Wednesday, November 6, 2019

आर्थिक सुशासन की राह समतल करता आरबीआई

पिछली पांच समीक्षाओं में आरबीआई ने पांच बार में रेपो रेट में कमी करते हुए अब तक 1.35 फीसद की कटौती कर चुका है। जिसके चलते बैंकों को ब्याज दर कम करने का दबाव लगातार बना रहा। इतना ही नहीं आरबीआई के गर्वनर ने रेपो रेट में और कटौती की सम्भावना जताते हुए कहा है कि इसका निचला स्तर क्या हो अभी हमने यह तय नहीं किया है। चालू वित्त वर्श के दौरान आर्थिक विकास दर का लक्ष्य 6.9 फीसद निर्धारित किया गया था। हालांकि 5 जुलाई को नई सरकार द्वारा पेष किये गये बजट में विकास दर 7 फीसदी बताया गया था पर अब यह घटाकर 6.1 किया गया है। गौरतलब है कि बीते 4 अक्टूबर को रेपो दर में एक नई कटौती के चलते त्यौहार के इस सीज़न में आॅटो मोबाइल अन्य को लेकर सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध होगा। लगातार गिर रहे रेपो दर से होम लोन व आॅटो लोन की ब्याज दर में गिरावट आ रही है पर बाजार तेजी नहीं पकड़ पा रहा है। आरबीआई की यह चिंता रही है कि आर्थिक सुषासन को कैसे पटरी पर दौड़ाया जाय। इसी के चलते वह लगातार रेपो दर में कटौती करता रहा। सरकार ने भी सितम्बर में काॅरपोरेट टैक्स को 10 फीसदी घटाकर आर्थिक सुस्ती को तंदरूस्ती देने की कोषिष की है। वित्त मंत्रालय, बैंक और उद्योग जगत समेत आम व्यक्ति भी मन्दी और सुस्ती से कमोबेष प्रभावित है। इसको देखते हुए केन्द्र सरकार ने बैंक विलय, काॅरपोरेट घटाने और रियल स्टेट सेक्टर के लिए अलग फण्ड बनाने समेत अनेक कदम उठाये हैं। फिक्की, सीआइआइ, एसोचेम समेत तमाम उद्योग चैम्बरों ने सरकार के इस कदम पर निवेष का माहौल सुधारने में मददगार होने की बात कही है। गौरतलब है कि देष में आर्थिक सुषासन की राह बीते दो-तीन तिमाही में आर्थिक सुस्ती और विकास दर की गिरावट के चलते समतल नहीं है। इसी को समतल करने हेतु आरबीआई ने एक बार फिर मौद्रिक नीति समीक्षा की और रेपो दर में कटौती किया। आरबीआई जानता है कि खपत व विकास दर को गति से ही आर्थिक सुधार और प्रगति सम्भव है। ऐसे में उसका मुख्य मकसद मौद्रिक नीति की न केवल समीक्षा करना बल्कि आर्थिक प्रगति के रास्ते को भी चैड़ा करना है।
मगर आर्थिक प्रगति के पूरे तानेबाने के बीच कौन रोड़ा है, इसकी भी पहचान होना जरूरी है। रेपो दर में कटौती का सीधा फायदा ऋण धारकों को क्या बिना किसी प्रयास के मिल रहा है। क्या बैंक आरबीआई की इस गाइडलाइन को ईमानदारी से लागू करने में पारदर्षी रवैया अपना रहे हैं।  देखा गया है आरबीआई के रेपो दर में गिरावट के बावजूद बैंक ऋण दर में कटौती नहीं करते हैं जिसके चलते आरबीआई का आर्थिक सुषासन वाला पक्ष खतरे में बना रहता है। हालांकि तकरीबन सारे बैंक अपनी कर्ज की दरों को रेपो रेट से लिंक कर चुके हैं बावजूद इसके ग्राहकों से सौ रूपए का स्टाम्प पेपर और हस्ताक्षर की मांग करते हैं। इसकी पूर्ति के बाद ही ऋण दर में कटौती सम्भव होती है। गौरतलब है कि बीते कुछ वर्शों से बैंक कई आर्थिक कारणों के चलते एनपीए में फंसे हैं और यह अनुपात 10 लाख करोड़ रूपए को पार कर चुका है जो बीते पांच सालों में दोगुना हुआ है। पंजाब नेषनल बैंक, एनपीए के मामले में अव्वल बताया जाता है। कुछ बड़े ऋण धारकों ने बड़े व्यवसाय के चलते बैंकों की अकूत सम्पदा लूट ली और बैंकों ने उन पर विष्वास करके आसानी से पैसा उपलब्ध करा दिया। वापसी न होने की स्थिति में बैंकों का न केवल अस्तित्व संघर्श में फंसा बल्कि इन्होंने अपना भरोसा भी खोया। एनपीए में फंस चुके बैंकों ने इससे बाहर निकलने के लिए अपने नियमों में हेर-फेर किया। जिसका सीधा नुकसान आम खाताधारक के हिस्से दिखाई देता है। बैंकों ने स्वयं को उबारने के लिए सामान्य खाताधारकों की जेब पर डकैती डाला यह कहना भी अतार्किक न होगा। नये नियम और विनियम के चलते मनमानी तरीके से खाता से पैसा निकालकर बैंक अपना घाटा पूरा करने लगे और जनता की गाढ़ी कमाई इनका घाटा पूरा करने में काम आने लगी। नोटबंदी के बाद बैंकों से भरोसा उठा था और इन तरीकों के चलते भी भरोसा और टूटा। षायद यही कारण है कि आरबीआई बैंकिंग सिस्टम को लेकर बार-बार आष्वस्त करता रहा।
 अभी हाल ही में जब आरबीआई ने आधे फीसदी की रेपो रेट में गिरावट की तब उसने यह भी कहा था कि एनईएफटी और आरटीजीएस पर चार्ज समाप्त होगा। गौरतलब है कि मौजूदा समय में रेपो रेट की इतनी दर इसके पहले दिसम्बर 2010 में तब थी जब यह 5.15 फीसद के स्तर पर थी। उन दिनों भी देष में मंदी की स्थिति थी और इससे बाहर निकलने के लिए आरबीआई ब्याज दरों में भारी कटौती की थी। मगर सवाल वही है कि जिस मकसद से आरबीआई रेपो दर में गिरावट कर रहा है क्या उसका फायदा सीधे आम लोगों को मिल रहा है पड़ताल बताती है कि पिछले साल मौद्रिक समीक्षाओं में 1.10 फीसद की गिरावट रेपो दर में लाई गयी परन्तु उसका पूरा फायदा ग्राहकों को नहीं मिला। ऐसा बैंकों के पारदर्षी व्यवस्था न अपनाने और ग्राहकों की जागरूकता की कमी के कारण है। जिसे लेकर आरबीआई ने भी इस पर नाराज़गी जाहिर की थी। दो टूक यह भी है कि बैंक षायद यह समझ ही नहीं पाते कि आरबीआई जो कोषिष कर रहा है उसमें देष की आर्थिक सुषासन की चिंता है। जब तक बैंक घटे ब्याज दर पर कर्ज नहीं देंगे तब तक घरेलू अर्थव्यवस्था में मांग कैसे बढ़ाई जा सकेगी। दषहरा के ठीक चार दिन पहले एक बार फिर रेपो दर में कटौती करके आरबीआई ने धनतेरस और दीपावली को भी साधने का प्रयास किया है इस त्यौहारी सीजन में आॅटो मोबाइल, हाउसिंग और अन्य पर सकारात्मक असर पड़ने के पूरे आसार हैं। इतना ही नहीं गोल्डमैन सैष ने एक रिपोर्ट में कहा है कि इस बात की काफी सम्भावना दिख रही है कि रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति दिसम्बर की मौद्रिक समीक्षा में रेपो रेट को चैथाई प्रतिषत और घटाकर 5 या 4.75 पर लाया जा सकता है। जो अक्टूबर में अमेरिकी केन्द्रीय बैंक फेडरल रिज़र्व द्वारा दरों में अतिरिक्त कटौती के अनुमान से मेल खाता है।
अर्थव्यवस्था में सुस्ती का सबसे बड़ा कारण मांग और खपत की कमी है। रिज़र्व बैंक ने स्पश्ट कहा है कि उपभोक्ता विष्वास बीते 6 साल के निचले स्तर पर फिसल गया है जिसके पीछे बेरोज़गारी के साथ इनकम में कमी होना है। सर्वे से यह भी पता चलता है कि रोज़गार को लेकर लोगों की सोच और उम्मीद कम हुई है। चैकाने वाली बात यह भी है कि मार्च 2018 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि इनकम को लेकर लोगों में नकारात्मकता आई। मौद्रिक नीति की हालिया समीक्षा से यह भी पता चला है कि 25 आधार अंकों की कटौती के बाद वर्तमान में रेपो रेट 5.15 फीसद पर है, आर्थिक विकास दर का अनुमान 6.9 से घटकर 6.1 फीसद किया गया है। यह भी समझा गया है कि महंगाई काबू में रहेगी और इसकी दर 3.7 फीसद बनी रहेगी। गौरतलब है कि विदेषी मुद्रा भण्डार करीब 22 अरब डाॅलर से बढ़कर लगभग 435 अरब डाॅलर हुआ है। आंकड़े भले ही मन को प्रभावित कर रहे हों पर उपभोक्ता का जो विष्वास डगमगाया है उसे पुनः प्राप्त करना तभी सम्भव हो पायेगा जब आर्थिक कसौटी पर सुषासन की राह सषक्त होगी। इसमें बैंकिंग सिस्टम में सुधार को भी जोड़ना होगा। बैंकों ने भी उपभोक्ताओं के विष्वास को काफी पैमाने पर कमजोर किया है और आरबीआई की नीतियों को समय रहते तवज्जो देने में भी काफी हद तक बेपरवाह रहे हैं। अर्थव्यवस्था, रोज़गार, महंगाई और व्यक्तिगत आय एवं खर्च को लेकर आरबीआई ने देष के 13 षहरों में सर्वे भी किया है। इससे यह भी साफ होता है कि आरबीआई समझता है कि आंकड़े कुछ भी हों जनता की स्थिति कुछ और है और उनके लिए आर्थिक सुषासन की राह को मजबूत करना ही होगा।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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