गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी आगामी 21 से 27 सितम्बर तक अमेरिका की यात्रा पर रहेंगे। जहां वे संयुक्त राश्ट्र महासभा के वार्शिक सत्र को सम्बोधित करेंगे और ट्रंप के साथ द्विपक्षीय बातचीत के अलावा दोनों नेता नफे-नुकसान को ध्यान में रखकर कूटनीति को भी साधने की कवायद करेंगे। ह्यूस्टन में अमेरिकी राश्ट्रपति ट्रंप के साथ हाउडी मोदी नामक कार्यक्रम के तहत दोनों मुखिया एक साथ मंच पर दिखेंगे। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका और सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के बीच रणनीतिक रिष्ते को दर्षाने का यह एक और बड़ा अवसर है। जाहिर है जब-जब भारत और अमेरिका के बीच सम्बंधों की लम्बी छलांग लगायी जाती है तब-तब चीन समेत पाकिस्तान को यह बहुत अखरता है और इस बार तो पाकिस्तान के जले पर यह नमक छिड़कने जैसा ही है। गौरतलब है कि जम्मू-कष्मीर से अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद पाकिस्तान बीते 5 अगस्त से दुनिया की निगाह इस ओर खींचने में लगा है और यह दुश्प्रचार करने का प्रयास कर रहा है कि मानो भारत ने कोई ज्यादती की हो। हालांकि उसे इस मामले में कोई सफलता नहीं मिली है और न ही कोई देष उसके रूख पर उसका आषातीत हौंसला अफजाई किया है। चीन से भी उसे काफी हद तक निराषा ही मिली पर अभी पाक चाल चलने के मामले में पीछे नहीं है। इसी यात्रा में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से भी मोदी की मुलाकात हो सकती है। हालांकि जिस स्थिति में पड़ोसी ने भारत के खिलाफ तलवार खींची है उससे साफ है कि न ही मुलाकात की सम्भावना दिखती है और न तो हाथ मिलेंगे। अमेरिका से भारत का सम्बंध कई दृश्टि से आज भी बहुत प्रगाढ़ है। हालांकि कई व्यापारिक समस्याओं के चलते सम्बंध अपने अक्ष से थोड़ा खिसका हुआ प्रतीत होता है। विदेषी दौरे के दौरान मोदी भारतीय मूल के लोगों को सम्बोधित करने की एक ऐसी परम्परा विकसित की है जिसके बगैर यात्रा मानो अधूरी रहती है। सितम्बर 2014 में जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री के तौर पर अमेरिका की यात्रा पर थे तब उत्तर अटलांटिक महासागर के पष्चिमी किनारे पर बसे इस देष में वैचारिक सुनामी आई थी और यह गूंज मेडिसिन स्क्वायर न्यूयाॅर्क से उठी थी जब मोदी ने यहां 20 हजार की एक बड़ी तादाद को धारा प्रवाह हिन्दी में सम्बोधन किया था। ऐसा ही कुछ नजारा इस बार ह्यूस्टन के एनआरजी स्टेडियम में आगामी 22 सितम्बर को देखने को मिलेगा जब 50 हजार भारतीयों को मोदी सम्बोधित करेंगे और मंच को साझा करने में डोनाल्ड ट्रंप भी उपस्थित रहेंगे। इसी कार्यक्रम को हाउडी मोदी नाम दिया गया है जिसका अर्थ है आप कैसे हैं?
ह्यूस्टन में मोदी और ट्रंप के एकमंचीय होने को लेकर दुनिया अलग-अलग अर्थ निकाल रही है। मोदी और ट्रंप की यह इस साल की तीसरी मुलाकात होगी इससे पहले दोनों की मुलाकात क्रमषः जापान में बीते जून में जी-20 षिखर सम्मेलन में और जुलाई 2019 में जी-7 षिखर सम्मेलन के दौरान फ्रांस में हुइ्र थी। अब यह तीसरी मुलाकात अमेरिका इण्डिया स्ट्रैटेजिक एवं पार्टनरषिप फोरम की दृश्टि से कहीं अधिक महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। ह्यूस्टन अमेरिका की ऊर्जा राजधानी के रूप में जानी जाती है ऐसे में इसका महत्व बढ़ जाता है। गौरतलब है इसी साल भारत में अमेरिका का ऊर्जा निर्यात कुल निर्यात का 75 फीसदी रहा है। इतना ही नहीं दोनों ही देषों की कम्पनियां दोनों देषों में निवेष और रणनीति साझेदारी पर सक्रियता भी दिखा रही है। अमेरिकी न्यूज एजेंसी सीएनएन भी यह कह चुका है कि हाउडी मोदी का मकसद अमेरिकी भारत-सम्बंध को और मजबूती देना है। इससे यह भी स्पश्ट होता है कि व्यापारिक व रणनीतिक तौर पर मसलन रूस से एस-400 की खरीदारी और ईरान से बीते मई से तेल न लेने की अमेरिकी दबाव के बावजूद अवसर के अनुसार भारत और अमेरिका एक नई रिष्तेदारी कायम कर लेते हैं। मोदी अभी हाल ही में रूस भी गये थे। जबकि अमेरिका और रूस के बीच सम्बंध पटरी पर नहीं है पर खास यह है कि भारत दोनों की पटरी पर सरपट दौड़ता है। चीन के साथ भी अमेरिका ट्रेड वाॅर से अभी मुक्त नहीं हुआ है। भारत के साथ भी सीमा षुल्क को लेकर तनाव दोनों देषों के बीच तनाव बढ़े हैं। बावजूद इसके दोनों देषों के अधिकारियों के बीच तनावपर्ण व्यापार, वार्ता और कष्मीर मामले को लेकर सरकार की आलोचना के बीच भारत के प्रति अमेरिका का समर्थन यह दर्षाता है कि वह कुछ भी हो वह भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकता। अमेरिका के सांसदों ने जम्मू-कष्मीर की स्थिति को लेकर गहरी चिंता जाहिर की थी। इससे कुछ हद तक पाकिस्तान को बल मिला है पर व्हाइट हाउस से उसे कुछ हासिल षायद ही हो। हालांकि पाकिस्तान को यह उम्मीद है कि अमेरिका उसकी कुछ मदद करेगा। फाइनेंषियल एक्षन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की काली सूची में डाले जाने के डर से और अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश (आईएमएफ) की कड़ी षर्तों से राहत पाने का मार्ग तलाष रहा है। गौरतलब है कि आईएमएफ ने खस्ता हाल अर्थव्यवस्था से उबारने के लिए पाकिस्तान को 6 अरब डाॅलर का कर्ज देने की हामी भरी थी। जबकि एफटीएफ की आगामी 13 से 18 के बीच पेरिस में एक महत्वपूण्र बैठक होने जा रही है जिसमें आतंकी फण्डिंग पर अंकुष लगाने के लिए पाकिस्तान ने क्या कदम उठाया इसका आंकलन किया जायेगा। यदि वह उसमें खरा नहीं उतरा तो उसे काली सूची में डाल दिया जायेगा। अभी वह ग्रे सूची में है। वैसे एफटीएफ से सम्बंध एषिया-प्रषांत समूह (एपीजी) ने बीते अगस्त पाकिस्तान को काली सूची में डाल दिया। गौरतलब है कि आॅस्ट्रेलिया के केनबरा मेे बैठक के दौरान पाकिस्तान 40 मानकों में से 32 का पालन करने में विफल पाया गया था।
संसार के सबसे ताकतवर राश्ट्रपति अपनी दूसरी पारी के लिए भारत की ओर ताक रहे हैं। गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप नवम्बर 2016 में अमेरिका के राश्ट्रपति चुने गये थे और 20 जनवरी, 2017 को व्हाइट हाउस में प्रवेष किया था। इस तरह अब उनका तीन साल का कार्यकाल लगभग पूरा हो रहा है और नवम्बर 2020 में एक बार फिर राश्ट्रपति बनने के लिए जुगत भिड़ा रहे हैं। आगामी चुनाव के लिए भी डोनाल्ड ट्रंप अपनी उम्मीदवारी का एलान पहले ही कर चुके हैं। दुनिया में पिछले कुछ सालों से भारत का प्रखर प्रभाव रहा है। उसी कड़ी में मोदी ने इसे और विस्तारित कर दिया है। स्पश्ट है कि यह दौरा भारत और अमेरिका के बीच कई बकाया द्विपक्षीय वार्ता को जमीन पर उतर सकता है। जाहिर है दोनों के बीच व्यापारिक कठिनाईयां सरल हो सकती हैं, विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में धारा को और प्रवाह मिल सकता है, रक्षा मसौदे को लेकर भी आम सहमति रहेगी। यह बात सच है कि पिछले कुछ समय में ट्रंप प्रषासन ने कई मुद्दों पर बुनियादी रिष्तों में दरार डाला है पर अब ऐसा लगता है कि बराक ओबामा में षासनकाल वाली दोस्ती अब एक-दूसरे को फिर रास आने लगी है। एक तरफ मध्य-पूर्व एषिया का संकट गहराया हुआ है जहां भारत, ईरान और अमेरिका दोनों ही देषों से सम्बंधों को बना कर रखना चाहता है वहीं अमेरिका ईरान से तेल लेने में खलल पैदा किये हुए है। भारत के साथ सम्बंध बेहतर करने में अमेरिका के अपने हित भी हैं। तकरार और इकरार के बीच व्यापार और रणनीतिक मुद्दों पर भारत अमेरिका सम्बंधों में जो मुष्किलें उभरी हैं उसकी कुछ वजह चीन का ट्रेड वाॅर भी रहा है। मगर मोदी की इस बार की सितम्बर यात्रा इस उम्मीद से भरी है कि दोनों ही पक्ष मुद्दों को बातचीत से सुलझा लेंगे। खास यह भी है कि ट्रंप मोदी के सहारे अमेरिका में पुनः काबिज होने की फिराक में भी हैं। पड़ताल बताती है कि मोदी पहली बार 26 से 30 सितम्बर 2014 में अमेरिका गये फिर 2015 में 24 से 30 सितम्बर के बीच यात्रा की अब एक बार फिर 22 सितम्बर से उनकी यात्रा प्रारम्भ होगी। हालांकि 2016 में दो बार और 2017 में भी मोदी अमेरिका जा चुके हैं।
सुशील कुमार सिंह
ह्यूस्टन में मोदी और ट्रंप के एकमंचीय होने को लेकर दुनिया अलग-अलग अर्थ निकाल रही है। मोदी और ट्रंप की यह इस साल की तीसरी मुलाकात होगी इससे पहले दोनों की मुलाकात क्रमषः जापान में बीते जून में जी-20 षिखर सम्मेलन में और जुलाई 2019 में जी-7 षिखर सम्मेलन के दौरान फ्रांस में हुइ्र थी। अब यह तीसरी मुलाकात अमेरिका इण्डिया स्ट्रैटेजिक एवं पार्टनरषिप फोरम की दृश्टि से कहीं अधिक महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। ह्यूस्टन अमेरिका की ऊर्जा राजधानी के रूप में जानी जाती है ऐसे में इसका महत्व बढ़ जाता है। गौरतलब है इसी साल भारत में अमेरिका का ऊर्जा निर्यात कुल निर्यात का 75 फीसदी रहा है। इतना ही नहीं दोनों ही देषों की कम्पनियां दोनों देषों में निवेष और रणनीति साझेदारी पर सक्रियता भी दिखा रही है। अमेरिकी न्यूज एजेंसी सीएनएन भी यह कह चुका है कि हाउडी मोदी का मकसद अमेरिकी भारत-सम्बंध को और मजबूती देना है। इससे यह भी स्पश्ट होता है कि व्यापारिक व रणनीतिक तौर पर मसलन रूस से एस-400 की खरीदारी और ईरान से बीते मई से तेल न लेने की अमेरिकी दबाव के बावजूद अवसर के अनुसार भारत और अमेरिका एक नई रिष्तेदारी कायम कर लेते हैं। मोदी अभी हाल ही में रूस भी गये थे। जबकि अमेरिका और रूस के बीच सम्बंध पटरी पर नहीं है पर खास यह है कि भारत दोनों की पटरी पर सरपट दौड़ता है। चीन के साथ भी अमेरिका ट्रेड वाॅर से अभी मुक्त नहीं हुआ है। भारत के साथ भी सीमा षुल्क को लेकर तनाव दोनों देषों के बीच तनाव बढ़े हैं। बावजूद इसके दोनों देषों के अधिकारियों के बीच तनावपर्ण व्यापार, वार्ता और कष्मीर मामले को लेकर सरकार की आलोचना के बीच भारत के प्रति अमेरिका का समर्थन यह दर्षाता है कि वह कुछ भी हो वह भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकता। अमेरिका के सांसदों ने जम्मू-कष्मीर की स्थिति को लेकर गहरी चिंता जाहिर की थी। इससे कुछ हद तक पाकिस्तान को बल मिला है पर व्हाइट हाउस से उसे कुछ हासिल षायद ही हो। हालांकि पाकिस्तान को यह उम्मीद है कि अमेरिका उसकी कुछ मदद करेगा। फाइनेंषियल एक्षन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की काली सूची में डाले जाने के डर से और अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश (आईएमएफ) की कड़ी षर्तों से राहत पाने का मार्ग तलाष रहा है। गौरतलब है कि आईएमएफ ने खस्ता हाल अर्थव्यवस्था से उबारने के लिए पाकिस्तान को 6 अरब डाॅलर का कर्ज देने की हामी भरी थी। जबकि एफटीएफ की आगामी 13 से 18 के बीच पेरिस में एक महत्वपूण्र बैठक होने जा रही है जिसमें आतंकी फण्डिंग पर अंकुष लगाने के लिए पाकिस्तान ने क्या कदम उठाया इसका आंकलन किया जायेगा। यदि वह उसमें खरा नहीं उतरा तो उसे काली सूची में डाल दिया जायेगा। अभी वह ग्रे सूची में है। वैसे एफटीएफ से सम्बंध एषिया-प्रषांत समूह (एपीजी) ने बीते अगस्त पाकिस्तान को काली सूची में डाल दिया। गौरतलब है कि आॅस्ट्रेलिया के केनबरा मेे बैठक के दौरान पाकिस्तान 40 मानकों में से 32 का पालन करने में विफल पाया गया था।
संसार के सबसे ताकतवर राश्ट्रपति अपनी दूसरी पारी के लिए भारत की ओर ताक रहे हैं। गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप नवम्बर 2016 में अमेरिका के राश्ट्रपति चुने गये थे और 20 जनवरी, 2017 को व्हाइट हाउस में प्रवेष किया था। इस तरह अब उनका तीन साल का कार्यकाल लगभग पूरा हो रहा है और नवम्बर 2020 में एक बार फिर राश्ट्रपति बनने के लिए जुगत भिड़ा रहे हैं। आगामी चुनाव के लिए भी डोनाल्ड ट्रंप अपनी उम्मीदवारी का एलान पहले ही कर चुके हैं। दुनिया में पिछले कुछ सालों से भारत का प्रखर प्रभाव रहा है। उसी कड़ी में मोदी ने इसे और विस्तारित कर दिया है। स्पश्ट है कि यह दौरा भारत और अमेरिका के बीच कई बकाया द्विपक्षीय वार्ता को जमीन पर उतर सकता है। जाहिर है दोनों के बीच व्यापारिक कठिनाईयां सरल हो सकती हैं, विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में धारा को और प्रवाह मिल सकता है, रक्षा मसौदे को लेकर भी आम सहमति रहेगी। यह बात सच है कि पिछले कुछ समय में ट्रंप प्रषासन ने कई मुद्दों पर बुनियादी रिष्तों में दरार डाला है पर अब ऐसा लगता है कि बराक ओबामा में षासनकाल वाली दोस्ती अब एक-दूसरे को फिर रास आने लगी है। एक तरफ मध्य-पूर्व एषिया का संकट गहराया हुआ है जहां भारत, ईरान और अमेरिका दोनों ही देषों से सम्बंधों को बना कर रखना चाहता है वहीं अमेरिका ईरान से तेल लेने में खलल पैदा किये हुए है। भारत के साथ सम्बंध बेहतर करने में अमेरिका के अपने हित भी हैं। तकरार और इकरार के बीच व्यापार और रणनीतिक मुद्दों पर भारत अमेरिका सम्बंधों में जो मुष्किलें उभरी हैं उसकी कुछ वजह चीन का ट्रेड वाॅर भी रहा है। मगर मोदी की इस बार की सितम्बर यात्रा इस उम्मीद से भरी है कि दोनों ही पक्ष मुद्दों को बातचीत से सुलझा लेंगे। खास यह भी है कि ट्रंप मोदी के सहारे अमेरिका में पुनः काबिज होने की फिराक में भी हैं। पड़ताल बताती है कि मोदी पहली बार 26 से 30 सितम्बर 2014 में अमेरिका गये फिर 2015 में 24 से 30 सितम्बर के बीच यात्रा की अब एक बार फिर 22 सितम्बर से उनकी यात्रा प्रारम्भ होगी। हालांकि 2016 में दो बार और 2017 में भी मोदी अमेरिका जा चुके हैं।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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