बेशक मोदी सरकार पुराने डिज़ाइन से बाहर निकल गयी हो पर दावे और वादे का परिपूर्ण होना अभी दूर की कौड़ी है। नये साल के आगाज पर सरकार भी कई मामलों में संकल्पबद्ध हो रही होगी मगर बीते साल की चुनौतियां उसे कहीं न कहीं चपेट में लिए हुए है। मसलन नागरिकता संषोधन विधेयक, एनआरसी, एनपीआर समेत महंगाई, बढ़ती बेजरोजगारी और प्रदेषों में दल को मिल रही हार। सुस्त अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने में सरकार कई प्रयोगों के बावजूद स्थिति में कोई खास सुधार नहीं कर पाई है। जाहिर है नये साल के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती रहेगी। महंगाई दर की राह में सबसे बड़ी बाधा है जाहिर है जब क्रय षक्ति घटती है तो खपत भी घटती है और इसका नकारात्मक असर जीडीपी पर पड़ता है। महंगाई को पटरी पर लाना और बीते 6 साल के मुकाबले निम्न स्तर पर पहुंच चुकी 4.5 फीसद जीडीपी को 7 या 8 फीसदी के इर्द-गिर्द लाना साल 2020 में सरकार के लिए पहली 2-3 चुनौतियों में एक रहेगी। गौरतलब है कि 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था के लिए 8 प्रतिषत जीडीपी की आवष्यकता है। सरकार ने अर्थव्यवस्था का जो भारी-भरकम स्वरूप बनाने का मन बनाया है मौजूदा जीडीपी को देखते हुए कह सकते हैं कि यह आसान राह नहीं है। अगर भारत को बदलाव की चुनौती का मुकाबला करना है तो केवल सामान्य विकास से काम नहीं चलेगा। इसके लिए बुनियादी बदलाव की जरूरत पड़ेगी जिसकी पहली आवष्यकता जीडीपी में बढ़ोत्तरी ही है। साल 2024 तक 5 डाॅलर की अर्थव्यवस्था करने का इरादा कहीं कागजों तक न रह जाये इसके लिए कृशि, विनिर्माण, पूंजी, निवेष आदि को लेकर लम्बी छलांग लगानी होगी। गौरतलब है कि वर्तमान में जीडीपी खराब अवस्था में है जबकि बीते 5 जुलाई के बजट में लक्ष्य 7 फीसदी रखा गया था।
बढ़ता राजकोशीय घाटा भी अब सरकार के बूते से बाहर है। हालांकि सरकार का इस मामले में कई वर्शों तक खराब प्रदर्षन नहीं रहा है पर स्थिति को देखते हए राजकोशीय घाटा भी लक्ष्मण रेखा लांघ रहा है। यह घाटा 3.3 फीसदी से अब आगे की ओर जा रहा है जो देष की अर्थव्यवस्था के लिए आगामी वर्श में बड़ी चुनौती रहेगा। अर्थव्यवस्था में सुस्ती की वजह से कर संग्रह घटा है और चालू वित्त वर्श में घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3.4 प्रतिषत तक रखने का लक्ष्य है। हालांकि आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह लक्ष्य भी किसी चुनौती से कम नहीं। गौरतलब है कि बढ़ता राजकोशीय घाटा अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करता है जिसके चलते ब्याज दरों के साथ महंगाई भी बढ़ती है। यही कारण है कि पिछली 5 समीक्षाओं में रिज़र्व बैंक ने 5 बार रेपो रेट में कमी करते हुए बीते फरवरी से अब तक 1.35 फीसद की कटौती कर चुका है। जिसके चलते बैंकों को ब्याज दर कम करने का दबाव बनाया। इतना ही नहीं अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कटौती की और भी सम्भावना है जो कहीं न कहीं इसका निचला स्तर होगा। जिस तर्ज पर आरबीआई ने रेपो दर को लगातार कम करता रहा उसे पुनः वापसी कराना भी नये साल में एक काम रहेगा। आरबीआई की यह चिंता रही है कि आर्थिक सुषासन को कैसे पटरी पर दौड़ाया जाय। इसी के चलते पह लगातार रेपो दर में कटौती करता रहा। सरकार ने भी सितम्बर में काॅरपोरेट टैक्स को 10 फीसदी घटा कर आर्थिक सुस्ती को तंदुरूस्ती देने की कोषिष की। साल 2020 में यह भी चुनौती रहेगी कि काॅरपोरेट टैक्स कैसे बढ़े और आरबीआई द्वारा जो कदम उठाये गये उसका लाभ सीधे जनता को कैसे मिले ताकि देष आर्थिक सुषासन की राह पर चल पाये। निजी निवेष को आकर्शित करना सरकार की चुनौती बनी रहेगी। वित्त वर्श 2015 में निजी निवेष की दर 30.1 फीसद थी जो 2019 में 28.9 प्रतिषत ही रही। आंकड़ों को तवज्जो दें तो निजी व सरकारी निवेष बीते 14 साल के न्यूनतम स्तर पर है जिसे बढ़ाना नये साल में एक नई चुनौती रहेगी।
अर्थव्यवस्था की गति बरकरार रखने और रोजगार के मोर्चे पर खरे उतरने की चुनौती सरकार के लिए पुरानी बात है मगर यह पुरानी कहानी नये साल में पीछा नहीं छोड़ेगी। बीते समय में देष भर में छोटी कम्पनियां कुछ अधिक ही प्रभावित हुई हैं और बड़ी कम्पनियों में भी नौकरी के अवसर घटे हैं। इतना ही नहीं सरकारी नौकरियां भी समय के साथ सिमट रही हैं। श्रम-बल में बेरोज़गारी की दर बीते कई सालों से लगातार बढ़त लेता रहा और बेरोज़गारी दर 6.1 फीसद पर चली गयी जो 45 साल का उच्चत्तम स्तर था। आगामी वर्श में इस आरोप से मुक्त होने के लिए सरकार को एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। गौरतलब है कि साल 2027 तक भारत सर्वाधिक श्रम-बल वाला देष हो जायेगा और इसकी खपत के लिए बड़े नियोजन की दरकार होगी। अनुमान तो यह भी है कि साल 2022 तक 24 सेक्टरों में 11 करोड़ अतिरिक्त मानव संसाधन की जरूरत होगी। खाद्य कीमतों में तेजी के चलते मूल्य आधारित महंगाई बीते नवम्बर में बढ़कर 0.58 फीसद पर पहुंच गयी जो कि अक्टूबर में 0.16 थी। सब्जी और दाल समेत कई वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से खुदरा महंगाई दर 5.54 प्रतिषत पर चली गयी है। एक ओर उत्पादन स्तर का लगातार गिरना, रोजगार के स्तर का ऊपर न उठ पाना साथ ही महंगाई का बेकाबू होना आर्थिक समस्या को बढ़ा दिया है। साल 2020 इस चुनौती से दो-चार होगा।
किसानों की आय दोगुनी करने का जो लक्ष्य सरकार ने तय किया है। समय हालांकि 2022 है पर इस चक्र में 2020 भी रहेगा। सर्वाधिक उत्पादकता वाले इस क्षेत्र पर देष की लगभग 58 प्रतिषत जनसंख्या निर्भर करती है। कृशि का आधुनिकीकरण नहीं होना और परम्परागत पद्धतियों में अब किसानों की आर्थिक अवस्था और व्यवस्था को उथल-पुथल कर दिया है। हालांकि न्यूनतम समर्थन मूल्य में हेरफेर कर सरकार राहत की बात करती है पर स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करने की चुनौती पहले भी रही है और आगे भी रहेगी। मोदी सरकार अपनी दूसरी पारी में ताबड़तोड़ निर्णय लिये मसलन जम्मू-कष्मीर से 370 का खात्मा, अयोध्या विवाद का सर्वोच्च न्यायालय का समुचित हल निकलना देखा जा सकता है। हालांकि इसी दरमियान हरियाणा में सरकार का बहुमत से जीत न दर्ज करना और महाराश्ट्र में सियासी क्षितिज से जमीन पर आना ताजी सियासत का एक ऐसा नमूना था। जिसका नतीजा झारखण्ड की हार ने कद को कमजोर कर दिया। वर्श 2020 में जहां दिल्ली और बिहार का चुनावी भंवर भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है वहीं असम, गोवा, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेष, गुजरात समेत कई प्रान्त सरकार की साख को चुनौती देंगे। मोदी सरकार का सियासी नक्षा भारत से सत्ताधारी के तौर पर राज्यों में जिस तरह सिमट रहा है जाहिर है 2020 के चुनाव चुनौती रहेंगे। सुषासन की कक्षा में चक्कर लगाने वाली मोदी सरकार इसमें कोई दुविधा नहीं कि दर्जनों असुविधाओं से घिरी हुई है जिसके चलते जो जादू सर चढ़कर बोलता था अब बात वैसी नहीं दिखती। अर्थव्यवस्था पर विनिवेष की परत चढ़ाना, लोक विकास की कुंजी सुषासन को समतल न कर पाना, 5 ट्रिलियन डाॅलर वाली अर्थव्यवस्था को जो 8 फीसदी की जीडीपी चाहिए वहां कमतर रहना और तमाम प्रयासों के बावजूद उत्पादन, महंगाई और बेरोज़गारी के साथ कई मुद्दे पटल पर व्यवस्थित न हो पाना 2019 में चुनौती बनी रहेगी। जिसका अक्स 2020 में भी कायम रहेगा। इतना ही नहीं नागरिकता कानून, एनआरसी और एनपीआर को लेकर देष में बन रहा माहौल को भी साल 2020 में अपने अनुरूप करना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रहेगा।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेषन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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