Thursday, July 2, 2015

आपका व्यक्तित्व अद्वितीय है

कैरियर की तलाष में लाखों प्रतियोगी प्रति वर्श सिविल सेवा एवं प्रांतीय सिविल सेवा की परीक्षाओं का सामना करते हैं। प्रतियोगी के अनुपात में पद का न्यून होना स्पर्धा के बढ़ने के महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। निहितार्थ यह भी है कि परीक्षा के कई सोपान हैं प्रत्येक सोपान एक विस्तृत पाठ्यक्रम से घिरा हुआ है। इसमें समय और संसाधन का निवेष भी अत्यंत उच्च कोटि का है। प्रतियोगी 21 बरस के बाद इस परीक्षा में षामिल होता है और सफलता की निष्चित समय सीमा न होने के चलते या तो अभ्यर्थी इसे अनवरत् अन्तिम उम्र तक स्वयं को संलग्न किये रहता है या फिर दूसरा विकल्प तलाषता है। अपने पठन-पाठन और अध्यापन के 26 बरस के अनुभव के आधार पर मैं यह सुनिष्चित तौर पर कह सकता हूं कि सिविल सेवा परीक्षा ऐसी महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसमें जीवन के सार और उद्देष्य छुपे होते हैं। उतना ही बड़ा सच मुझे अनुभवों से यह भी प्राप्त हुआ कि बरसों तक असफल रहने वाला प्रतियोगी यदि सही मायने में सिविल सेवा को ध्येय में समेटे हुए था पर सफल न हो सका तो भी व्यक्तित्व के मामले में अच्छा या बेहतर ही नहीं अद्वितीय की ओर होता है।
पिछले 14 वर्शों से सिविल सेवा के विषेशज्ञ एवं प्राध्यापक के तौर पर मेरा समय हजारों अभ्यर्थियों के बीच गुजरा है। इस आधार पर यह कह सकता हूं कि अध्ययन की दक्षता, लेखन की पराकाश्ठा और निहित व्यक्तित्व में प्रस्तुति वाले कारक समाकलित रूप में इस प्रकार निवेषित हो जाते हैं मानो बेहतरी आदत में हो। परिप्रेक्ष्य यह भी है कि व्यक्तित्व सभी के पास होता है परन्तु मोल के मामले में यह धनात्मक और कम धनात्मक का हो सकता है। कैरियर के मार्ग में परीक्षाएं अड़चन नहीं हैं बल्कि एक सुगम अनुषासन हैं एक ऐसी विस्तारमूलक अवधारणा हैं जिसके अनुप्रयोग से व्यक्तित्व में अदम्य साहस और बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण सम्भव होता है। एक पुरानी कहावत है कि ‘बचपन का खाया जवानी में काम आता है‘ इसी भांति प्रतियोगी काल में किया गया अध्ययन एवं सुविचारित दृश्टिकोणों से मन और कर्म दोनो निश्चल हो जाते हैं जो ताउम्र काम आते रहते हैं। पते की बात यह भी है कि युवावस्था में हुए संघर्श से जीवन का षेश वर्श उचित आचरण और षानदान व्यक्तित्व के साथ निर्वाह प्राप्त करता है।
मैंने साक्षात्कार के दौरान प्रतियोगियों के व्यक्तित्व परीक्षण में कई विवेकपूर्ण और तार्किक संदर्भों को भरा है। यह भी बताया है कि आपका व्यक्तित्व अमुक काज के लिए बिल्कुल संतुलित क्यों है? आधारभूत बात यह भी है कि अभ्यर्थी अपने विशय में बेहतर राय रखने से चूक करते हैं ऐसे में उन्हें यह एहसास दिलाना जरूरी है कि उनका व्यक्तित्व अद्वितीय है। सारगर्भित प्रारूप में व्यक्तित्व कई आयामों से बनता है जिसमें संघर्श उसका प्राथमिक नियम है। व्यवहार का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन इसका दूसरा और मजबूत नियम है। अमेरिका  और यूरोप के विष्वविद्यालयों के षोधों में भी व्यक्तित्व को लेकर बड़ी चिन्ताएं जताई गयी हैं। माना गया है कि अच्छा निर्णय व्यक्तित्व की निपुणता है। बेहतर संचार व्यक्तित्व की पराकाश्ठा है जबकि अभिप्रेरित करने की कला किसी भी व्यक्ति के छाप छोड़ने की अवधारणा से ओत-प्रोत होना है।
अभ्यर्थी तय मानकों में अपने व्यक्तित्व के अन्तर्गत अपने संघर्श को पनपाता है पर व्यक्तित्व में असीम ताकत की कमी के चलते न केवल संघर्श को लम्बा करता है बल्कि सफलता के मामले में भी बहुत बार वंचित रह जाता है। सिविल सेवा एक ऐसी प्रतियोगिता है जहां एक-दो बार असफल होना आम बात है पर इसी को बेहतर व्यक्तित्व के प्रारूप में ढाल दिया जाए तो न केवल अनिष्चितता से बचा जा सकता है बल्कि सफलता बचाने की कला भी सीखी जा सकती है। एक अच्छा प्रतियोगी एक अच्छे व्यक्ति का परिचायक है। व्यक्तित्व एक व्यक्तिमूलक अवधारणा है इसमें निहित संदर्भ केवल बाहरी आवरण ही नहीं बल्कि मन के अन्दर निहित उन दृश्टिकोणों का आभास है जिसके चलते उसे सराहा जाता है। व्यक्तित्व में बेहतर ज्ञान और सरोकार का निवेष भी किया जाता है। आम राय यह भी रही है कि किसी कार्य के असफल होने में बद्किस्मत का होना समझा जाता रहा है परन्तु इस ओर षायद ही ध्यान दिया गया हो कि व्यक्तित्व में कमी के कारण सफलता मुमकिन नहीं हुई है।
प्रतियोगिता चाहे सिविल सेवा की हो या फिर कैरियर किसी और दिषा से ही सम्बन्धित क्यों न हो। अच्छे इन्सान और अच्छे व्यक्तित्व की कसौटी सभी की दरकार है। समाज में सत्यनिश्ठा के साथ जिम्मेदारी का निर्वहन करना, चुनौतियों के अनुपात में स्वयं को तैयार करना और यह तय करना कि वह जो करने जा रहे हैं उसके प्रति उनकी निश्ठा और समर्पण की दर उच्च है। ध्यान रहे इसके सही आंकलन न होने की दषा में समय और धन का निवेष होने के बावजूद मन माफिक सफलता सम्भव नहीं हो पाती। अनुभव से भी यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक प्रतियोगिता की अपनी एक मांग है उसे षिक्षण और प्रषिक्षण के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। व्यक्तित्व के मामले में कुछ तो ‘ग्रेट मैन थ्योरी‘ में आते हैं जिनमें ऐसे मौलिक भावों का पैदा होना स्वाभाविक है पर जिनमें यह लक्षण नहीं है उन्हें प्रषिक्षित करके उम्दा बनाया जा सकता है। प्रत्येक को यह भी समझना होगा कि व्यक्तित्व निर्माण एक सांख्यिकीय चेतना न होकर यांत्रिक चेतना है। इसके कुछ उपकरण होते हैं जिसे समय और परिस्थिति के अनुपात में अनुप्रयोग करके बेहतर व्यक्तित्व को प्राप्त किया जा सकता है और इसकी खामी को उत्कृश्टता से भरा जा सकता है। कटु सत्य यह भी है कि सभी का व्यक्तित्व अद्वितीय है पर यह उनके मानने पर निर्भर है।




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