Wednesday, November 6, 2019

५ ट्रिलियन डॉलर को चाहिए फीसद जीडीपी

अगर भारत को बदलाव की चुनौती का मुकाबला करना है तो केवल सामान्य विकास से काम नहीं चलेगा। इसके लिए बुनियादी बदलाव की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी के इस कथन से कि देष में बदलाव के घूमते पहिये के बीच जमीनी हकीकत को भी बयान कर रहा है। भारत एक ऐसा देष है जहां षहरी-ग्रामीण, संगठित-असंगठित कौषल और कृशि औद्योगिक के साथ लोक और निजी का अनोखा मिश्रण है। दुनिया की सबसे अधिक आबादी यहीं बसती है। ऐसे में सम्भावनायें रहती हैं कि जबरदस्त विकास यहीं होगा पर प्रगति की दिषा में रोज़गार और कौषल विकास आज भी बड़ी रूकावट है। साल 2024 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था बनने का इरादा मौजूदा सरकार जता चुकी है। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि सामान्य विकास से नहीं बल्कि बुनियादी बदलाव की जरूरत है। बुनियादी बदलाव क्या है इसके कई आर्थिक और तार्किक मायने है जिसमें नई लोकसेवा और नई चेतना का संदर्भ निहित है। आधारभूत संरचना, वित्तीय सेवायें, ई-गवर्नेंस, बैंकिंग, षिक्षा, कृशि और स्वास्थ समेत कई हल अभी लक्ष्य के अनुरूप प्राप्त नहीं हुए हैं। सरकार का पूरा ध्यान प्रभावी जवाबदेह और पारदर्षी तंत्र की ओर झुका हुआ है पर इससे प्रगति भी तेज हुई है इसकी पड़ताल बारीकी से करने की आवष्यकता है। सार्वजनिक भागीदारी और समावेषी अभियान ने सरकार को रास्ता दिया है पर मंजिल अभी भी कसौटी पर खरी नहीं उतरी। देष को 5 लाख ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था आगामी 5 साल में करना है जिसके लिए सभी क्षेत्रों में मसलन कृशि, विनिर्माण आदि ने लम्बी छलांग लगानी होगी। इसे पाना तभी सम्भव है जब जीडीपी 8 फीसदी या उससे अधिक इतने ही वर्शों तक बरकरार रहे जो मुमकिन दिखाई नहीं देती। वर्तमान में तो यह 5 फीसद के साथ धूल चाट रही है जबकि बीते 5 जुलाई के बजट में लक्ष्य 7 फीसदी का रखा गया था।
भारत की अर्थव्यवस्था साल 2016-17 में जितनी बढ़ी वह विष्व के 158 देषों की कुल जीडीपी से ज्यादा है जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेष, मलेषिया जैसे देष षामिल हैं। यदि भारत 5 लाख ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था के मामले में सफल हो जाता है तो वह जर्मनी को पछाड़ कर दुनिया की चैथी अर्थव्यवस्था बन सकता है। गौरतलब है कि अभी भारत दुनिया की 7वीं बड़ी अर्थव्यवस्था में आता है जबकि वह 5वीं अर्थव्यवस्था का तमगा पहले हासिल कर चुका है। दुनिया की 6 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में क्रमषः अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस को देखा जा सकता है। आजकल देष के हालातों के चलते अर्थव्यवस्था के जानकार फाइव ट्रिलियन डाॅलर इकोनोमी के लक्ष्य के बारे में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को उठा रहे हैं। साल 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण को माने तो अगले 2 दषकों में भारत की आबादी में तेज गिरावट का दौर आयेगा। इसका मतलब यह भी है कि पूरे देष की जनसंख्या कम होगी और इसका फायदा मिलेगा मगर 2030 तक बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ सकती है। बड़ी चुनौती युवा आबादी को फायदे में तब्दील करने की है जिसके लिए षिक्षा, उच्च षिक्षा और कौषल विकास अनिवार्य पहलू है। गौरतलब है कि देष 45 सालों की तुलना में सर्वाधिक कमजोर बेरोजगारी दर को समेटे हुए हैं और इन दिनों आर्थिक मन्दी के दौर के कारण विनिर्माण क्षेत्र समेत कई क्षेत्रों के हालात ठीक नहीं हैं। साल 2018 की सुस्ती ने भी भारत को दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था से 7वीं की ओर धकेल दिया। वैसे मौजूदा समय में अर्थव्यवस्था पौने तीन ट्रिलियन डाॅलर के आस-पास दिखती है जिसमें एक ट्रिलियन डाॅलर की बढ़ोत्तरी बीते 5 सालों में मोदी सरकार ने की है। षायद यही कारण है कि वे आगामी 5 वर्शों में तय लक्ष्य को लेकर अटल दिखाई दे रहे हैं जबकि अर्थषास्त्र का अपना एक नियम होता है और वह यह कि औसत जीडीपी से कम रहने पर यह सिर्फ ख्याली पुलाव ही रहेगा।
महंगाई दर भी राह में सबसे बड़ी बाधा है जब क्रय षक्ति घटती है तो खपत भी घटती है और इसका नकारात्मक असर जीडीपी पर पड़ता है। ऐसे में 2024 का सपना यहां भी संतुलन की मांग कर रहा है। इतना ही नहीं डाॅलर के मुकाबले रूपए की दर को भी नियंत्रण में रखना होगा जिस तरह रूपया लुढ़कता है उससे जीडीपी को भी थकावट आती है। भारत की अर्थव्यवस्था पर डाॅलर के मुकाबले रूपए का गिरना बड़ी चोट होती है। इन दिनों भी रूपया काबू में नहीं है और यह कारण भी 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था में समस्या पैदा कर सकती है। प्रधानमंत्री ने लक्ष्य की प्राप्ति की दिषा में कुछ कदम उठाये हैं। ग्रामीण संरचना में 100 लाख करोड़ रूपए के निवेष की बात कही जा चुकी है। भारत का ऊर्जा क्षेत्र भी मुष्किलों के दौर से गुजर रहा है। पिछले एक दषक में नवीकरणीय ऊर्जा में 7 गुना वृद्धि हुई है परन्तु अभी भी इस मामले में कोयला आधारित ऊर्जा पर निर्भरता बनी हुई है। परिवहन को लेकर भी दषा बहुत अच्छी नहीं है। भारत में इसे लेकर वैष्विक स्तर के मुकाबले कई खामियां हैं। किसी भी देष की अर्थव्यवस्था को धारणीय बनाने के लिए आवष्यक है कि उस देष का अपषिश्ट प्रबन्धन कुषल हो। अब तो यहां जल की समस्या भी उत्पन्न हो चुकी है और बड़े और छोटे षहरों में कचरों का अम्बार लग रहा है। जितनी तेजी से अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है उतनी ही तेजी से पर्यावरण भी दूशित हो रहा है जो अपने आप में बड़ी चुनौती है। कृशि उत्पादन की दर को बढ़ावा तो मिल रहा है पर कृशि के प्रति लोगों का मोह भंग हो रहा है और जोत छोटे हो रहे हैं और रही सही कसर बाढ़ और सूखा पूरी कर दे रहे हैं और इन सबके बावजूद उचित कीमत न मिलने से किसान न केवल आत्महत्या कर रहा है बल्कि निरंतर कृशि जीडीपी फिसड्डी सिद्ध हो रही हैं। आॅटो सेक्टर से लेकर सर्विस सेक्टर तक सभी या तो सरकार के नये नियमों से या वैष्विक मन्दी से दो-चार हो रहे हैं। ऐसे में जीडीपी का लुढ़कना स्वाभाविक है। सवाल है कि जब जीडीपी अपने मुकाम पर टिकेगी नही ंतो 5 ट्रिलियन डाॅलर का अटल संकल्प जो 2024 तक तय है वह कैसे पूरा होगा?
सरकार को इस अर्थव्यवस्था की प्राप्ति के लिए चैतरफा प्रयास करना होगा और यह संतुलन कायम रखना होगा कि प्रत्येक क्षेत्र में विकास दर बढ़े और जीडीपी 5 फीसद नहीं वरन् 8 फीसद से नीचे न आने पाये। अर्थव्यवस्था की क्षमता के अनुसार लक्ष्य इतना भी मुष्किल नहीं है कि जो भारत की अर्थव्यवस्था में जो मौजूदा समस्या दिख रही है वह चुनौती बढ़ा रही है। 5 जुलाई के पेष किये गये बजट में कहीं अधिक संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया गया है परन्तु तय जीडीपी 2019-20 के वित्त वर्श में मिलेगी इस पर षक गहरा जाता है। षिक्षा की गुणवत्ता, बेरोज़गारी, आर्थिक असमानता, महिलाओं की स्थिति, कुपोशण सहित गरीबी जैसे कई मुद्दे अभी मुखर हैं जिन्हें बिना समाधान के बड़ी आर्थि स्वावलंबन हासिल करना कठिन है। भारत का बैंकिंग क्षेत्र भी एनपीए से जूझ रहा है और सरकार 10 बैंकों का विलय कर 4 बनाने की बात कह चुका है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि जब अर्थव्यवस्था चैतरफा चुनौती से घिर जाती है तो आर्थिक मूल्य भी उसे ही चुकाना पड़ता है। सरकार यह बात बार-बार कह रही है कि 5 ट्रिलियन डाॅलर का लक्ष्य उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है मगर सरकार को यह भी समझना चाहिए कि क्या 2014 में तय किये गये आर्थिक लक्ष्य 2019 में मिले हैं। नोटबंदी और जीएसटी के बावजूद क्या पूरे मन से यह स्वीकार करना सम्भव है कि यह दोनों आर्थिक परिवर्तन लक्ष्य उन्मुख रहे हैं। सवाल उन सवालों का है जिन्हें कसौटी पर कसना है। ऐसे में आर्थिक नीति को प्रबलता देने की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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