Tuesday, November 12, 2019

गरीबी और भूक पर भरक की ताज़ी सूरत

विश्व बैंक का यह कहना कि 1990 के बाद अब तक भारत अपनी गरीबी दर को आधे स्तर पर ले जाने में सफल रहा साथ ही बीते 15 सालों में 7 फीसदी से अधिक विकास दर हासिल किया है। इसी के कारण गरीबी दर कम करने में मदद मिली और मानव विकास को लेकर पथ चिकना हुआ है। गौरतलब है कि अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश (आईएमएफ) से बैठक के पहले विष्व बैंक ने ग्लोबल डवलेपमेंट के मामले में भारत की भूमिका को बेहतरी के साथ रेखांकित किया है। इतना ही नहीं विष्व बैंक ने यह भी स्पश्ट किया कि भारत ने घोर गरीबी को कम करने के साथ जलवायु परिवर्तन के मामले में भी सधी हुई भूमिका निभाई है। विष्व बैंक ने यह भी सुझाव दिया कि भारत को बुनियादी विकास को बढ़ाने के लिए निवेष और संसाधनों की दक्षता में सुधार करना है। सतत् विकास को समावेषी बनाने की जरूरत पर भी उसने बल दिया। वैसे भारत में समावेषी विकास का संदर्भ उदारीकरण के बाद और विष्व बैंक द्वारा उद्घाटित की गयी 1992 में गुड गवर्नेंस की अवधारणा के साथ ही षुरू हुई। जिसका लक्षण 8वीं पंचवर्शीय योजना जो समावेषी विचारधारा से ओत-प्रोत थी में देखी जा सकती है। महिलाओं की भूमिका पर भी विष्व बैंक काफी सकारात्मक सुझाव देते दिखाई देता है। असल में ग्लोबल  डवलेपमेंट के लिए बुनियादी विकास, मानवीय विकास और विकास के अन्य मोर्चों पर देष को सबल प्रमाण देना ही होता है, जिसे ध्यान में रखकर वल्र्ड बैंक भारत की गरीबी घटाने के मामले में एक ओर जहां सराहना कर रहा है। वहीं इसे आर्थिक विकास का कारक भी बता रहा है। वैसे इन दिनों देष की आर्थिक विकास दर कहीं अधिक असंतोशजनक स्थिति लिए हुए है मगर यह संभावना है कि 2020 में विकास दर 7 फीसदी रहेगा जो सुखद है। बावजूद इसके ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में भुखमरी और कुपोशण के मामले में भारत का अपने पड़ोसी देष बांग्लादेष, पाकिस्तान व नेपाल से भी पीछे रहना बेहद षर्मनाक और निराष करने वाला है। 
बड़े मुद्दे क्या होते हैं और उनके आगे सत्तासीन भी बहुत कुछ करने में षायद सफल नहीं होता। अगर इसे ठीक से समझना है तो दुनिया में बढ़ रही भुखमरी और बीमार होते लोगों की गति से जांचा परखा जा सकता है। अगर देष में गरीबी रेखा से लोग ऊपर उठ रहे हैं तो भुखमरी के कारण देष फिसड्डी क्यों हो रहा है। अर्थषास्त्र का यह दोहरा अर्थ समझ पाना बहुत मुष्किल है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 में भारत 117 देषों में 102वें स्थान पर है जबकि बेला रूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा और कुवैत सहित 17 देषों ने 5 से कम जीएचआई स्कोर के साथ षीर्श रैंक हासिल की है। गौरतलब है कि साल 2018 में भारत 119 देषों में 103वें स्थान पर था और साल 2000 में 113 देषों के मुकाबले यही स्थान 83वां था। असल में भारत का जीएचआई स्कोर कम हुआ है। जहां 2005 और 2010 में 38.9 और 32 था वहीं 2010 से 2019 के बीच यह 30.3 हो गया जिसके चलते यह गिरावट दर्ज की गयी है। ग्लोबल हंगर इंडैक्स की पूरी पड़ताल यह बताती है कि भुखमरी दूर करने के मामले में मौजूदा मोदी सरकार मनमोहन सरकार से मीलों पीछे चल रही है। 2014 में भारत की रैंकिंग 55 पर हुआ करती थी जबकि साल 2015 में 80, 2016 में 97 और 2017 में यह खिसक कर 100वें स्थान पर चला गया तथा 2018 में यही रैंकिंग 103वें स्थान पर रही। जीएचआई स्कोर की कमी के चलते यह फिसल कर 102वें पर है जो इसकी एषियाई देषों में सबसे खराब और पाकिस्तान से पहली बार पीछे होने की बड़ी वजह है। मानव विकास के मोर्चे पर भारत की विफलता का यह मामला तब सबके सामने है जब दुनिया भर में भूख और गरीबी मिटाने का मौलिक तरीका क्या हो उसे बताने वाले भारतीय अर्थषास्त्री अभिजीत बनर्जी को अर्थषास्त्र का नोबल दिया गया है। 
ग्लोबल हंगर इंडैक्स में भारत का स्कोर 30.3 पर होना यह साफ करता है कि यहां भूख का गंभीर संकट है। 73वें पायदान पर खड़ा नेपाल भारत और बांग्लादेष से बेहतर स्थिति लिए हुए है। नेपाल की खासियत यह भी है कि साल 2000 के बाद वह अपने बच्चों की भूख मिटाने के मामले में तरक्की किया है। इतना ही  नहीं अफ्रीकी महाद्वीप के देष इथियोपिया तथा रवाण्डा जैसे देष भी इस मामलसे में बेहतर कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी साफ है कि भारत में 6 से 23 महीने के सिर्फ 9.6 फीसदी बच्चों को ही न्यूनतम स्वीकृत भोजन हो पाता है। इसमें कोई अतिष्योक्ति नहीं कि रिपोर्ट का यह हिस्सा भय से भर देता है। केन्द्रीय स्वास्थ मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट में यह आंकड़ा और भी कमजोर मात्र 6.4 बताया गया है। दुविधा यह बढ़ जाती है कि दुनिया में 7वीं अर्थव्यवस्था वाला भारत भुखमरी के मामले में जर्जर आंकड़े रखे हुए है। यूनिसेफ भी कह रहा है कि दुनिया में हर तीसरा बच्चा कुपोशित है। दुनिया में 5 साल से कम उम्र के करीब 70 करोड़ बच्चों में एक तिहाई या तो कुपोशित हैं या मोटापे से जूझ रहे हैं। आर्थिक महाषक्ति और 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था का दावा करने वाले देष भारत के लिए भुखमरी का यह आकड़ा वाकई में पचने वाला नहीं है। हालत तो यह भी है कि 90 फीसदी से अलग बच्चों को न्यूनतम आहार तक नहीं मिलता। आंकड़े से यह भी पता चला कद के अनुरूप वजन के मामले में भारतीय बच्चे सबसे फिसड्डी, सबसे पीछे और यमन जैसे युद्ध झेलकर जर्जर हुए देष के बच्चों से भी भारत पीछे हैं। गौरतलब है आयरिष एजेंसी कन्सर्न वल्ड वाइब और जर्मन संगठन वेल्ट हंगर हिलफे द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गयी रिपोर्ट में भारत में भुखमरी के स्तर को गम्भीर करार दिया।
हालांकि भारत में मृत्यु दर, कम वजन और अल्प पोशण जैसे संकेतकों में सुधार दिखता है। स्वच्छ भारत मिषन का हवाला देते हुए रिपोर्ट में यह भी दिखता है कि षौचालयों के निर्माण के बाद भी खुले में षौच जाना अभी भी जारी है जो लोगों के स्वास्थ को खतरे में डालती है। सवाल है कि जब विष्व बैंक भारत को गरीबी के मामले में तुलनात्मक उठा हुआ मानता है तो फिर भुखमरी क्यों है? गौरतलब है 1989 की लकड़ावाला समिति की रिपोर्ट में गरीबी 36.1 फीसदी बताई गयी थी तब विष्व बैंक भारत में यही आंकड़ा 48 फीसदी मानता था और इसमें यह भी देखा गया कि 2400 कैलोरी ऊर्जा ग्रामीण और 2100 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त करने वाले षहरी लोग गरीबी रेखा के ऊपर है। मौजूदा समय में आर्थिक दृश्टि से देखें तो 1.90 डाॅलर प्रतिदिन कमाने वाला गरीबी रेखा के नीचे नहीं है। अब समझने वाली बात यह है कि रोटी, कपड़ा, मकान, षिक्षा, चिकित्सा जैसे जरूरी आवष्यकताएं क्या इतने में पूरी हो सकती हैं जाहिर है गरीबी से ऊपर उठने का जो स्तर तय किया गया है वह निहायत न्यून प्रतीत होता है। जीवन को बाजार के भाव पर आंका जाय तो यह दर बहुत कम है। षायद यही कारण है कि भारत गरीबी रेखा से ऊपर के मामले में बेहतर आंकड़े की ओर है जबकि हंगर इंडेक्स के आंकड़े उसे फिसड्डी साबित कर रहे हैं। जब तक वैकल्पिक रास्ता नहीं अपनाया जायेगा मसलन षिक्षा, स्वास्थ और रोज़गार पर पूरा बल नहीं दिखाया जायेगा तब तक भुखमरी के आंकड़े समेत गरीबी को दूर करने की संतोशजनक स्थिति प्राप्त करना कठिन बना रहेगा। खराब भारतीय इकोनाॅमी को सुधारने के लिए सरकार को आर्थिक प्रयोगषाला कुछ समय के लिए बंद कर देनी चाहिए और बेरोज़गारी की कतार को कम करना चाहिए। स्वच्छता अभियान सही है पर चिकित्सा और रोटी की भी चिंता करनी चाहिए। लैंगिक असमानता की भी दृश्टि से अधूरे काम पूरे हों और अवसर की प्रतीक्षा में भी जो हैं उनके साथ सामाजिक न्याय हो ताकि जब गरीबी घटे तो भुखमरी बढ़ने की बजाय वह भी घटाव लिए हो।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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