Wednesday, November 6, 2019

एनआरसी पर ठोस रणनीति बनाये सरकार

देष में नागरिक कौन है और कौन नहीं हैं इसकी चिन्ता इन दिनों तेजी लिये हुए है। देखा जाये तो यह काल और परिस्थिति के बदलाव स्वरूप लिया गया एक ऐसा फैसला है जिसके चलते सरकार गैर नागरिकों की तलाष कर रही है पर इस निर्णय के चलते सरकार की नीति और नीयत पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। इसकी एक वजह राजनीति तो दूसरी सरकार का दुरूस्त होमवर्क का ना होना भी माना जा सकता हैं। जबकि दो टूक यह है कि एनआरसी घुसपैठियों को चिन्हित करने की एक सकारात्मक व्यवस्था है जो सात दषक पुराना है हालांकि इसकी जद में केवल असम राज्य था अब पूरे देष में लाने की बात हो रही है। इन दिनों देष की जनसंख्या एक सौ पैंतीस करोड़ से अधिक हैं। फिलहाल जनसंख्या विस्फोट के चलते देष कई समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में यह कदम लाजमी है कि घुसपैठियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाए। बावजूद इसके सवाल यह है कि क्या जिस संतुलन के साथ एनआरसी को विस्तार देना चाहिए वैसा सरकार द्वारा किया जा रहा हैं। प्रष्न तो यह भी है कि एनआरसी के चलते परेषानी और बेचैनी का सामना किसे करना पड रहा है। जाहिर है घुसपैठियों की खोज में मूल नागरिक भी दस्तावेज आदि की पेषगी को लेकर कुछ समस्याऐ ंतो झेलेंगे ही। पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुलकर एनआरसी के विरोध में है। माना जा रहा है कि पष्चिम बंगाल में घुसपैठियों की संख्या एक करोड से अधिक है जो इनका वोट बैंक का भी काम कर रहे है।  
फिलहाल सच्चाई क्या है इसके लिए एक बडे षोध की आवष्यकता है मगर सरसरी तौर पर देखें तो एनआरसी का मतलब धुसपैठियों को चिन्हित करके उन्हें देष निकाला देना है पर असम में जो हालिया स्थिति बनी उसमें करीब सवा तीन करोड से अधिक जनसंख्या में 19 लाख लोग ऐसे है जो एनआरसी के चलते सूची से बाहर है जिसमें 13 लाख हिन्दू षामिल है। जिसे लेकर सरकार के समक्ष बडा सवाल यह है कि यह हिन्दू कहां से आये हैं सम्भव है कि यह या तो भारत के है और सूचीबद्ध नही हैं या फिर बंगलादेष से पलायन करके आये है स्थिति कुछ भी हो असम में सरकार जैसा सोच रही थी नतीजे वैसे नही हैं। फलस्वरूप सरकार खुद ही दुविधा में फंसी हुई है। हालंाकि इषारा यह है कि जो हिन्दू सूची से बाहर है उन्हें देष से बाहर नहीं किया जायेगा पर बाकी 6 लाख जो अन्य हैं का क्या होगा अभी कुछ भी कह पाना कठिन हैं। एनआरसी अर्थात नेषनल सिटीजन रजिस्टर पूरे देष में लागू करने की बात गृहमंत्री अमित षाह कह चुके हैं जिसे लेकर इन दिनों खूब राजनीति भी हो रही है। एनआरसी  एक ऐसा राश्ट्रीय मापन का स्वरूप है जिसके अन्र्तगत नागरिक और गैर-नागरिक का पता किया जा रहा है। एनआरसी के पूरे संदर्भ असम की दृश्टि से ही समझना सुविधादायक होगा। दरअसल असम देष का अकेला राज्य है जहां सिटीजन रजिस्टर लागू है जबकि बंगाल में इसे लागू करने की सरकार कई बार हुंकार भर चुकी है मगर यहां की सरकार इसे बिल्कुल तवज्जों नहीं देना चाहती जबकि उत्तराखंड, हरियाणा व उत्तर प्रदेष समेत कई प्रान्त  इसे लागू करने की बात दोहरा चुके हैं। 
असम में पहली बार एनआरसी 1951 में बना था तब बने रजिस्टर में उसी साल हुई जनगणना ने षामिल हर व्यक्ति को राज्य का नागरिक माना गया था। वक्त बीतने के साथ भूगोल और इतिहास भी बदल गया। इस बदलाव ने बीते कुछ सालों से एक नई आवाज इस रूप में आयी की एक बार फिर एनआरसी को अपडेट किया जाये। जिसके चलते असम में एक बार फिर एनआरसी की रोपाई हुई। दरअसल पिछले कई दषकों से राज्य में पडोसी देषों खासकर बंगालदेष से हो रही अवैध घुसपैठ ने एनआरसी की आवाज को बुलन्द किया। जिसे देखते हुए असम में 2013 में एनआरसी कार्यालय बना मगर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम 2015 में षुरू हुआ। पहली सूची 2017 में तो 2018 में प्रकाषित हुई। जिसके बाद उक्त चित्र सामने आया और षायद सरकार के सामने एक अलग चुनौती भी खडी हो गई बावजूद इसके सरकार इसे भारत के पूरे मानचित्र पर उतारना चाहती है। गौरतलब है भारतीय संविधान के भाग-2 में अनुच्छेद 5 से 11 के बीच नागरिकता की चर्चा है। 1951 में जब एनआरसी असम में लाया गया तब बंगलादेष नही बना था ऐसे में अब इसमें संषोधन लाना जरूरी समझा गया। इसी के चलते अब सिर्फ उन लोगो का नाम सूची में षामिल किया गया जो 25 मार्च 1971 के पहले से असम में रह रहे है पर इस सूची में 19 लाख लोग षामिल नहीं है जिसके चलते तनाव  व आक्रोष का माहौल व्याप्त है। वैसे देखा जाये तो 1971 से 1991 के बीच असम में बडी संख्या में मतदाता बढे थे इससे लगता है कि घुसपैठ तेजी से हुआ था। 
असल मुद्दा क्या है इस पर भी गौर करने की जरूरत है। 1979 में आॅल असम स्टूडेंट्स यूनियन और आॅल असम गण संग्राम परिशद ने असम में अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों के खिलाफ हिंसक आन्दोलन छेड दिया जो 6 वर्श तक जारी रहा। साल 1995 में भारत सरकार और इन संगठनों के बीच समझौते के चलते हिंसा पर रोक लगी और असम में नई सरकार का गठन हुआ। इसी समझौते में एक अहम बात यह भी थी 1951 के एनआरसी में संषोधन किया जायेगा जिसके फलस्वरूप मोदी सरकार का एनआरसी पर स्टैण्ड इन दिनों काफी कड़ा दिखायी दे रहा है। इसमें कोई दुविधा नहीं की म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान और बंगलादेषी नागरिक पूर्वेत्तर समेत पष्चिम बंगाल में घुसपैठ किये है। षायद रोहिंग्या देष के अन्य हिस्सों में मिल सकते हैं और यही बात बांग्लादेषियों के लिए भी कहा जा सकता है।  एनआरसी के लागू होने से अनागरिकों की पहचान तो सम्भव है पर यह इतना आसान काज षायद नहीं है। वैसे सरकार जिस षीघ्रता से मैदान मारने की फिराक में रहती है वह भी लोगों की बेचैनी का मूल कारण हो सकता है। खबर तो यह भी है कि पूरे देष में एनआरसी लागू होने की बात से पष्चिम बंगाल में कुछ ने आत्महत्या भी कर लिया है। एनआरसी घुसपैठियों की पहचान कराने में मदद तो करेगी मगर उसके बाद सरकार का क्या कदम होगा इस पर भी उन्हें षायद अभी होमवर्क करना बाकी है।   

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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