Tuesday, November 12, 2019

आपसी भरोसा बढ़ने में सहायक महाबलीपुरम मीट

    गौरतलब हैे प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राश्ट्रपति षी जिनपिंग के बीच दो दर्जन से अधिक मुलाकात साढे पांच वर्शों में हो चुकी हैं। बावजूद इसके दोनों नेताओं की केमिस्ट्री सीमा विवाद और चीन का पाकिस्तानी झुकाव सहित कई अन्य मुद्दों के चलते खास रूप नहीं ले पायी। हालाकि मोदी और जिनपिंग आपस में कई द्विपक्षीय बकाया मामलों को लेकर सघन बातचीत करते रहें हैं और उसी कड़ी में महाबलीपुरम की यह अनौपचारिक मुलाकात एक नई ताकत को प्रदर्षित करती है। जून 2017 के डोकलाम विवाद को छोड़ दिया जाये तो दोनों के देषों के बीच इतने समय में संबंध को लेकर कोई खास दिक्कत नहीं रही। ऐसे में यह समझना सही होगा कि तमाम मुलाकातों ने आपसी उलझनों को भले ही पूरी तरह समाधान न दिया हो पर उन्हें और बड़ा होने से तो रोका ही है। वैसे कूटनीतिक फलक पर भारत इस समय कहीं अधिक बढे़ हुए कद के साथ दुनिया में देखा जा सकता है। इसी के चलते उसका वैष्विक फलक भी आसमान छू रहा हैं और षायद यही कारण है कि कई कटुता के बावजूद चीन द्विपक्षीय संबंधों में उतनी कड़वाहट नही डाल पाता जितना वह कूटनीतिक तौर पर सोचता है। दक्षिण भारत के पारम्परिक वेषभूशा में स्वंय को समेटे प्रधानमंत्री मोदी और सामान्य वेषभूशा में दिख रहे षी जिनपिंग के बीच मामल्लमपुरम (महाबलीपुरम) में करीब 6 घंटे की आपसी बातचीत ये इषारा करती हैं कि विरासत की जमीन पर नये रिष्तों की कदमताल भविश्य की बेहतरी के लिये एक आगाज है। गौरतलब है कि चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग बीत 11 और 12 अक्टूबर को तमिलनाडू के महाबलीपुरम में उपस्थित थे। मोदी ने चीन के राश्ट्रपति को उन ऐतिहासिक धरोहरों से रूबरू कराया जो निहायत अनमोल है। जिस तरह षी जिनपिंग का यहां स्वागत हुआ उससे वे भी गदगद थे। गौरतलब है पल्लवों की षिल्प नगरी रही मामल्लपुरम और यूनस्कों विरासत सूची में षामिल स्मारकों का दोनों नेताओं ने दीदार किया। 
गौरतलब है कि 7वीं षताब्दी में चीनी यात्रा हवेनसांग कांचीपुरम का भ्रमण किया था। इस आधार पर चीन और महाबलीपुरम का 1700 सौ वर्श पुराना नाता है लिहाजा विरासत की जमीन पर दुनिया के दो सबसे बडे ताकतवर नेताओं ने द्विपक्षीय रिष्तों को आगे बढाने के कोषिष की। चीनी राश्ट्रपति का भारत में ऐसे समय में आगमन हुआ जब दोनों देषों के बीच कोई जटिल मसला नहीं है। अप्रैल 2018 में चीन के वुहान की यात्रा प्रधानमंत्री मोदी इसी तर्ज पर पहले कर चुके है जिस तरह चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग ने महाबलीपुरम की यात्रा की है। वुहान औपचारिक षिखर सम्मलेन के बाद द्विपक्षीय संबंधों में गति आई थी। सम्भव है कि महाबलीपुरम की यात्रा के बाद सहयोग न केवल आगे बढ़ेगें बल्कि मतभेदों को भी बेहतर तरीके से मैनेज किया जायेगा। खास यह भी है कि कष्मीर मामले से चीन दूरी बनाये रखा और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान को दिये उस नसीहत को ही अमल किया कि यह मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच हल किया जाना चाहिए। चीनी राश्ट्रपति का महाबलीपुरम आना कूटनीतिक दृश्टि से भारत के हित में दिखाई देता है। गौरतलब है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख और प्रधानमंत्री दोनों ठीक इस यात्रा से पहले चीन जाकर जिंनपिंग से मुलाकत कर अपने द्विपक्षीय रिष्तों को मुखर करने का प्रयास कर चुके है। कूटनीतिक तौर पर देखें तो मोदी और जिंनपिंग की महाबलीपुरम में   हुई मुलाकात पाक-चीन आपसी रिष्तों को बहुत बड़ा होने से पहले बौना करने का भी काम किया है। हालाकि षी जिनपिंग का चेन्नई से काठमांडू की उड़ान और नेपाल के साथ द्विपक्षीय संबंध और सन्दर्भ पर भारत की दृश्टि रहेगी। भारत की यात्रा सामप्त कर 12 अक्टूबर को जिनपिंग सीधे नेपाल चले गये। गौरतलब है कि चीन की दृश्टि नेपाल और भूटान जैसे देषों पर हमेषा रही है। अब तक के पूरे कार्यकाल में जिनपिंग की यह पहली नेपाल यात्रा है। भारत और चीन के बीच नेपाल एक बफर स्टेट का काम करता रहा है और चीन की नीयत दक्षिण एषियाई देषों पर हमेषा मतलबपरस्ती वाली रही है। नेपाल के मामले में तो वह हर सम्भव प्रयास करता है कि उसका झुकाव भारत के बजाय उसकी तरफ रहे। ऐसे में आर्थिक प्रलोभन से लेकर अन्य सहायता के लिए वह हमेषा तैयार रहता है।
वैसे दुनिया में जिस तरह का बदलाव चल रहा है उसे देखते हुए पडोसी देषों को आपसी भरोसा बढ़ा लेना चाहिए। इससे एक-दूसरे के प्रति समझ-बूझ के साथ बेहतर परिणाम की उम्मीद बढ़ जाती है। चूंकि महाबलीपुरम में मोदी और जिनपिंग के बीच यह एक अनौपचारिक वार्ता थी ऐसे में पूरी तरह बातचीत का खुलासा न हो, पर दोनों देषों के हित में यह मुलाकात काम जरूर करेगी। विदेष सचिव के हवाले से यह बात सामने आयी है कि प्रधानमंत्री मोदी और राश्ट्रपति जिनपिंग इस बात से सहमत है कि मौजूदा दुनिया में आतंकवाद और कट्टरपंथ की चुनौतियों से निपटना जरूरी है। जैसा कि कष्मीर मुद्दे को लेकर दोनों नेताओं के बीच कोई बातचीत न होने के भी खास मायने है। इसके अलावा दोनों नेताओं का यह कहना कि भारत और चीन न सिर्फ आबादी के लिहाज से बडे़ बल्कि विविधता के हिसाब से भी दोनों बडे़ ही है, इन बातों में भी बराबरी का नाप-तौल दिखाई देता है। मुलाकात कि इसी कड़ी में जिनपिंग ने मोदी को चीन आने का न्यौता दिया है सम्भव है कि अगले साल मोदी चीन की यात्रा करेंगे। फिलहाल जिनपिंग द्वारा भारत की यह दो दिवसीय यात्रा भले ही अनौपचारिक रही हो पर आतंक और व्यापार की दृश्टि से काफी महत्वपूर्ण मानी जा सकती है और ऐसी स्थिति में तब, जब अमेरिका और चीन के बीच टेªडवार सुलझा न हो और कष्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पाकिस्तान दुनिया समेत चीन से समर्थन की चाह रखता हो।
 11-12 अक्टूबर को चीन के राश्ट्रपति और प्रधानमंत्री मोदी की महाबलीपुरम में हुई मुलाकात एक स्टैªटजिक कम्युनिकेषन का हिस्सा है जिसमें दोनों ने उद्देष्य लक्ष्य और भविश्य की चर्चा की। कैसे एक देष दूसरे को सहयोग कर सकता है सम्भव है यह बात भी हुई होगी पर इसे अन्य देषों की द्विपक्षीय रिष्तों की भांति नहीं देखा जा सकता। भारत-चीन का रिष्ता थोडा पेचीदा है आबादी और जीडीपी के लिहाज से दोनों एषिया के सबसे बड़े देष है। ऐसे में पाकिस्तान यहां कोई मायने नहीं रखता पर नेपाल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि जिस पीओके को भारत अपना अटूट हिस्सा मानता है वहीं से चीन इकोनाॅमिक काॅरेडोर बना रहा है जिसे लेकर भारत अपनी आपत्ति जता चुका है। ऐसा देखा गया है कि मुलाकातों के सिलसिलों के बावजूद चीन मौकापरस्ती को हाथ से नहीं जाने देता। ऐसे में भारत को भी कोई संकोच नहीं करना चाहिए। चीन, भारत के खिलाफ पाकिस्तान को न केवल मोहरा बनाता रहा है बल्कि भूटान और नेपाल समेत हिन्द महासगर में स्थित मालदीव और श्रीलंका पर भी दृश्टि गढ़ाये रखता है। भारत और चीन के बीच सौ अरब डाॅलर के व्यापार को लेकर एमओयू हुआ है। मौजूदा समय में यह आंकड़ा 95 अरब डाॅलर को पार कर चुका है। दुनिया के अलग-अलग देषो के साथ भारत का कुल व्यापार 105 अरब डाॅलर का है जिसमें से केवल चीन के साथ यह घाटा 53 अरब डाॅलर का है। जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तब यह घाटा 36 अरब डाॅलर के आस-पास था। जाहिर है चीन से आयात बढ़ता ही जा रहा है। आगे दीपावली है बाजार चीनी माल से भर जायेगें। चीन में नौकरियाॅं पैदा हो रही है। चीन का ही दावा है कि भारत में एक हजार कम्पनियाॅ खुल गई है। तमाम विवादों के बावजूद चीन भारत के साथ इसलिए संबंध खराब नहीं करता क्योंकि उसके उत्पादों का बाजार यहीं सजता है। दो टूक यह भी है कि भारत में चीन का व्यापार कितना भी बडा क्यों न हो वह अरूणाचल से कष्मीर तक नेपाल से हिन्द महासागर तक कुटिल दृश्टि से बाज नहीं आता है। 
  


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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