Thursday, December 19, 2019

नागरिकता निर्धारण करने का उपकरण

बीते 4 दिसम्बर को नागरिकता संषोधन विधेयक को केन्द्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गयी है। जाहिर है अभी संसद से इस विधेयक को गुजरते हुए अधिनियम की दहलीज पर पहुंचना बाकी है। इसे लेकर जिस तरह विरोधी दल एतराज जता रहे हैं उससे यह प्रतीत होता है कि संसद में मुख्यतः राज्यसभा में विधेयक को लेकर सरकार को चुनौती मिलेगी। यदि नागरिकता संषोधन विधेयक कानून का रूप लेता है तो पाकिस्तान, बांग्लादेष और अफगानिस्तान से आये हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिक्ख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता मिलना मुमकिन हो जायेगा। गौरतलब है कि मुस्लिम समुदाय के लिए नागरिकता देने की बात इसमें षामिल नहीं है। पड़ताल से यह पता चलता है कि नागरिक संषोधन विधेयक 2019 के तहत सिटिजनषिप एक्ट 1955 में बदलाव का प्रस्ताव है। खास यह भी है कि पहले नागरिकता हासिल करने के लिए भारत में रहने की अवधि 11 वर्श थी अब इसे 6 साल कर दिया गया है। 1955 के एक्ट के मुताबिक अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती इसमें उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है जो बरसों पहले बिना वीजा, पासपोर्ट के भारत की सीमा में घुस आये हैं। ऐसे में इन्हें या तो जेल हो सकती है या देष वापस भेजा जा सकता है। लेकिन 2019 का एक्ट में जो बदलाव हुआ है उसमें मुस्लिम को छोड़कर षेश को छूट दे दी गयी है। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि भारत में वैध दस्तावेज के बगैर भी गैर मुस्लिम षरणार्थी पाये जाते हैं तो उन्हें न तो जेल भेजा जायेगा न ही निर्वासित किया जायेगा। इस मसले को लेकर विपक्ष का यह आरोप है कि मुसलमानों को निषाना बनाया जा रहा है। आरोप यह भी है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का यह उल्लंघन करता है जिसमें समता के अधिकार की बात कही गयी है।
इस बदलाव पर बहस का तेज होना स्वाभाविक है। विपक्षी दलों के विरोध का आधार देखें तो यह बात क्या गैरवाजिब कही जा सकती है कि पड़ोसी देषों के मुसलमानों को यह रियायत क्यों नहीं दी जा रही। यहां पर सरकार का अपना तर्क है कि बांग्लादेष, पाकिस्तान और अफगानिस्तान मुस्लिम बाहुल्य देष है। ऐसे में यहां मुसलमान नहीं बल्कि अन्य धर्मों के लोग प्रताड़ित होते हैं। इस कथ्य में कितना सत्य है यह षोध का विशय है परन्तु ऐसा देखा गया है कि पाकिस्तान के कई गैरमुस्लिम परिवार षरणार्थी के तौर पर भारत की सीमा में अपना गुजर-बसर कर रहे हैं और उनका यह कहना है कि अन्य धर्म के होने के चलते उन पर उक्त देष  जुल्म ढ़ाह रहा है। नई दिल्ली रेलवे स्टेषन के इर्द-गिर्द बरसों से ऐसे षरणार्थियों की भीड़ देखी जा सकती है जो भारत सरकार से अपने को अपनाने की गुहार लगाते रहे हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि देष में नागरिक कौन है और कौन नहीं इसका पता होना चाहिए। मगर इस बात को ध्यान में रखकर कि मुस्लिम भी इसी देष के नागरिक हैं। पंथ निरपेक्षता के साथ कानून को बनाना और लागू करना संविधान के सापेक्ष होगा। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में यह निहित है कि भारत एक पंथनिरपेक्ष देष है जहां इसके भेदभाव की गुंजाइष न के बराबर है। बावजूद इसके हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर यहां राजनीति भी होती है और सत्ता की रोटी भी सेकी जाती है। बेषक कानून बने मगर नागरिकों के हितों के लिए न कि भय का वातावरण बने। देखा जाय तो यह काल और परिस्थिति के बदलावस्वरूप लिया गया एक फैसला है जिसके चलते सरकार उन्हें नागरिक बनाने का प्रयास कर रही है जो उक्त देषों के गैरमुस्लिम है। यदि इतने ही समय से रहने वाले इन्हीं देषों के मुसलमान भारत में पाये जाते हैं तो जाहिर है उन्हें वापस भेजा जायेगा मगर उनका मूल देष उन्हें वापस लेने से मना किया तब क्या कदम होगा। ऐसे में द्विपक्षीय सम्बंध पर भी असर पड़ सकता है। हालांकि पाकिस्तान जैसे देषों से कोई उम्मीद नहीं है और षायद हो भी नहीं सकती मगर कदम ऐसा हो कि काम भी हो जाये और चोट भी न पहुंचे। 
नागरिकता अधिनियम विधेयक और राश्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के बीच आपसी घालमेल के चलते भी इसे समझने में कुछ त्रुटि हो रही है। जबकि दोनों में कुछ मूलभूत अंतर है। सरकार की तरफ से जिस विधेयक को सदन में पेष किया जाना है वह दो अहम चीजों पर आधारित है पहला गैरमुसलमान प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देना और दूसरा अवैध विदेषियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजना। गृहमंत्री अमित षाह ने कहा है कि नागरिकता विधेयक के अंतर्गत धार्मिक उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेष, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से 31 दिसम्बर 2014 से पहले भारत आने वाले हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। जबकि एनआरसी के जरिये 19 जुलाई 1948 के बाद भारत में प्रवेष करने वाले अवैध निवासियों की पहचान कर उन्हें देष से बाहर करने की प्रक्रिया है। मूलरूप से एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असम के लिए लागू किया गया था जहां करीब 19 लाख लोगों को इस सूची से बाहर किया गया था जिसमें 13 लाख हिन्दू हैं। जिसे लेकर सरकार के समक्ष बड़ा सवाल यह है कि यह हिन्दू कहां से आये। सम्भव है कि ये या तो भारत के हैं और सूचीबद्ध नहीं है या फिर बांग्लादेष से पलायन करके आये हैं। स्थिति कुछ भी हो असम में सरकार जैसा सोच रही थी नतीजे वैसे नहीं हैं। ऐसे में खुद ही दुविधा में वो फंस गयी। पहले ही यह इषारा दिया जा चुका है कि जो हिन्दू सूची से बाहर है उन्हें देष से बाहर नहीं किया जायेगा। ऐसे में नया नागरिकता संषोधन विधेयक इन्हें नागरिकता प्रदान कर देगा पर दूसरा सवाल यह है कि बाकी 6 लाख का क्या होगा?
बड़ा प्रष्न यह भी है कि जब नागरिकता विधेयक से लेकर एनआरसी तक की पहल से विपक्ष सहित कुछ वर्गों में भी असंतोश है तो आखिर भाजपा जन साधारण के खिलाफ क्यों जाना चाहती है। पूर्वोत्तर के व्यापक विरोध प्रदर्षन के बावजूद नागरिकता संषोधन विधेयक को लेकर आगे बढ़ रही सरकार का मुख्य रूप से इस पूरे क्षेत्र में दल को मिली चुनावी सफलता को एक कारण माना जा सकता है। गौरतलब है कि पूर्वोत्तर की 25 संसदीय सीटों में सहयोगियों सहित बीजेपी ने 18 पर जीत दर्ज की। दरअसल इसे लेकर सरकार के आगे बढ़ने के पीछे एक वजह यह भी है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पष्चिम बंगाल की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेन्द्र मोदी ने बांग्लादेषी घुसपैठियों से बोरिया-बिस्तर बांधने को कहा था। मोदी के पष्चिम बंगाल के चुनावी भाशण का असर 2016 के विधानसभा चुनाव पर दिखायी देता है। जिसका नतीजा 5 विधायक वाली बीजेपी 126 सीटों के मुकाबले 61 पर कामयाब हो गयी और पहली बार सत्ता में भी आ गयी। मगर रोचक यह है कि नागरिक संषोधन विधेयक का असम के भीतर विरोध कर रहे संगठन नरेन्द्र मोदी गो बैक के नारे लगा रहे हैं। इस संगठनों का यह मानना है कि यदि ऐसा होता है तो असमिया भाशा, साहित्य और संस्कृति हमेषा के लिए खत्म हो जायेगी इस डर के पीछे कौन जिम्मेदार है इसकी भी पड़ताल जरूरी है। फिलहाल भारतीय संविधान के भाग 2 में अनुच्छेद 5 से 11 के बीच नागरिकता की चर्चा है जिसे लेकर नागरिकता अधिनियम 1955 पहली बार आया था जिसमें 1986, 1992 और 2003 में संषोधन देखे जा सकते हैं। असल मुद्दा क्या है इसके आधार को भी समझते रहना होगा। यदि सरकार घुसपैठियों को लेकर वाकई में चैकन्ना है तो गैरमुस्लिम और मुस्लिम एजेण्डा तैयार करने से बचे। कहीं ऐसा तो नहीं कि बीजेपी इसके बहाने अपने हिन्दुत्व के एजेण्डे को वोट बैंक के खातिर मजबूत कर रही हो।




सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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