Thursday, December 12, 2019

संविधान की कसौटी पर सभी

सभी को यह नहीं भूलना चाहिए कि संविधान सभा में संकुचित मानसिकता का त्याग कर विभिन्न देषों के संविधानों से सर्वोत्तम चीजों को ग्रहण किया गया था। इसी को देखते हुए डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि विष्व इतिहास के इस पड़ाव पर बनाये हुए संविधान में कुछ नया होने की गुंजाइष तो नहीं है। संविधान दिवस के इस अवसर पर संविधान की बनावट और उसकी रूपरेखा को चंद षब्दों में समझना मुष्किल है। यह एक ऐसी धारा और विचारधारा है जिसमें भारत का एक-एक कोना न केवल निवास करता है बल्कि सत्ता से लेकर जनता तक इसी के मार्गदर्षन में निरन्तरता लिए रहती है। संविधान निर्माण पर षोधपरक दृश्टि डालने से यह भी पता चलता है कि, एक बेहतर संविधान निर्मित करना किसी चुनौती से कम न था। वैसे तो संविधान को पूरी तरह 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था मगर 26 नवम्बर 1949 को इसका अन्तिम प्रारूप तैयार कर लिया गया था। नागरिकता, निर्वाचन और अन्तरिम संसद से सम्बन्धित उपबंधों को उसी दिन लागू कर दिया गया। गौरतलब है यह तारीख वर्तमान में संविधान दिवस के रूप में प्रतिश्ठित है। सरकार ने 19 नवम्बर 2015 में राजपत्र अधिसूचना की सहायता से 26 नवम्बर को संविधान दिवस के रूप में घोशित किया था। दुनिया का सबसे बड़ा संविधान जिसमें संषोधन सहित 450 से अधिक अनुच्छेद 12 अनुसूचियां और 103 संषोधन हो चुके हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के अलावा यदि देष के सामने कोई मजबूत चुनौती थी तो वह अच्छे संविधान के निर्माण की थी जिसे संविधान सभा ने प्रजातान्त्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए 2 वर्श, 11 महीने और 18 दिन में एक भव्य संविधान तैयार कर दिया। चूंकि संविधान 26 नवम्बर 1949 को मूर्त रूप ले चुका था ऐसे में इसे लागू करने के लिए एक ऐतिहासिक तिथि की प्रतीक्षा थी जिसे आने में 2 महीने का वक्त था और वह तिथि 26 जनवरी थी। दरअसल 31 दिसम्बर, 1929 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेषन में यह घोशणा की गयी कि 26 जनवरी, 1930 को सभी भारतीय पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनायें। जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में उसी दिन पूर्ण स्वराज लेकर रहेंगे का संकल्प लिया गया और आजादी का पताका भी लाहौर के रावी नदी के तट पर लहराया गया।
देखा जाए तो जहां 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में एक राश्ट्रीय पर्व बना, वहीं संविधान दिवस संविधानविदों की मेहनत जीत को सुनिष्चित करता है। निहित मापदण्डों में देखें तो संविधान दिवस इस बात को भी परिभाशित और विष्लेशित करता है कि संविधान हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है? दुनिया का सबसे बड़ा लिखित भारतीय संविधान केवल राजव्यवस्था संचालित करने की एक कानूनी पुस्तक ही नहीं बल्कि सभी लोकतांत्रिक व्यवस्था का पथ प्रदर्षक है। नई पीढ़ी को यह पता लगना चाहिए कि संविधान का क्या महत्व है? 26 नवम्बर का महत्व सिर्फ इतना ही नहीं है कि इस दिन संविधान अन्तिम रूप से प्रारूपित हुआ था बल्कि इस दिन भारत को वैष्विक पटल पर भारत को यह भी प्रदर्षित करने का अवसर मिला कि वह विविधताओं से भरे देष के लिए एक संविधान बना सकता है। सभी भारतीय नागरिकों के लिए यह किसी महापर्व से कम नहीं कहा जा सकता। 1949 से 2019 के बीच 70 बरस का फासला है। इस फासले को एक सूत्र में पिरोने का काम यदि किसी ने किया है तो वह संविधान है। इसलिए संविधान को सुषासन की कुंजी भी कह सकते हैं। रोचक यह है कि इसी संविधान दिवस के दिन देष की षीर्श अदालत महाराश्ट्र राज्य में चल रहे उथल-पुथल को लेकर कोई निर्णय ले सकती है। गौरतलब है कि महाराश्ट्र इन दिनों सत्ता और सियासत के उलटफेर में फंसा है और अब गेंद षीर्श अदालत के हाथों में है। जाहिर है कि संविधान का संरक्षक सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे अवसर पर एक ऐसा निर्णय देना है जिसमें संविधान की गरिमा और उसकी निश्ठा कायम रहे। हालांकि षीर्श अदालत संविधान से खिलवाड़ करने वालों को समय-समय पर पटरी पर लाती रही है। यह संयोग ही है कि इस बार संविधान उन्मुख पथ को चिकना करने वाला फैसला उसी दिन आने की सम्भावना है जिस दिन संविधान दिवस है। 
देष में पनपी समस्याओं को लेकर भी निरन्तर यह सवाल उठते रहे हैं कि अभी भी देष सामाजिक समता और न्याय के मामले में पूरी कूबत विकसित नहीं कर पाया है। गरीबी से लेकर कई सामाजिक अत्याचार अभी भी यहां व्याप्त हैं पर इस बात को भी समझने की जरूरत है कि इससे निपटने के लिए बहुआयामी प्रयास जारी हैं। यह बात सही है कि संविधान दिवस का पूरा अर्थ तभी निकल पायेगा जब गांधी की उस अवधारणा को बल मिलेगा जिसमें उन्होंने सभी की उन्नति और विकास को लेकर सर्वोदय का सपना देखा था। इस अवसर पर संविधान की बनावट और उसकी रूपरेखा पर विवेचनात्मक पहलू उभारना आवष्यक प्रतीत हो रहा है। देखा जाए तो संविधान सभा में लोकतंत्र की बड़ी आहट छुपी थी और यह एक ऐसा मंच था जहां से भारत के आगे का सफर तय होना था। दृश्टिकोण और परिप्रेक्ष्य यह भी है कि संविधान निर्मात्री सभा की 166 बैठकें हुईं। कई मुद्दे चाहे भारतीय जनता की सम्प्रभुता हो, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की हो, समता की गारंटी हो, धर्म की स्वतंत्रता हो या फिर अल्पसंख्यकों और पिछड़ों के लिए विषेश रक्षोपाय की परिकल्पना ही क्यों न हो सभी पर एकजुट ताकत झोंकी गयी। किसी भी देष का संविधान उसकी राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढांचा निर्धारित करता है जो स्वयं कुछ बुनियादी नियमों का एक ऐसा समूह होता है जिससे समाज के सदस्यों के बीच एक न्यूनतम समन्वय और विष्वास कायम रहे। संविधान यह स्पश्ट करता है कि समाज में निर्णय लेने की षक्ति किसके पास होगी और सरकार का गठन कैसे होगा। इसके इतिहास की पड़ताल करें तो यह किसी क्रान्ति का परिणाम नहीं है वरन् एक क्रमिक राजनीतिक विकास की उपज है। भारत में ब्रिटिष षासन से मुक्ति एक लम्बी राजनीतिक प्रक्रिया के अन्तर्गत आपसी समझौते के आधार पर मिली थी और देष का संविधान भी आपसी समन्वय का ही नतीजा है।
संविधान का पहला पेज प्रस्तावना गांधीवादी विचारधारा का प्रतीक है। सम्पूर्ण प्रभुत्त्वसम्पन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य जैसे षब्द गांधी दर्षन के परिप्रेक्ष्य लिए हुए हैं। गांधी न्यूनतम षासन के पक्षधर थे और इस विचार से संविधान सभा अनभिज्ञ नहीं थी। इतना ही नहीं संविधान सभा द्वारा इस बात पर भी पूरजोर कोषिष की गयी कि विशमता, अस्पृष्यता, षोशण आदि का नामोनिषान न रहे पर यह कितना सही है इसका विषदीकरण आज भी किया जाए तो अनुपात घटा हुआ ही मिलेगा। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज का लोकतंत्र उस समरसता से युक्त प्रतीत नहीं होता जैसा कि सामाजिक-सांस्कृतिक अन्तर के बावजूद संविधान निर्माताओं से भरी सभा कहीं अधिक लोकतांत्रिक झुकाव लिए हुए थी और सही मायने में संविधान गढ़न से भी यह ओत-प्रोत था। संक्षेप में कहें तो जहां संविधान हमारी भारतीय व्यवस्था को समतल राह देती है वहीं इसी के चलते लोकतांत्रित प्रक्रिया का न केवल संचालन होता है, बल्कि जन अधिकार भी सुरक्षित रहते हैं। संविधान हमारी प्रतिबद्धता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का साझा समझ है वह जनोन्मुख, पारदर्षी और उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करता है पर यह तभी कायम रहेगा जब लोकतंत्र में चुनी हुई सरकारें और सरकार का विरोध करने वाला विपक्ष असली कसौटी को समझेंगे। संविधान सरकार गठित करने का उपाय देता है, अधिकार देता है और दायित्व को भी बताता है पर देखा गया है कि सत्ता की मखमली चटाई पर चलने वाले सत्ताधारक भी संविधान के साथ रूखा व्यवहार कर देते हैं। जिसके पास सत्ता नहीं है वह किसी तरह इसे पाना चाहता है। इस बात से अनभिज्ञ होते हुए कि संविधान क्या सोचता है, क्या चाहता है और क्या रास्ता अख्तियार करना चाहता है पर इस सच को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि संविधान अपनी कसौटी पर कसता सभी को है। दो टूक यह भी है कि संविधान दिवस मनाने का मकसद नागरिकों को संविधान के प्रति सचेत करना, समाज में संविधान के महत्व का प्रसार करना है। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh58@gmail.com

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