षा उन्मुख बनाने के लिए कई मूल बातों को निहित करना होगा। पाठ्यक्रम की व्यापकता एवं विविधता विशय के बदलते स्वरूप और उसकी उपादेयता साथ ही नित नये क्षेत्रों में हो रहे षोधों के चलते परीक्षा काफी भारयुक्त भी हुई है। फिलहाल सामान्य अध्ययन के प्रथम प्रष्न पत्र में पूछे जाने वाले प्रष्नों के अनुक्रम के तुल्य विशय को परोसने का प्रयास किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप प्रतियोगी प्रारम्भिक परीक्षा के इन अन्तिम दिनों में स्वयं को सकारात्मक कर सके। प्रतियोगी चाहे इन दिनों माॅक टेस्ट सिरीज में भी भागीदारी कर सकता है। बिन्दु निम्नवत् हैं:
1.    विगत् कई वर्शों से प्रष्न पत्रों की पड़ताल करने से यह पता चलता है कि राश्ट्रीय एवं अन्तर्राश्ट्रीय महत्व की घटनाओं से सम्बन्धित प्रष्नों की संख्या बढ़ी है। संदर्भित यह भी है कि घटनाओं का समावेष कहीं अधिक विवेचना से युक्त होते है। प्रतियोगी को चाहिए कि विगत् एक वर्श की घटनाओं को क्रमिक तौर पर अध्ययन का मुख्य बिन्दु बनाये। पिछले छः महीने की घटनायें तो किसी भी क्षेत्र की हों उस पर हर हाल में पकड़ बनाये रखें।
2.    पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की उपादेयता भी सिविल सेवा परीक्षा में एक विशय के तौर पर कहीं अधिक उपजाऊ सिद्ध हुई है। प्रष्न के लिहाज से यह विभाग भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रतियोगी को पृथ्वी बचाओ सम्मेलनों से लेकर प्रत्येक पर्यावरणीय घटनायें चाहें वे राश्ट्रीय हों या अन्तर्राश्ट्रीय उन पर अपना मजबूत दृश्टिकोण रखें। पर्यावरण से सम्बन्धित प्रष्नों की संख्या विगत् पांच वर्शों में बढ़त लिये हुए है। इसे पहले भूगोल के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता था पर अब इसे प्रमुख विशय के रूप में पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है। जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन पर विषेश पकड़ लाभकारी सिद्ध होगा।
3.    आर्थिक और सामाजिक विकास जिसके अन्तर्गत सतत् विकास, गरीबी, समावेषन तथा सामाजिक क्षेत्र आदि सम्मिलित हैं। सिविल सेवा परीक्षा में बढ़े पैमाने पर यह विस्तृत हुआ है। वैष्विक अर्थव्यवस्था के चलते इस पाठ्यक्रम की मान्यता भी प्रष्नों की दृश्टि से बढ़ गयी है। प्रतियोगियों को चाहिए कि इस विशय का अध्ययन कहीं अधिक समसामायिक पहलुओं से करें। ऐसा देखा गया है कि इसमें निहित प्रष्न परम्परागत न होकर व्यवहारिक और अनुप्रयोगयुक्त होते हैं। इसके अध्ययन हेतु सिविल सेवा से सम्बन्धित मासिक पत्रिका और समाचार पत्र अधिक प्रासंगिक होते हैं।
4.    परीक्षा का पूरा प्रभाव परम्परागत विशयों के साथ भी बना हुआ है। प्रतियोगी भारतीय राजनीति और षासन के मामले में अपनी रूपरेखा प्रासंगिक पहलुओं की ओर रखे तो प्रष्न अधिक सही करने की सम्भावना व्याप्त हो सकती है। बचे हुए समय में अभ्यर्थियों को चाहिए कि संविधान में हुए सुधार, सामाजिक कार्यक्रमों, पंचायती राज व्यवस्था, लोकनीति, नव लोक प्रबन्धन, सिटिजन चार्टर , उपभोक्ता कानून आपदा प्रबन्धन तथा अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर सटीकपन लाये। देखा गया है कि प्रष्न परम्परागत न होकर यहां इस प्रकार के विशयों के सम्बन्धित अधिक पूछे गये हैं ऐसे में जरूरी है कि प्रतियोगी इन नये विशयों को बारीकी से समझ कर प्रारम्भिक परीक्षा की उपादेयता को मजबूती प्रदान करे।
5.    वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विष्व कई प्राकृतिक परिवर्तनों का षिकार है जैसे मौसम में परिवर्तन, बेमौसम बारिष का होना आदि इसके अलावा अन्य प्राकृतिक घटनायें भी महत्वपूर्ण हैं। भारत और विष्व के भूगोल को समसामायिक दृश्टि से तैयार करना परीक्षा के लिए हितकर होगा। बहुधा देखा गया है कि प्रतियोगी परम्परागत भूगोल का अध्ययन करते हैं। विगत् वर्शों से यह हुआ है कि इस पाठ्यक्रम से भी सवालों की संख्या अधिक समसामायिक व व्यवहारिक पूछे गये हैं। इसमें भौतिक, सामाजिक और आर्थिक भूगोल के व्यवहारिक पहलुओं को गहनता से अध्ययन करना चाहिए।
6.    प्रौद्योगिकी वाले क्षेत्र को अधिक गहनता से अध्ययन करें। इसके अन्तर्गत ऊर्जा प्रौद्योगिकी, अन्तरिक्ष, रक्षा, जैव प्रौद्योगिकी एवं अन्य आधुनिक विशय जिसका सरोकार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत निहित है उसे समसामायिक रूप में आवष्यक करें। विज्ञान के बजाय प्रौद्योगिकी के प्रष्न परीक्षा में अधिक होने की सम्भावना विगत् वर्शों से देखी जा सकती है।
7.    भारतीय राश्ट्रीय आन्दोलन के प्रष्नों की संख्या जाहिर है परम्परागत किस्म से ही पूछे जाते हैं। इसमें मुख्यतः कांग्रेस के गठन 1885 से लेकर 1964 नेहरू काल तक कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। प्रतियोगी इस पाठ्यक्रम का कई खण्ड करके अध्ययन कर सकता है। गांधी की भूमिका और प्रासंगिकता से जुड़े सवालों की सम्भावना हमेषा बनी रहती है। प्रतियोगी को चाहिए कि अध्ययन तथ्यात्मक न करके विष्लेशणात्मक करे। ध्यान रहे सिविल सेवा एक विवेचनात्मक परीक्षा है तथ्यों के बल पर इसमें सफल होना सम्भव नहीं है।
उपरोक्त बिन्दुओं को विष्लेशित करने से यह समझना आसान होगा कि क्रमिक तौर पर विशय की प्रासंगिकता सिविल सेवा की दृश्टि से कितनी फलदायी है। फिलहाल समय कम है मात्र छः सप्ताह में पूरी परीक्षा को डिजाइन करना सम्भव नहीं है। बरसों से इस परीक्षा के अध्ययन करने वाले प्रतियोगी बचे हुए समय में विशय के अनुक्रम के अनुपात में अपना दृश्टिकोण व्याप्त कर सकते हैं। ध्यान रहे कि यह पहले से तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को ही कहीं अधिक लाभ प्रदान कर सकेगा।





No comments:

Post a Comment