Thursday, November 14, 2019

गिरता मतदान दर चिंता का सबब

लोकतंत्र की कसौटी पर यदि कोई खास संदर्भ देखना हो तो केवल जीत-हार का अन्तर ही नहीं बल्कि  मतदान प्रतिषत को भी देखना चाहिए। लोकतंत्र तभी सषक्त माना जाता है जब व्यापक पैमाने पर इसमें नागरिकों की भागीदारी होती है। यह इस बात को भी पुख्ता करता है कि अपनी सरकार चुनने और सुषासन की राह समतल करने के मामले में जनता कितनी जागरूक है। देष में पहला चुनाव 1951-52 के वर्श में दर्ज है  तब मतदाताओं की संख्या 18 करोड़ थी अब यह आंकड़ा 90 करोड़ को पार कर गया है। इस पर कोई दुविधा नहीं की चुनावी चुनौतियां बड़ी है पर पहले की तुलना में सुविधा भी परवान लिए हुए है। तब से अब तक 17 बार लोक सभा का और कमोवेष इतने ही विधानसभा के चुनाव सम्पन्न हो चुके है। तथ्यपरक बात यह है कि 55 फीसदी से कम और 65 फीसदी से अधिक मतदान का अवसर कम ही बार देखा गया है। बीते 24 अक्टूबर को महाराश्ट्र और हरियाणा विधानसभा के साथ देष के 18 राज्यों के उपचुनाव के नतीजे घोशित किये गये। महाराश्ट्र में भाजपा और षिवसेना गठबंधन जहाॅं सत्ता को बचाये रखने में कामयाब दिखे, वहीं हरियाणा में भाजपा सत्ता से दूर दिखाई देती है जबकि उत्तर प्रदेष में मतदाता कई छोर पर खड़ा दिखता है। बेषक चुनाव के नतीजे बहुमत और गैर-बहुमत में बंटे होते है पर प्रसंग यह है कि मतदाता का लोकतंत्र के इस पावन अवसर पर जायका कम-ज्यादा क्यों हो जाता है। 
महाराश्ट्र में इस बार मतदान 60.46 प्रतिषत पर आकर ठहर गया जो 2014 की तुलना में 2.67 फीसदी कम है। यहाॅं विधानसभा की 288 सीटों के लिए 3237 उम्मीदारवार मैदान मेें थे। लोकतंत्र के इस उत्सव में राजनीति, बॅालीवुड और उद्योग जगत की हस्तियाॅ षुमार थी, इतना ही नहीं युवा और बुजुर्ग मतदाताओं के साथ बड़ी-बड़ी कतारे भी थीं बावजूद इसके मत प्रतिषत में गिरावट दर्ज हुई जो लोकतंत्र के लिए चिंता का विशय है। जबकि इस चुनावी समर में प्रधानमंत्री मोदी ने यहाॅ भी 9 चुनावी रैली की थी। जाहिर है आकर्शण पिछले चुनाव से कम रहा। भाजपा की महाराश्ट्र में घटी सीट भी इस बात को पुख्ता करती है। दिल्ली से सटे हरियाणा राज्य पर दृश्टि डाले तो यहाॅ की स्थिति मत प्रतिषत के मामले में और बिगड़ी हुई दिखाई देती है। बीते 21 अक्टूबर को 90 विधानसभा सीटो के लिए सम्पन्न विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिषत 2014 की तुलना में व्यापक अन्तर लिए हुए है। गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में जहाॅं वोट प्रतिषत 76.54 था वहीं 2019 में यह गिरावट के मात्र 65 फीसदी रह गया। जबकि 1967 से अब तक केवल दो बार ऐसा देखा गया है जब इससे कम वोट पड़ा था। गौरतलब है कि 1968 में 57.26 और 1977 में 64.46 मतदान हुआ था। अब तक 13 बार के विधानसभा चुनाव में 2014 सर्वाधिक मतदान प्रतिषत के लिए जाना जाता है। जिसकी तुलना में 2019 लोकतंत्र के लिए बहुत सकारात्मक नहीं कहा जा सकता है। मत प्रतिषत की गिरावट के मामले में उपचुनाव भी अछूते नहीं रहे। 
उत्तर प्रदेष और बिहार समेत देष के 18 राज्यों की 51 विधानसभा और 2 लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में वोट प्रतिषत 57 फीसदी पर सिमट गया। पड़ताल बताती है कि उपचुनाव में मत प्रतिषत अक्सर औंधे मुह गिरता रहा है। देष के सबसे बड़े प्रांत उत्तर प्रदेष जहाॅं भाजपा सत्ता पर काबिज है वहाॅं का हाल तो लोकतंत्र को और रूलाने वाला है। गौरतलब है उत्तर प्रदेष में 11 विधानसभा सीट के मामले में मतदान प्रतिषत 47 फीसदी पर आकर रूक गया। हैरत यह है कि राजधानी लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट में सबसे कम मतदान मात्र 28.53 प्रतिषत हुआ है। यह योगी सरकार के लिए लोकतंत्र को संवारने व निखारने की दृश्टि से न केवल बड़ी चुनौती दे रहा है बल्कि उनके षासन पर भी काफी हद तक प्रष्नचिन्ह खड़ा कर रहा है।  दीपक तले अंधेरा यह कहावत है, यहाॅं बिल्कुल सटीक है। निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार अरूणाचल प्रदेष में खोंसा पष्चिम सीट पर सबसे अधिक मतदान 90 प्रतिषत हुआ है। जो लोकतंत्र के मायने को पूरी तरह व्यापक, विस्तृत और मजबूत बनाता है। इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ में नक्सल प्रभावित चित्रकोट में 74 फीसदी, तेलंगाना के हुजुरनगर में 84 प्रतिषत और मेघालय के षेल्ला में लगभग 85 प्रतिषत मतदान इस बात के गवाह है कि जहाॅं लोकतंत्र की छटपटाहट होगी वहाॅं इसके प्रति सषक्तता दिखेगी। असम में हाल अच्छा है पर बिहार आते-आते मतदान 50 प्रतिषत से नीचे आ जाता है। हिमाचल में स्थिति जहाॅ 70 प्रतिषत से ऊपर है वहीं गुजरात में यह 51 फीसदी में सिमट जाता है। इसके अलावा मध्यप्रदेष के झाबुआ में 62 फीसदी, पंजाब के उपचुनाव में 60 प्रतिषत पर यह मामला रूकता है। 
षोधात्मक विष्लेशण इस ओर इषारा कर रहा है कि भाजपा षासित प्रदेष वोट प्रतिषत की गिरावट को रोक नहीं पाये है। महाराश्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में तुलनात्मक गिरावट तो दर्ज होती ही है वहीं  गुजरात के उपचुनाव में मात्र 51 प्रतिषत मत निराषा से भरता है। महाराश्ट्र में मोदी की 9 रैली, अमित षाह की 10 सभाऐं और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की 65 और षिवसेना की 50 जनसभाओं से भले ही चुनावी फतेह मिली हो पर पहले की तुलना में वोटर आकर्शित नहीं हुआ है। हरियाणा के हाल तो वोट प्रतिषत के मामले में और बुरे है। आकड़ों से पता चलता है कि 18 राज्यो के जिन 51 विधानसभा सीटों और 2 लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं वहाॅं 2014 की तुलना में वोट प्रतिषत कहीं कम तो कहीं ज्यादा अन्तर लिए हुए है।  बानगी के तौर पर देखे तो केन्द्रषासित लक्षद्वीप में 2014 में जहाॅं 86.61 फीसदी मत पड़े थे वहीं इस बार 66 फीसद मतदान हुआ। लोकतांत्रिक दृश्टि से देखे तो इसका इतिहास बडे़ उघेड-बुन से भरा रहा है । फिलहाल लोकतंत्र समय-समय पर करवट बदलता रहा है और षायद आगे भी ऐसा ही होता रहेगा। इतना ही नहीं मतदाताओं का रूझान भी उठता-बैठता रहा है। जब यह कहा जाता है कि जनता जागरूक हो गई हैं और लोकतंत्र के प्रति उसकी धारणा सबल है तब लोकतंत्र की और से चिन्ता घट जाती है मगर जब मतदान में व्यापक गिरावट देखने को मिलता है तब इसी लोकतंत्र के चिन्ता के चलते माथे पर फिर से बल पड़ जाते है। आखिर तमाम कवायद के बावजूद लोकतंत्र का हाल ऐसा क्यों है। दो टूक यह भी है कि लोकतंत्र तभी सषक्त होगा जब सरकार और जनता दोनों अपना दायित्व निभायेगे। ध्यान रहे कि जनता की सरकार चाहे जितने मत से बने वह जनता पर षासन पूरे रौब से करती है। इसलिए मतदान के अधिकार प्रयोग करने से मतदाताओं को नहीं चूकना  चाहिए। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

No comments:

Post a Comment