Wednesday, November 6, 2019

आर्थिक सुस्ती के बीच बैंकों का महाविलय

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान ही बैंकों के महाविलय की महत्वाकांक्षी योजना कुछ हद तक चर्चे में रही है। वैसे सरकारी बैंकों के विलय को लेकर कई तरह की आषंकाएं रहती हैं। हालांकि अभी तक के अनुभवों से इससे देष का फायदा ही देखने को मिला है पर अर्थव्यवस्था के सुस्ती के इस दौर में दस सरकारी बैंकों का विलय कर चार बैंक बनाने की घोशणा को लेकर कई प्रकार के संदेह जताये जा रहे हैं। दो टूक यह भी है कि अर्थव्यवस्था को मजबूती देना सरकार का महत्वपूर्ण कदम दौर के मुताबिक बनता है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था पर आये संकट को देखते हुए सरकार के फैसले को गलत करार दे रहे हैं तो वित्त मंत्री निर्मला सितारमण सुधार की उम्मीद जगा रही हैं। हालांकि हालिया अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी दिखाई देती है और संकट से उबारने के लिए अमूलचूल परिवर्तन जरूरी है। इसी के चलते सरकार ने अब बाजार की भावना को ऊपर उठाने के लिए कुछ नीतियों को फिर से लागू किया है और कुछ नई नीतियां बनायी हैं। मनमोहन सिंह के इस वक्तव्य का कि सरकार ने राजनीतिक प्रतिषोध में देष की अर्थव्यवस्था को खतरे में डाल दिया। कई अर्थषास्त्री सहमत हैं तो कई राजनीतिक बयानबाजी बता रहे हैं। 8 नवम्बर, 2016 और 1 जुलाई 2017 को क्रमषः नोटबंदी और जीएसटी पर मोदी सरकार द्वारा निर्णय लिया गया था तब मनमोहन सिंह ने सरकार को चेताया था कि जीडीपी 2 फीसदी नीचे जायेगी। वर्तमान बजट में जीडीपी 7 फीसदी है जबकि मौजूदा समय में यह 5 प्रतिषत पर लुढ़क कर रह गयी है। डाॅ0 मनमोहन सिंह का कथन सच साबित होता दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि पिछले 6 साल की तुलना में जीडीपी सबसे कम स्थिति में है। 
इस संदर्भ का उल्लेख सही होगा कि साल 2008 की षुरूआत में जीडीपी के लगातार नकारात्मक आंकड़ों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी थी। अमेरिका में होम लोन और माॅर्गेज लोन न चुका पाने वाले ग्राहकों की संख्या तेजी से बढ़ी। जिसके चलते कई बड़ी वित्तीय संस्थाएं तरलता के अभाव में आ गयी। यह इतनी अधिक थी कि अमेरिकी सरकार के बेलआउट पैकेज भी इस अभाव को कम नहीं कर पा रही थी और देखते ही देखते अमेरिका के 63 बैंकों पर ताले लग गये। जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा और वैष्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में चली गयी। भारत की जीडीपी गिरना मांग में कमी का संकेत है। जिसके लिए कोई एक वजह नहीं है। मौजूदा समय में आॅटो सेक्टर पर गहराया मंदी का संकट इसका प्रमुख कारण में एक है। विनिर्माण में रूकावट, ग्रामीण भारत की हालत का बेहद खराब होना, कम मुद्रा स्फीति की दर की बात करना पर महंगाई पर अंकुष न लग पाना। इसके अलावा पिछले नौ साल की तुलना में रेपो दर सबसे कम स्थिति में होना मगर बैंकों द्वारा ऋण देने की दर में गिरावट न लाने जैसे तमाम कारण इसके जिम्मेदार हैं। वित्त मंत्री सीतारमण ने भरोसा दिया है कि बैंकों के विलय से न नौकरियां जायेंगी न ही कोई अन्य समस्या आयेगी। गौरतलब है कि बैंक यूनियन महाविलय का विरोध कर रहे हैं। वैसे बैंकों के विलय का सिलसिला कोई नया नहीं है पर मौजूदा आर्थिक स्थिति में यह कदम सरकार की मजबूरी भी दर्षाती है। 1969 में 14 बैंकों का राश्ट्रीयकरण किया गया था और 1980 में 6 बैंकों को इसी तर्ज पर और जोड़ा गया मगर बैंकों कां संलग्न करने की प्रक्रिया भी 1980 के दषक में ही षुरू हुआ जब पंजाब नेषनल बैंक में न्यू बैंक आॅफ इण्डिया को मर्ज कर दिया गया था।
बैंक विलय का इतिहास भारत में धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा। 1985 से अब तक छोटे-बड़े 49 बैंकों का विलय किया जा चुका है और अब महाविलय की तैयारी है। सिलसिलेवार तरीके से देखें तो बैंकों के विलय से कई बदलाव होने स्वाभाविक है पर कई मामलों में कोई असर नहीं पड़ेगा। माना जा रहा है कि बचत खाताधारक की खाता संख्या और चेक बुक के साथ एटीएम भी नया हो सकता है। हालांकि इसके अनुभव थोड़े खट्टे-मीठे रहेंगे थोड़ा फायदा तो कहीं नुकसान हो सकता है। बड़े बैंक सामान्यतः सावधि जमा (एफडी) पर ब्याज कम देते हैं और छोटे बैंक तुलना में ज्यादा देते हैं। पहले करायी गयी एफडी पर तो कोई असर नहीं होगा पर विलय के बाद यदि एफडी हुई तो ब्याज दर स्वाभाविक है कम हो जायेगी। बड़े बैंकों के कर्ज पर ब्याज दरें छोटे बैंकों के मुकाबले कम होती हैं ऐसे में विलय का यहां कर्ज लेने वालों को फायदा होगा और पुराने कर्ज पर दी जाने वाली ईएमआई भी घट सकती है। हालांकि बेरोज़गारी बढ़ने की आषंका पूरी तरह समाप्त नहीं मानी जा सकती। कर्मचारियों का नुकसान हो सकता है पर ग्राहकों पर खास विपरीत असर नहीं पड़ेगा। एनपीए के संकट से मुकाबला करना भी षायद आसान होगा और इकोनाॅमी और बैंकिंग के लिए यह विलय फायदा का सौदा हो सकता है। गौरतलब है कि जनवरी 2019 में सरकार ने बैंक आॅफ बड़ौदा में देना और विजया बैंक की मंजूरी दी थी जबकि 2017 में एसबीआई में 5 सहयोगी बैंकों का विलय कर दिया गया था। सार्वजनिक बैंक के कुछ बैंक लगातार घाटे में है इसका इलाज या तो इन्हें बंद कर दिया जाय या फिर इनका एक-दूसरे के साथ विलय कर दिया जाय। सरकार का यह फैसला घाटे में चल रहे बैंकों को मजबूत बैंकों के साथ मिलाने से हालत में सुधार हो सकता है। गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने विलय को सैद्धान्तिक मंजूरी दी थी। सरकार के मुताबिक बैंकों की आर्थिक स्थिति में मदद मिलेगी इसके अलावा बढ़ती अर्थव्यवस्था में कर्ज की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र में मजबूत और प्रतिस्पर्धी बैंक तैयार करने में भी यह कारगर साबित होगा। सरकार सोचती है कि ऐसे में बैंक स्वावलम्बी बनेंगे। 
देष के 10 सरकारी बैंकों का विलय करके चार बैंक बनाने के फैसले के बाद वित्त मंत्री ने यह आष्वस्त किया है कि किसी बैंक कर्मचारी की छंटनी नहीं की जायेगी। हालांकि काम के समय में बदलाव हो सकता है। गौरतलब है कि बैंक आॅफ बड़ौदा में देना बैंक और विजया बैंक के विलय होने के बाद इन बैंक के कर्मचारियों के काम के घण्टे में बदलाव करने को कहा गया था। मगर बैंक यूनियन को वित्त मंत्री के कथन पर षायद विष्वास नहीं है और वे बैंकों के महाविलय का विरोध कर रहे हैं। वैसे मंदी के इस दौर में बैंकों का विलय इस बात का भी संकेत है कि सरकार आर्थिक संकट से जूझ रही है और मजबूती के लिए बैंकों के एकीकरण करना चाहती है। मगर हकीकत यह भी है कि बेरोज़गारी और विनिर्माण क्षेत्र के साथ आॅटोमोबाइल सेक्टर की खराब दषा के कारण अर्थव्यवस्था धूल चाट रही है और इसमें हो न हो नोटबंदी और जीएसटी प्रमुख कारण है। रोचक यह भी है कि जीएसटी से 13 लाख करोड़ हर साल अप्रत्यक्ष कर उगाही का मनसूबा रखा गया और प्रत्यक्ष कर धारकों की संख्या दोगुना कर 12 लाख करोड़ एक वित्त वर्श में उगाही की बात की जा रही वहां उस देष की अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाये ऐसे में यह समझना मुष्किल है कि किसी प्रारूप पर अर्थव्यवस्था सरकार आगे बढ़ा रही है। फिलहाल बैंकों के विलय से मजबूत अर्थव्यवस्था के संकेत अच्छे हो सकते हैं मगर आर्थिक नीति तब तक सुदृढ़ नहीं मानी जायेगी जब तक तय जीडीपी प्राप्त नहीं हो जाती है। एनपीए के बोझ से दबे इन सरकारी बैंकों के विलय पर सरकार इसलिए भी बढ़ावा दे रही है ताकि इन्हें घाटे के दौर से न गुजरना पड़े।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन  
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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