बीते 9 दिसम्बर को संयुक्त राश्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की रिपोर्ट का खुलासा हुआ। जिसके अनुसार भारत मानव विकास सूचकांक में एक पायदान ऊपर चढ़ गया है। गौरतलब है कि साल 2018 में भारत 130वंे स्थान पर था और अब 129वें नम्बर पर है। रिपोर्ट यह भी स्पश्ट कर रहा है कि भारत में 2005-06 से 2015-16 के दषक में 27 करोड़ लोगो को गरीबी रेखा से बाहर निकाला गया, जो सुखद महसूस कराता है। इतना ही नहीं गरीबी घटने के साथ-साथ जीवन, षिक्षा व स्वास्थ्य का स्तर भी सुधरे होने की बात भी देखी जा सकती है। प्रधानमंत्री जनधन योजना और आयुश्मान भारत जैसे योजनाओं को इस रिपोर्ट में सराहना की गई है। बावजूद इसके रिपोर्ट में चिन्ता की बात यह है कि, देष की 130 करोड़ आबादी में से 28 फीसदी नागरिक अब भी गहन गरीबी में है। देष के बड़े और मध्यम स्तर के प्रबन्धन में केवल 13 फीसदी ही महिलाएं है। रिपोर्ट की माने तो भारतीय महिलाएं सालाना 2,625 डाॅलर कमा रही है जबकि पुरूश की औसतन आय लगभग 11 हजार डाॅलर है। फिलहाल नार्वे, स्विट्जरलैंड और आॅस्ट्रेलिया मानव विकास के मामले में क्रमिक तौर पर सर्वाधिक ऊंचाई लिए हुए है। पड़ोसी पाकिस्तान 147वें स्थान में है हालाॅकि यह 2018 की तुलना में 3 पायदान ऊपर है। जबकि 2 पायदान की छालंग लगाते हुए बांग्लादेष 134वें पर है। जाहिर है पाकिस्तान और बांग्लादेष भारत से मानव विकास सूचकांक में पीछे है मगर पिछले साल की तुलना में औसतन इनकी बढ़त बेहतर कही जायेगी। आकडे़ यह भी दर्षाते है कि, 1990 से 2018 के बीच जीवन औसतन 11.6 वर्श बढ़ा और प्रति व्यक्ति आय 250 फीसद की बढ़त लिये हुए है। हालाॅंकि की आय की असमानता यहाॅं बेसुमार खाई अभी भी बनाये हुए है, गरीब और अमीर की आय में व्यापक फर्क देखा जा सकता है। अमीरों की आय 213 प्रतिषत की वृद्वि दर लिए हुए है जबकि गरीबों यही दर 58 प्रतिषत है। हालिया रिपोर्ट मानव विकास सूचकांक के मामले में एक स्थान का सुधार दिखा रहा है जो ज्यादा राहत की बात नहीं है। बल्कि यह इषारा भी है कि मानव विकास को लेकर भारत को और सजग होने की आवष्यकता है।
असल में ग्लोबल डवलेपमेंट के लिए बुनियादी विकास, मानवीय विकास और विकास के अन्य मोर्चों पर देष को सबल प्रमाण देना ही होता है, जिसे ध्यान में रखकर मानव विकास सूचकांक की अवधारणा गढ़ी जाती है। इसी साल अक्टूबर में जारी ग्लोबल हंगर इनडेक्स से भी यह खुलासा किया था कि भारत की स्थिति इस मामले में भी बहुत अच्छी नहीं है। वल्र्ड बैंक भारत की गरीबी घटाने के मामले में एक ओर जहां सराहना कर रहा है। वहीं इसे आर्थिक विकास का कारक भी बता रहा है। वैसे इन दिनों देष की आर्थिक विकास दर कहीं अधिक असंतोशजनक स्थिति लिए हुए है। हाल यह है कि 8 फीसदी जीडीपी की चाह वाला भारत इन दिनों 4.5 प्रतिषत पर झूल रहा है। मगर यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि 2020 में विकास दर 7 फीसदी रहेगा जो सुखद है पर होगा कैसे पता नहीं। भले ही मानव विकास सूचकांक में एक पायदान की छलांग हो पर ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में भुखमरी और कुपोशण के मामले में भारत का अपने पड़ोसी देष बांग्लादेष, पाकिस्तान व नेपाल से भी पीछे रहना बेहद षर्मनाक और निराष करने वाला है। गौरतलब है कि, ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 में भारत 117 देषों में 102वें स्थान पर है जबकि बेला रूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा और कुवैत सहित 17 देषों ने 5 से कम जीएचआई स्कोर के साथ षीर्श रैंक हासिल की है। साल 2018 में भारत 119 देषों में 103वें स्थान पर था और साल 2000 में 113 देषों के मुकाबले यही स्थान 83वां था। असल में भारत का जीएचआई स्कोर कम हुआ है। जहां 2005 और 2010 में 38.9 और 32 था वहीं 2010 से 2019 के बीच यह 30.3 हो गया जिसके चलते यह गिरावट दर्ज की गयी है। ग्लोबल हंगर इंडैक्स की पूरी पड़ताल यह बताती है कि भुखमरी दूर करने के मामले में मौजूदा मोदी सरकार मनमोहन सरकार से मीलों पीछे चल रही है। 2014 में भारत की रैंकिंग 55 पर हुआ करती थी जबकि साल 2015 में 80, 2016 में 97 और 2017 में यह खिसक कर 100वें स्थान पर चला गया तथा 2018 में यही रैंकिंग 103वें स्थान पर रही। जीएचआई स्कोर की कमी के चलते यह फिसल कर 102वें पर है जो इसकी एषियाई देषों में सबसे खराब और पाकिस्तान से पहली बार पीछे होने की बड़ी वजह है। मानव विकास के मोर्चे पर भारत की विफलता का यह मामला तब सबके सामने है जब दुनिया भर में भूख और गरीबी मिटाने का मौलिक तरीका क्या हो उसे बताने वाले भारतीय अर्थषास्त्री अभिजीत बनर्जी को अर्थषास्त्र का नोबल दिया गया है।
इसमें कोई दुविधा नहीं कि मानव विकास सूचकांक का भूख और गरीबी से गहरा नाता है। अभी भी देष में 28 फीसदी गहन गरीबी की बात की जा रही है जो इस बात का आईना है कि षिक्षा, चिकित्सा से लेकर भूख की लडाई यहाॅं भी व्यापक पैमाने पर षेश है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्कोर 30.3 पर होना यह साफ करता है कि यहां भूख का गंभीर संकट है। 73वें पायदान पर खड़ा नेपाल भारत और बांग्लादेष से बेहतर स्थिति लिए हुए है। नेपाल की खासियत यह भी है कि साल 2000 के बाद वह अपने बच्चों की भूख मिटाने के मामले में तरक्की किया है। इतना ही नहीं अफ्रीकी महाद्वीप के देष इथियोपिया तथा रवाण्डा जैसे देष भी इस मामले से में बेहतर कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी साफ है कि भारत में 6 से 23 महीने के सिर्फ 9.6 फीसदी बच्चों को ही न्यूनतम स्वीकृत भोजन हो पाता है। इसमें कोई अतिष्योक्ति नहीं कि रिपोर्ट का यह हिस्सा भय से भर देता है। केन्द्रीय स्वास्थ मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट में यह आंकड़ा और भी कमजोर मात्र 6.4 बताया गया है। दुविधा यह बढ़ जाती है कि दुनिया में 7वीं अर्थव्यवस्था वाला भारत भुखमरी के मामले में जर्जर आंकड़े रखे हुए है और मानव विकास सूचकांक में भी तीव्र बढ़त नहीं बढा पा रहा है। आर्थिक महाषक्ति और 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था का दावा करने वाले देष भारत के लिए उपरोक्त आंकडे़ अषोभनीय प्रतीत होते है।
हालांकि भारत में मृत्यु दर, कम वजन और अल्प पोशण जैसे संकेतकों में सुधार दिखता है। स्वच्छ भारत मिषन और षौचालयों के निर्माण के बाद भी खुले में षौच जाना अभी भी जारी है जो लोगों के स्वास्थ को खतरे में डालती है। सवाल है कि जब विष्व बैंक भारत को गरीबी के मामले में तुलनात्मक उठा हुआ और यूएनडीपी मानव विकास सूचकांक में एक पायदान आगे मानता है तो फिर भुखमरी और गरीबी का इतना मकडजाल यहाॅं क्यों है? अब समझने वाली बात यह है कि रोटी, कपड़ा, मकान, षिक्षा, चिकित्सा जैसे जरूरी आवष्यकताएं गरीबी से जूझने वालों को कब तक पूरी करा दी जायेंगी। मानव विकास सूचकांक को ऊंचाई लेने में आखिर रूकावट कहां है। जाहिर है जहाॅ कमजोरी है वहीं मजबूती से प्रहार की आवष्यकता है। एक ओर दिसम्बर माह में मानव विकास सूचकांक ऊंचाई का संकेत दे रहा है तो दूसरी ओर इसी वर्श अक्टूबर में जारी हंगर इंडेक्स के आंकड़े फिसड्डी साबित कर रहे हैं। जब तक वैकल्पिक रास्ता नहीं अपनाया जायेगा मसलन षिक्षा, स्वास्थ और रोज़गार पर पूरा बल नहीं दिखाया जायेगा तब तक गरीबी के आंकड़े समेत मानव विकास सूचकांक की स्थिति संतोशजनक कर पाना कठिन रहेगा। सवाल यह भी कि सरकार क्या करे, सारी कूबत झोंकने के बाद भी संतोशजनक नतीजे नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि खराब भारतीय इकोनाॅमी को सुधारने के लिए सरकार को आर्थिक प्रयोगषाला कुछ समय के लिए बंद कर देनी चाहिए और बेरोज़गारी की कतार को कम करना चाहिए। फिलहाल मानव विकास सूचकांक एक पायदान का उठान कई असंतोश के बीच राहत का काम कर रहा है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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