Thursday, December 19, 2019

उत्पादन, महंगाई, बेरोज़गारी और बेहाल जीडीपी

यदि ये कहें कि देष मौजूदा समय में कई झंझवातों से जूझ रहा है तो अतार्किक न होगा। औद्योगिक उत्पादन का लगातार गिरना, बेरोजगारी का लगातार गहरा होना और औंधे मुंह गिरी जीडीपी समेत महंगाई बेमिसाल भारत की कुछ और कहानी बयां कर रही है। सरकार कौन सा बदलाव लाना चाहती है, यह समझना भी आज कईयों के लिए टेड़ी खीर बनी हुई है। एक ओर आर्थिक सुस्ती और मंदी से देष चरमरा रहा है तो दूसरी ओर नागरिकता संषोधन अधिनियम और एनआरसी को लेकर देष में असंतोश व्याप्त है। सुषासन की परिकल्पना वाली मोदी सरकार मौजूदा समय में कई चुनौतियों से घिरी है। आर्थिक मंदी का देष में व्याप्त होना कई कारणों से माना जा रहा है मगर अभी तक सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया है। बीते 12 दिसम्बर को राश्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार बीते अक्टूबर में औद्योगिक उत्पादन लगातार तीसरे महीने सुस्ती का दर लिये रहा और यह घटकर 3.8 फीसद हो गया है जबकि अक्टूबर 2018 में औद्योगिक उत्पादन 8.4 फीसद बढ़ा था। पड़ताल बताती है कि विनिर्माण 2.1 फीसद, बिजली 12.2 फीसद, खनन 8 फीसद और पूंजीगत समान में सुस्ती करीब 22 फीसदी देखी जा सकती है। इसके अलावा प्राथमिक वस्तुएं और उपभोक्ता सामान में भी गिरावट व्यापकता लिए हुए है। जीडीपी के लिहाज़ से ये आंकड़े खासे अहमियत रखते हैं जबकि रोज़गार की दृश्टि से यह सहज आंकलन किया जा सकता है कि बेरोज़गारी देष में क्यों बढ़ी हुई है। इस साल की जुलाई-सितम्बर तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर 6 साल के निचले स्तर पर पहुंच गयी थी जबकि इससे पहले औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) में इसी साल पहले 4.3 फीसद और अगस्त में 1.4 प्रतिषत की गिरावट दर्ज की गयी थी। 
अर्थव्यवस्था की गति बरकरार रखने और रोजगार के मोर्चे पर खरे उतरने की चुनौती सरकार के लिए कोई नई नहीं है परन्तु इससे निपटने के लिए नित नई रणनीति की आवष्यकता महसूस हो रही है। साल 2027 तक भारत सर्वाधिक श्रम-बल वाला देष हो जायेगा और इनकी खपत के लिए बड़े नियोजन की दरकार होगी। अनुमान तो यह भी है कि साल 2022 तक 24 सेक्टरों में 11 करोड़ अतिरिक्त मानव संसाधन की जरूरत होगी। दुविधा यह है कि एक ओर मानव श्रम बढ़ रहा है साथ ही आगामी दो सालों में 11 करोड़ मानव संसाधन की आवष्यकता भी पड़ेगी, दूसरी तरफ बेरोज़गारी स्तर 45 साल के रिकाॅर्ड को तोड़ते हुए धूल चाट रही है। सरकार रोज़गार बढ़ा रही है तो यह उत्पादन और जीडीपी में झलकना चाहिए। सम्भव है कि आंकड़े इसके विरूद्ध हैं। राश्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़े के मुताबिक विनिर्माण के 18 समूहों में गिरावट तेजी से जारी है। जाहिर है यदि विनिर्माण क्षेत्र इतना तेजी से ध्वस्त होगा तो बेरोज़गारी समेत जीडीपी तेजी से कमजोर होगी। आॅटो सेक्टर में भी गिरावट दर्ज हुई है और कई कम्पनियां हजारों की तादाद में लोगों को नौकरी से बाहर किया है। स्थिति को देखते हुए कह सकते हैं कि उम्मीदें, वादे और मार्केट सभी हवा हो गये हैं। सरकार से जो उम्मीद थी कम-से-कम आर्थिक मामले में वह पूरी होते दिखाई नहीं दे रही। गौर करने वाली बात यह है कि आरबीआई गर्वनर ने साफ किया है कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती के लिए पूरी तरह से वैष्विक कारण जिम्मेदार नहीं है। जबकि इस बात को लेकर खूब बयानबाजी होती है कि इसका कारण वैष्विक है और इसकी आड़ में सरकार अपने को बचाती रही है। आर्थिक सुस्ती दूर करने को लेकर आरबीआई फरवरी से अब तक 1.35 प्रतिषत रेपो दर घटा चुका है जो 2010 की तुलना में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है और आर्थिक सुस्ती से देष को निकालने के लिए रेपो दर में एक गिरावट हो सकती है। 
खाद्य कीमतों में तेजी के चलते थोक मूल्य आधारित महंगाई नवम्बर में बढ़कर 0.58 फीसद पर पहुंच गयी जो कि अक्टूबर में 0.16 थी। गौरतलब है कि मासिक थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई पिछले साल नवम्बर में 4.47 फीसद पर थी। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की बीते 16 दिसम्बर को जारी रिपोर्ट के अनुसार महंगाई अक्टूबर के 9.80 फीसद से बढ़कर नवम्बर में 11 प्रतिषत हो गयी। गैर खाद्य वस्तुओं की महंगाई में थोड़ी कमी देखी जा सकती है। सब्जी और दाल समेत कई वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से नवम्बर में खुदरा महंगाई दर 5.54 प्रतिषत पर चली गयी है। एक ओर उत्पादन स्तर का लगातार गिरना, रोजगार का स्तर का ऊपर न उठ पाना साथ ही महंगाई का बेकाबू होना कई आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया है। जीडीपी का 4.5 फीसद पर होना इस बात का संकेत है कि आर्थिक दिषा और दषा एक ऐसे चैराहे पर है जहां से कोई रास्ता सुझाई नहीं दे रहा है। इतना ही नहीं लाभ वाली सरकारी कम्पनियों को विनिवेष के लिए खोला जाना इसी आर्थिक कठिनाई का एक और उदाहरण है। गौरतलब है कि सरकार आगामी मार्च तक कम्पनियों के विनिवेष से एक लाख पांच हजार करोड़ के अतिरिक्त धन जुटाना चाहती है। माथे पर बल इस बात को लेकर भी पड़ता है कि जीएसटी से 13 लाख करोड़ रूपए एक साल में संग्रहित करने का जज्बे वाली सरकार यहां भी विफल क्यों दिखाई देती है। सरकार को यह पूरी तरह समझ लेना चाहिए कि प्रत्यक्ष कर हो या अप्रत्यक्ष बगैर रोज़गार और विनिर्माण को मजबूत किये लक्ष्य तक पहुंचना कठिन रहेगा। सबसे बड़ी बेरोज़गारी की फौज कृशि क्षेत्र में है। 2011-12 में कृशि से 23 करोड़ लोग जुड़े थे जो 2017-18 में 20 करोड़ की संख्या रह गयी। खेती-किसानी में सबसे ज्यादा बेरोजगारी पैदा हुई है, बाकी सेक्टर का हाल भी बहुत बुरा है। वहां भी नौकरियां नहीं पैदा हो रही हैं और दूसरी जगह नौकरी भी नहीं मिल रही है। हालांकि कुछ सेक्टर में नौकरियों की संख्या बढ़ी भी है जिसमें सर्विस सेक्टर सबसे आगे है। यहां 12.7 करोड़ से 14.4 करोड़ नौकरी करने वाले देखे जा सकते हैं।
सुषासन की कक्षा में चक्कर लगाने वाली सरकार मंदी और सुस्ती के ग्रह पर कैसे पहुंच गयी उसे भी षायद नहीं पता। जिस तरह मंदी और गहराने का संकेत दे रही है उससे भविश्य और खतरे में जा सकता है। इसके अलावा आर्थिक अपराध की समस्याएं भी कठिनाई पैदा किये हुए हैं। देष के बड़े षहर जहां आर्थिक अपराध दर्ज किये जाते हैं उसमें जयपुर का नाम सबसे ऊपर है। सरकारी बैंकों के लिए मुद्रा लोन भी अब नई मुसीबत खड़ी कर रहा है। बैंकों का महाविलय एक और आर्थिक कदम के रूप में देखा जा रहा है। दो टूक यह है कि जाॅब क्रिएषन के बगैर नेषन सेल्यूषन को प्राप्त करना कभी सम्भव नहीं होगा। ऐसे में सरकार को चाहिए कि सुस्त अर्थव्यवस्था से बाहर निकलने के लिए पिछले 4 दषक की तुलना में सबसे खराब अवस्था में पहुंच चुकी बेरोजगारी पर ध्यान दें। डाॅलर के मुकाबले गिरते रूपए को रोकें, महंगाई बेकाबू न होने दें और सबसे खास यह कि विनिर्माण क्षेत्र को हर सूरत में कमजोर न होने दें इनके चलते जीडीपी भी संतोशजनक होगी यदि यही बार-बार हुआ तो 2024 में 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था का सपना भी पूरा होगा। वैसे जब प्रष्न आर्थिक होते हैं तो वे गम्भीर होते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि सामाजिक विकास और उत्थान के लिए इस पहलू को सषक्त करना ही होता है। समावेषी अर्थव्यवस्था के लक्षण में बड़ी चुनौती किसानों की ओर से है और बेरोज़गारी की कतार को कम करने की है। जब हम समावेषी विकास की अवधारणा पर बल देते हैं तब उछाल भरी अर्थव्यवस्था का पूरा षरीर सामने होता है और सभी समस्याओं का समाधान भी। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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