Tuesday, November 12, 2019

ठोस कदम से फीकी होगी चमक

अमेरिका के साथ ट्रेड वाॅर की समस्या के चलते चीन ने अपने उत्पाद के लिए प्रमुख बाजार के रूप में भारत से विवाद कम करने की दिषा में एक पहल की। जिसमें चीन ने बढ़ते व्यापार घाटे को लेकर भारत की चिंताओं का समाधान करने का वादा किया। इसके साथ ही द्विपक्षीय वाणिज्यिक रिष्तों में संतुलन कायम करने के लिए औद्योगिक उत्पादन, पर्यटन और सीमा व्यापार जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का सुझाव दिया है। गौरतलब है कि चीन के साथ भारत का सालाना व्यापार 95 अरब डाॅलर से अधिक का है और रही बात घाटे की तो भारत का दुनिया में कुल व्यापार घाटा 105 अरब डाॅलर के मुकाबले आधे से अधिक घाटा केवल चीन से है। चीनी उत्पाद भारत में चैतरफा पैर पसार चुके हैं जबकि मेक इन इण्डिया के प्रभाव से चीन अभी मीलों दूर है। व्यापार संतुलन तभी कायम हो सकता है जब आयात और निर्यात में बेलगाम असंतुलन न हो। भारत में चीन के उत्पाद जिस तरह स्थान बना चुके हैं उसे हतोत्साहित करना मुष्किल तो है पर नामुमकिन नहीं है। पिछले 5 वर्शों में मेक इन इण्डिया का जलवा बढ़ा है और कुछ मामलों में मेड इन चाइना की चमक फीकी हुई है। भारत के व्यापारियों ने चीन से आयात कम किया है। लोग स्वदेषी पर जोर दे रहे हैं भारतीय मूर्तियों की तुलना में चीन से आयातित मूर्तियां 30 से 40 फीसदी महंगी पड़ती हैं ऐसे में देष में निर्मित मूर्तियां बेचना फायदे का सौदा है। दीपावली के इस अवसर पर सम्भव है कि चीन के सामान काफी हद तक भारतीय बाजार से गायब रहेंगे। ऐसा देष में वस्तुओं के सस्ते विनिर्माण के चलते सम्भव होता दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि चीन की अर्थव्यवस्था का आकार भारत के मुकाबले 5 गुना अधिक है। चीन का विष्व के आर्थिक विकास में योगदान भी भारत की तुलना में कहीं अधिक व्यापक है। चीन अमेरिका के साथ सालाना करीब साढ़े चार सौ बिलियन डाॅलर का व्यापार करता है और जो भारत से किये गये व्यापार की तुलना में करीब छः गुना अधिक है। भारत 2024 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था का संकल्प दोहरा रहा है। जबकि चीन मौजूदा समय में 12 ट्रिलियन डाॅलर से अधिक की अर्थव्यवस्था है। 
भारतीय स्मार्टफोन बाजार दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता बाजार है और यहां किफायती मिड सेगमेन्ट मोबाइल फोन बाजार में 10 ऐसी चीनी कम्पनियां हैं जिनका एक छत्र राज कहा जा सकता है। गौरतलब है कि इन कम्पनियों ने 2015 में फोन बनाना षुरू किया और 2017 समाप्त होते-होते इनकी हिस्सेदारी 49 प्रतिषत हो गयी और इसमें भी सबसे ज्यादा विकास कम्पनी ष्याओमी है। ष्याओमी के अलावा वीवो, हुआवई, वनप्लस, जीपो मोबाइल समेत कई इसमें देखी जा सकती हैं। मेक इन इण्डिया को बरसों से मुंह चिढ़ाने वाली तमाम चीनी कम्पनियां झालर, बल्ब और एलईडी के मामले में कहीं अधिक प्रभावषाली रही हैं। इस दिवाली बाजारों में सम्भव है कि मेक इन इण्डिया की धूम रहनी चाहिए। मूर्तियों की बिकवाली इस बात को पुख्ता करती है। कन्फडरेषन आॅफ आॅल इण्डिया ट्रेडर्स के संदर्भ से भी यह पता चलता है कि चीनी सामान के बहिश्कार का अभियान का असर मूर्तियों के बाजार पर अधिक दिख रहा है। आयात कम होने की वजह से व्यापार संतुलन भी प्राप्त किया जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 - 6 सालों में दीपावली के अवसर पर बिकने वाली चीनी मूर्तियों का 70-80 प्रतिषत घटाव हुआ है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में चीन छोड़ने पर विचार कर रही कम्पनियों को भारत लाने के लिए ब्लू प्रिंट तैयार करने की बात कही है। गौरतलब है कि 200 अमेरिकी कम्पनियां चीन को छोड सकती है जिसमें से कई भारत का रूख कर सकती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वाॅर से उपजी परेषानियों में कम्पनियों के लिए चीन से बेहतर भारत में यूनिट लगाना सही प्रतीत हो रहा है। वैसे भी ईज़ डूइंग बिज़नेस के चलते भी भारत ने विदेषी कम्पनियों को काफी सुगमता दे दी है। अमेरिकी कम्पनियां यदि भारत में निवेष करती हैं तो इसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। जितनी ज्यादा कम्पनियां होंगी उतनी नौकरियां होंगी। एक ओर जहां डाॅलर के मुकाबले रूपए में मजबूती आयेगी वहीं समान भी सस्ते हो जायेंगे। लिहाजा महंगाई कम होगी और व्यापार में हो रहे घाटे को भी पाटने में सहायता मिलेगी। हालांकि इस मामले में भारत कितना सफल होगा अभी कहना कठिन है पर जिस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था को उच्चस्ता देने के लिए सरकार ने कई नियमों में ढ़िलाई बरती है उससे दुनिया की कई कम्पनियां आकर्शित हो सकती है।
चीन में साम्यवादी षासन है और चीन प्रथम की नीति ही उसका अंतिम लक्ष्य है। जिनपिंग ताउम्र के लिए राश्ट्रपति बना दिये गये हैं और मोदी आगे के पांच साल के लिए प्रधानमंत्री बन चुके हैं। महाबलीपुरम् में अनौपचारिक वार्ता के दौरान घण्टों बातचीत हुई है जिसमें व्यापारिक रूख भी महत्वपूर्ण है। गौरतलब है कि 2008 में चीन भारत का सबसे बड़ा बिज़नेस पार्टनर बन गया था और व्यापार लगातार बढ़ता जा रहा है। हालिया स्थिति तो यह है कि भारत के कुल व्यापार का 70 फीसदी में चीन ही काबिज है। भारत को यह भी समझना होगा कि भारत में उद्योगों को कर्ज लेने पर 11 से 14 फीसद तक ब्याज देना पड़ता है जबकि चीन के उद्योगों को मात्र 6 फीसदी ब्याज पर कर्ज उपलब्ध हो जाता है। भारत में चीनी वस्तुओं की बढ़त को कमजोर करने के लिए सस्ते और बेहतर उत्पाद बनाने वाली कम्पनियां देष के भीतर ही हों और यह तभी सम्भव है जब कर्ज दर में व्याप्त असंतुलन को पाटा जाय। चीन से निरंतर बढ़ते आयात की कीमत भारतीय उद्योगों को चुकानी पड़ती है। चीन की सरकार की तरफ से मिल रहे व्यापक प्रोत्साहन घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को प्रभावित कर रहे हैं। इसके चलते भारतीय उत्पाद अपने ही बाजार में प्रतिस्पर्धा में पिछड़ते जा रहे हैं जबकि सरकार मैन्युफैक्चरिंग की जीडीपी में हिस्सेदारी 16 फीसदी से 25 फीसदी पर लगातार जोर दे रही है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए काफी कुछ किये जाने की जरूरत है। गौरतलब है कि संसद की स्थायी समिति का बीते वर्श चीनी आयात और उसके भारतीय उद्योग पर पड़ने वाले दुश्प्रभाव का आंकलन किया गया था जिसमें यह निश्कर्श निकला कि चीन के उत्पादों के भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा होने की बड़ी वजह उनकी कम कीमत है। समिति की रिपोर्ट से यह भी पता चला कि चीन में लागत अगर कारोबार का एक फीसद है तो भारत में यही तीन फीसद है। ऐसे में बिजली, वित्तीय और लाॅजिस्टिक्स को मिलाकर भारत और चीन की लागत में करीब 9 फीसदी का अंतर है। पिछले कुछ महीनों से भारत की अर्थव्यवस्था को कहीं अधिक सुदृढ़ता देने के लिए कई आर्थिक प्रयोग किये जा रहे हैं। चीन से अपना बिज़नेस समेट रही या इस पर विचार कर रहीं कम्पनियों पर भारत की नजर है। चीन बड़ा बाजार है और यहां खपत का तरीका लोगों की क्रय षक्ति भारत से अलग हो सकती है। वित्तमंत्री का मानना है कि ऐसी व्यवस्था दें जिससे ग्लोबल कम्पनियां भारतीय बाजारों में निवेष करें। यहां मानव संसाधन भी हैं और बुनियादी सुविधा भी यदि मेक इन इण्डिया के द्वारा वस्तुओं को सस्ता और विदेषी कम्पनियों को भारत में समावेषित करने की योजना सफलता मिलती है तो चीनी उत्पाद की चमक भी फीकी होगी और व्यापारिक घाटा भी पटेगा।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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